Friday, March 29, 2024

विश्व मच्छर दिवस: कम नहीं है मच्छर की औकात!

आज विश्व मच्छर दिवस है। आम भाषा में मच्छर की औकात ज्यादा नहीं समझी जाती, पर इस अति सूक्ष्म, पंखधारी, विषैले प्राणी की ताकत को भूल कर भी कम नहीं आंकना चाहिए। सर रॉनल्ड रॉस ने 1897 में 20 अगस्त को मलेरिया और मच्छर के बीच का सम्बन्ध ढूंढ निकाला था और इसलिए 20 अगस्त का दिन विश्व मच्छर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मलेरिया के क्षेत्र में उनके अद्भुत शोधकार्यों के लिए 1902 में रॉस को चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। अपेक्षा की जाती है कि मच्छर दिवस पर उनके जरिए फैलने वाली बीमारियों, उनसे बचाव की बातें समझी जाएं।

‘नेचर’ जैसी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित एक विवादित पर बहुचर्चित आँकड़े के मुताबिक आज तक इस पृथ्वी पर करीब 109 अरब इंसान रहे हैं, और इनमें से आधे की मौत मलेरिया या मच्छरों से फैलने वाली अन्य बीमारियों के कारण हुई है। जैसा कि बताया गया है , इस आंकड़े को लेकर बहुत विवाद रहे हैं पर जिनकी दिलचस्पी हो वे सही स्रोत तक जाकर इसके सम्बन्ध में जांच कर सकते हैं। गौरतलब है कि हर साल मच्छरों के कारण फैलने वाली बीमारियों से दुनिया में लगभग सात लाख लोग मारे जाते हैं। खूंखार शार्क साल भर में सिर्फ दस से पन्द्रह लोगों को और डरावना सांप अपने गरल से बस पचास हज़ार लोगों को ही मार पाता है! इसलिए ‘तेरी औकात एक मच्छर से अधिक नहीं!’, किसी को यह कहने से पहले ज़रा सोच लें।  

कई लोग सोचते होंगे कि जो रोग विषाणु से होते हैं, वे मच्छर के जरिए कैसे फ़ैल सकते हैं। देखें, यदि किसी व्यक्ति या पशु को विषाणुजनित बीमारी है और उसे कोई मच्छर काट ले, फिर वही मच्छर किसी दूसरे इंसान को या पशु को काट ले तो विषाणु मच्छर के जरिये फ़ैल जाता है। मच्छर और विषाणु एक दूसरे का नुकसान नहीं करते हैं, उनके बीच एक अलिखित, षडयंत्रपूर्ण समझौता होता है जिसके तहत वे सिर्फ मनुष्यों में और पशुओं में ही बीमारियाँ फैलाते हैं।कोविड-19 को लेकर भी कइयों में यह जिज्ञासा हुई कि यह मच्छरों के द्वारा फ़ैल सकता है या नहीं, और वैज्ञानिकों ने राहत की सांस ली जब यह स्पष्ट हुआ कि अभी तक मच्छरों की कोरोना वायरस के साथ मिलीभगत नहीं है, वरना इसके नतीजे और भी खतरनाक होते। मच्छर विषाणु के वाहक या वेक्टर होते हैं। जब वे किसी को काटते हैं, तो उनसे रक्त में विषाणु छोड़ देते हैं।          

मच्छरों का आतंक प्राचीन और प्रागैतिहासिक है। अथर्ववेद में मलेरिया से मिलते-जुलते ज्वर का उल्लेख है। उसमें कहा गया है कि शरद ऋतु के ये ज्वर अधिक बारिश, या महावर्षा के बाद ही होते हैं। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी ऐसे ज्वर का उल्लेख है जो कीट-पतंगों के काटने से होते हैं। इन ज्वरों के लक्षण आम तौर पर वैसे ही बताये गए हैं जो मच्छरों के काटने से होते हैं। हिपोक्रेटिस एलॉपथी के जनक माने जाते हैं और उन्होंने ई. पू. 400 वर्ष पहले मलेरिया से बारम्बार आने वाले बुखार के बारे में विस्तार से बताया है। सोलहवीं सदी के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर ने अपने आठ नाटकों में मलेरिया का ज़िक्र किया है और इसके लिए अंग्रेजी शब्द एग्यू का इस्तेमाल किया है। इन बातों से मालूम पड़ता है कि मच्छरों ने सदियों से बीमार पड़ने में इंसान की कितनी मदद की है!    

