Thursday, April 25, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने वरवर राव की अंतरिम सुरक्षा बढ़ाई; जुबैर को सीतापुर मामले में अगले आदेश तक राहत

उच्चतम न्यायालय ने एक ओर भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 80 वर्षीय पी वरवर राव की जमानत याचिका पर सुनवाई 19 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी और अंतरिम सुरक्षा बढ़ा दी वहीं दूसरी ओर उसने मंगलवार को फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उत्तर प्रदेश में सीतापुर में दर्ज एफआईआर केस में 5 दिनों की अंतरिम जमानत को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धुलिया की पीठ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर वरवर राव की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगन को मंजूरी दे दी। एसजी ने स्थगन का अनुरोध किया और सहमति व्यक्त की कि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा राव को आत्मसमर्पण से दी गई अंतरिम सुरक्षा, जो आज समाप्त हो रही है, को बढ़ाया जा सकता है।

राव की ओर से सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने एसजी के अनुरोध पर कोई आपत्ति नहीं जताई। तदनुसार, पीठ ने मामले को 19 जुलाई तक के लिए पोस्ट कर दिया और राव को मिली अंतरिम सुरक्षा को बढ़ा दिया।

पीठ ने आदेश में कहा कि पक्षकारों की ओर से पेश होने वाले वकीलों के संयुक्त अनुरोध पर, मामले को 19 जुलाई को सूचीबद्ध करें। याचिकाकर्ता को मिली अंतरिम सुरक्षा अगले आदेश तक के लिए सुनिश्चित होगी। राव ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा चिकित्सा आधार पर स्थायी जमानत देने से इनकार करने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है ।

13 अप्रैल को पारित आदेश के माध्यम से, बॉम्बे हाईकोर्ट ने वरवर राव को  तेलंगाना में अपने घर पर रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्थायी जमानत की अवधि तीन महीने बढ़ा दी थी और मुकदमे में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अपराध की गंभीरता तब तक बनी रहेगी जब तक कि आरोपी को उसके द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता।

वरवर राव वर्तमान में मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं। उन्होंने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किया है कि अब आगे की कैद उनके लिए मृत्यु की घंटी बजाएगी क्योंकि बढ़ती उम्र और बिगड़ता स्वास्थ्य एक घातक संयोजन है। याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक अन्य आरोपी, 83 वर्षीय आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में मामले में हिरासत में रहते हुए निधन हो गया था। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि फरवरी 2021 में जमानत मिलने के बाद, उनकी तबित बिगड़ गई और उसे गर्भनाल हर्निया हो गया, जिसके लिए उसे सर्जरी करानी पड़ी। इसके अलावा, उन्हें अपनी दोनों आंखों में मोतियाबिंद के लिए भी ऑपरेशन करने की आवश्यकता है, जो उन्होंने नहीं किया है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने मंगलवार को फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उत्तर प्रदेश में सीतापुर में दर्ज एफआईआर केस में 5 दिनों की अंतरिम जमानत को अगले आदेश तक बढ़ा दी है। जुबैर ने एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर 3 हिंदू संतों यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि को हेट मोंगर्स यानी नफरत फैलाने वाला कहा था। इसके खिलाफ यूपी पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया था। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसी के खिलाफ जुबैर ने उच्चतम न्यायालय  का दरवाजा खटखटाया था।

शुरुआत में, यूपी पुलिस की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू ने मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगा। उन्होंने कहा कि जुबैर पहले से ही अंतरिम जमानत पर हैं और इसलिए उन्हें समय दिया जा सकता है। जुबैर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि जमानत केवल 5 दिनों के लिए थी और कल समाप्त होने वाली है। इस पर विचार करते हुए, पीठ ने सीतापुर पुलिस एफआईआर केस में अंतरिम जमानत को अगले आदेश तक बढ़ा दिया और यूपी राज्य को अपना काउंटर एफिडेविट दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया। मामले को 7 सितंबर, 2022 को सूचीबद्ध किया गया है।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) के तहत एफआईआर दर्ज की थी।

