महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उसकी उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे, उसी तरह 17 राज्यों की 51 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव नतीजे भी उसके और उसके सहयोगी दलों के लिए चेतावनी से कम नहीं हैं। इन उपचुनावों में ज्यादातर सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों को न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा है, बल्कि ऐसी कई सीटें गंवानी भी पड़ी हैं, जो पहले उनके ही पास थीं।
आमतौर पर उपचुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही लड़े जाते हैं, लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा की तर्ज पर इन उपचुनावों को भी भाजपा ने कश्मीर, धारा 370, सर्जिकल स्ट्राइक, तीन तलाक, एनआरसी, हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान आदि मुद्दों के सहारे जीतने की कोशिश की, लेकिन नतीजे उसकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं आए। जाहिर है कि मतदाताओं ने इन मुद्दों से अपने रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मसलों को ज्यादा तरजीह दी।
लोकसभा की दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में जहां बिहार की समस्तीपुर सीट फिर से लोक जनशक्ति पार्टी ने जीती, वहीं महाराष्ट्र की सतारा सीट का नतीजा बेहद चौंकाने वाला और साथ ही भाजपा को झटका देने वाला रहा। सतारा में महज तीन महीने पहले लोकसभा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए उदयनराजे भोंसले को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उपचुनाव में उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस के मुकाबले करारी हार का सामना करना पड़ा। भोंसले को छत्रपति शिवाजी महाराज का वंशज माना जाता है। उनके चुनाव क्षेत्र में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह प्रचार करने गए थे।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए सबसे निराशाजनक नतीजे बिहार में रहे। लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से शानदार प्रदर्शन करने के महज पांच महीने बाद विधानसभा की पांच सीटों के लिए हुए उपचुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए को चार सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। ये पांचों सीटें विधायकों के लोकसभा के लिए निर्वाचित होने की वजह से खाली हुई थीं। इनमें से चार भाजपा-जनता दल यू गठबंधन के पास थी और एक कांग्रेस के पास। राष्ट्रीय जनता दल दो सीटें जीतने में कामयाब रहा और कांग्रेस के कब्जे वाली एक सीट पर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने जीत कर सूबे में अपनी आमद दर्ज कराई। एक सीट पर भाजपा का बागी उम्मीदवार जीता और एक सीट जदयू को मिली। बिहार में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होना है। इस लिहाज से ये नतीजे सत्तारूढ़ गठबंधन और खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए खासे चिंताजनक हैं।
बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश में 11 सीटों के लिए हुए उपचुनाव भी भाजपा के लिए कतई संतोषजनक नहीं कहे जा सकते। हालांकि वह 11 में से सात सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन अपने कब्जे वाली दो सीटें उससे समाजवादी पार्टी ने छीन लीं। उपचुनाव के नतीजों से सबसे तगड़ा झटका बहुजन समाज पार्टी को लगा, जो पहली बार उपचुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी थी। लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने से उत्साहित होकर पार्टी ने पहली बार उपचुनाव लड़ने का फैसला किया था। उसे उम्मीद थी कि वह लोकसभा चुनाव की तरह इन उपचुनावों भी सपा को पीछे छोड़ कर सूबे की राजनीति में मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित हो जाएगी, लेकिन ऐसा होना दूर, उल्टे उसे अपनी एक सीट सपा के हाथों गंवानी पड़ी। सपा के लिए सबसे प्रतिष्ठापूर्ण रामपुर सीट थी, जो आजम खान के लोकसभा में पहुंच जाने की वजह से खाली हुई थी। इस सीट को हथियाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन सपा उम्मीदवार और आजम खां की पत्नी यहां जीतने में कामयाब रहीं। बसपा की तरह ही कांग्रेस ने भी सभी 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे भी बसपा की तरह ही निराश होना पड़ा।
उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद गुजरात ऐसा तीसरा प्रदेश है, जहां विधानसभा की छह सीटों के लिए हुए उपचुनाव पर सबकी निगाहें थीं। यहां भाजपा और कांग्रेस ने तीन-तीन सीटें जीतीं, लेकिन कांग्रेस एक सीट भाजपा से छीनने में सफल रही। भाजपा के लिए निराशाजनक बात यह रही कि कांग्रेस और विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर खड़े हुए ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और उनके सहयोगी धवल सिंह झाला अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सके। उपचुनाव के ये नतीजे मुख्यमंत्री विजय रुपानी के राजनीतिक भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं।
कांग्रेस शासित पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुए उपचुनाव में भी भाजपा को कुछ हाथ नहीं लगा। पंजाब में चार सीटों के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने अकाली दल-भाजपा गठबंधन से तीन सीटें छीन लीं। अकाली दल अपनी एक सीट बचाने में कामयाब रहा। तीन सीटों पर भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा कांग्रेस शासित राजस्थान में दो और मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में एक-एक सीट के लिए उपचुनाव में भी भाजपा के हाथ कुछ नहीं लग पाया।
केरल में पांच सीटों के लिए हुए उपचुनाव में मुकाबला कांग्रेस और माकपा के नेतृत्व वाले मोर्चों के बीच था, जिसमें कांग्रेस नीत मोर्चा को तीन और वाम मोर्चा को दो सीटें मिलीं। यहां भाजपा ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसके हिस्से में करारी हार ही आई। भाजपा के लिए राहत वाले नतीजे सिर्फ उसके शासन वाले असम और हिमाचल प्रदेश से ही आए। वह असम में चार में से तीन और हिमाचल की दोनों सीटें जीतने में कामयाब रही। इसके अलावा तेलंगाना, मेघालय, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और पुद्दुचेरी में एक-एक सीट के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे भी वहां सत्तारूढ़ स्थानीय पार्टियों के पक्ष में गए।