भारत Vs चीन: रेल व्यवस्था की तुलनात्मक तस्वीर 

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अक्सर भारत और चीन की आपस में तुलना की जाती है। 1947 में भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी, जबकि चीन को दो वर्ष बाद 1949 में जापानी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ते हुए नवजनवादी क्रांति मिली थी। भारत ने एक लोकतंत्र पर आधारित गणराज्य को अंगीकार किया और पूंजीवादी एवं समाजवादी व्यवस्था के सकारात्मक पहलुओं को अपनी आर्थिक नीति में ढालते हुए मिश्रित अर्थव्यस्था की शुरुआत की। जबकि चीन नवजनवादी क्रांति के अपने दौर से चीन की अर्थव्यस्था को समाजवादी मॉडल की दिशा में ले गया। 

80 के दशक से दोनों देशों ने अपनी नीतियों में बदलाव लाये। दोनों देशों की विशाल आबादी लंबे दौर से औपनिवेशिक शासनकाल और विदेशी आक्रमणों के चलते बेहद गरीबी, अशिक्षा और दो जून की रोटी के लिए जूझ रही थी, और दोनों देशों के सामने एक बार फिर से अपने देश और जनता को बुनियादी सुविधाओं एवं प्रगति के पथ पर अग्रसर करने की चुनौती थी।

यातायात के साधनों में क्या प्रगति हुई, यह इस विकास का एक बुनियादी बैरोमीटर है, जिसके माध्यम से देश के भीतर देशवासी अबाध रूप से एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक आ-जा सकते हैं, और उद्योग, व्यापार एवं पर्यटन के लिए भी अपार संभावनाएं खुलती हैं। भारत में अंग्रेजों ने आजादी पूर्व ही रेल की पटरियों को बड़े पैमाने पर बिछाने का काम कर दिया था, क्योंकि इसके जरिये ही वह ज्यादा से ज्यादा देश की खनिज संपदा का दोहन कर सकते थे। लिहाजा चीन की तुलना में भारत में रेलवे पहले से ही उन्नत स्थिति में पहुंच चुका था।

लेकिन आज 75 वर्ष बाद इन दोनों देशों की स्थिति क्या है? आज भारत में रेलवे का नेटवर्क 68,525 किमी का है, वहीं चीन में यह भारत से दुगुने से भी अधिक हो चुका है। चीन कुल 1,55,000 किमी लंबा रेल नेटवर्क बना चुका है, जबकि 1947 में इसका रेल नेटवर्क भारत की तुलना में आधा था। लेकिन 2018 तक चीन में 80,000 किमी रेलमार्ग का विद्युतीकरण पूरा हो चुका था। इतना ही नहीं 42,000 किमी लंबा रेल मार्ग हाई स्पीड ट्रेन के लिए बनाया जा चुका है। इसकी तुलना में भारत में स्थिति काफी खस्ताहाल हो चुकी है।

चीन में रेलवे की शुरुआत 1878 में हुई, जिसकी लंबाई मात्र 15 किमी थी, जिसे ब्रिटिश व्यवसायी द्वारा निर्मित किया गया था, और एक साल बाद इसे ध्वस्त कर दिया गया। 1911 तक करीब 9,000 किमी रेल ट्रैक बिछाया जा सका था, जो विकसित देशों की तुलना में तब बेहद पिछड़ी अवस्था थी। 1949 तक भी चीन में रेल नेटवर्क में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ सका था, और मात्र 27,000 किमी रेल नेटवर्क था, जिसमें से आधा हिस्सा सिर्फ मंचूरिया में था।

चीनी क्रांति के बाद के पहले 20 वर्षों में रेल लाइन 40,000 किमी और 2012 तक आते-आते करीब 1 लाख किमी रेल लाइन का जाल बिछ चुका था। 2022 तक यह बढ़कर 1,55,000 लाख किमी हो गया। लेकिन साथ ही रेल इंजन, पटरी और सेफ्टी को लेकर काफी काम किया गया है। 2035 तक चीन ने 2 लाख किमी लंबी रेल लाइन का जाल बिछाने का लक्ष्य रखा है।

