बंगाल पंचायत चुनाव: टीएमसी के सामने सभी विपक्षी दल चित

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बहुत सारे दावों और विश्लेषणों को किनारे लगाते हुए पंचायत चुनावों में पार्टी ने भारी जीत हासिल की है। चुनावों में हुई भारी हिंसा ने जहां राज्य के कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, वहीं मृतकों की शिनाख्त ने आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस की राजनीति में उलटफेर की संभावना का भी संकेत दिया है। बंगाल में पंचायत चुनाव यदि लोकसभा का पूर्वाभ्यास है तो टीएमसी ने भाजपा समेत कांग्रेस और वाममोर्चा को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

पंचायत चुनावों में शनिवार से शुरू हुए हिंसा में अब तक 18 लोग मारे गए हैं जिसमें से 14 अल्पसंख्यक समुदाय के थे। तृणमूल कांग्रेस के लिए यह चिंताजनक खबर है। दरअसल, मजबूत विपक्ष के अभाव में सत्तारूढ़ टीएमसी को वहां ज्यादा चुनौती मिली जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है।

हिंसाग्रस्त क्षेत्रों को चिन्हित करने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों ने एक ओर जहां टीएमसी का समर्थन किया वहीं दूसरी ओर जगह-जगह विरोध भी किया। शनिवार को मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर और दक्षिण 24 परगना और बर्दवान जिलों से हिंसा की घटनाएं सामने आईं, जिनमें से कई ऐसे इलाके हैं जहां 30 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम है। माना जाता है कि मुर्शिदाबाद को छोड़कर, जहां विभिन्न टीएमसी गुटों ने कथित तौर पर एक-दूसरे पर हमला किया था, टकराव की अधिकांश घटनाओं में एक तरफ टीएमसी और दूसरी तरफ इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) शामिल थे। आईएसएफ का कांग्रेस और वामपंथी दलों से गठबंधन था।

मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आईएसएफ ने टीएमसी के समक्ष कड़ी चुनौती पेश की है। आईएसएफ पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान अस्तित्व में आई और राज्य के अल्पसंख्यकों में अपना मजबूत आधार बनाया। मतदान से ठीक पहले और चुनाव के दिन तक, सबसे अधिक हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में से एक भांगर रहा, जहां से आईएसएफ ने अपनी एकमात्र विधायक सीट 2021 के विधान सभा चुनावों में जीता।

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में कड़ी टक्कर के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग को छोड़कर हर जिले में त्रिस्तरीय चुनावों में जीत हासिल की। भाजपा दूसरे स्थान पर तो वाम-कांग्रेस गठबंधन तीसरे स्थान पर हैं। शुरुआत में ऐसी उम्मीद थी कि कांग्रेस और सीपीआई (एम) गठबंधन मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में अच्छा प्रदर्शन करेगा, खासकर इस साल जनवरी में मुर्शिदाबाद में सागरदिघी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत को देखते हुए यह कहा जा रहा था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बंगाल में मुस्लिम इलाकों में एक ताकत के रूप में उभर रहा इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) ने अपने गढ़ भांगर में अच्छा प्रदर्शन किया। सीपीआई (एम) और भूमि अधिग्रहण विरोधी समिति के साथ आईएसएफ का गठबंधन भांगर के कुछ ब्लॉकों में टीएमसी को कड़ी टक्कर दिया।

8 जुलाई को 61,000 से अधिक बूथों पर चुनाव के लिए मतदान हुआ था, जिसमें 80.71 प्रतिशत मतदान हुआ था। मतदान के दौरान हुई हिंसा में कम से कम 21 लोग मारे गये।

पश्चिम बंगाल में 3,317 ग्राम पंचायतें हैं जिनमें 63,229 सीटें हैं, 341 पंचायत समितियां हैं जिनमें 9,730 सीटें हैं और 20 जिला परिषदें हैं जिनमें 928 सीटें हैं।

3317 ग्राम पंचायतों की कुल 63229 सीटों में से टीएमसी 32849, भाजपा 8870, कांग्रेस 2369 और वाम मोर्चा 2850 सीट और निर्दलीय औऱ अन्य 2913 सीटों को जीतने की ओर अग्रसर थे। वहीं पंचायत समिति की कुल 9730 सीटों में से टीएमसी 6473, भाजपा 1014, कांग्रेस 263, सीपीएम 185 और अन्य 291 सीटों पर आगे हैं। जिला परिषद की 928 सीटों में से टीएमसी 759, भाजपा 24, सीपीएम 4, कांग्रेस 12 और अन्य 1 सीट पर आगे चल रहे थे।

पश्चिम बंगाल के पहाड़ी इलाके में सबसे अधिक राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। गोरखा टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के अंतर्गत आने वाले दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के पहाड़ी जिलों में हुए पंचायत चुनावों में, टीएमसी के सहयोगी अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) ने जीत हासिल की है। लेकिन टीएमसी को बहुत फायदा नहीं हुआ। इसी तरह पहाड़ी राजनीति के तीन बड़े नेताओं, बिमल गुरुंग, बिनय गुरुंग और अजय एडवर्ड्स ने भाजपा समर्थित ‘यूनाइटेड गोरखा एलायंस’ के तहत एक साथ जीटीए पंचायत चुनाव लड़ा था। लेकिन इस गठबंधन से भाजपा का भी बहुत फायदा नहीं हुआ। इस तरह से पहाड़ी क्षेत्र की राजनीति को अपने नियंत्रण में करने की टीएमसी और भाजपा की चाल धरी की धरी रह गई।