सचाई तो यह है ही कि मच्छर से मलेरिया के अलावा अन्य कई भयंकर बीमारियाँ फैलती हैं जिनमे डेंगू, वेस्ट नील वायरस, जीका, फ़ाइलेरिया, मस्तिष्क ज्वर, चिकनगुनिया जैसी गंभीर बीमारियाँ भी शामिल हैं। इन रोगों से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं और कई काल के गाल में भी समा जाते हैं। इस तरह मच्छर की औकात इतनी अधिक है कि मानवीय सभ्यता के दौरान वह एक अदृश्य-से, सूक्ष्म जीवधारी से एक रक्तपिपासु, उन्मादी नर संहारक में परिवर्तित होता गया है। निर्बाध और स्वच्छंद। उसने अपनी अनवरत भुनभुनाहट से इन्सान के जीवन में सिर्फ खीझ ही पैदा नहीं की, बल्कि उसके नुकीले डंक मौका मिलते ही हमारी देह में मृत्यु के प्रवेश का रास्ता भी बना देते हैं। 

अपने से हजारों गुना बड़े इंसान की नाक से अधिक उसकी कान में मच्छरों ने दम किया हुआ है। दुनिया की सबसे अधिक चिढ़ पैदा करने वाली आवाजों में होती है मच्छरों की भिनभिनाहट, और वह भी ख़ास कर तब जब आप दिन भर की थकान के बाद नींद के आगोश में बस पनाह लेने वाले ही होते हैं। इस आवाज़ को बगैर किसी चिडचिडाहट के, धैर्य से सुनने के लिए सही अर्थ में बहुत ही उच्च श्रेणी का संत होने की जरूरत है, क्योंकि मच्छर की हरकतें एक पल में किसी संत के भीतर सुसुप्त पड़े शैतान को सक्रिय कर सकती है! हमारे अन्दर कितना धैर्य और संयम है यह जानना हो तो किसी को मच्छरों वाले कमरे में रात बिता कर देखना चाहिए!

बताते हैं कि धरती पर हर इंसान के साथ सौ मच्छर भी रहते हैं। चलिए मच्छरों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें समझते हैं। नर मच्छर सिर्फ पेड़-पौधों का रस चूसते हैं। काटने का काम सिर्फ मादा मच्छर का होता है। उसे अपनी प्रजाति को अस्तित्व में कायम रखने के लिए खून चाहिए, अपने अण्डों के लिए प्रोटीन चाहिए जो उसे खून से मिलता है, जिसे चूस कर वह अपने अस्तित्व की निरंतरता को बनाये रखती है।

हमारा खून पीने के लिए मच्छरों की 3500 से ज्यादा प्रजातियाँ हैं। यदि दुनिया के करीब 100 ख़रब मच्छरों को एक फुटबाल के मैदान में इकट्ठा किया जाए, तो उनकी ऊंचाई तीन मील तक होगी। लेकिन फिर भी क्षणभंगुर है एक मच्छर का जीवन। पानी के बुलबुले की तरह। यदि किसी त्रस्त इंसान के हाथों वह मसल न दिया जाए, तो उसकी उम्र सिर्फ दो महीने की होती है। मच्छर शीतरक्तक होने की वजह से गर्मियों में ही अधिक सक्रिय होते हैं। 

