न्यूज़क्लिक पर हमला: मोदी सरकार का भीमा कोरेगांव पार्ट-2

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2 अक्टूबर गांधी जयंती पर जब देश गांधी जी को श्रद्धांजलि देते हुए उनके विचारों–सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, वाणी और कर्म की शुचिता के साथ लोकतंत्र के निर्माण में उनकी भूमिका पर विचार मंथन कर रहा था तो मोदी टीम किसी और ही योजना पर काम कर रही थी। ऊपर से स्वच्छांजलि का ड्रामा चल रहा था और सत्ता के तहखाने में सांस्थानिक अपराध के नए एजेंडे को लागू करने की रणनीति बन रही थी।

खबर आई है कि उस दिन दिल्ली पुलिस मुख्यालय में रात 2 बजे तेज़ हलचल थी। दिल्ली पुलिस, स्पेशल सेल, ईडी, गृह मंत्रालय के अधिकारी यूपी पुलिस के साथ संयुक्त योजना के तहत अपने षड्यंत्रकारी इतिहास के अनुकूल मोदी शाह द्वारा दी गई योजना पर अमल करने के लिए गंभीर मंथन में लिप्त थे। सुबह होते ही मंथन से निकली योजना पर अमल शुरू हुआ और नोएडा से लेकर गाजियाबाद और गुड़गांव तक न्यूजक्लिक के साथ जुड़े पत्रकारों के घरों के कॉलबेल दबने लगे। दिल्ली और यूपी पुलिस के साथ सीआईएसएफ के जवान शस्त्रों से लैस दर्जनों स्थानों पर छापामारी करने पहुंचे।

आम जवानों और छोटे अधिकारियों को शायद यही बताया गया होगा कि वे दुर्दान्त आतंकवादियों के घरों पर रेड करने जा रहे हैं। इसलिए वे अतिरिक्त सचेत दिख रहे थे। पहुंचते ही इन लोगों ने पत्रकारों के मोबाइल फोन, लैपटॉप, हार्ड डिस्क जब्त करने के साथ उनके घरों को खंगलाने लगे। पत्रकार अभिसार शर्मा ने जब इस कार्रवाई का कारण जानना चाहा तो कहा गया कि हम आतंकी नेटवर्क की तलाश में आपके यहां आए हैं। फिर शुरू हुआ पत्नी बच्चों और परिवार के समक्ष आतंक के नए दौर की शुरुआत। बच्चों के मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव और परिवार के अन्य सदस्यों को किस संत्रास से गुजरना पड़ा होगा। उसे वही समझ सकता है जो इस तरह की स्थितियों से गुजारा होगा।

आमतौर पर सुबह-सुबह शुरू हुई कार्रवाई तीन साढ़े तीन घंटे तक चलती रही। उसके बाद उसमें से कुछ लोगों को दिल्ली स्पेशल सेल के मुख्यालय ले जाया गया। जहां करीब 10 घंटे तक उनसे पूछताछ की गई। जिनके घरों पर छापामारी हुई उसमें अभिसार शर्मा के साथ अनिंदो चक्रवर्ती, भाषा सिंह, उर्मिलेश, परंजॉय गुहा ठाकुरता सहित एक दर्जन पत्रकार थे।

पत्रकारों से जो सवाल पूछे गए वे तीन विषयों ‘किसान आंदोलन, शाहीन बाग और दिल्ली दंगों’ से संबंधित ग्राउंड रिपोर्टिग को लेकर थे। इस बात से यह स्पष्ट है कि किसान आंदोलन और शाहीन बाग की परिघटना से मोदी सरकार अंदर तक कितना हिली हुई है। क्योंकि इन आंदोलनों ने मोदी सरकार के आतंक और अजेयता के मिथ की धज्जियां उड़ा कर रख दी है। इन आंदोलनों का एक ही सबक था कि आतंक षड्यंत्र सत्ता तंत्र की ताकत के साथ नफरती हिंदुत्व के लुंपन गिरोह के हमले के बावजूद भी मोदी सरकार को पराजित किया जा सकता है। किसानों के संघर्ष के बाद ही मोदी सरकार के पराभव की पटकथा लिखी जाने लगी थी। इसलिए सभी अधिकारियों द्वारा पूछे गए सवाल इन्हीं आंदोलन से संबंधित थे।