आईएसएफ नेता नौशाद सिद्दीकी ने कहा, “टीएमसी को पता था कि अगर वास्तव में लोकतांत्रिक चुनाव हुआ तो वे हार जाएंगे। इसलिए, नामांकन अवधि शुरू होने के बाद उन्होंने असीमित आतंक फैलाया। जहां भी विपक्ष जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम था, उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया।”

टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के लोगों को धन्यवाद दिया। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “यहां तक कि पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए निराधार प्रचार वाला दुर्भावनापूर्ण अभियान भी मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सका।”

विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि टीएमसी ने वोट “लूटा” है। भाजपा विधायक ने दावा किया कि अगर चुनाव “स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके” से हुआ होता, तो टीएमसी 20,000 से अधिक पंचायत सीटें नहीं जीत पाती।

सीपीआई (एम) नेता सुजन चक्रवर्ती टीएमसी और बीजेपी दोनों पर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं।

राज्य की राजनीति को जानने-समझने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि “पंचायत चुनावों में हिंसा आम तौर पर उन जिलों में होती है जहां विपक्षी दल मजबूत होते हैं। इन जिलों पर बारीकी से नजर डालने से पता चलेगा कि अल्पसंख्यक मतदाता अब पूरी तरह से टीएमसी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं।”

पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने कहा कि टीएमसी जानती है कि अल्पसंख्यकों को अब एहसास हो गया है कि कांग्रेस “भाजपा से लड़ने के लिए विश्वसनीयता वाली एकमात्र ताकत है। सागरदिघी उपचुनाव में हार के बाद टीएमसी को भी एहसास हुआ कि 2021 में उसने जो बाइनरी बनाई थी (हिंदू बनाम मुस्लिम की) वह अब मौजूद नहीं है। इसी वजह से उसने पंचायत चुनाव से पहले इतना आतंक मचाया।”

अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में हिंसा के निहितार्थ को नजरअंदाज करते हुए, एक टीएमसी नेता ने कहा: “टिकट वितरण को लेकर पार्टी के अंदरूनी झगड़े के कारण इन क्षेत्रों में ज्यादातर झड़पें हुईं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अल्पसंख्यक वोट कम हो गये हैं।”

हालांकि, सरकार और टीएमसी के कई हालिया फैसलों से संकेत मिलता है कि पार्टी चिंतित है। टीएमसी इस साल जनवरी में सागरदिघी उपचुनाव में कांग्रेस से हार के लिए तैयार नहीं थी। कांग्रेस उम्मीदवार को वाम मोर्चा और आईएसएफ का समर्थन था। सागरदिघी उपचुनाव हारने के बाद टीएमसी ने मुसलमानों तक पहुंचने के लिए कई बदलाव किए हैं, जिसमें राज्य के अल्पसंख्यक मामलों के विभाग से एमडी गुलाम रब्बानी को हटा कर दूसरे शख्स को लाया गया और अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों के लिए अलग विकास बोर्ड बनाया गया।

पंचायत चुनावों के सामने आए नतीजों ने दो संबंधित बिंदुओं को रेखांकित किया है: ग्रामीण बंगाल में तृणमूल का वर्चस्व काफी हद तक अपरिवर्तित है और चुनावी राजनीति के खेल में विपक्षी ताकतें इस समय सत्तारूढ़ दल से बहुत पीछे हैं। तृणमूल ने ग्राम पंचायत की लगभग 73 प्रतिशत सीटें और पंचायत समिति की 98 प्रतिशत सीटें हासिल कर ली हैं, जिनकी गिनती समाप्त हो चुकी है। पांच साल पहले, इन दोनों स्तरों के लिए स्ट्राइक रेट क्रमशः 78 प्रतिशत और 87 प्रतिशत थे।

तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि, “विपक्ष के ‘ममता को वोट नहीं’ अभियान को ‘अब ममता को वोट’ में बदलने के लिए लोगों का आभारी हूं।”

विपक्ष ने 12 साल के तृणमूल शासन के बाद कथित सत्ता विरोधी लहर और सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामलों जैसे कारकों पर अपनी उम्मीदें लगा रखी थीं। लेकिन ममता बनर्जी ने विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंचायत चुनाव में पिछली बार से भी अधिक सीट पाकर अभिषेक ने परीक्षा पास कर ली है। क्योंकि अभिषेक पंचायत चुनावों के मुख्य रणनीतिकार थे। ममता अपने हेलीकॉप्टर की आपातकालीन लैंडिंग के दौरान ममता बनर्जी के घायल होने के बाद अभिषेक ही चुनावी मैनेजमेंट संभाल रहे थे। नतीजों ने उनकी नेतृत्व क्षमता को मजबूत किया है।

तृणमूल के एक सूत्र ने कहा कि, “उनके कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ ने पार्टी के निचले स्तर के नेताओं को सड़कों पर उतरने का साहस दिया और नतीजे हमारी संगठनात्मक ताकत का प्रमाण देते हैं।”

पंचायत चुनावों में भारी जीत के बावजूद यह कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी अजेय नहीं हैं। क्योंकि 2021 में वह नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से बहुत कम वोटों से हार गई थीं। पंचायत चुनाव में वह अपनी हार क बदला लेना चाह रही थीं। लेकिन सुवेंदु अधिकारी ने ऐसा नहीं होने दिया। नंदीग्राम के अंतर्गत आने वाली 17 ग्राम पंचायतों में से 9 को भाजपा ने जीत लिया है।

इसी तरह, तृणमूल मुर्शिदाबाद और मालदा में अपने 2021 विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने में विफल रही, इस बार वामपंथियों और कांग्रेस को बढ़त हासिल हुई।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

प्रदीप सिंह

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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