Tuesday, March 19, 2024

यूपी की बदहाली के गुनहगार कौन?

उत्तर प्रदेश में वे सभी खूबियां हैं जो इसकी जबर्दस्त राजनीतिक और आर्थिक सफलता की कहानी गढ़ सकती हैं। 2,43,286 वर्ग किमी की इसकी विशाल उपजाऊ जमीन, 20.4 करोड़ की विशाल आबादी, गंगा और यमुना जैसी इसकी अविरल प्रवाहमान बारहमासी नदियां तथा उनकी सहायक नदियां और अत्यंत मेहनती लोगों वाला यह प्रदेश है। जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चरण सिंह, राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी —ये सभी प्रधानमंत्री यूपी से चुने गए थे। इसके बावजूद वर्षों से यूपी को एक असफल राज्य माना जाता रहा है।

आइए यूपी को ऐसे मानव विकास सूचकांकों पर परखते हैं जो सर्व-स्वीकृत हैं। जब हम जीएसडीपी, यानि ‘राज्य सकल घरेलू उत्पाद’ की विकास दर, प्रति व्यक्ति आय और राज्य पर कर्ज के बोझ के आंकड़ों के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा पर आधिकारिक सर्वेक्षण के आंकड़ों और अपराध, बेरोजगारी और प्रवास के आंकड़ों को जोड़ते हैं तो कुल मिलाकर कड़वा स्वाद ही मिलता है, जो इस राज्य की असफलता की कहानी बयान करता है।

लंगड़ाती अर्थव्यवस्था

1980-1989 के दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस आखिरी बार सत्ता में थी। उसके बाद के पिछले 32 वर्षों में, राज्य में तीन दलों- भाजपा, सपा और बसपा का शासन रहा है। इस दौरान प्रदेश की बदतर हालात की गुनहगार ये सभी पार्टियां हैं। मार्च 2017 से तो भाजपा से श्री आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं।

राज्य की सफलता के मूल्यांकन के लिए तीन पैमाने रखते हैं— किये गये कार्य, लोककल्याण और संपदा। श्री आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व के दौरान देश की जीडीपी के पैटर्न पर ही प्रदेश की ‘जीएसडीपी विकास दर’ में भी लगातार गिरावट आई है:

उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय भारत की औसत आय के आधे से भी कम है। 2017-18 और 2020-21 के बीच, प्रति व्यक्ति आय वास्तव में 1.9 प्रतिशत घट गई। इन चार वर्षों के दौरान राज्य के ऊपर कर्ज में 40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी। मार्च, 2021 तक, कुल कर्ज बढ़कर 6,62,891 करोड़ रुपये हो चुका था जो जीएसडीपी का 34.2 प्रतिशत था। नीति आयोग की ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ (एमपीआई) रिपोर्ट-2021 के अनुसार राज्य के 37.9 प्रतिशत लोग गरीब हैं। 12 जिलों में यह अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक है और तीन जिलों में तो यह 70 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों से मुंह नहीं चुराया जा सकता कि: यूपी एक गरीब राज्य है, इसके लोग गरीब हैं, और श्री आदित्यनाथ की सरकार के दौरान लोगों की गरीबी और बढ़ गयी है।

शासन कि कुशासन?

युवा सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यूपी में बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा है। अप्रैल 2018 से, 15 से 29 वर्ष की आयु के लोगों में बेरोजगारी दर दोहरे अंकों में रही है और अखिल भारतीय दर से ऊपर है। 15 से 29 साल की महिलाओं में जुलाई से सितंबर, 2020 के बीच बेरोजगारी दर 40.8 फीसदी थी। अप्रैल 2018 से मार्च 2021 के दौरान पीएलएफएस (पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे) के आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में चार में से एक युवा बेरोजगार था।

इसका परिणाम है, यूपी से पलायन। ‘जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स’, मार्च 2020 के अनुसार, अंतर-राज्यीय प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या यूपी में थी। यह संख्या 1 करोड़ 23 लाख 20 हजार थी, यानि हर सोलहवां व्यक्ति दूसरे राज्य में पलायन कर रहा है। 25 मार्च, 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद, हमने लाखों लोगों के अपने घरों को वापस जाने की भयावह तस्वीरें देखीं। ये लोग मुख्यतः यूपी और बिहार वापस जा रहे थे।

एक गरीब और कुशासित राज्य होने के नाते यूपी लोककल्याण के पैमानों पर भी निराशाजनक स्थिति में है। उत्तर प्रदेश शिक्षा पर प्रति व्यक्ति सबसे कम राशि खर्च करता है। छात्र-शिक्षक अनुपात सभी राज्यों से खराब है। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए यूपी को 2,77,000 और शिक्षकों की जरूरत है। ‘ऐनुअल स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (शिक्षा की हालत पर सालाना रिपोर्ट) एएसईआर—2021 के अनुसार, नामांकन कराने वाले 38.7 प्रतिशत छात्र ट्यूशन पढ़ने को मजबूर थे, जिसका कारण स्कूली शिक्षा की विफलता है। प्रदेश के हर आठ छात्रों में से एक कक्षा 8 में पढ़ाई छोड़ देता है। उच्च माध्यमिक स्तर पर सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 46.88 प्रतिशत है और कॉलेज/विश्वविद्यालय स्तर पर 25.3 प्रतिशत है।

स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति तो और भी बदतर है। यूपी की ‘नवजात शिशु मृत्यु दर’ एनएमआर 35.7 प्रति 1000 है, ‘शिशु मृत्यु दर’ आईएमआर 50.4 है और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 59.8 है। ये औसत राष्ट्रीय औसत से काफी ऊपर है। प्रति 1000 लोगों पर 0.64 डॉक्टर, 0.43 नर्सें और 1.38 पैरामेडिकल स्टाफ उपलब्ध हैं, जो राष्ट्रीय औसत से भी काफी नीचे है। जिला अस्पतालों में प्रति 1,00,000 की आबादी पर केवल 13 बिस्तर हैं। नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2019-20 में यूपी सबसे निचली पायदान पर है।

दबंगई और तानाशाही

श्री आदित्यनाथ के शासन का मॉडल बेहद दोषपूर्ण है। यह बड़बोलेपन और डंडे के जोर पर चलाये जाने वाला शासन है। यह मॉडल तानाशाही, जातिवादी दबंगई, सांप्रदायिक नफरत, पुलिस ज्यादतियों और लैंगिक हिंसा के खतरनाक मिश्रण पर आधारित है। यहां की राजनीतिक शब्दावली ‘एनकाउंटर’, ‘बुलडोजर’ और ‘80 बनाम 20’ जैसे शब्दों से भरी पड़ी है। ‘धर्म जनता की अफीम है’, इस परिकल्पना को साबित करने की कोशिश करने का अवांछित गौरव भाजपा को ही प्राप्त है।

बड़ा सवाल यही है कि अगर इतने प्राकृतिक संसाधनों और संभावनाओं से समृद्ध इस प्रदेश को यहां की सत्ताधारी पार्टियों ने विकास के सभी पैमानों पर हमेशा निचली पायदान पर रखने में अब तक कभी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है तो क्या महज सत्ता पर क़ब्जे के लिए होने वाले चुनावों का कोई असर कभी प्रदेश की क़िस्मत भी बदल पाएगा?

(‘इंडियन एक्सप्रेस’ में पी चिदंबरम के लेख पर आधारित। प्रस्तुति—शैलेश)

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