भारत को अब तकनीकी क्रांति का उपभोक्ता बनकर रहने की मानसिकता से बाहर आना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिर्फ तकनीकी उन्नति का विषय नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का सबसे बड़ा मोर्चा बन चुका है। चीन ने DeepSeek मॉडल लॉन्च कर पूरी दुनिया को झकझोर दिया है, जबकि अमेरिका, यूरोप और चीन पहले से ही AI के क्षेत्र में अपने वर्चस्व को स्थापित करने में लगे हैं।
सवाल है कि क्या भारत इस दौड़ में अग्रणी बनने को तैयार है, या फिर हमेशा की तरह हम दूसरों के बनाए तकनीकी साम्राज्य के गुलाम बनकर रह जाएंगे?
बजट 2025 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने AI शिक्षा के लिए ₹500 करोड़ के निवेश की घोषणा की है। साथ ही, सरकार ने ₹10,000 करोड़ के फंड ऑफ फंड्स और एक डीप-टेक फंड की भी घोषणा की है, जिससे स्टार्टअप्स को मदद मिलेगी। लेकिन यह निवेश क्या भारत को AI में वैश्विक शक्ति बना सकता है? चीन के पास OpenAI जैसी अमेरिकी कंपनियों की मदद नहीं थी, फिर भी उसने DeepSeek मॉडल को खड़ा कर दिया।
सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार का निवेश AI की वैश्विक दौड़ में हमें बढ़त दिलाने के लिए पर्याप्त है? चीन और अमेरिका में AI के लिए हर साल अरबों डॉलर का निवेश किया जाता है, जबकि भारत अभी शुरुआती स्तर पर ही है। अगर भारत को AI में नेतृत्व करना है, तो हमें घोषणाओं से आगे बढ़कर ठोस रणनीति बनानी होगी।
AI डेटा सेंटर भारी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं। सरकार ने ₹20,000 करोड़ का बजट स्मॉल मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर्स के विकास के लिए प्रस्तावित किया है, ताकि डेटा सेंटर को ऊर्जा आपूर्ति दी जा सके। Microsoft, Google और OpenAI पहले ही न्यूक्लियर एनर्जी को AI डेटा सेंटर के लिए विकल्प के रूप में देख रहे हैं। यह कदम सराहनीय है, लेकिन भारत को इस क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक विकसित करने के लिए और अधिक आक्रामक होना होगा।
भारत सरकार ने 30 जनवरी को घोषणा की कि देश का खुद का फाउंडेशनल AI मॉडल बनाया जाएगा, जो भारतीय भाषाओं, संस्कृति और संदर्भ के अनुरूप होगा। स्टार्टअप्स को इसके लिए अनुदान, कंप्यूट क्रेडिट्स, इक्विटी निवेश और सह-वित्तपोषण की सुविधा दी जाएगी।
हालांकि, क्या यह कदम बहुत देर से नहीं उठाया गया? स्टैनफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन-सेंटर्ड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सह-संस्थापक जेम्स लैंडे का कहना है कि पश्चिमी डेटा पर प्रशिक्षित AI मॉडल पश्चिमी सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करते हैं। यदि भारत अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सुरक्षित रखना चाहता है, तो उसे अपना AI मॉडल विकसित करना ही होगा।
DeepSeek ने यह साबित कर दिया है कि ChatGPT बनाने के लिए अरबों डॉलर की जरूरत नहीं है। इसी से प्रेरित होकर एक भारतीय उद्यमी ने हाल ही में घोषणा की कि वह भारत के लिए फाउंडेशनल AI मॉडल विकसित करने की योजना बना रहे हैं। सोकेट लैब्स के संस्थापक का कहना है कि भारत देर से आया है, लेकिन ओपन-सोर्स तकनीक के कारण अब यह काम करना आसान होगा।
सरकार ने GPU लागत को घटाकर $1 (₹83) तक लाने का वादा किया है, ताकि AI स्टार्टअप्स को सहायता मिल सके। साथ ही, भारत AI मिशन के तहत ₹5,000 करोड़ की पूंजी AI कंप्यूटिंग के लिए निवेश करेगा। हालांकि, निवेशकों का मानना है कि AI के लिए केवल सस्ते हार्डवेयर की जरूरत नहीं, बल्कि लंबे समय तक रिसर्च और इनोवेशन की निरंतरता आवश्यक है।
DeepSeek के पीछे वर्षों की मेहनत और निवेश था, जबकि भारत में अभी केवल कुछ ही स्टार्टअप्स, जैसे Sarvam और Krutrim, को 2023-24 में $50 मिलियन (₹415 करोड़) से अधिक का निवेश मिला है। AI के केवल मॉडल बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके वास्तविक उपयोग (applications) में भी भारत को अग्रणी बनना होगा। भारत को अपनी ताकत AI के उपयोग मामलों (use cases) पर केंद्रित करनी चाहिए।
DeepSeek के मुकाबले OpenAI के मॉडल अधिक महंगे हैं। OpenAI का reasoning model प्रति मिलियन टोकन $15 (₹1250) में उपलब्ध है, जबकि DeepSeek-R1 की लागत केवल $0.014 (₹1.17) है। इसका अर्थ है कि भारतीय स्टार्टअप्स को अब सस्ते और सुलभ AI टूल्स मिल सकते हैं, जिससे वे तेजी से एप्लिकेशन डेवेलप कर सकते हैं।
DeepSeek का मॉडल वही रणनीति अपना रहा है, जो Google ने Android के साथ अपनाई थी। जब Apple और Microsoft महंगे ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ स्मार्टफोन बेच रहे थे, तब Google ने Android को ओपन-सोर्स बनाकर बाजार पर कब्जा कर लिया था। AI की दुनिया में भी यही रणनीति दोहराई जा रही है।
भारत को अब सिर्फ तकनीक का ग्राहक नहीं, निर्माता बनना होगा!
आज AI सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि भविष्य के विश्व-शक्ति संतुलन (geopolitics) का निर्धारक बन चुका है। AI में आत्मनिर्भरता न केवल आर्थिक, बल्कि रक्षा और साइबर सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है।
सरकार को बजट घोषणाओं से आगे बढ़कर AI मंत्रालय की स्थापना करनी चाहिए, जो राष्ट्रीय रणनीति तैयार करे और भारत को इस दौड़ में नेतृत्व दिलाए। अगर हमने अब भी कदम नहीं उठाया, तो हम AI के उपनिवेश (data colonies) बनकर रह जाएंगे, जहां हमारी भाषा, संस्कृति और डेटा पर विदेशी कंपनियों का नियंत्रण होगा।
समय है निर्णायक कदम उठाने का। या तो हम अपनी AI शक्ति विकसित करेंगे, या फिर दूसरों की तकनीक के गुलाम बन जाएंगे। यह विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है!
(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार है।)
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