मोदी सरकार का विरोधियों के प्रति यह नया नैरेटिव भीमा कोरेगांव भाग- 2 है। भीमा कोरेगांव भाग-1 का नैरेटिव था “प्रधानमंत्री की हत्या कर उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना।” इसलिए भीमा कोरेगांव में दलितों के विजय दिवस के उत्सव के अवसर पर आयोजित समारोह पर आरएसएस बीजेपी के नेताओं द्वारा प्रायोजित हमले में हुई हिंसा को बहाना बना कर जिन 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, शिक्षकों को गिरफ्तार किया गया था। उन लोगों पर आरोप था कि एल्गार परिषद के साथ मिलकर भीमा कोरेगांव की घटना द्वारा मोदी की हत्या कर उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते थे।

वस्तुतः गुजरात में एनकाउंटरों को जायज ठहरने के लिए बार-बार मुख्यमंत्री की हत्या का नैरेटिव गढ़ा गया था। भीमा कोरेगांव में हिंसा कराके जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया था। उसकी सच्चाई सामने आ चुकी है। जेल भेजे गए अधिकांश प्रतिष्ठित लोग रेडिकल बाम बुद्धिजीवी थे। या ऐसे सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता जो आदिवासियों-दलितों पर कॉर्पोरेट लूट में राज्य प्रायोजित हमले के विरोधी थे। जिसके प्रतिनिधि स्वरुप फादर स्टेंन स्वामी, सुधा भारद्वाज और वर्तमान दौर में भारत के सबसे बड़े दलित बौद्धिक और वैज्ञानिक आनंद तेलतुम्बड़े का नाम लिया जा सकता है। जिन्हें वर्षों तक जेल में सड़ाया गया और उसमें बीमार 83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की शहादत भी हो गई। भीमा कोरेगांव का केस का षड्यंत्र रचने में बरसों तक एनआईए सबूत गढती रही और एक-एक कर बौद्धिकों को गिरफ्तार करती रही।

भीमा कोरेगांव पार्ट 2 की पटकथा भी कई वर्षों से लिखी जा रही थी। 2020 में ही न्यूज़क्लिक पर आईटी का छापा पड़ा था। लंम्बे दौर तक पूछताछ की गई। मुकदमा आज भी लंबित पड़ा है। अभी तक कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया है।

इस बार 5 अगस्त को न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख का बहाना बनाया गया है। जिसमें एक अमेरिकी नागरिक नेविल राय सिंघम का हवाला दिया गया है कि उसने न्यूज़क्लिक को कई किस्तों में 38 करोड़ रुपए दिए थे। उस लेख में जिक्र है कि पैसा देने वाले नेविल राय सिंघम शंघाई बेस्ड बिजनेसमैन है। जिसका चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से संबंध है और वह दुनिया में चीन के राजनीतिक हितों और विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने में मदद करता है।

इस लेख को आधार बनाकर निशिकांत दुबे ने लोकसभा में राहुल गांधी, आप और वामपंथियों को चीन के द्वारा खड़ा किए गए भारत विरोधी एजेंडे का हिस्सेदार बताते हुए कहां कि राहुल गांधी की नफरत की दुकान में चीनी सामान भरा पड़ा है। न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे लेख को आधार बनाकर भारत सरकार को अस्थिर कर और देश की एकता अखंडता के लिए खतरा पैदा करने का नैरेटिव गढ़ लिया गया। इस नैरेटिव को धीरे-धीरे आगे बढ़ाने के लिए काम होता रहा। अंत में गांधी जयंती की बीती रात में भारत सरकार ने पूरी ताकत के साथ न्यूजक्लिक पर हमला बोल दिया। जो गांधी जयंती पर गोडसे और सावरकर भक्तों द्वारा दी जाने वाली राष्ट्रवादी श्रद्धांजलि है।

