यह सर्वविदित है कि अधीनस्थ न्यायपालिका से लेकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय तक की रजिस्ट्री में प्रतिदिन वादकारियों से विभिन्न कार्यों के लिए खुलेआम पैसा वसूली होती है। यह हकीकत बार बेंच और वादकारी सभी जानते हैं, लेकिन इस पर अंकुश लगाने का प्रयास आज तक किसी ने नहीं किया। यह बीमारी केवल रजिस्ट्री या नजारत तक नहीं है, बल्कि अधीनस्थ न्यायालय में प्रत्येक कोर्ट तक फैली है। यहां एक-एक दिन में 200 से 250 मुकदमें सुनवाई के लिए लगते हैं। इनमें प्रति तारीख पेशकार को प्रति मुकदमा न्यूनतम 20 रुपये और अधिकतम काम के अनुसार वादकारियों को देना पड़ता है।
यही नहीं कलेक्ट्रेट, एसडीएम से लेकर कमिश्नरी अदालतों में भी इसी तरह रोज वसूली होती है। श्रम अदालत भी इससे अछूते नहीं हैं। पटना हाईकोर्ट के चर्चित जज जस्टिस राकेश कुमार ने ट्रांसफर पर जाने से पहले बिल्ली के गले में घंटी बांधने की पहल की है। उन्होंने हाईकोर्ट रजिस्ट्री के कदाचार पर सीबीआई जांच का आदेश दे दिया है।
पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस राकेश कुमार और जस्टिस अंजनी शरण की खंडपीठ ने सीबीआई को पटना हाईकोर्ट रजिस्ट्री ऑफिस की जांच का जिम्मा सौंपा है। पीठ ने कहा है कि सीबीआई, छह जनवरी 2020 तक जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट दे। यह मामला हाईकोर्ट में केस दायर होने के बाद स्टांप रिपोर्टिंग के नाम पर की जा रही अनियमितता और भेदभाव से संबंधित है। सीबीआई इसके अलावा रजिस्ट्री ऑफिस के अन्य कार्यकलापों को भी जांचेगी।
खंडपीठ ने सहदेव शाह की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को यह आदेश दिया। खंडपीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि एक्साइज एक्ट के मामलों की स्टांप रिपोर्टिंग एक दिन में हो जाती है, बाकी में बहुत देर होती है। इस मामले में 22 अक्टूबर को हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा था। रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होते हुए जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा। अगली सुनवाई छह जनवरी को होगी।
रजिस्ट्री ऑफिस में याचिकाओं के दायर होने से लेकर सुनवाई की लिस्टिंग तक का काम होता है। सबसे पहले कोई भी अर्जी, सेंट्रलाइज फाइलिंग काउंटर में आती है। फिर जो याचिका जिस मामले से ताल्लुक रखती है, मसलन-सिविल, क्रिमिनल, रिट आदि की शाखा में स्टांप रिपोर्टिंग के लिए भेजा जाता है। सुनवाई के लिए बेंच की लिस्टिंग रजिस्ट्री करती है। नोटिस करने का आदेश भी तामील कराती है। स्टांप रिपोर्टिंग में देखा जाता है कि याचिकाएं, रूल्स के मुताबिक हैं, पर्याप्त कोर्ट फीस दी या नहीं, इसकी जांच होती है। गलती दूर करने को 21 दिन देते हैं। फिर लिस्टिंग की जाती है।
पटना उच्च न्यायालय के जस्टिस राकेश कुमार ने न्यायालय और उसके प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए थे। इसके चलते जस्टिस राकेश कुमार के सभी केसों की सुनवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई थी। उन्होंने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था कि राज्य की निचली अदालतों के भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया था कि जिस अधिकारी को भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त होना चाहिए, उस अधिकारी को मामूली सी सजा देकर छोड़ दिया जा रहा है। ये आरोप लगाने के बाद जस्टिस राकेश कुमार से केस की सभी फ़ाइलें वापस ले ली गईं थीं। तब उन्होंने कहा था कि मैं कभी भी दबाव में नहीं आऊंगा। मैंने जो कहा है वो सब कुछ सच है और मैं अपनी बात पर कायम हूं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि न्यायाधीश बनते समय जो शपथ ली थी, उसी के अनुसार फैसला दिया है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय कालेजियम ने पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाही का तबादला इसी पद पर तमिलनाडू और जस्टिस राकेश कुमार का तबादला आन्ध्र हाईकोर्ट में करने की सिफारिश कानून मंत्रालय के पास भेजी है जो अभी लंबित है।
इस बीच पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में गड़बड़ी पर अंकुश लगाने के लिए सीबीआई अधिकारी तैनात करने का फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने लिया था। इसके मुताबिक सीबीआई के एसएसपी, एसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी डेप्यूटेशन पर उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री में एडिशनल, डिप्टी रजिस्ट्रार और ब्रांच अफसर के पद पर तैनात किए जाएंगे। इनकी मदद दिल्ली पुलिस भी करेगी।
इस आदेश के साथ ही उच्चतम न्यायालय के इतिहास में नया पन्ना जुड़ गया। उच्चतम न्यायालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है,जब सीबीआई की सबसे ऊंची अदालत की रजिस्ट्री में प्रवेश हो रहा है। यानी आइंदा गड़बड़ी वाली घटनाओं की जांच में सीबीआई के अधिकारियों की मदद के लिए दिल्ली पुलिस का अमला भी होगा।
हाल के महीनों में उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री या कोर्ट स्टाफ की कारगुजारियां उजागर हुई थीं। बिना बेंच के निर्देश के मुकदमों की मनमाने ढंग से लिस्टिंग की कई जजों और बेंच की ओर से मिली शिकायतों के बाद चीफ जस्टिस ने ये फैसला किया। इस बाबत केंद्र सरकार को भी जानकारी दे दी गई है। ऐसे कई वाकिये हुए, जिनमें वकील, उद्योगपति और कोर्ट स्टॉफ के बीच साठगांठ से मुकदमों की मनमानी लिस्टिंग और आदेश टाइप करने में गड़बड़ी की बार-बार शिकायतों के बाद ये फैसला किया गया है। इसमें अनिल अंबानी का भी मामला शामिल है।
उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले फरवरी में अपने दो कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। यह मामला एरिक्सन मामले में उद्योगपति अनिल अंबानी को कोर्ट में हाजिर होने को लेकर था। इसमें कोर्ट के आदेश में इस तरह छेड़छाड़ की गई, जिससे ऐसा लगा कि अनिल अंबानी को कोर्ट में खुद हाजिर होने से छूट दी गई है। बाद में आदेश में छेड़छाड़ को लेकर मामला दर्ज किया गया। आम्रपाली मामले में उच्चतम न्यायालय की एक बेंच कह चुकी है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण, हैरान और चकित करने वाला है कि इस अदालत के आदेशों में हेराफेरी और उन्हें प्रभावित करने की कोशिशें हो रही हैं। यह उच्चतम न्यायालय के लिहाज से काफी निराशाजनक है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इससे कुछ दिन पहले भी इसी तरह का मामला जस्टिस आरएफ नरीमन की अदालत में हुआ था।