केन्द्र की मोदी सरकार एक ओर पूर्व सैनिकों को एक रैंक एक पेंशन देकर अपनी पीठ खुद थपथपाने के साथ ही चुनाव में अपने इस निर्णय का लाभ भी उठा रही है और दूसरी ओर अपने ही इस निर्णय की काट के लिये अग्निपथ जैसे तरीके भी तलाश रही है ताकि पूर्व सैनिकों को पेंशन ही न देनी पड़े। इसके लिये बहाना कारगिल रिव्यू कमेटी की सिफारिशों को बनाया जा रहा है। क्योंकि कमेटी ने युवा और फिट सेना का मंत्र देने के साथ ही पेंशन की बचत का रास्ता जरूर सरकार को बताया था।
लेकिन कमेटी ने यह कभी नहीं कहा था कि युवा सेना के नाम पर उसकी जवानी ही काट डालो। उसने ये भी नहीं कहा था कि पेंशन और ग्रेच्युटी जैसे देयों से बचने के लिये सैनिकों का सेवाकाल 4 साल कर दो। देश में अभी 26 लाख पेंशनर हैं। कारगिल कमेटी ने सैनिकों को अर्धसैन्य बलों में समायोजित करने में आने वाली कठिनाइयों का उल्लेख कर समाधान भी सुझाये थे।
कारगिल युद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में गठित कारगिल रिव्यू कमेटी ने न केवल कारगिल में सुरक्षा चूक की गहनता से जांच की अपितु भविष्य की सुरक्षा सम्बंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये लगभग एक दर्जन सिफारिशें भी की थीं। इस कमेटी ने सुरक्षा चूक सम्बन्धी 7 बिन्दुओं पर गहनता से विचार किया था। इस समिति के तीन अन्य सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि.) के.के. हजारी, बीजी वर्गीज और सतीश चंद्र, सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय थे।
कारगिल युद्ध में वास्तव में देश के समक्ष जब समुद्रतल से 18 हजार फुट की ऊंचाई पर तालोलिंग और टाइगर हिल जैसी अति दुर्गम चोटियों पर चढ़ कर युद्ध लड़ने की नौबत आई तो तब सेना में युवा खून की महती आवश्यकता अनुभव की गयी। इसलिये कारगिल रिव्यू कमेटी या सुब्रह्मण्यम कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि, ‘‘सेना को युवा और हर समय फिट होना चाहिये। इसलिये सैनिक के 17 साल के सेवाकाल ( जो नीति 1976 से चल रही है।) के बजाय सलाह दी जाती है कि इसे 7 से लेकर 10 साल के बीच तक सीमित कर दिया जाय।
और उसके बाद सेना से इन अधिकारियों और जवानों को देश के अर्ध सैन्य बलों के लिये अवमुक्त कर दिया जाय। अर्ध सैन्य बलों में भी एक निश्चित सेवाकाल के बाद प्रौढ़ हो चुकी इस मानव शक्ति का उपयोग राज्यों के पुलिस बलों या एक राष्ट्रीय सेवा कोर (या एक राष्ट्रीय संरक्षण कोर) में शामिल किया जा सकता है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 51 ए (डी) के तहत प्रावधान किया गया है। ’’
सरकार को कारगिल रिव्यू कमेटी की यह सिफारिश इतनी भा गई कि उसने कमेटी द्वारा सुझाये गये भावी सैनिकों के सेवा काल की 7 से लेकर 10 साल की अवधि पर भी कैंची चला कर उसे मात्र 4 साल कर दिया जिसमें 6 माह का प्रशिक्षण और अग्निवीर की छुट्टियां भी शामिल हैं। इसलिये अग्निवीर को कच्ची उम्र का कच्चा सैनिक भी कहा जा रहा है। इस उम्र में जोश जरूर होता है, मगर होश तो अनुभव के बाद ही आता है, जिसकी कमी भविष्य में सामने आ सकती है।
केन्द्र सरकार को सेवाकाल से अधिक कमेटी द्वारा प्रकट की गयी आर्थिक चिन्ता ज्यादा भा गयी। कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि,:-
‘‘इससे सेना और अर्ध-सैन्य बलों की आयु प्रोफाइल कम हो जाएगी, और पेंशन लागत और अन्य देय जैसे विवाहितों के लिये क्वार्टर और शैक्षिक सुविधाएं भी कम हो जाएंगी। 1960 के दशक के बाद से सेना का पेंशन बिल तेजी से बढ़ा है और राष्ट्रीय खजाने पर एक बढ़ता बोझ बनता जा रहा है। सेना की पेंशन 1990-91 में 568 करोड़ रुपए से बढ़कर 1999-2000 में 6932 करोड़ रुपए (बजट) हो गई, जो वर्तमान सेना वेतन बिल के लगभग दो-तिहाई के बराबर है।’’ लेकिन अब एक रैंक एक पेंशन के बाद सरकार को सैनिकों के वेतन के बराबर की राशि ही पेशन पर खर्च करनी पड़ रही है। वर्तमान में सशस्त्र सेनाओं के लगभग 26 लाख पेंशनर हैं।