खैर 3 तारीख की सुबह पड़े छापे में कई लोगों को पुलिस मुख्यालय ले जाया गया। धीरे-धीरे जानकारी मिल रही है कि 46 स्थानों पर एक साथ छापे मारे गए। जिसमें फोटोग्राफर से लेकर टेक्नीशियन तक शामिल है। जिन पत्रकारों को पुलिस मुख्यालय ले जाया गया। जिसमें परंजॉय गुहा ठाकुरता, अनिंदो चक्रवर्ती, अभिसार शर्मा, उर्मिलेश, प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती प्रमुख हैं।

प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को छोड़कर बाकी सभी लोगों पूछताछ के बाद शाम तक छोड़ दिया गया। लेकिन उनके लैपटॉप, मोबाइल आज अभी भी पुलिस के पास है। बाद में खबर आई की न्यूज़क्लिक के प्रमोटर प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। यहां याद रखना चाहिए की प्रबीर पुरकायस्थ आपातकाल में मीसा बंदी थे और अमृत काल में यूएपीए बंदी हो गए हैं।

भीमा कोरेगांव भाग 1 में मोदी की हत्या का नैरेटिव था। इस बार का नैरेटिव देश की एकता अखंडता का खड़ा किया गया है। छापा पढ़ते ही गोदी मीडिया एक स्वर से चिल्ला उठा। देखो ये पत्रकार देश के खिलाफ षड्यंत्र करते हुए पकड़े गए हैं। देश की एकता अखंडता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। नए-नए तरह की कहानियां और अप्रमाणित इल्जामों की फेहरिस्त जारी की जाने लगी है।

मोडानी के बारे में इसी न्यूयॉर्क टाइम्स में कई रिपोर्ट छप चुकी है। जिसमें अदानी समूह द्वारा गैर कानूनी गतिविधियों के खुलासे हैं। लेकिन गोदी मीडिया सहित सरकार ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। जांच की तो बात ही छोड़ दीजिए। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक चीन की गतिविधियों पर मोदी के मुंह से आज तक एक शब्द भी नहीं निकला है और गोदी मीडिया ने भी इस सवाल को कभी भी उठाने की हिम्मत नहीं की। क्योंकि इस समय चीन के साथ भारतीय आयात 1लाख 20 हजार करोड़ से ऊपर तक पहुंच गया है। जिसमें बड़ा भाग अदानी समूह द्वारा होता है। मोदी और मोदी सरकार के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ क्या रिश्ते हैं। यह जग जाहिर है।

अभी तक जो जानकारी उपलब्ध है। उसके अनुसार न्यूज़क्लिक को दिए गए पैसे वैध ढंग से न्यूज़क्लिक के अकाउंट में आए हैं। तथा खुद अमेरिकी सरकार ने अमेरिकी नागरिक के इस कारोबार पर न कभी कोई उंगली उठाई न उसके खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई की है।

भीमा कोरेगांव पार्ट 2 में मध्यमार्गी वामपंथी, रेडिकल डेमोक्रेट और सोशल जस्टिस समर्थक तर्कवादी पत्रकारों को घेरे में लिया गया है। करीब 2 साल पहले डोभाल भी आंतरिक दुश्मन की थ्योरी ला चुके हैं। अगस्त में पांचजन्य ने भी न्यूज़क्लिक पोर्टल के साथ कुछ स्वतंत्र पत्रकार और उद्योगपति अजीम जी प्रेम जी को देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया था। पत्रकार अभिसार शर्मा, रोहिणी सिंह जैसे नाम भी उसे समय उछाले गए थे।

स्पष्ट बात है कि रेडिकल वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ताओं के को जेल में बंद करने के बाद अब मध्यमार्गी वामपंथी प्रगतिशील जनवादी पत्रकारों को घेरे में लेने की तैयारी है। उस समय भी गिरफ्तारियों का सिलसिला लंबे दौर तक चलता रहा था। इस बार भी लगता है कि प्रक्रिया को लंबा खींचते हुए लोकसभा के चुनाव तक एंटी नेशनल का मुद्दा जिंदा रखा जाएगा। चूंकि यूएपीए के साथ 120 बी आदि धाराएं लगी हैं। इसलिए जांच प्रक्रिया लंबी और कष्टदाई दौर से गुजरेगी।

