Saturday, April 27, 2024

राजेन्द्र सिंह का लेख: राजधानी को प्रलय से बचाने के लिए यमुना को जल स्वराज्य चाहिए

हमारी राजधानी यूं तो समय-समय पर सुखाड़-बाढ़ के प्रलय झेलती रही है। भारत की राजधानी सुखाड़ के प्रलय से सबसे पहले फतेहपुर सीकरी से उजड़कर आगरा आयी थी। आगरा में युमना के किनारे लम्बे समय तक हमारी राजधानी रही। फिर आगरा से उजड़कर दिल्ली आयी। दिल्ली में भी यमुना के किनारे ही भारत की राजधानी बसायी गई। यह ऐसा इतिहास है जो प्रलय से बचने के लिए हमें हमेशा सचेत करता रहा है। उस काल में प्राकृतिक प्रलय थी, अभी दिल्ली में बाढ़ की मानव निर्मित प्रलय है। इस समय जो हिमालय में वर्षा हुई है, वह बहुत अतिवृष्टि नहीं है, सामान्य बारिश जैसी ही है। लेकिन सरकारी अराजकता व अव्यवस्था के कारण दिल्ली में बाढ़ का हाहाकार मच गया है।

यमुना जी दिल्ली में 22 किलोमीटर लम्बाई में बहती हैं। इन 22 किलामीटर के हर 1 किलोमीटर पर, 1 बरसाती नाला था। यहां पर यमुना जी की सहायक नदियों में साबी नाम की एक अद्भुत नदी है। यह वज़ीराबाद पुल के पास आकर यमुना में मिलती थी। जब भी यमुना का जल-स्तर ऊपर होता था, तो साबी नदी से यह पानी वापस नजफ़गढ़ झील में चला जाता था। नजफ़गढ़ झील को प्राकृतिक तरीक़े से भरता रहता था। जब बाढ़ उतरती थी तो धीरे-धीरे कुछ पानी वापिस सतह पर यमुना जी में आ जाता था। ज़्यादातर पानी नजफ़गढ़ झील में ही रुक कर अधो भू-जल के भण्डारों को भर देता था। भू-जल के भण्डार भरने के बाद वह पानी धीमी गति से अधो भू-जल से पूरे साल यमुना जी में आता रहता था। इसलिए यमुना भी सदानीरा बनी रहती थी और बाढ़ के समय का जल भी कम हो जाता था।

दिल्ली के विकास ने यमुना जी में बहुत विनाश किया है। इस कथित विकास ने साबी नदी को नाला बना कर रख दिया। अब साबी नदी का पानी नजफ़गढ़ झील तक भी नहीं पहुंचता। 22 किलोमीटर में वर्षा-जल के जो 18 नाले थे, वे अब गंदे नाले बन गये हैं। जहां वर्षा-जल बहता था, वहां अब गंदा जल बहता है। गंदे जल को परिशोधित करने वाले तालाब और कुण्डों पर अवैध क़ब्ज़े हो गये हैं। उस भूमि का उपयोग अब सरकारी भवन निर्माण में किया गया है और बची हुई ज़मीन रियल स्टेट का काम करने वाले भू-माफियाओं के क़ब्ज़े में है। विभिन्न तरह के भवन निर्माण कार्यों ने यमुना के प्राकृतिक प्रवाह एवं स्वरूप को बिगाड़ दिया है। हिमालय में यमुना की अविरलता थी, वर्षा का पानी जगह-जगह रुकता था, तो यमुना का जल धीरे-धीरे बहता था। हमारे नये विकास ने बाढ़ से बचने के अनुकूल तरीक़ों को खत्म कर दिया और यमुना किनारे के जंगल समाप्त कर दिये। इसलिए अब राजधानी में मानव निर्मित बाढ़ का प्रलय बढ़ रहा है।

2023 की बाढ़ प्राकृतिक प्रलय नहीं है, यह मानव निर्मिती से आमंत्रित की गई आपदा है। इस आपदा से बचाने के लिए मैंने 2005 में दिल्ली में डेरा डाला था। दो साल तक जब सरकार ने नहीं सुना, तो 2007 में यमुना सत्याग्रह करना पड़ा था। सत्याग्रह का असर स्वर्गीय अर्जुन सिंह, मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार, कुलदीप नैयर सांसद व वरिष्ठ पत्रकार, तिजेन्द्र खन्ना उप-राज्यपाल नई दिल्ली पर हुआ, इन सभी ने यमुना में हो रहे कुछ अतिक्रमणों को रुकवा दिया था। उन्होंने पवन हंस कम्पनी को हवाई पट्टी बनाने व अन्य बड़ी कम्पनियों को ज़मीन देने पर रोक लगा दी थी।