वर्ष 2022-23 के केन्द्रीय बजट में रक्षा मंत्रालय के पेंशन मद में 1,19,696 करोड़ का प्रावधान किया गया है। अग्निवीर योजना से सरकार को पेंशन से तो कुछ हद तक मुक्ति मिलेगी ही इसके साथ ही ग्रेच्युटी आदि से भी पीछा छूट जायेगा। लेकिन मातृभूमि के लिये अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहने वाले सैनिकों के साथ ऐसी बनियागिरी कटु आलोचना का विषय बनी हुयी है। सरकार एक तरफ वन रैंक वन पेंशन को लेकर अपनी पीठ स्वयं थपथपा रही है। उसे चुनाव में भुना भी रही है और दूसरी तरफ पेंशन से ही छुटकारा पाने के तरीके इजाद कर रही है। पेंशन ही नहीं गेच्युटी जैसे देयों से मुक्ति के लिये सैनिकों को चार साल में ही सेना से बाहर करने की दिशा में कदम बढा़ चुकी है।
अग्निपथ योजना के विरोध में उठ रहे स्वरों को दबाने के लिये गृह मंत्रालय ने अर्धसैन्य बलों में और खास कर औद्योगिक सुरक्षा बल जैसे बलों में आरक्षण की घोषणा कर दी है। भाजपा शासित राज्यों ने अपने पुलिस बलों के दरवाजे भी अग्निवीरों के लिये अभी से खोल दिये। लेकिन आरक्षण की घोषणा से पहले कारगिल रिव्यू कमेटी की उस आशंका पर गौर नहीं किया जिसमें कहा गया था कि अर्ध सैन्य बलों की अपनी पम्परायें एवं लोकाचार होते हैं, इसलिये सेना से आये युवाओं को उस नये महौल में ढलने में या नियमित अर्धसैनिकों को अग्निवीरों के साथ घुल मिलने में कठिनाई हो सकती है। स्वयं कमेटी ने इस प्रकृया को जटिल और पेचीदा बताया था।
इसलिये इस समस्या को दूर करने के लिये सिफारिश की गयी थी कि अर्ध सैन्य बल एक काॅमन राष्ट्रीय मिलिट्री स्टेंण्डर्ड के अनुरूप रिक्रूटमेंट की व्यवस्था कर उन चुने हुये युवाओं को कुछ समय के लिये प्रशिक्षण और सेवा के लिये सेना में भेज सकते हैं। सेना की सेवा अवधि पूरी करने पर उन्हें नियमित पैरा मिलिट्री में वापस लिया जा सकता है। कमेटी का अभिप्राय स्पष्ट था कि अर्ध सैन्य बलों में कुछ युवा सेना से आयें और कुछ अर्ध सैन्य बलों में भर्ती हो कर सेना में प्रशिक्षण लेने तथा वहां कुछ समय सेवा कर वापस अर्ध सैन्य बलों की फारर्मेशन्स में शामिल हों। ताकि दोनों सैन्य माहौलों में सन्तुलन बना रहे।
पेंशन और ग्रेच्यचुटी आदि से मुक्ति के लिये सरकार ने जहां सरकार ने अग्निवीर का सेवा काल घटा कर 4 साल कर दिया वहीं पेंशन में कटौती करने के लिये अफसरों और जेसीओ का सेवाकाल बढ़ा दिया। प्रस्तावित योजना के अनुसार कर्नल, ब्रिगेडियर मेजर जनरल और नेवी तथा वायु सेना के समकक्षों की आयु सीमा क्रमशः 54 (नेवी के लिये 56 साल) 57, 58 और 59 की उम्र में सेवा निवृत्त होंगे। सभी जूनियर कमीशंड अधिकारियों और अन्य रैंकों और तकनीकी, रसद और चिकित्सा शाखाओं के समकक्ष सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 57 कर दी जाएगी। वर्तमान में, यह 42 वर्ष से 57 वर्ष के बीच है। ऐसे में सेना पूरी तरह कैसे युवा रह पायेगी?
लेकिन रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने के साथ ही पेंशन घटाने का भी प्रस्ताव है। प्रस्तावित योजना के अनुसार 20 से 25 साल की सेवा के बाद रिटायरमेंट लेने वालों को लागू पेंशन का 50 प्रतिशत, 26 से 30 साल सेवा करने वालों को लागू पेंशन का 60 प्रतिशत, 31 से 35 साल की सेवा पर 75 प्रतिशत और 35 साल की सेवा पूरी करने पर ही लागू पेंशन का शत प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। थल सेना में हर साल लगभग 55 हजार सैनिक पेंशन पर चले जाते हैं। यही नहीं सरकार आकार में अपेक्षाकृत छोटी मगर अत्याधुनिक सेना चाहती है। तीनों सेनाओं की लगभग 13 लाख की संख्या को चरणबद्ध तरीके सं 11 लाख तक लाने का सरकार का इरादा है। इससे भी रक्षा बजट में भारी कमी लाने की सरकार की मंशा है।
(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल देहरादून में रहते हैं।)