बिलकीस मामले में नंगी हो गयी पूरी व्यवस्था

Estimated read time 1 min read

ये मैं बतौर महिला दूसरी महिला से कहना चाहती हूं।

ये मैं आप सब लोगों से कहना चाहती हूं।।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कैसा लगता है जब मर्दों की एक भीड़ आपके ऊपर झपट्टा मारती है, वो एक के बाद एक आपका रेप करते हैं? उसके बाद सोचिए आप अपनी मां का गैंगरेप होते देखते हैं, जिसने अपने रेप से पहले आपका सामूहिक बलात्कार होते देखा है ! इसके बाद आपकी दो बहनों की बारी आती है, अगर इतना काफ़ी नहीं है तो सोचिए आप जख्मी हालत में ज़मीन पर पड़ी हैं, बलात्कारियों ने आपकी बाहें तोड़ दी हैं और इस हालत में ही आप अपनी तीन साल की बच्ची की बेरहमी से हत्या होते देख रहे हैं, उसके सिर पर पत्थर से वार कर उसे रौंद डाला गया।

डरावनी बात ये है कि इन लोगों को आप जानते हैं। ये अजनबी नहीं हैं। ये आपके पड़ोसी रहे हैं। ये आपके परिवार से दूध खरीदते रहे हैं। आपको हमेशा लगता था कि ये आपके दोस्त हैं।

सोचिए आप ने अपने जीवन के 17 साल इस अन्याय के ख़िलाफ़ कोर्ट में लड़ने में लगाए तकरीबन 20 बार आपको अपने घर, राज्य से दूर इधर- उधर जाना पड़ा क्योंकि केस भी लड़ना है और ज़िंदा भी रहना है। इतना होने के बाद भी जब आपको लगता है कि अब शायद आपके अंदर इतनी ताकत आ गई है कि आप अब वाकई इस अन्याय से उबर कर सामान्य ज़िंदगी की ओर कदम बढ़ा सकते हैं, तब सरकार के एक आदेश में झटके से ही आपके दोषी ये 11 लोग सज़ा पूरी करने से पहले ही छूट जाते हैं।

कुछ कहानियां बेहद पर्सनल बन जाती हैं, बिलकीस बानो पर हुआ अन्याय मेरे लिए ऐसा ही है। मुझे गोधरा के राहत शिविर में उसके साथ हुई मुलाकात अभी तक अच्छी तरह याद है।दूसरी महिलाओं के साथ घिरी, तिरपाल की चादर तले, मद्धिम मद्धिम जल रहे किरोसिन लैम्प की रोशनी में हुई उस मुलाकात को 20 साल हो गए हैं लेकिन इन दिनों लगता है कि जैसे ये कल की ही बात हो। मुझे याद है जब उसने बिना एक आंसू बहाए उस रात उसके साथ हुई सारी ज्यादतियों के बारे में मुझे बताया। उसकी आंखों में एक बेहद टूटन भरा स्याह ठहराव था, ऐसे लगता था जैसे उसके भीतर कुछ मर चुका है। उसके पति याकूब बिलकीस ने मुझे बताया कि उसके बलात्कारियों और उसके बच्चे के हत्यारों का फूलमालाओं और मिठाई के साथ स्वागत किए जाने के बाद बिलकीस अब फिर उसी मनोदशा में वापस लौट आई है। वो किसी से बात नहीं कर रही है और फिर से चुप हो गई है। अगर आपको लगता है कि इतने के बाद बिलकीस की त्रासदी खत्म हो गई है, तो आप गलत हैं।

आगे सुनिए, बीजेपी के एमएलए सीके राउलजी को, जो कि सरकार के उस पैनल के भी सदस्य थे जिसने इन 11 दोषियों की जल्दी रिहाई की सिफारिश की थी। मोजो स्टोरी से बात करते हुए राउलजी ने कहा था कि ये लोग ब्राह्मण हैं और ब्राह्मणों के अच्छे संस्कार होते हैं। इनका जेल में आचरण भी अच्छा था। वीडियो वायरल होने के बाद पार्टी समर्थक भी शर्मिंदा नज़र आए। इस इंटरव्यू से एक बात तो साफ़ हो गई कि इन लोगों को रिहा करने के फैसले का दूर-दूर तक सुधारवादी नज़रिए से कोई लेना देना नहीं है।

राउलजी तो उनके गिल्ट पर ही सवाल करते नज़र आए, वो कहते हैं कि- क्राइम किया भी है या नहीं…मालूम नहीं। सज़ा से इस तरह की छूट घनघोर अन्याय की परतें खोल रही है। यहां तक कि इस कदम की वैधानिक मान्यता भी अपारदर्शी और गैर ईमानदार लगती है। 2022 में होम मिनिस्ट्री की गाइड लाइंस से ये साफ़ है कि प्रिज़नर प्रोग्राम के तहत जेल से पहले रिहाई रेप के अपराध में सज़ा भुगत रहे कैदियों पर लागू नहीं की जा सकती। ऐसे में लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर गुजरात सरकार ने 1992 के पुराने कानून के तहत फैसला लिया है तो ऐसे में उनके लिए ये ज़रूरी है केंद्र सरकार की ओर से अप्रूवल ली जाए। सवाल ये है कि किसने इस फैसले को हरी झंडी दी और किस लेवल पर ऐसा हुआ ?

बिलकीस की वकील शोभा गुप्ता, जिन्होंने बिलकीस को न्याय दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है, इस फैसले से पूरी तरह निराश हैं। वो कहती हैं कि वो टूट गई हैं और बिलकीस से नज़रें नहीं मिला पा रही हैं। जब मैंने उनसे सवाल किया कि क्या गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ़ बिलकीस कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी तो शोभा ने जो जवाब में मुझसे कहा, वो किसी को भी शर्मिंदा करने के लिए काफी है। वो बोलीं- आखिर एक इंसान के पास कितनी हिम्मत हो सकती है, अब किसी और को लड़ना चाहिए। सीबीआई को इस फैसले के खिलाफ़ अपील करनी चाहिए, प्रधानमंत्री को सामने आना चाहिए। शोभा ने ये भी कहा कि यौन अपराधों की एक दूसरी विक्टिम ने उनसे फोन कर पूछा है कि क्या उसे अपना केस वापस ले लेना चाहिए। 16 दिसंबर, 2016 की घटना के बाद का आक्रोश आखिरकार कहां गया ?

– क्या सज़ा से छूटे इन 11 लोगों की जगह जेल में नहीं है ?

– जैसा कि बिलकीस खुद पूछ चुकी हैं- क्या एक औरत के न्याय की लड़ाई का ऐसा अंजाम होना चाहिए ? 

इस सवाल का जवाब एक ही बात पर निर्भर करता है कि इस बात को लेकर हम कितनी बात करते हैं, कितनी आवाज़ उठाते हैं 

मैं कहती हूं- Let’s raise hell

(वरिष्ठ पत्रकार और मोजो स्टोरी की संपादिका बरखा दत्त के इस लेख का हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार अल्पयु सिंह ने किया है।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author