अंधेरे और उजाले की इस शतरंज में मोहरे बदलते रहते हैं, पर खेल वही रहता है। इतिहास की गूंज में शक्ति संतुलन की लहरें उठती और गिरती हैं, और राजनेताओं की चालें नए युग की नींव रखती हैं। जब युद्धभूमि केवल बारूद की गंध से नहीं, बल्कि खनिजों और रणनीतियों के धुएं से भर जाती है, तब सच्चाई धुंधली हो जाती है। यही समय है, जब शतरंज की बिसात पर बैठे खिलाड़ी अपनी चालें बदलते हैं, और विश्व मंच पर नए नाटक की पटकथा लिखी जाती है।
डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को तानाशाह करार देते हुए कहा कि उन्होंने अमेरिका से 350 अरब डॉलर लेकर ऐसी जंग छेड़ी, जिसे कभी जीतना संभव नहीं था और जिसे शुरू ही नहीं होना चाहिए था। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की को ‘मध्यम रूप से सफल कॉमेडियन’ बताते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने अमेरिका और जो बाइडेन को अपनी उंगलियों पर नचाया।
ट्रंप के इस बयान के बाद यूक्रेनी विदेश मंत्री आंद्री सिबिहा ने कहा कि कोई भी ताकत यूक्रेन को झुकने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, “हम अपने अस्तित्व के अधिकार की रक्षा करेंगे।“ यह बयान तब आया जब ज़ेलेंस्की ने ट्रंप के इस दावे का खंडन किया कि यूक्रेन ने रूस के 2022 के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण को आमंत्रित किया था। ज़ेलेंस्की ने पलटवार करते हुए कहा कि ट्रंप रूसी दुष्प्रचार के जाल में फंस चुके हैं और उनका यह कहना कि ज़ेलेंस्की की लोकप्रियता मात्र 4% है, पूरी तरह से गलत सूचना पर आधारित है।
यूक्रेन पर लगाए गए ट्रंप के इन आरोपों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। ट्रंप का दावा है कि ज़ेलेंस्की बिना चुनावों के सत्ता में बने हुए हैं, क्योंकि 2024 में समाप्त होने वाला उनका कार्यकाल मार्शल लॉ के कारण बढ़ा दिया गया। 2022 में रूस के आक्रमण के बाद लगाए गए मार्शल लॉ के चलते यूक्रेन में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव नहीं हो सके। ज़ेलेंस्की ने ट्रंप की टीम से आग्रह किया कि वे यूक्रेन की सच्चाई को अधिक गहराई से समझें।
इस बीच, ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत की संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि वे इस महीने पुतिन से मिल सकते हैं, जबकि क्रेमलिन ने संकेत दिया कि इस तरह की बैठक की तैयारी में समय लग सकता है। ट्रंप की यह नीति अमेरिकी विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव दिखाती है, क्योंकि इससे पहले अमेरिका ने रूस को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की नीति अपनाई थी।
ट्रंप ने यह भी कहा कि यूक्रेन को तीन साल पहले ही रूस के साथ समझौता कर लेना चाहिए था और युद्ध को टालना चाहिए था। उन्होंने यूक्रेनी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “आज मैंने सुना कि ‘हमें न्योता नहीं मिला’, लेकिन आप तीन साल से वहां हैं, आपको इसे पहले ही समाप्त कर देना चाहिए था। इसे शुरू करने की जरूरत ही नहीं थी। आप एक समझौता कर सकते थे।“
यूक्रेन ने अब तक अमेरिका से 67 अरब डॉलर के हथियार और 31.5 अरब डॉलर का बजट समर्थन प्राप्त किया है। लेकिन ट्रंप के बयान ने यूक्रेन और अमेरिका के संबंधों में नई दरार डाल दी है। ज़ेलेंस्की ने ट्रंप के इस दावे का भी खंडन किया कि अमेरिका को यूक्रेन से 500 अरब डॉलर मूल्य के खनिज पदार्थ मिलने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कोई गंभीर बातचीत नहीं है और वह अपने देश को नहीं बेच सकते।
ट्रंप के इस बयान से अमेरिकी राजनीति में भी विवाद बढ़ गया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने ट्रंप पर रूस समर्थक रुख अपनाने का आरोप लगाया है। वहीं, रिपब्लिकन पार्टी के कई सदस्य ट्रंप की इस नई नीति को समर्थन भी दे रहे हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि अमेरिका को यूक्रेन युद्ध से दूर रहना चाहिए।
यह बयान न केवल यूक्रेन-अमेरिका संबंधों पर असर डालेगा, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी हलचल मचा सकता है। यदि ट्रंप और पुतिन की बैठक होती है और किसी समझौते की ओर बढ़ती है, तो यह अमेरिका की विदेश नीति में ऐतिहासिक बदलाव होगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यूक्रेन इस तरह के किसी भी समझौते को स्वीकार करेगा? और क्या अमेरिका की नई नीति यूरोप में रूस के प्रभाव को बढ़ावा देगी? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में मिलेंगे, लेकिन फिलहाल, ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच की यह जुबानी जंग यूक्रेन संकट को और अधिक जटिल बना रही है।