पहले चरण में रेडिकल वामपंथी बुद्धिजीवियों, फिर मध्यमार्गी विपक्षी दलों और अब प्रगतिशील वामपंथी तर्कवादी पत्रकारों को घेरे में लेकर इस सरकार ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं, नौकरशाही और जांच एजेंसियों को जमीन पर रेंगने के लिए मजबूर कर मोदी सरकार ने नए तरह के तानाशाही का मॉडल विकसित किया है।

ऐसा लगता है कि संघ के विचारक एक सुनिश्चित योजना पर काम कर रहे है। उनको लग रहा है कि लोकतंत्र के माध्यम से ही अगर भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म किया जा सकता है, संसद में राजदंड स्थापित किया जा सकता है। राज्य का प्रमुख हिन्दू धर्म के प्रतीक पुरुष के रूप में काम कर सकता है। तो लोकतांत्रिक आवरण को जर्मनी या इटली की तरह उतार फेंकने की जरूरत ही नहीं है। जर्मन फासीवाद की नियति का अनुभव उनके सामने है। इसलिए उन्होंने भारत में लोकतांत्रिक खोल को बचाए रखते हुए हिंदुत्व फासीवादी एजेंडे को लागू करने का मार्ग चुना है। भारत में संसद भी रहेगी। चुनाव भी होते रहेंगे। वस्तुतः भारत में हिंदुत्व कॉर्पोरेट गठजोड़ का नए तरह का एक फासीवादी मॉडल विकसित किया जा रहा है। जिसके द्वारा हिंदू राष्ट्र (उतना शुद्ध रूप में नहीं) की तरफ बढ़ने का रास्ता तय कर लिया गया है। पिछले तीन दशक की उपलब्धियां से संघ उत्साहित है। इस मॉडल को वह भारतीय संस्कृति परंपरा दर्शन पर आधारित भारतीय मॉडल का नाम दिया है।

20वीं शदी केतीसरे दशक से अंग्रेजों के खिलाफ चल स्वतंत्रता संघर्ष के दो मॉडलों के बीच की लड़ाई अब अंतिम मंजिल पर पहुंच गई है। एक मॉडल था अंग्रेजों से माफी मांगने वाला और दूसरा अंग्रेजों से फांसी मांगने वाला। सावरकर और भगत सिंह का स्वतंत्रता का मॉडल।

भारतीय लोकतंत्र ने अभी तक भिन्न-भिन्न तरह के विचारों और मॉडलों के बीच में समन्वय और सामंजस्य बनाए रखा था। लेकिन मोदीकाल में यह समन्वय भंग हो चुका है। अब भारत में आने वाले समय में जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों और संविधान की रक्षा कार्पोरेट लूट से मुक्ति और देश के सार्वभौम स्वतंत्र गणराज्य बनाने की लड़ाई का आखिरी दौर शुरू हो चुका है। इस दौर में देश लोकतंत्र संविधान को बचाने के लिए राजनीतिक ताकतों लोकतांत्रिक व्यक्तियों और धर्मनिरपेक्ष विचारों के लोगों द्वारा लिए गए रणनीतिक राजनीतिक फैसले पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा। न्यूज़ क्लिप पर हुए हमले के बाद भारत के भविष्य का परिदृश्य स्पष्ट होता जा रहा है।

नोट- मैं अपनी “बेटी भाषा” सिंह को युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर देखकर गौरवबोध से भर गया हूं। मेरा सिर सम्मान के साथ ऊंचा उठ गया है। शोभा सिंह और अजय सिंह के घर 82 से 88 तक बिताएं गए एक-एक पल की याद ताजा हो गई है। जब यह बच्चे (भाषा और अनुराग) धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। उम्मीद करता हूं वह इस कठिन परीक्षा में अवश्य उत्तीर्ण होगी और गर्व के साथ बाहर आएगी। मैं उसे लोकतंत्र के हिफाजत के संघर्ष के एक योद्धा के रूप में सलाम करता हूं।

(जयप्रकाश नारायण किसान नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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