8 जुलाई, 2022 को जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने मोहम्मद जुबैर को 5 दिनों के लिए अंतरिम जमानत दे दी। पीठ ने कहा था कि राहत इस शर्त पर दी गई है कि वह आगे कोई ट्वीट नहीं करेंगे। यह स्पष्ट किया कि उसने प्राथमिकी में जांच पर रोक नहीं लगाई है और अंतरिम राहत उसके खिलाफ लंबित किसी अन्य मामले पर लागू नहीं होती है।

सीतापुर एफआईआर में अदालत द्वारा जुबैर जमानत दिए जाने के बाद, उन्हें यूपी के लखीमपुर खीरी जिले की एक अदालत ने एक अन्य प्राथमिकी में रिमांड पर लिया, जो उनके द्वारा सुदर्शन न्यूज टीवी की एक रिपोर्ट के बारे में किए गए एक ट्वीट पर दर्ज की गई थी।

उन्हें दिल्ली पुलिस ने 27 जून, 2018 को उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट पर दर्ज मामले में गिरफ्तार किया था। दिल्ली के एक मजिस्ट्रेट ने उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद उन्हें उस मामले में रिमांड पर लिया था।

इस बीच, दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की जमानत पर सुनवाई 14 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी, जिन पर अन्य बातों के अलावा, अपने ट्वीट के माध्यम से धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए मामला दर्ज किया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने यह देखते हुए मामले को स्थगित कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट जुबैर से जुड़े एक अलग मामले की सुनवाई कर रहा है।

उधर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उत्तर प्रदेश पुलिस (यूपी पुलिस) द्वारा धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के अपराध में दर्ज एक मामले में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। अदालत जुबैर की ओर से दायर जमानत याचिका पर 13 जुलाई को सुनवाई करेगी।

जुबैर दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एक मामले में 4 जुलाई से न्यायिक हिरासत में हैं, जिसने उस पर धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए मामला दर्ज किया है। यह मामला 2018 में उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट पर आधारित था। इसके बाद, उन्हें धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में सीतापुर पुलिस ने मामला दर्ज किया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 8 जुलाई को अंतरिम जमानत दी थी।

सुदर्शन टीवी में कार्यरत पत्रकार आशीष कुमार कटियार की शिकायत पर लखीमपुर मामला पिछले साल सितंबर, 2021 में भारतीय दंड संहिता [विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना] की धारा 153 ए के तहत दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ने मई 2021 में जुबैर द्वारा पोस्ट किए गए एक ट्वीट पर आपत्ति जताई थी। ट्वीट में, जुबैर ने कहा था कि उक्त समाचार चैनल पर एक रिपोर्ट चलाई गई, जिसने गाजा पट्टी की एक छवि पर एक प्रसिद्ध मदीना मस्जिद की छवि को सुपर-थोप दिया।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि जुबैर ट्वीट पोस्ट कर मुसलमानों को न्यूज चैनल के खिलाफ भड़का रहे थे। उक्त ट्वीट को हटाने में विफल रहने के लिए ट्विटर को मामले में एक आरोपी के रूप में भी पेश किया गया है।

उस चैनल के एक एंकर ने ज़ुबैर पर पिछले साल एफआईआर  कर दी कि ये अपने ट्वीट से मुसलमानों को भड़का रहा है। 153-A के तहत शिकायत दर्ज भी हो गयी। ज़ुबैर ने अपने ट्वीट में यूपी पुलिस से कार्रवाई करने की अपील भी की थी।लेकिन पुलिस ने अब कार्रवाई की है और वो भी ज़ुबैर पर ही। कोर्ट ने इस मामले में 14 दिन के लिए जेल भी भेज दिया है। जिसने ग़लत ख़बर दिखाई, मुसलमान तो उससे भी भड़क सकते थे। ज़ुबैर का ट्वीट 16 मई 2021 का है। आज तक इस ट्वीट पर कोई भड़का नहीं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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