बिहार में चुनाव बा-छोटहन पार्टी के सामने बड़हन पार्टी हलकान बा

वैसे देश में शांति ही है। सर्वत्र शांति। जहाँ अशांति दिख रही है वह कुछ इलाकों की कहानी हो सकती है यह फिर राजनीति से प्रेरित हो सकती है। ऑपरेशन सिंदूर की कहानी भी शांत ही है। सरकार क्या कुछ कर रही है यह किसी को पता नहीं। पता जब पुलवामा हमले का आज तक नहीं लगा तो पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर की कहानी तह पहुँचने की मजाल किसे है? सरकार की तरफ से और मीडिया में चल रही जानकारी से यही सूचना लोगों तक पहुंची है कि मोदी सरकार ने करीब पांच दर्जन नेताओं को पर्यटन पर विदेश भेजा है।

कहने को ये नेता रूपी जीव पाकिस्तान की करतूतों को दुनिया के सामने रखने गए हैं लेकिन कोई पूछ सकता है कि क्या संसद के जरिये पाकिस्तान की कहानी को दुनिया तक नहीं पहुंचाई जा सकती थी? विपक्षी कांग्रेस वाले तो लगातार कहते आ रहे हैं कि पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए लेकिन सरकार सुन कहां रही है? और सुने भी क्यों? संसद के भीतर बहस होगी तो सरकार की भद्द पिट सकती है। सरकार नंगी हो सकती है और ऐसा हुआ तो भक्त समाज को चोट पहुंचेगी और भक्त समाज को चोट पहुंची तो चुनावी खेल ख़राब हो सकता है। भला बीजेपी वाले और मोदी सरकार इतना बड़ा रिस्क क्यों ले?

उधर विपक्षी सांसद सत्ता पक्ष के साथ मिलकर दुनिया की सैर करने निकले हैं उनका इरादा भले ही ठीक हो। वे चाहते भी हों कि देश की मान मर्यादा को कायम रखा जाए और पाकिस्तान को एक्सपोज करके भारत के मस्तक को ऊंचा किया जाए। लेकिन खेल यहीं तक का तो है नहीं। खेल बहुत आगे का है। खेल का कुछ हिस्सा तो बिहार चुनाव तक जाता है इसका बड़ा हिस्सा अगले साल के चुनाव तक का है। अगले साल में जितने भी चुनाव होने हैं उनका जुड़ाव इस देशी पर्यटन से जोड़ा जा सकता है। 

एक जानकार कह रहे थे कि देश में देखते-देखते भक्तों की तादाद काफी बढ़ी है। अगले महीने अयोध्या में भी कई कार्य होने जा रहे हैं। खबर के मुताबिक़ मंदिर परिसर में ही 14 मंदिरों का प्राण प्रतिष्ठा होना है। इसकी दुंदुभी बजाई जा रही है। अलख जगाया जा रहा है। देश के सभी राज्यों के बड़े नेताओं, अधिकारियों और भगत जन को सूचित किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि अयोध्या में फिर से आपका स्वागत है। यहां राम मंदिर परिसर में ही तीन से पांच जून को दर्जन भर से ज्यादा नए मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। भगत जन हर्षोल्लास में हैं। मगन हैं और गांव-गांव में नारे और दुंदुभी की शोर है। बिहार में कुछ अलग ही माहौल है। 

एक दूसरे जानकार ने बड़ी बात कही। उनके मुताबिक़ कोई भी देश लड़ाई नहीं चाहता। भारत तो कभी चाहता ही नहीं। यह शांति वाला देश है। और फिर भारत को तो आगे बढ़ना है। विश्वगुरु बनना है। दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था होनी है। फिर भारत युद्ध कैसे लड़ सकता है? जानकार कहने लगे कि युद्ध महंगा होता है। एक-एक गोला लाखों का होता है। सुनते हैं कि एक मिसाइल का गोला 40 से 50 लाख तक होता है। इसी तरह से तोप का गोला भी लाखों का होता है। ऐसे में भारत भी कितना दिन युद्ध लड़ सकता है ? 

