Sunday, April 28, 2024

सारे भ्रष्टाचारी तो आपके पास जमा हैं मोदी जी! आप बेंगलुरु की बैठक को क्यों कोस रहे हैं?

आज का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान-निकोबार द्वीप के वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से उद्घाटन करते हुए भी अपना सारा ध्यान बेंगलुरु में 26 पार्टियों की बैठक पर लगाये रखा और सभी दलों को जमकर कोसा। उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीके सिंह अंडमान में उपस्थित थे। सावरकर के नाम पर हवाई अड्डे के उद्घाटन से लगा कि मोदी जी उनकी वीरता के बारे में देश को जागरूक करेंगे। लेकिन 26 मिनट के अपने भाषण में चंद मिनट बाद ही उन्होंने भारतीयों की सामर्थ्य की प्रशंसा करते हुए अपनी सरकार के पहले के शासनकाल में भ्रष्टाचारी और परिवारवादी पार्टियों पर अपना समूचा भाषण न्योछावर कर दिया।

इस भाषण का खास महत्व है, क्योंकि विपक्ष मजबूती से एकजुट हो रहा है। जैसे-जैसे विपक्ष तमाम दबाव के बावजूद ज्यादा मजबूती से इकट्ठा हो रहा है, मोदी सरकार की बदहवासी तेज होती जा रही है।

अपने भाषण में पीएम मोदी ने सभी विपक्षी पार्टियों को चुन-चुनकर विशेष उपाधि से नवाजा। इसमें राहुल-सोनिया, लालू-तेजस्वी, नीतीश, अरविन्द केजरीवाल, स्टालिन सहित शायद ही कोई बचा हो, जिसके खिलाफ इशारों-इशारों में पीएम मोदी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार का आरोप न लगाया हो। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष भाजपा को वाशिंग मशीन बता रहा है, जो अब देश के आम लोगों की जुबां पर भी चढ़ चुका है।

इसका सबसे ताजा उदाहरण 2 जुलाई को महाराष्ट्र में तब देखने को मिला जब एनसीपी से अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल पटेल सहित वे तमाम नेता एक झटके में भाजपा गठबंधन वाली मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सरकार में जा मिले। मध्यप्रदेश से पीएम मोदी ने जिस 75,000 करोड़ रूपये घोटाले के आरोपियों को देख लेने की धमकी दी थी, वह अजित पवार गुट के लिए ही थी। लेकिन ईडी, सीबीआई की छापेमारी और देवेन्द्र फडनवीस के प्रसिद्ध डायलाग “चक्की पिसिंग, पिसिंग एंड पिसिंग” की सोशल मीडिया पर इतनी धूम मची कि महाराष्ट्र सरकार की शर्मिंदगी राज्य के भाजपा समर्थकों पर चस्पा हो गई।

लेकिन स्वयं एकनाथ शिंदे गुट को भी शिवसेना से तोड़ने के लिए इसी भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की धमकी से तोड़कर भाजपा पहले ही सरकार बना चुकी है। यही वजह है कि महाराष्ट्र में दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के अधिकांश विधायकों को तोड़कर महा विकास अघाड़ी की लगभग कमर तोड़ दी गई थी, उसके बावजूद उद्धव ठाकरे और शरद पवार के पास जनाधार कम न होना सिद्ध करता है कि आम लोगों का गुस्सा मोदी सरकार के धनबल और जांच एजेंसियों के खिलाफ मुड़ चुका है।

दरअसल पिछले कुछ वर्षों से भाजपा ने पूरे देश में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है, उसने समूचे विपक्ष को ही नहीं बल्कि भारत की बहुसंख्यक आबादी के सामने मौजूदा सरकार की नीयत पर संदेह को गहरा दिया है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड से शुरू करें। दो-दो बार राज्य में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है, लेकिन इसमें कांग्रेस के आरोपी विधायक, मंत्री पाला बदलकर भाजपा सरकार में मौज कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में कल तक मुख्तार अंसारी के खिलाफ एक के बाद एक मामले खड़े किये जा रहे थे, लेकिन गाजीपुर में अंसारी के बेटे को भाजपा में शामिल कराकर अब भाजपा भ्रष्टाचार और माफियाराज पर योगी सरकार के एजेंडे को अचानक से भोथरा कर चुकी है। ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान समेत उन सभी दबंग नेताओं की तलाश जोर-शोर से जारी है जो यूपी में भाजपा को जातिगत, सांप्रदायिक आधार पर वोट दिलाने में मददगार हों। देश में सबसे बदनाम और दबंग सांसद बृज भूषण शरण सिंह फिलहाल अदालत की कार्रवाई के लिए मजबूर हैं, लेकिन महिला पहलवानों को कभी अपने परिवार का सदस्य बताने वाले मोदी जी के पास उनके लिए सहानुभूति के दो शब्द तक नहीं हैं। लोग इसे देख रहे हैं।

