आखिर किन वजहों से जेलेंस्की को बड़बोलापन बंद कर, ट्रंप के सामने करना पड़ा आत्मसमर्पण

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आखिर जेलेंस्की ने बड़बोलापन बंद करके ट्रंप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्होंने कल कहा कि हम ट्रंप के मजबूत नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने ओवल में ट्रंप के सामने अपने बड़बोलेपन के लिए माफी भी मांग ली। उन्होंने regrettable शब्द इस्तेमाल किया, जिसका मतलब दुखद और माफी मांगने लायक घटना होता है।

उन्होंने यह कहा कि वे ट्रंप के शांति प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार हैं। ट्रंप के शांति प्रस्ताव के बारे उन्होंने कहा कि हम और हमारी टीम यह मानती है कि यूक्रेन को शांति की जरूरत है, हम ट्रंप और उनकी टीम के साथ शांति के लिए सहयोग करेंगे। 

जेलेंस्की ने यह सब कुछ ट्रंप प्रशासन द्वारा यूक्रेन को रूस के खिलाफ युद्ध या प्रतिरोध के लिए दी जाने वाली अनिवार्य और अपरिहार्य सहायता को फिलहाल रोक देने के निर्णय की घोषणा के बाद किया। यह घोषणा ट्रंप प्रशासन ने ट्विटर (X) पर किया। इस घोषणा के बाद ही जेलेंस्की घुटनों के बल आ गए, क्योंकि किसी और को पता हो या न हो, लेकिन उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि अमेरिकी सहायता के बिना वह रूस के खिलाफ युद्ध या प्रतिरोध में एक दिन भी टिके नहीं रह सकते हैं, जिस दिन अमेरिकी सहायता बंद हो जाएगी, वह रूस को यूक्रेन पर कब्जा करने से नहीं रोक पाएंगे।

उनके यूरोपीय मित्र चाहे जितनी बड़ी-बड़ी बातें करें, भविष्य में 841 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने की घोषणा करें। यूरोपीय यूनियन के 27 देश अपना रक्षा बजट कम से कम 1 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा करें। उनका साथ देने के जितने वादे करें, फिलहाल वे इस स्थिति में नहीं हैं कि यूक्रेन को जरूरी साजो-सामान, तकनीक, और हथियार उपलब्ध करा पाएं, जिसकी उसे रूस के खिलाफ अपनी सुरक्षा के लिए जरूरत है। 

यहां तक यूरोपीय यूनियन और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) के नेताओं ने भी लंदन में कह दिया है कि अमेरिका की सहायता के बिना यूक्रेन रूस के खिलाफ युद्ध जारी नहीं रख सकता है, क्योंकि सबको पता है कि वास्तविक युद्ध शब्दों या बड़बोलेपन से नहीं लड़ा जा सकता है।

वह आर्थिक शक्ति, ताकत, विशेषकर सामरिक ताकत पर निर्भर करता है। आज के युग में सामरिक ताकत का मतलब सैन्य संख्या, परंपरागत टैंक, युद्धक विमान आदि पर सिर्फ निर्भर नहीं है, यह सब मायने रखता है, लेकिन 21वीं सदी के युद्ध में निर्णायक ताकत आधुनिक तकनीक और उससे सुसज्जित सेना और हथियार हैं, युद्धक विमानों की जगह छोटे ड्रोन और उनको संचालित करने वाली तकनीक ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है।

आइए देखते हैं कि रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन किन-किन चीजों के लिए अमेरिका पर निर्भर है, जो अमेरिका के अलावा अभी फिलहाल यूरोपीय यूनियन के 27 देश (जिसमें फ्रांस और जर्मनी भी शामिल हैं) और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) भी फिलहाल मुहैया नहीं करा सकते हैं। 

सबसे पहले सबसे छोटी सी दिखने वाली चीज कम्युनिकेशन को लेते हैं। रूस के खिलाफ यूक्रेन को कम्युनिकेशन की क्रिटिकल तकनीक और उपकरण एलन मस्क के स्वामित्व वाली कंपनी स्टारलिंक ( Starlink) उपलब्ध कराती है। युद्ध का पूरा कम्युनिकेशन ग्रिड इसी से यूक्रेन में संचालित हो रहा है।

यह कम्युनिकेशन के मामले में दुनिया की सबसे अत्याधुनिक तकनीक है। इसकी आपूर्ति यदि बंद हो जाती है, तो यूक्रेन के सैन्य शक्ति का कम्युनिकेश ढांचा करीब-करीब ठप्प हो जाएगा, उसकी गति बहुत धीमी और उसकी क्षमता बहुत ही कमजोर हो जाएगी। यह कम्युनिकेशन सिर्फ अपनी सैन्य गतिविधि के लिए ही नहीं, दुश्मन की सैन्य गतिविधि की जानकारी और पहल के लिए अनिवार्य होता है। 21वीं सदी के युद्ध में कम्युनिकेशन का यह नेटवर्क सबसे बुनियादी चीजों में से एक है।

अमेरिका का एंटी टैंक मिसाइल सिस्टम लंबी दूरी की मिसाइलों और एयर डिफेंस सिस्टम के लिए सबसे बुनियादी जरूरतों में से एक है। रूस की लंबी दूरी की मिसाइलों और युद्धक विमानों से इनके बिना यूक्रेन अपनी रक्षा नहीं कर सकता है। यूक्रेन जिन्हें हैवी वीपन्स (शक्तिशाली हथियार) जैसे टैंक, आर्टिलरी सेल्स, एयर डिफेंस मैकेनिज्म के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है। यहां तक कि कड़ाके की ठंड से यूक्रेन के सैनिकों के बचाव के लिए कोल्ड वीदर गीयर ( cold-weathergear) भी अमेरिका ही उपलब्ध कराता है। बहुत सारे मेडिकल्स उपकरण और एंबुलेंस भी अमेरिका उपलब्ध करा रहा है।

