Tuesday, March 19, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा मामले से जुड़े पत्रकारों के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को त्रिपुरा राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की खबरों पर पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया। ये याचिका मीडिया कंपनी थियोस कनेक्ट, (जो डिजिटल न्यूज पोर्टल एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क का संचालन करती है, के दो पत्रकार समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा और इसकी एसोसिएट एडिटर आरती घरगी ने दायर की है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 14 नवंबर, 2021 और 18 नवंबर, 2021 की प्राथमिकी के अनुसार आगे की सभी कार्यवाही पर भी रोक लगा दी। इस बीच मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आईटी नियम 2021 के तहत सन टीवी नेटवर्क सहित भारतीय प्रसारण और डिजिटल फाउंडेशन के सदस्य डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है और याचिकाकर्ताओं को त्रिपुरा राज्य के लिए सरकारी वकील को याचिका देने की स्वतंत्रता दी गई है।

याचिकाकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि पत्रकारों को उठाया गया और फिर प्राथमिकी दर्ज की गई। उन्हें अब जमानत दे दी गई है। लेकिन एक और प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। जो कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है वह यह है कि आप समाचार रिपोर्ट करते हैं तो प्राथमिकी दर्ज की जाती है, और फिर आप वास्तव में यह कहने के लिए दूसरी दर्ज करते हैं कि हमने अब स्थापित किया है कि पहली प्राथमिकी में, पत्रकार गलत हैं। यह वास्तव में अक्षम्य है और उचित नहीं है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इस मामले में नोटिस जारी करेंगे, प्राथमिकी के अनुसार आगे की सभी कार्यवाही पर रोक रहेगी। पीठ ने शुक्रवार को याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए अधिवक्ता संदीप एस देशमुख द्वारा किए गए अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

त्रिपुरा पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करते हुए आरोप लगाया कि पत्रकारों की रिपोर्टों ने समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया और सांप्रदायिक हिंसा के बारे में निराधार खबर प्रकाशित करके सांप्रदायिक नफरत फैलाई। याचिका में पुलिस कार्रवाई को यह कहकर चुनौती दी गई है कि वे हिंसा के पीड़ितों द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर तथ्यों की केवल जमीनी रिपोर्टिंग कर रहे थे।

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता और उसके संवाददाताओं/पत्रकारों द्वारा रिपोर्टिंग को आपराधिक बनाने के लक्षित दुरुपयोग और अक्टूबर 2021 को त्रिपुरा राज्य में हिंसा के संबंध में घटनाओं की रिपोर्टिंग के संबंध में अवैध हिरासत के संबंध में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्राथमिकी प्रेस के लक्षित उत्पीड़न के समान है। यदि राज्य को तथ्य-खोज और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के कार्य को अपराधीकरण करने की अनुमति दी जाती है, तो सार्वजनिक डोमेन में आने वाले एकमात्र तथ्य वे होंगे जो सिविल समाज के सदस्यों की’ बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव’ के चलते राज्य के लिए सुविधाजनक होंगे। यदि सत्य की खोज और उसकी रिपोर्टिंग को ही अपराधी बना दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया में पीड़ित न्याय का विचार है।

याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि त्रिपुरा में आईपीसी की धारा 120बी, 153ए, 504 के तहत याचिकाकर्ता पर दर्ज प्राथमिकी रद्द हो, धारा 153ए, 153बी, 193, 204, 120बी, 504 आईपीसी के तहत एफआईआर 82 को रद्द करें, वैकल्पिक रूप से एफआईआर को दिल्ली में सक्षम अदालत में स्थानांतरित किया जाय, क्योंकि त्रिपुरा में याचिकाकर्ताओं के जीवन के लिए एक स्पष्ट जोखिम और खतरा है।

मद्रास हाईकोर्ट ने दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाई

इस बीच मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आईटी नियम 2021 के तहत सन टीवी नेटवर्क सहित भारतीय प्रसारण और डिजिटल फाउंडेशन के सदस्य डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है। फाउंडेशन की ओर से दायर एक रिट याचिका में, जिसमें 2021 के नियमों के भाग III के तहत डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के संबंध में जारी आचार संहिता को चुनौती दी गई है, की सुनवाई पर उक्त फैसला आया है।

कार्यवाहक चीफ जस्टिस मुनिश्वरनाथ भंडारी और जस्टिस पीडी ऑड‌िकेसवालु की खंडपीठ ने मामले में जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया है। खंडपीठ ने आदेश में कहा है कि इस बीच प्रतिवादियों को अदालत की अनुमति के बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया जाता है।

याचिका के तहत सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के भाग- III [डिजिटल मीडिया के संबंध में नैतिकता और प्रक्रिया और सुरक्षा की संहिता] के तहत नियम 8-19 के दायरे को चुनौती दी गई है।

मामले की सुनवाई के दरमियान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पीएस रमन ने अदालत का ध्यान बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आईटी नियमों के नियम 9 के उप-नियम (1) और (3) पर दिए गए अंतरिम स्‍थगन और हाल ही में केरल हाईकोर्ट द्वारा कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश देने वाले निर्णयों की ओर आकर्षित किया। हालांकि, खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की। यह देखा गया कि संवैधानिक वैधता की जांच किए बिना नियमों को रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब किसी कानून के अधिकार को चुनौती दी जाती है तो संवैधानिकता का अनुमान होता है। वरिष्ठ वकील ने तब कोर्ट का ध्यान तत्कालीन सीजे की अगुवाई वाली बेंच के हालिया आदेश की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दी गई रोक का अखिल भारतीय प्रभाव होना चाहिए।

आईबीडीएफ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय टेलीविजन चैनलों का शीर्ष निकाय है और इसके सदस्य के रूप में ऑनलाइन/डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म/ओटीटी प्लेटफॉर्म भी हैं। याचिका में कहा गया है कि आईबीडीएफ ने अपने सदस्यों के डिजिटल ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराई गई किसी भी सामग्री के लिए शिकायतों को दूर करने के लिए डिजिटल मीडिया कंटेंट रेगुलेटरी काउंसिल (डीएमसीआरसी) नामक एक स्वतंत्र स्व-नियामक निकाय की स्थापना की है।

याचिका में कहा गया है, “आक्षेपित नियम अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित आधारों के प्रतिबंधात्मक दायरे से परे हैं और विशेष रूप से, आईटी अधिनियम, 2000 के उद्देश्यों और कारणों का विवरण, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पूरे अधिनियम का फोकस और विषय- “इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स” (“ई-कॉमर्स”) पर है और किसी भी कार्यक्रम की सामग्री से निपटने के लिए नहीं है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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