उस समय बड़े-बड़े मीडिया, घराने और बाबाओं ने भी यमुना पर क़ब्ज़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यह यमुना सत्याग्रह तीन साल तक चला और आगे होने वाले क़ब्ज़ों को रोका। स्वर्गीय मनोज मिश्र और मैंने मिलकर, सुप्रीम कोर्ट में यमुना जी की ज़मीन को यमुना के लिए ‘‘अक्षर धाम-खेल गांव कहीं और बनेंगे’’ और मेट्रो को हटवाने के लिए लड़ाई लड़ी थी; लेकिन उसमें माननीय उच्चतम न्यायालय से राहत नहीं मिली थी। यदि उस समय माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश यमुना को न्याय दे देते, तो आज माननीय उच्चतम न्यायालय के पास पानी नहीं पहुंचता। यमुना की इस बाढ़ आपदा ने भारत की न्यायपालिका और कार्यपालिका को सीखने का अवसर प्रदान किया है।

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रधानमंत्रियों की समाधियां भी यमुना की ज़मीन पर ही बनी हैं। यमुना जी किसी दिन अपना स्थान बनाने के लिए, इंतजार कर रही थी और आज इस आपदा को अपनी जगह बनाने के लिए चुन लिया। अब भी सरकार यदि अपनी विरासत को बचाने के लिए जागरूक नहीं होगी, तो यह मानव निर्मित प्रलय आती ही रहेगी और दिल्ली को विस्थापित करेगी। राजधानी फिर कहीं और बनेगी। इसको में विकास का बिगाड़, विस्थापन और विनाश कहता हूं। इसका परिणाम ही यह प्रलय है। यह प्रलय हमें सिखाने के लिए है, हमें इससे सीख लेना चाहिए। हमारे सत्याग्रह से सरकार ने सीख नहीं ली, लेकिन जब प्रकृति खुद सिखाने आयी है, तो प्रकृति से सीख लेना ही चाहिए।

हमने भारत में जहां भी ऐसी आपदाएं आयी हैं, उन आपदाओं के पहले ही, आपदा से बचने के लिए समय-समय पर सचेत करने की कोशिशें की हैं। मुझे याद है कि, 2008-09 में तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष प्रो. जी. डी. अग्रवाल जी ने हिमालय में बांध बनाने, टर्मिनल बनाने, ऑल वेदर रोड़ बनाने व हिमालय में खनन को रोकने के लिए बहुत बार आमरण अनशन किया था। मैं भी उनके साथ बहुत सक्रिय रूप से रहा। केरल में आने वाली बाढ़ के खिलाफ, बाढ़ आने से पहले नदियों की यात्राएं करके, वहां हो रहे खनन को रोकने के लिए बहुत सारे लोगों के साथ प्रयास किया था। ऐसे ही कश्मीर में बाढ़ आने से पहले, वहां जाकर पद-यात्रा करके कहा था कि, नदी की ज़मीन पर क़ब्ज़ा मत करो। हम छोटे-छोटे काम करके, बाढ़-सुखाड़ को जीवन भर रोकते रहे हैं।

बाढ़-सुखाड़ से मुक्ति की युक्ति हेतु 42 साल से सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबन्धन और जल, जंगल, ज़मीन के संरक्षण का काम प्रत्यक्ष रूप से कर रहे हैं। इससे राज और समाज को सीख लेनी चाहिए। दुनिया याद रखेगी कि, जहां-जहां हमने काम किया है, वहां बाढ़ और सुखाड़ दोनों से मुक्ति मिली है। क्योंकि सुखाड़ रोकने के लिए ऊपर की मिट्टी के कटाव रोकने व हरियाली बढ़ाने का काम करते हैं और जब वह पानी नीचे आता है, तो धरती के ऊपर जल संरचना बनाकर, धरती के पेट में नदी बहाते हैं। इस प्रकार बाढ़ और सुखाड़ दोनों से मुक्ति मिलती है। हम जानते हैं कि, भ्रष्टाचारी व्यवस्था ऐसे सदाचारी कामों को नहीं अपनाती, फिर भी हम भ्रष्टाचारियों को सदाचारी बनाने का प्रयास करते रहते हैं। प्रकृति के ये सदाचारी काम आस्था, श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति का भाव पैदा करते हैं। यह शिक्षा नहीं, विद्या है। इस प्रकृति की विद्या से सीखकर बाढ़-सुखाड़ से मुक्ति के लिए जल-स्वराज्य का काम कर रहे हैं और करते रहेंगे।