तीसरे जानकार ने एक पते की बात कही है। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था भले ही पाकिस्तान से ज्यादा मजबूत होगी लेकिन भारत भी दुनिया के कई बाकी विकसित देशों के सामने पाकिस्तान जैसा ही तो है। ऐसे में पाकिस्तान अगर मरने को भी तैयार हो जाए तो भारत को कम से कम 15 दिनों के लिए युद्ध का प्लान बनाना होगा। और 15 दिनों तक अगर भारत केवल पाकिस्तान से युद्ध लड़ेगा तो पाकिस्तान का चाहे जो भी हश्र हो जाए, भारत की विकास गाथा तो रुख ही जायेगी।

ऐसे में भारत का विकास रथ नहीं रुके, देश के 80 करोड़ भगत जन से तत्काल पांच सेर चावल लेने का अधिकार छीन लिया जाए। अगर सरकार ऐसा करती है तो देश पर कोई बड़ा संकट नहीं आएगा। देश का विकास भी अवरुद्ध नहीं होगा और पाकिस्तान भी ख़त्म हो जाएगा। हर महीने जितने पैसे देश के 80 करोड़ लोगों को जिन्दा रखने के नाम पर पांच सेर चावल पर खर्च किये जाते हैं ,भारत उसी बचे धन से पाकिस्तान को फतह कर सकता है। लेकिन क्या ऐसा होगा? 

भक्तों की मंडली में शामिल गोदी मीडिया वालों से भी इस पर राय ली गई। कोई आम पत्रकार तो मौके पर ही जवाब दे देता लेकिन गोदी पत्रकार ने तीन दिन बाद कहा कि यह संभव नहीं है। देश के भगत जन चावल छोड़कर भले ही देश के नाम पात्र त्याग करने का नाटक कर सकते हैं लेकिन गालियां भी काम नहीं देंगे। एक गोदी भाई ने तो यह भी कहा कि अरे भाई बिहार में चुनाव है और बीजेपी ऐसा कैसे कर सकती है? अपने ही पांव में कुल्हाड़ी कैसे मार सकती है? हां बिहार को छोड़कर बाकी राज्यों के लोग ऐसा करें तो मोदी भी राजी हो सकते हैं। लेकिन यह संभव नहीं। 

तो फिर राष्ट्रवाद और भक्ति काल का क्या मतलब है? जानकार हंस पड़े। कहने लगे कि कौन सा भक्ति काल और कौन सा राष्ट्रवाद? सब ढकोसला भर है। देश का हर एक खेल चुनाव के लिए होता है। चुनाव के लिए जो भी संभव होगा वही कूटनीति, राजनीति, देशनीति और सत्ता नीति चलती है। और भगत की जहां तक बात है, इस देश का कोई भगत लड़ाई नहीं लड़ सकता। वह तो पहले से ही मानसिक रूप से खाली बन्दूक की तरह है। उसमें बचा ही क्या है? जो देख रहे हो वह सब उबाल है। ठगी है। बेईमानी है और नफरत का माहौल भर है। पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़कर अगर देश की राजनीति किसी भी पार्टी के पक्ष में जा सकती है तो वह भी होगा और राजनीति कमजोर होती दिखेगी तो बीच में ही युद्ध ख़त्म होगा। जैसा कि अभी हुआ है। 

एक और जानकार कहने लगे कि बिहार में चुनाव बा और उसी के लिए बीजेपी वाले केंचुआ की चाल से आगे बढ़ रहे हैं। विपक्षी पार्टियां जो कह रही हैं उसे नहीं मान रही हैं लेकिन विपक्षी नेताओं को पर्यटन पर भेजकर उसे अपनी तरफ लाने का बड़ा षड्यंत्र हो रहा है। बिहार में बड़ा खेल होगा। देख लीजियेगा। 

इस जानकार ने आंखें खोल दी। बिहार में बड़ा कुछ होने जा रहा है कहकर। जानकारी मिली कि भले ही लड़ाई एनडीए और इंडिया के बीच में है लेकिन बिहार में इस बार दर्जन भर नयी और छोटी पार्टियां बहुत कुछ करने जा रही हैं। जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि अगर इन दर्जन भर पार्टियों ने एक कार्टेल बना लिया तो खेल त्रिकोणात्मक भी हो सकता है। इस खेल का बड़ा मुखिया जन सुराज बन सकता है।

सबसे ज्यादा परेशानी इस खेल से राजद को होगा तो उधर बीजेपी के साथ ही जदयू भी लपेटे में आ जायेगी। और ऐसा हुआ तो नीतीश का खेल तो ख़राब होगा ही बीजेपी के सारे खेल पर पानी फिर जाएगा। इसलिए पर्यटन ख़त्म होने के बाद बिहार से एक बड़ा सन्देश निकल सकता है। दर्जन भर जातीय छोटी पार्टियों को समेटने के लिए बड़ा ऐलान हो सकता है। और यह सब इसलिए कि कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हो। इसलिए सिर्फ यही कहिये कि बिहार में चुनाव बा — और बीजेपी और जदयू का हाल भी बेकार बा।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

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