यूपी में मायावती हिलडुल नहीं पा रही हैं, तो इसके पीछे भी सबसे बड़ी वजह उनके ऊपर भ्रष्टाचार की फाइल ही है। यह फाइल भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नहीं बल्कि मोदी-योगी सरकार को केंद्र और राज्य में सत्ता दिलाने में सहयोग के एवज में इस्तेमाल आ रही है। इस प्रकार कह सकते हैं कि विपक्ष का भ्रष्टाचार असल में भाजपा के काम आ रहा है। कुछ यही हाल अखिलेश यादव का है, जो अपने ही समर्थक आधार पर हो रहे हमलों पर मुंह फेर लेते देखे जा सकते हैं। सिर्फ चुनाव के दौरान जुबानी जमाखर्च के सहारे लड़ाई जीत लेने का दावा हकीकत का रूप क्यों नहीं ले पा रहा, उसके पीछे भी जांच एजेंसियों का दबाव बना हुआ है। इस बात को मायावती और अखिलेश यादव के समर्थक और कार्यकर्ता भलीभांति जानते हैं।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस में जिस नेता पर भ्रष्टाचार का शिकंजा मोदी सरकार कस रही थी, वे खुद मोदी जी के आज के भाषण के आकर्षण के केंद्र थे। आज मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ कांग्रेस की एकता साफ़ कर्नाटक की कहानी को दोहराते हुए देख रही है। भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि उनका मुख्यमंत्री का चेहरा शिवराज, सिंधिया या नरेंद्र सिंह तोमर में से कौन होगा या कोई अन्य चेहरा प्रदेश की जनता के सामने रखना है।

पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर जांच एजेंसियों के बल पर मोदी सरकार ने एक बारगी ममता बनर्जी सरकार को झिंझोड़ कर रख दिया था। तृणमूल के कई दिग्गज नेता पाला बदलकर अपने ऊपर होने वाली कार्रवाई से खुद को बचा ले गये। सुवेंदु अधिकारी को सबसे बड़ा आरोपी माना जा रहा था, वे आज बंगाल भाजपा के मसीहा हैं। मुकुल रॉय सहित बाकी के कई नेता तृणमूल से भाजपा और फिर तृणमूल जा चुके हैं। अब ले देकर तृणमूल में ममता के भतीजे के खिलाफ ही भाजपा सरकार कार्रवाई कर सकती है। लेकिन एक्शन लेने के बजाय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी एकता में सेंध लगाने से अधिक नहीं रह गया है। इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बजाय सभी भ्रष्ट लोगों को भाजपा के महासमुद्र में शामिल करना है।

झारखंड सरकार तो खुद गिरते-गिरते बची, जब झामुमो और कांग्रेस के कुछ विधायक बंगाल में बड़ी मात्रा में नकदी के साथ पकड़े गये थे। बाद में पता चला कि उन्हें दलबदल करने के लिए यह रकम एडवांस के तौर पर दी गई थी। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा सरमा पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री के दाहिना हाथ माने जाते थे, और भाजपा यदि असम में सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी मानती थी तो वे हेमंत विस्वा सरमा ही थे। आज वे भाजपा के सबसे चहेते मुख्यमंत्री हैं। 

सबसे ताजा उदाहरण तेलंगाना राज्य का बताया जा रहा है। यहां पर मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी का नाम दिल्ली के एक्साइज शराब घोटाले में शामिल बताया जा रहा है। पिछले दिनों केसीआर के बेटे की गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाक़ात और तेलंगाना में कांग्रेस की जीत की संभावना ने भ्रष्टाचार पर जांच के बजाय भाजपा केसीआर को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाने का काम किया है। अभी इस परिघटना को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, लेकिन राजनैतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तेलंगाना के सीएम ने जिस तेजी से मोदी पर व्यक्तिगत हमले शुरू किये थे, उसकी जगह अब नए तरह की जुगलबंदी जल्द ही देखने को मिल सकती है।  

भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियान में मोदी सरकार ने सबसे अधिक हमले यदि किसी एक पार्टी के खिलाफ चलाए हैं, तो वह कांग्रेस है। ईडी-सीबीआई की ओर से नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को समन किया गया। पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम तक को न सिर्फ कड़ी पूछताछ बल्कि हिरासत तक में रखा गया। कई कांग्रेसी आज भाजपा की शोभा बढ़ा रहे हैं, तो इसके पीछे आरएसएस-भाजपा विचारधारा के प्रति प्रेम नहीं बल्कि ईमानदारी से भ्रष्टाचार की जांच का डर छिपा था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि विपक्षी पार्टियों के नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ ईडी-सीबीआई की जाँच कहीं से भी देशहित के काम नहीं आई, बल्कि विपक्ष का भ्रष्ट होने का अर्थ था भाजपा के लिए स्वंय को और मजबूत करना।

इसके अलावा आम आदमी पार्टी (आप) भी भाजपा के निशाने पर लंबे समय से रही है। दिल्ली में आप का कब्जा भाजपा के लिए बेहद नागवार था। इसके लिए शासन के पहले 2 वर्ष पार्टी पर लगातार हमले होते रहे। बीच के दौर में शांति काल रहा। लेकिन पिछले 2 वर्षों से और विशेषकर पंजाब में भारी जीत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के माथे पर बल ला दिया था। आप की कार्यपद्धति भाजपा से मिलती-जुलती है, और सोशल मीडिया पर उसकी उपस्थिति भाजपा को बराबर टक्कर देने वाली थी, जिसे बिल्कुल नापसंद किया जाता रहा। पिछले एक वर्ष से इस नवोदित पार्टी की महत्वाकांक्षा कुछ गलतियों के चलते भाजपा के काम आ रही है।

आज ईडी, सीबीआई और केंद्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से विपक्ष को जितना डरना था, डर चुकी। आज विपक्ष बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नेताओं से मुक्त हो चुकी है। अधिकांश भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेता स्वंय एनडीए गठबंधन के साथ जुड़े हैं और मलाई खा रहे हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा के लिए चुनाव लड़ने के लिए जहाँ बड़े पैमाने पर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से कॉर्पोरेट गुप्त बांड दे रहा है, लेकिन विपक्ष को किसी प्रकार से आर्थिक मदद हासिल न हो पाए इसके लिए देश में जगह-जगह सीबीआई और आयकर विभाग की छापेमारी की जा रही है। जो इनसे भी बच जाते हैं, उनके लिए जीएसटी में कर चोरी की जांच के बहाने पीएमएलए कानून में संशोधन कर जीएसटी को ईडी की निगरानी में लाया जा चुका है। 

उधर अडानी के स्वामित्व वाली एनडीटीवी ने 35,000 दर्शकों से 2024 लोकसभा चुनाव में 26 विपक्षी दलों के भाजपा पर जीत को लेकर राय मांगी थी, जिसके चौंकाने वाले परिणाम आये हैं। करीब 83% दर्शकों ने विपक्षी गठबंधन के पक्ष में मुहर लगाकर भाजपा के लिए भारी खतरे की घंटी बजा दी है।

सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग सवाल पूछ रहे हैं और ट्वीट का जवाब दे रहे हैं कि मोदी जी सारे भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को तो आप अपने साथ ले गये हैं नरेंद्र मोदी जी। अब विपक्ष में कौन सा भ्रष्टाचार ढूंढ रहे हैं?

पहली बार लग रहा है कि पीएम मोदी के लिए इस बार 2024 का लोकसभा चुनाव बिना किसी ठोस एजेंडे का होने जा रहा है। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में हार के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हार का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। एक-एक हार जहाँ भाजपा का मनोबल तोड़कर रख देगी, वहीँ 26 दलों का गठबंधन INDIA और भी ज्यादा मजबूती से एकजुट होने की ओर बढ़ रहा है।

(रविंद्र पटवाल संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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