Thursday, April 25, 2024

मोदी के विकल्प के रूप में योगी आदित्यनाथ को तैयार कर रहा है संघ

वर्ष 2019 के बाद जिस तरह भाजपा का जनाधार सिकुड़ रहा है और हिमाचल प्रदेश जैसे ब्राह्मण ठाकुर बहुल राज्य में हुए उपचुनाव में जिस तरह तीन विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में भाजपा का सूपड़ा ही नहीं साफ हुआ बल्कि एक विधानसभा क्षेत्र में जमानत जब्त हो गयी उससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दीवार पर लिखी राजनीतिक इबारत अच्छी तरह से समझ में आ गयी है और मेरा मानना है कि संघ 2029 के लोकसभा चुनाव को निगाह में रखकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ब्रांडिंग कर रहा है। दरअसल कुशासन (बैड गवेर्नेंस) और आर्थिक दुरावस्था ने पूरे देश में आम आदमी की कमर तोड़ के रख दी है। ऐसे में जनमानस में न तो प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की कोई साख बची है न ही यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की। लेकिन योगी के पक्ष में उनका कम उम्र होना है ,फिर वे फायरब्रांड हिन्दू नेता हैं ,जिनमें संघ भाजपा का भविष्य देख रहा है।

भाजपा की लीडरशिप में नरेंद्र मोदी के बाद योगी के अलावा कोई ऐसा युवा नेता नहीं है जो भविष्य में भाजपा का नेतृत्व संभाल सके। गृहमंत्री अमित शाह की स्वीकारिता प्रधानमन्त्री के पद पर नरेंद्र मोदी के बने रहने तक है। रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह(10 जुलाई 1951) और नितिन गडकरी (27 मई1957) उतार की ओर हैं और 2029 में भाजपा का नेतृत्व करने में प्रभावी नहीं हो सकते क्योंकि उस समय राजनाथ सिंह की उम्र लगभग 78-79 साल की हो जाएगी और गडकरी की उम्र अभी 65 साल में चल रही है और 2029 में 72-73 साल की हो जाएगी लेकिन उनका राष्ट्रव्यापी जनाधार नहीं है। इनकी तुलना में योगी आदित्यनाथ बहुत युवा हैं और अगले दो ढाई दशक तक भाजपा का नेतृत्व संभाल सकते हैं। योगी की जन्मतिथि 5 जून, 1972 (उम्र 49 वर्ष)है। वैसे भी संघ जानता है कि 2004 में यूपीए के हाटों सत्ता गंवाने पर दस साल बाद 2014 में सत्ता में वापसी हुई है। ऐसे में यदि 2024 में सत्ता जाती है तो सत्ता में वापसी में कम से कम एक-डेढ़ दशक तो फिर लगेगा।

अब जिस तरह से योगी आदित्यनाथ प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में उभर रहे हैं वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बर्दाश्त के बाहर है और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की बुरी पराजय के बाद जून 2021 से ही योगी आदित्य नाथ को अस्थिर करने की कोशिशें दिल्ली दरबार से शुरू हो गयी थीं जिससे निपटने में योगी आदित्यनाथ का साथ संघ ने दिया। बहुतेरी कोशिशों के बावजूद योगी सरकार में अपने चहेते पूर्व आईएएस एके शर्मा को शामिल कराने में दिल्ली दरबार को सफलता नहीं मिल सकी।

भाजपा में योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद को इस बात से समझा जा सकता है कि रविवार को वह दिल्ली में भाजपा कार्यकारिणी में पहुंचे और उन्होंने वहां पर अहम माने जाने वाले राजनीतिक प्रस्ताव को पेश किया, जबकि पार्टी ने चार अन्य चुनावी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को वर्चुअल जुड़कर अपनी बातें रखने को कहा, जबकि सीएम योगी को दिल्ली बुलाया गया था। पहले चर्चा थी कि सीएम योगी को वर्चुअल माध्यम से ही कार्यकारिणी की बैठक में जोड़ा जायेगा पर अंतिम समय में उन्हें संघ के दबाव में दिल्ली बुलाने का फैसला लिया गया। अब तक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने का मौका पार्टी के अग्रिम कतार के नेताओं को ही मिलता रहा है। लेकिन इस बार इसे यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पेश किया। इसे संघ की दीर्घकालिक राजनीति से जोड़ा जा रहा है।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ को अग्रिम पंक्ति में गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठाया गया था, जो इस बात के संकेत हैं कि पार्टी में उनका कद बढ़ रहा है और पार्टी उन पर विश्वास कर रही है। वर्ष 2017 और 2018 में पार्टी का राजनीतिक प्रस्ताव रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पेश किया था। लेकिन इस बार राजनीतिक प्रस्ताव योगी आदित्यनाथ ने पेश किया है।