दिल्ली की बाढ़ दिल्ली के लोगों की देन है। 2007 में मैंने जब राजस्थान छोड़कर, यमुना को बचाने के लिए यमुना सत्याग्रह शुरू किया था, तब कहा था कि, यमुना की जमीन-यमुना के लिए रहे और खेल गांव और कम्पनियों को जो ज़मीन दी गई है, वह कहीं दूसरी जगह देना चाहिए। यमुना की ज़मीन पर बना अक्षरधाम और खेल गांव दोनों दिल्ली को डुबोएंगे, आज वही हो रहा है। यमुना को एक नए बांध से बांध दिया और यमुना जी को बहने के लिए जगह नहीं मिली, इसलिए आज यमुना जी का जल-स्तर बहुत ऊंचा उठा है। जल स्तर के ऊंचे उठने से जहां यमुना पहले बहती थी, उन्हीं जगहों पर फिर से बहने लगी है। यदि दिल्ली की सरकार और लोग हमारी बात 2005 में ही सुन लेते, तो 2007 में सत्याग्रह नहीं करना पड़ता। हमने 2007 से 2009 तक यमुना की ज़मीन बचाने के लिए बराबर लड़ाई लड़ी है।

दिल्ली की बाढ़ यमुना की ज़मीन पर दिल्ली में हुए क़ब्ज़ा के कारण भी पनपी है। हमने सत्याग्रह करके यह बात समझाने का प्रयास किया था कि, यदि यमुना की ज़मीन पर अतिक्रमण करोगे, तो दिल्ली डूबेगी ही। लेकिन तब किसी को भी समझ नहीं आया। तब तो सरकार खेल गांव व अक्षरधाम बनाने पर अड़ी रही थी। उस समय हमारे सत्याग्रह में आकर जॉर्ज फर्नांडीज ने हमसे क्षमा मांगी और कहा कि, इस मन्दिर को बनाने की स्वीकृति मैंने ही दी थी। मुझे मालूम नहीं था कि, यह ज़मीन यमुना की है। मुझे डी.डी.ए. के अधिकारियों ने बताया कि, यह जमीन तो किसानों से ली है। तब मैं नहीं समझ पाया था कि, इस मन्दिर के बनने से दिल्ली में बाढ़ आयेगी। हमें अब समझ आया है कि, यह यमुना नदी की ज़मीन है। नदी के बहाव को संकरा करने से बाढ़ आयेगी, पर अब क्या कर सकते हैं? फिर हमने कहा था कि, अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत। तब वे मन्त्री नहीं थे। इसलिए मन्दिर को हटाना और खेल गांव को रोकना उनके हाथ की बात नहीं थी। उसके बाद भारत सरकार के किसी और दूसरे नेता ने उस विषय पर विचार नहीं किया और न ही कोई विचार कर रहा है।

हम लोगों ने कहा था कि, “यमुना की जमीन में तो केवल पेड़ लगेंगे-खेल गांव व अक्षर धाम, मेटो-रेल के डिपो कहीं और बनेंगे।’’ उन दिनों इस सत्याग्रह में नीरज कुमार, भारत सरकार के बहुत सारे बड़े नेताओं को यमुना के चल रहे सत्याग्रह में यमुना पर हो रहे कब्जों को दिखाने के लिए लाये थे। सत्याग्रह से पवन हंस और अन्य कम्पनियों को जो ज़मीन दी गई थी, उन सबकी लीज तो रद्द हुई; लेकिन अक्षर धाम और खेल गांव तो बन ही गये। इसको बचाने के लिए जो बांध बनाया गया, उसको भी सुप्रीम कोर्ट ने सहमति दे दी और कहा कि, यमुना के तटबंध के बाहर की ज़मीन को, यमुना की ज़मीन नहीं कह सकते। बांध बनाने से नदी की ज़मीन का नाम बदल जाता है, ऐसा हम लोगों ने पहली बार सुना था।