पिछले 20 वर्षों में चीन ने हाई स्पीड ट्रेन नेटवर्क पर काफी काम किया है। इसके लिए 8 हाई स्पीड कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, जिसकी कुल लंबाई 12,000 किमी है। हाई स्पीड रेल लाइन में अधिकतम 300-350 किमी प्रति घंटे की स्पीड से ट्रेन का संचालन किया जाता है, जबकि मिश्रित हाई स्पीड नेटवर्क में 200-250 किमी प्रति घंटे की स्पीड उच्चतम गति पर ट्रेन चलती हैं।

बढती जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए पहले की तुलना में अधिक ट्रेनों को चलाने के साथ-साथ रफ्तार में वृद्धि भी आवश्यक है। इसके लिए ट्रैक में भी आवश्यक परिवर्तन बेहद जरूरी हो जाता है। आज भारत में अधिकतम रफ्तार की ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस है, जिसकी अधिकतम गति सीमा 200 किमी प्रति घंटा है, जो औसत 64 किमी/प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही है। लेकिन इसके लिए भी ट्रैक, सिग्नल एवं अन्य जरूरी सुरक्षा उपायों को अपनाया जाना उतना ही जरूरी हो जाता है।

रेलवे लाइन के मामले में चीन ने भारत को 1997 में जाकर पछाड़ा, जब उसने 66,000 किमी लंबा रेल नेटवर्क खड़ा कर लिया। लेकिन चीन यहीं पर नहीं रुका और आज उसके पास भारत से दुगुने से भी अधिक दूरी का रेल नेटवर्क मौजूद है, और भविष्य के लिए भी उसके पास ठोस योजना है।

आज विश्व में विकसित रेल प्रणाली की व्यवस्था वाले देशों में चीन सबसे अग्रणी देश है, जिसका रेल नेटवर्क एशिया और यूरोप के देशों तक फ़ैल चुका है। चीन के अलावा जापान, फ़्रांस, स्पेन, जर्मनी, इटली, स्वीडन, इंग्लैंड और तुर्की को रखा जाता है। यहां पर अधिकांश ट्रेनें 200-350 किमी की अधिकतम रफ्तार से दौड़ती हैं, और इसके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं।

इसके उलट भारत में औसत गति 50 किमी प्रति घंटे और अधिकतम 120-140 किमी प्रति घंटे है। इतनी धीमी रफ्तार के बावजूद भारत में ट्रेन दुर्घटना एक आम बात है। ट्रेन दुर्घटनाओं पर हाल ही में जारी सीएजी की रिपोर्ट साफ़ इशारा करती है कि पटरी से उतरने संबंधी दुर्घटना का प्रतिशत सबसे अधिक है। आज भारत की रेलवे को पाकिस्तान, तंजानिया, कांगो, मिश्र, नाइजीरिया और मेक्सिको की रेल व्यवस्था से बेहतर माना जा सकता है।

आज भारत में रेल की बुनियादी जरूरतों में सुधार और अपग्रेडेशन की जरूरत है। इसके लिए आवश्यक फण्ड नहीं है। बजट में जितना प्रावधान किया जाता है, उसे भी खर्च नहीं किया जाता। सारा ध्यान चंद नई ट्रेन सेवाओं को हरी झंडी दिखाकर उद्घाटन और प्रचार में लगा हुआ है। भारतीय रेल देश की लाइफ-लाइन के बजाय वोट देने वाली दुधारू गाय बना दी गई है, जिसमें लाखों की संख्या में रिक्तियों को वर्षों से नहीं भरा जा रहा है।

रेल बजट को भी 2017-18 में समाप्त कर आम बजट में समाहित कर दिया गया था। अब रेलवे के बारे में संसद में अलग से कोई चर्चा भी नहीं होती। रेलवे की बात सिर्फ पीएम मोदी के किसी नई ट्रेन के उद्घाटन या ट्रेन दुर्घटना पर आम लोगों की जुबान पर आती है।

मौजूदा 15,000 किमी रेल लाइन (ट्रंक रूट) को 160-200 किमी/घंटे की रफ्तार के लायक और 10,000 किमी हाई स्पीड लाइन बनाने के लिए 7 लाख करोड़ रूपये की जरूरत है। यह रकम मामूली नहीं है, लेकिन यदि रेलवे को वास्तव में बेहतर और सुरक्षित बनाना है तो यह निवेश आवश्यक है। लेकिन धरातल पर मामूली खर्च कर नई-नई ट्रेन (नए-नए नामों से) चलाई जा रही हैं, और देश को विश्व गुरु बनने की राह पर ताली बटोरी जा रही हैं। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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