दिल्‍ली में भारतीय जनता पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सत्‍ता के गलियारे में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस चर्चा के केंद्र में हैं सीएम योगी आदित्‍यनाथ। दरअसल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें से सिर्फ एक सीएम योगी आदित्यनाथ ही ऐसे थे, जो कार्यकारिणी की बैठक में फिजिकली मौजूद रहे। उन्‍होंने पहली बार राजनीतिक प्रस्ताव भी पेश किया। यह महज संयोग नहीं है की 90 के दशक में संगठन मंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था। उसके बाद वह गुजरात के सीएम बने और अब पीएम हैं। इस बार योगी ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया है जो उनके उदय का द्योतक है।

दरअसल बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने का महत्वपूर्ण कार्य आमतौर पर केंद्रीय स्तर का वरिष्ठ नेता ही करता है। इस बार राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तमाम वरिष्ठ नेताओं के बीच योगी आदित्‍यनाथ के अलावा तीन राज्‍यों उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों बीरेन सिंह, प्रमोद सावंत व पुष्कर सिंह धामी ने भी शिरकत की। लेकिन योगी अकेले फिजिकली उपस्थित रहे, बाकी सीएम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वर्चुअली जुड़े।

पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने इस संबंध में फेसबुक पर लिखा है कि राष्ट्रीय कार्यसमिति में दिए गए राजनीतिक प्रस्ताव का एक निहितार्थ होता है। मुझे स्मरण है कि इसी तरह की एक बैठक में मोदी जी ने राजनीतिक प्रस्ताव रखा था, उस प्रस्ताव में वही कुछ था, जो आज मोदी जी कर रहे हैं। उस समय वह भाजपा के संगठन मंत्री थे और अब जब 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने जा रहे हैं और भाजपा का ग्राफ गिर रहा हो, तब राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में योगी द्वारा राजनीतिक प्रस्ताव रखा जाना देश के लए एक संदेश होगा।

इसके साथ ही उत्‍तर प्रदेश में भाजपा नेताओं को साफ संदेश दिया गया है कि योगी की अगुवाई में ही सबको एकजुट रहना है। दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी सरकार और संगठन को लेकर तरह-तरह की खबरें आती रहीं। इस साल कोरोना की दूसरी लहर के बाद तो यहां तक खबरें आने लगीं कि सीएम योगी आदित्यनाथ की केंद्रीय नेतृत्व से अनबन है। इन अटकलों को तब और हवा मिल गई, जब 5 जून को सीएम योगी के जन्मदिन पर किसी केंद्रीय नेता ने बधाई संदेश नहीं दिए। मामले ने तूल पकड़ा और सोशल मीडिया पर मोदी बनाम योगी को लेकर तरह-तरह के दावे किए जाने लगे। वहीं यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के कुछ बयानों को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे कि योगी और संगठन में सब सामान्य नहीं है। चर्चा यहां तक पहुंच गई कि योगी अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे।

लेकिन संघ के हस्तक्षेप से योगी का अहित नहीं हुआ और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी दौरे में सीएम योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की, इसके साथ ही सारी अटकलें हवा हो गयीं । इसके बाद यूपी दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी यह कहना पड़ा कि 2024 में मोदी को जिताना है तो 2022 में योगी को यूपी में जिताना होगा। अमित शाह के इस बयान के बाद स्थिति और स्पष्ट हो गई। रही सही कसर राष्ट्रीय कार्यकारिणी कि बैठक ने पूरी कर दी है। ऐसा नहीं है कि योगी का भविष्य यूपी के चुनाव परिणामों पर निर्भर है क्योंकि संघ अगले दो दशकों की प्लानिंग के साथ अपनी रणनीतिक तैयारियों में लगा हुआ है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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