शहीद भगत सिंह का जन्मदिन 27- 28 सितम्बर को पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में जोश खरोश के साथ मनाया जाता है। वे साम्राज्यवाद के खिलाफ अपने समझौता विहीन संघर्ष और बलिदान के लिए याद किए जाते रहेंगे।
यह अफसोसनाक है कि आजाद भारत के शासकों ने उनकी छवि ऐसी गढ़ दी गोया वे एक ऐसे युवा थे, जो बस सशस्त्र संघर्ष द्वारा अंग्रेजों को भगाना चाहते थे। इसकी आड़ में उनके जो असली विचार थे, उनकी एक तरह से हत्या कर दी गई।
यह एक तरह से अंग्रेजों ने उनकी जो छवि बनाई थी, उसी की निरंतरता और उसका देशी संस्करण है। यह अनायास नहीं है कि अभी हाल तक इतिहास की किताबों में भगत सिंह जैसे देशभक्त क्रांतिकारियों के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया जा रहा था।
आज जरूरत इस बात की है कि उनके जो असली विचार हैं, जिनके लिए वे लड़े और शहीद हुए, उन्हें याद किया जाय। सबसे बढ़कर भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त थे और साम्राज्यवाद से रेडिकल विच्छेद चाहते थे। वे अंग्रेजों से किसी समझौते के बल पर आजादी नहीं चाहते थे।
आज पीछे मुड़कर देखने पर समझ में आता है कि उनकी यह सोच कितनी अर्थपूर्ण और दूरदर्शी थी। आज जिस तरह हमारी सारी नीतियां साम्राज्यवादी देश और उनकी संस्थाएं डिक्टेट कर रही हैं, वे न कर पातीं अगर साम्राज्यवाद से मुकम्मल विच्छेद हुआ होता।
साम्राज्यवादी पूंजी के मकड़ जाल में जिस तरह देश फंसा हुआ है, आज वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के निर्देशानुसार वह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सृजन, कृषि जैसे मद पर सार्वजनिक खर्च नहीं बढ़ा सकती। महाशक्तियों के आगे देश किस कदर लाचार है, इसी का सुबूत है कि मोदी जी रूस की यात्रा करते हैं, फिर उसे बैलेंस करने के लिए हजारों किमी ट्रेन यात्रा करके यूक्रेन जाते हैं।
रूस यात्रा के लिए यूक्रेन प्रेस वार्ता में झाड़ लगाता है और यूक्रेन यात्रा के लिए सफाई देने भारत के NSA डोभाल रूस भागते हुए जाते हैं। उनकी जो दयनीय फोटो पुतिन के सामने सफाई देते आई है, वह किसी भी देशभक्त को शर्मसार करने वाली है।इस सबके मूल में राजनीतिक आजादी के बावजूद साम्राज्यवादी ताकतों और वित्तीय पूंजी पर हमारी निर्भरता है।
मजदूरों किसानों की मुक्ति उनका सपना था। वे समाजवादी समाज की स्थापना करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA) के नाम में सोशलिस्ट शब्द जुड़वाकर उसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन करवाया था।
वे आश्वस्त थे कि पूंजीपतियों को आधार बनाकर जो आजादी आयेगी, उसमें मेहनतकशों की मुक्ति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा मैं तो समाजवादी क्रांति चाहता हूं, मजदूर वर्ग का राज चाहता हूं। चलिए आप राष्ट्रीय क्रांति चाहते हैं, लेकिन वह किन तबकों पर निर्भर होकर आएगी। क्या वह किसानों मजदूरों पर आधारित होगी?
वे इसके बारे में आश्वस्त थे कि आजादी अगर मजदूरों किसानों पर आधारित होगी, तभी उन्हें गुलामी के जुए से मुक्ति मिलेगी और देश सही मायने में एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ पाएगा। सबसे बड़ी बात यह कि अगर देश को किसानों मजदूरों की एकता के आधार पर आजादी मिलती, तो शायद देश सांप्रदायिक विभीषिका और देश के रक्त रंजित विभाजन से बच जाता।
और अगर ऐसा हुआ होता तो आप कल्पना कर सकते हैं कि आज हम कहां होते, क्योंकि सांप्रदायिकता का उभार मूलतः अंग्रेजों की साजिश थी जिसे जमीदारों और पूंजीपतियों ने विभाजन तक पहुंचा दिया।
भगत सिंह जैसी आजादी चाहते थे, वह अगर आती तो सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक अंधराष्ट्रवाद का जो नंगा नाच आज हम देख रहे हैं, उसका नामोनिशान न होता। भगत सिंह दलितों को सोए हुए शेर कहते हैं और उन्हें असली सर्वहारा मानते हैं। वे उनको जगाना चाहते थे।
वे चाहते थे कि वे सोए शेर अपनी बेड़ियां तोड़ कर उठ खड़े हों और अन्याय और जुल्म पर टिकी दुनियां को बदल दें। अगर वह मिशन सफल होता तो देश सामंतवाद, ब्राह्मणवाद और पुनरुत्थानवाद के जुए से मुक्त एक आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में खड़ा होता।
भगत सिंह सांप्रदायिकता को सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। उन्होंने अपने संगठन में किसी भी सांप्रदायिक संगठन के व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगा दिया था। जिस लाला लाजपत राय को वह पंजाब का राष्ट्रीय हीरो मानते थे, और जिनके अपमान का बदला लेने के लिए एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या के आरोप में उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया था।
उन्हीं लाजपत राय के अंदर जैसे ही उन्हें सांप्रदायिक विचलन दिखाई पड़ा, उनकी आलोचना करने में उन्होंने रंच मात्र भी संकोच नहीं किया और पर्चा निकलकर उन्हें Lost leader लिख दिया, जिसका प्रयोग कभी वर्डस्वर्थ के लिए ऐसे ही विचलन के लिए रॉबर्ट ब्राउनिंग ने किया था।
धर्म और राजनीति को अलग करने तथा मेहनतकशों की वर्गीय एकता के बल पर वे सांप्रदायिकता का मुकाबला करना चाहते थे। काश भारत इस रास्ते पर चला होता।
बहरहाल आज मोदी सरकार भगत सिंह के दोनों प्रिय मूल्यों, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को मिटा देने पर आमादा है।
नई संसद में प्रवेश के समय सांसदों को संविधान की जो प्रतियां दी गईं, उनमें मूल प्रति के नाम पर ये दोनों शब्द गायब थे। उन्हें संविधान से हटा देने की साजिश जारी है।
आज इन मूल्यों और आदर्शों के लिए अनथक संघर्ष तथा मोदी सरकार की इन्हें मिटा देने की साजिशों को नाकाम करना ही शहीदे आजम भगत सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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