हमारे केस को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर बन्द कर दिया कि, तटबंध बनने से यह ज़मीन यमुना की नहीं रही। माननीय उच्च न्यायालय का यह निर्णय ऐसा नहीं होता, तो सुप्रीम कोर्ट के पास यमुना की बाढ़ का पानी नहीं जाता। अब आगे हमारा सम्मनीय न्यायालय इस बात को समझेगा कि, नदियों की जमीन केवल नदियों के लिए होना चाहिए। नदियों की ज़मीन का स्वरूप व मालिकाना शहरों को बसाने और कम्पनियों को खोलने आदि के लिए नहीं बदलना चाहिए। उस वक्त यह ज़मीन न दी जाती और मेट्रो ने यमुना की खादर ज़मीन पर जो क़ब्ज़ा किया है, वह नहीं होता, तो दिल्ली को ये बाढ़ के दिन नहीं देखने पड़ते। यह बात साफ़ है कि, हिमालय की हरियाली खत्म की और यमुना की अविरलता खत्म की है, उसके कारण बाढ़ आई है। चिन्ता की बात है कि दिल्ली ने भी अपनी यमुना की ज़मीन का सम्मान नहीं किया।

आगे यदि दिल्ली को बाढ़ से बचना है, तो यमुना की ज़मीन को यमुना के लिए ही छोड़ देना चाहिए। यमुना के रेड जॉन, ब्लू जॉन और ग्रीन जॉन में किसी भी तरह का कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। यदि अतिक्रमण होता है तो आगे का प्रलय इससे भी भयंकर होगा। इसलिए आगे के प्रलय से बचने के लिए यमुना की ज़मीन पर किसी भी तरह के क़ब्ज़े नहीं होने चाहिए। यमुना की खादर की ज़मीन पर जो क़ब्ज़े हुए हैं, उन्हें हटाना चाहिए। क़ब्ज़ों को हटाकर, यमुना को अविरल प्रवाह देना होगा।

यदि हमारी बात उस वक्त भी सरकार मान लेती, तो दिल्ली को ऐसी बाढ़ की प्रलय नहीं देखने पड़ती। दिल्ली का पानी खादर में होता हुआ, बाहर निकल जाता। अभी समय है कि, दिल्ली सरकार इस बात को समझे। मुझे याद है कि, उस वक्त यमुना सत्याग्रह में दिल्ली के वर्तमान मुख्यमन्त्री बहुत बार मुझसे मिलने आये थे। वे खुद इस बात को मानते थे कि, यमुना की ज़मीन, यमुना के लिए ही छोड़ी जानी चाहिए। वे 2007 में दिल्ली में किसानों के साथ, यमुना सत्याग्रह द्वारा आयोजित पद यात्राओं में पद यात्रियों के साथ बहुत बार शामिल हुए थे और बातचीत की थी; लेकिन दिल्ली के मुख्यमन्त्री बनने के बाद यमुना का दर्द भूल गये।

मुख्यमन्त्री जी यदि दिल्ली को बाढ़ से बचाने की कोशिश करते, तो बाढ़ का इतना भयानक स्वरूप नहीं होता। दिल्ली में यमुना 22 किलोमीटर लम्बाई में बहती है, फिर भी अतिक्रमण करके इसको संकरा किया जा रहा है। अब यदि दिल्ली की बाढ़ को भारत सरकार और राज्य सरकार बचाना चाहती हैं, तो दिल्ली में यमुना की ज़मीन को यमुना के लिए छुड़वाना चाहिए। यमुना के पुलों में यमुना का प्रवाह बनाए रखने के लिए यमुना को अविरलता प्रदान करनी चाहिए। अभी यदि तुरन्त यमुना के अतिक्रमण, प्रदूषण और यमुना में हो रहे खनन को नहीं रोका गया, तो यमुना इसी तरह बाढ़-सुखाड़ की पहचान बन जायेगी।

दिल्ली में यमुना को स्वराज्य चाहिए। यमुना की अविलता-निर्मलता से यमुना को स्वराज्य मिलेगा। यमुना के स्वराज्य से दिल्ली का स्वराज्य और भारत का स्वराज्य सनातन कायम रहेगा।

(राजेन्द्र सिंह पानी-पर्यावरण पर काम करते हैं और सामुदायिक नेतृत्व के लिये रेमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता हैं।)

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