यूक्रेन सिर्फ एक युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि खरबों डॉलर की खनिज संपदा का खजाना है, जिस पर अमेरिका की पैनी नजरें टिकी हुई हैं! यह कोई सामान्य आर्थिक योजना नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को हिला देने वाली साजिश है, जिसमें अमेरिका न केवल यूक्रेन को अपने शिकंजे में जकड़ना चाहता है, बल्कि रूस और चीन को भी कमजोर करने की फिराक में है।
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को एक प्रस्ताव दिया था, जिसके तहत अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिज संसाधनों का 50% हिस्सा देने की बात कही गई थी। लिथियम, ग्रेफाइट, यूरेनियम, टाइटेनियम और बेरिलियम जैसे दुर्लभ खनिजों से भरपूर यूक्रेन को अमेरिका अपने औद्योगिक और सैन्य वर्चस्व का केंद्र बनाना चाहता है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उनके अधिकारी अभी भी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।
यूक्रेन के पास यूरोप का सबसे बड़ा लिथियम भंडार है, जिसकी वैश्विक मांग आने वाले वर्षों में 10 गुना बढ़ने की संभावना है। यह वही धातु है जो इलेक्ट्रिक कार बैटरियों की जान है, और इसी पर टेस्ला जैसी कंपनियां निर्भर हैं। इतना ही नहीं, यूक्रेन में 107,000 मीट्रिक टन यूरेनियम है, जो यूरोप में सबसे ज्यादा है और जिसे परमाणु ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ग्रेफाइट का भंडार भी यूक्रेन को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है, क्योंकि यह बैटरियों और सेमीकंडक्टर्स के निर्माण के लिए आवश्यक है। अमेरिका के लिए यूक्रेन का टाइटेनियम भंडार भी अनमोल है, क्योंकि यह धातु एयरोस्पेस और सैन्य उद्योग के लिए बेहद जरूरी है। अमेरिका पहले ही रूटाइल टाइटेनियम का बड़ा हिस्सा यूक्रेन से आयात करता रहा है, और अब वह इस पर पूरी तरह कब्जा जमाना चाहता है।
अमेरिका ने यूक्रेन के सामने एक आकर्षक लेकिन खतरनाक सौदा रखा-“तुम हमें अपने खनिज दो, हम तुम्हें सुरक्षा देंगे।“ लेकिन यह सौदा सुरक्षा नहीं, गुलामी का दस्तावेज है! अमेरिका ने साफ तौर पर ज़ेलेंस्की प्रशासन को यह प्रस्ताव दिया कि अगर यूक्रेन अपने खनिज संसाधनों का बड़ा हिस्सा अमेरिका को सौंपता है, तो बदले में उसे दीर्घकालिक सुरक्षा गारंटी और आर्थिक सहयोग मिलेगा। यह किसी भी संप्रभु राष्ट्र के लिए शर्मनाक शर्त है।
इस खेल में केवल अमेरिकी सरकार ही नहीं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी शामिल हैं। टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के मालिक एलन मस्क की नजरें भी यूक्रेन के खनिज भंडारों पर टिकी हुई हैं। टेस्ला को बैटरियों के लिए लिथियम और ग्रेफाइट की जरूरत है, जबकि स्पेसएक्स के लिए दुर्लभ धातुओं का भंडार बेहद महत्वपूर्ण है। अगर यह सौदा हो जाता है, तो अमेरिका न केवल यूक्रेन पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा, बल्कि चीन की तकनीकी बढ़त को भी कमजोर कर देगा।
यूक्रेन के संसाधनों पर केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि रूस भी नजर गड़ाए हुए है। रूस अब तक 12 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के यूक्रेनी ऊर्जा संसाधनों, धातुओं और खनिजों पर कब्जा कर चुका है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि यूक्रेन की लड़ाई सिर्फ क्षेत्रीय प्रभुत्व की नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के अधिग्रहण की है।
यूक्रेन को अब एक ऐतिहासिक फैसला लेना होगा-क्या वह अपने खनिज संसाधनों को लूटने की अमेरिकी योजना के आगे झुकेगा, या फिर वह अपने संसाधनों का इस्तेमाल अपने आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए करेगा? अगर ज़ेलेंस्की प्रशासन ने अमेरिका के सामने घुटने टेक दिए, तो यह केवल यूक्रेन की संप्रभुता का अंत नहीं होगा, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए यह संदेश होगा कि शक्ति के नाम पर अमेरिका किसी भी देश को अपनी कॉलोनी बना सकता है।
यह समय है जब यूक्रेन को अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी होगी। वरना इतिहास में यह दर्ज होगा कि यूक्रेन केवल युद्ध का शिकार नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी संप्रभुता थी, जिसे उसके अपने नेतृत्व ने विदेशी शक्तियों के चरणों में समर्पित कर दिया!
(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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