पिछले साल आपूर्ति किए गए लगभग एक दर्जन हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) लाइट मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर ने यूक्रेनी मारक क्षमता को बढ़ाया है। 2022 में अनुबंधित नेशनल एडवांस्ड सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम (NASAMS) जल्द ही वितरित किए जाने की उम्मीद है। 

अमेरिका यूरोप और अमेरिका में यूक्रेनी सैनिकों को प्रशिक्षण दे रहा है। यह बहुत सारी खुफिया सहायता प्रदान कर रहा है, जो पूर्वी तट पर यूक्रेनी सेना के रक्षात्मक युद्धाभ्यास के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां रूस संघर्षरत स्थिति में है।

जहां तक कुल आर्थिक सहायता की बात है। यूक्रेन को रूस के खिलाफ युद्ध में मिलने वाली आर्थिक सहायता का 40 प्रतिशत अकेले अमेरिका उपलब्ध करा रहा है। यूरोपियन यूनियन का हिस्सा 47 प्रतिशत है। साफ है कि यूरोप के 27 देश मिलकर जितनी आर्थिक सहायता यूक्रेन को उपलब्ध करा रहे हैं, करीब उतना अकेले अमेरिका उपलब्ध करा रहा है। 

यहां इस तथ्य को भी रेखांकित कर लेना जरूरी है कि यूरोपीय यूनियन और यूनाटेड किंगडम (ब्रिटेन) जितनी भी सदिच्छा या जुबानी-जमा खर्च रूस के खिलाफ बोलने या यूक्रेन का साथ देने के लिए करें, लेकिन वह खुद की सामरिक सुरक्षा के लिए भी अमेरिका पर निर्भर हैं।

1945 के बाद से ही वे अमेरिकी सैन्य सुरक्षा की छतरी में जी रहे हैं, इसमें नाभिकीय सुरक्षा भी शामिल है। यूरोप सामरिक तौर पर अमेरिका के बिना फिलहाल कोई बड़ी हैसियत नहीं रखता है, न ही यूक्रेन की ऐसी मदद कर सकता है कि वह रूस के खिलाफ युद्ध जारी रख पाए।

दुनिया में यदि कोई देश आज के सामरिक युद्ध के मामले में अमेरिका के आस-पास खड़ा होता है, तो वह चीन है। युद्ध के हर फ्रंट पर अमेरिका का समाना करने की स्थिति में है। वह युद्ध की सबसे अत्याधुनिक तकनीकी और उपकरणों से लैस है। वह कई क्षेत्रों में अमेरिका से आगे निकल चुका है। अमेरिका के लिए यदि कोई देश चुनौती है, तो वह चीन है।

यूक्रेन युद्ध में अमेरिका दुविधा या आगे-पीछे होना चीन की चुनौती से निपटने के मामले में अमेरिका के भीतर दो तरह की समझ या राय का होना है। ओबामा, बाइडेन पहले रूस को पूरी तरह किनारे लगा देना चाहते थे, उसे घेर लेना चाहते थे। उसके बाद चीन से निपटना चाहते थे। इसके विपरीत ट्रंप रूस से निपटने को आत्मघाती पा रहे हैं, वे चीन से निपटने की तैयारी में लगे हैं, क्योंकि वहां से अमेरिका को चौतरफा चुनौती है।

जेलेंस्की ने अमेरिका और यूरोप के उकसाने पर रूस के खिलाफ युद्ध की स्थिति पैदा की थी। रूस को इस स्थिति में पहुंचा दिया था कि उसके पास युद्ध के अलावा कोई विकल्प ही न बचे, अगर वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भविष्य में बचाए रखने की सोचता है, तो। अमेरिका-यूरोप और नाटो की सैन्य शक्ति यूक्रेन से होकर उसकी सीमा पर दस्तक देने की तैयारी कर चुकी थी। 

जेलेंस्की दुनिया के इतिहास के उन नेताओं में शामिल हो गए, जिन्होंने दूसरे की सामारिक-आर्थिक शक्ति और उकसावे पर एक सामरिक महाशक्ति को युद्ध के लिए विवश कर दिया। जेलेंस्की जैसा उछल-कूद मचाने वाला और बड़बोला नेता यह समझ ही नहीं पाया कि अंतिम तौर पर अपने देश की संप्रभुता और एकता-अखंड़ता की रक्षा अपने दम पर ही की जा सकती है। युद्ध के लिए उकसाने वाले देश (अमेरिका-यूरोप) अपने स्वार्थों के लिए यूक्रेन को ‘वाक अप-बेटा-वाक अप’ कर रहे थे।

जेलेंस्की जब ट्रंप के सामने उनके ऑफिस ओवल (वाशिंगटन डीसी) आए तो भी यह भूल गए थे कि उस देश के नेता से बात कर रहे हैं, जिसके भरोसे उन्होंने युद्ध शुरू किया था। जिसके भरोसे वह आज भी युद्ध लड़ रहे हैं। वे यह भूल गए थे कि उस देश (अमेरिका) के नए नेता का स्वार्थ रूस के साथ युद्ध जारी रखने में नहीं दिखाई दे रहा है। इसे न समझने का नतीजा जेलेंस्की को भुगतना पड़ा। एक देशी मुहावरे में कहें, तो वह प्याज भी खाए और जूता भी।

(डॉ. सिद्धार्थ लेखक और पत्रकार हैं।)

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