सर्द जगहों पर और सर्दी के मौसम में वे शीतनिद्रा में होते हैं। मच्छर अपने जीवन के पहले दस दिन पानी में बिताते हैं उसके बाद ही उड़ने लायक होते हैं। मच्छर बड़े भी पेटू होते हैं और अपने वज़न का तीन गुना खून पी जाते हैं। खून इन्हें इतना भाता है कि उसकी तलाश में ये 15 मील तक उड़ सकते हैं। करोड़ों लोग हर साल मच्छरों के कारण फैलने वाले रोगों से प्रभावित होते हैं। जब आप किसी की औकात की तुलना एक मच्छर से करें, तो याद रखें कि एक नन्हा सा मच्छर अच्छे खासे तगड़े इंसान को महीनों के लिए बिस्तर पर पटक कर रख सकता है, और अगर ठान ले तो उसे इस धरा-धाम से विदा भी कर सकता है।    

जहाँ तक हो सके मच्छरों से बचाना चाहिए। दिन में मच्छर ज्यादातर अंधेरी जगहों, दीवारों के कोने, परदों के पीछे, सोफे, बेड, टेबल आदि के नीचे छुपे रहते हैं। इसलिए रोजाना इन जगहों की अच्छी तरह से सफाई होनी चाहिए। सप्ताह में एक बार इन जगहों पर मच्छर मारने की दवा का छिड़काव करें। ऐसा तरीका ढूंढना चाहिए जिससे मच्छर घर में न आ सकें। जरूरी है घर के दरवाजे और खिड़कियों पर जालियां लगाएं। एक सप्ताह के अंतराल पर घर और आसपास की सफाई जरूर करें। मच्छर शाम और रात में रोशनी की ओर खिंचे चले हैं। इसलिए शाम को जरूरत पड़ने पर ही कमरों में बत्ती जलाएं। इसके अलावा घर में मच्छर भगाने वाले मस्कीटो रेपेलेंट जला लें, जो कई नामों से बाजार में बिकते हैं। रात को सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोएं। प्राकृतिक उपाय भी हैं मच्छर भगाने के लिए। नीम की पत्तियों, कपूर, तेजपत्ता, लौंग को घर में जलाएं। इससे मच्छर भाग जाते हैं। तारपीन का तेल भी मच्छर भगाने में मदद करता है।

ऑलआउट वगैरह की खाली रीफिल में नीम का तेल और कपूर डालें और रिफिल को मशीन में लगाकर स्विच ऑन कर दें। एक लीटर नीम के तेल में 100 ग्राम असली कपूर मिलाएं और घोल बना लें। इससे 25 बार रीफिल भर सकते हैं।मशीन नहीं है तो कपूर और नीम के तेल का दीपक जलाएं। गौरतलब है कि मच्छर भगाने के उपाय करने वाले उद्योग चार अरब डॉलर से ज्यादा राशि के हैं। आपको मच्छर भगाने वाली किसी दवा के किसी ख़ास किस्म के रसायन से एलर्जी भी हो सकती है, इसलिए उसके इस्तेमाल से पहले सतर्क रहें।  ज्यादा पसीने से मच्छर आकर्षित होते हैं। यदि आप बीयर के शौक़ीन हैं तो याद रखें, इसे पीने के बाद शरीर से जो गंध निकलती है उसे मच्छर पसंद करते हैं!

जहाँ तक हो सके उन्हें बस बददुआ देकर संतुष्ट रहें, पर उनके पूर्ण विनाश की कामना न करें, क्योंकि वे 10 करोड़ साल से धरती पर हैं और आहार श्रृंखला का एक ख़ास हिस्सा हैं। पर्यावरण मच्छरों की अनुपस्थिति कई तरह से महसूस करेगा, भले ही हमारे लिए यह अपार सुख का कारण हो।     

(चैतन्य नागर पत्रकार,लेखक और अनुवादक हैं।) 

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