अपने देश के लोग इधर बीच बाबा योगीनाथ की बुलडोजर संस्कृति से भलीभांति परिचित हो चुके हैं। बाबा का जब मन चाहता है जिस किसी का भी मकान बुलडोजर से गिरवा देते हैं। यह संस्कृति अपने देश में एक खास पार्टी के सत्ताधारियों के बीच इतनी लोकप्रिय हुई कि बाकी राज्यों ने भी इसका अनुसरण शुरू कर दिया। हालत यह हो गई कि इससे देश का सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित हो उठा। उसने कहा कि यह कौन सा तरीका है कि आप न्याय का अधिकार भी अपने हाथ में ले लें।
उसने सख्ती से राज्य सरकारों को ऐसा करने से चेताया। पर उसकी कौन सुनता है ? उसके फैसले के बावजूद बुलडोजर संस्कृति जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी, जुर्माना सब लगाकर देख लिया, लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ा। आखिर उसे भी समझ में आ गया कि अपनी इज्जत खुद अपने हाथ में है। फैसले पर अमल उन्हीं सरकारों को करना या कराना है जो बुलडोजर संस्कृति लागू कर रही हैं। इसलिए वह भी “ मुदहूं आंख कतहुं कुछ नाहीं ” वाले ज्ञान को आत्म सात करते हुए ऐसे मामलों की अनदेखी करने लगा और सत्ताधारियों को बुलडोजर चलाने की छूट देने लगा।
चीन की दादागीरी
लेकिन यह सिर्फ एक राज्य और एक देश की बात नहीं है। बल्कि पूरी दुनिया में यही बुलडोजर संस्कृति देखने को मिल रही है। अपना पड़ोसी देश चीन अपनी ताकत की नुमाइश करते हुए जब चाहता है भारत की बांह मरोड देता है। करीब पांच साल पहले पूर्वी लद्दाख के गलवान में उसने हमारे 20 सैनिकों को मार डाला। एक बड़े भारतीय इलाके को “ नो मेन्स जोन“ में बदल दिया और अपने पूर्व के “ नो मैन्स लैंड “ तक चढ़ आया। कई दौर की बातचीत के बाद भी वह उन इलाकों से हटने को तैयार नहीं हुआ। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में उसने पूरी बस्ती बसा दी है। यहां बुलडोजर संस्कृति घर तोड़ने की नहीं, बल्कि इलाके पर कब्जा जमाने की है।
पाकिस्तान के खिलाफ बुलडोजर नीति
मजबूत चीन के सामने हम 56 इंची वालों की जुबान भले न खुलती हो पर हमसे कमजोर पाकिस्तान के खिलाफ हम भी उसी बुलडोजर संस्कृति को आगे बढ़ाते हैं। कभी उरी में घुसपैठ करके, कभी बालाकोट पर हमला करके और कभी उसके आतंकी ठिकानों पर हमला करके। इस बार आतंकी ठिकानों पर हमला भी महंगा पड़ गया। भारत को अंदाजा नहीं था कि उसका सामना पाकिस्तान से नहीं बल्कि वहां बैठे चीन से भी है। नतीजा यह रहा कि हमारे सबसे आक्रामक लड़ाकू विमान राफेल की हवा निकल गई। हमले पर निकले कम से कम तीन राफेल संकट में आ गये।
रूस की यूक्रेन के साथ ज्यादती
यह सब सिर्फ अपने देश और पड़ोस में ही नहीं हो रहा बल्कि पूरी दुनिया में यही हो रहा है। रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। वजह कि वो नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने। अरे भाई, तुमसे यूक्रेन से क्या लेना – देना कि वो क्या कर रहा है। क्या खा रहा है, क्या पहन रहा है, किससे दोस्ती कर रहा है ? यह तो सरासर दादागिरी है कि तुम अपनी मर्जी से उसे चलाना चाहो। वह एक स्वतंत्र देश है। वह अपने फैसले लेने को स्वतंत्र है। वह जिस देश से चाहे दोस्ती करे, जिस देश से चाहे व्यापार करे और जैसी चाहे अपनी नीति बनाये। तो नहीं, वह तुमसे अलग हो चुका है फिर भी तुम चाहते हो कि वह तुम्हारी ही मर्जी से सांस ले।
अमेरिकी एजेंट इजराइल का बुलडोजर
यही हाल इजराइल का भी है। कहीं से आकर उसने फिलस्तीन की जमीन पर कब्जा कर लिया और अपना राष्ट्र घोषित कर दिया। 14 मई 1948 को यहूदी एजेंसी के प्रमुख डेविड बेन गुरियन ने इजराइल राज्य की स्थापना की घोषणा की। तब के अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने उसी दिन इस नये राष्ट्र को मान्यता भी दे दी। यह वैसा ही है जैसे कोई आपके घर में घुसकर जबरन एक हिस्से पर कब्जा कर ले और कह दे कि अब ये मेरा है। इतना ही नहीं उसे जब और ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ी तो उसने उस पर भी कब्जा कर लिया। इस तरह धीरे-धीरे 77 सालों में उसने एक तरह से पूरा फिलीस्तीन ही हड़प लिया है।
1948 में फिलस्तीन तीन चौथाई हिस्से पर काबिज था। इजराइल के पास उसकी महज एक चौथाई जमीन थी। लेकिन आज की तारीख में तीन चौथाई हिस्से पर इजराइल का कब्जा है। ऐसी बाउंड्री दुनिया में किसी और देश की आपको देखने को नहीं मिलेगी। भारत के गांवों के खेतों में जिस तरह की बाउंड्री होती है उससे भी गई गुजरी बाउंड्री इजराइल और फिलस्तीन के बीच है। आप देखेंगे तो पता चला कि तीन घर इजराइल में हैं तो दो घर फिलस्तीन में। हो सकता है कि कुछ साल बाद वो घर भी इजराइल के ही हो जाएं। उसे जब जिस घर या जमीन की जरूरत होती है कोई न कोई बहाना बनाकर उस पर जबरन कब्जा कर लेता है। बस एक गाजा का ही इलाका है जहां वह कब्जा नहीं कर पा रहा। लेकिन हमले करके उसे भी जब तब तबाह कर देता है। हाल के हमले में हजारों फिलिस्तीनी नागरिकों की उसने हत्या की है।
इजराइल अपनी बुलडोजर संस्कृति को सिर्फ फिलिस्तीन पर ही नहीं लागू करता बल्कि आस-पास के देशों पर भी लागू करता है। मिस्र, सीरिया, लेबनान, जार्डन, इराक पर वह पहले भी हमला बोल चुका है। हाल ही में उसने ईरान को भी निशाना बना दिया। जब ईरान ने पलटकर वार किया तो उसके होश फाख्ता हो गए। उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। उसे उम्मीद नहीं थी कि ईरान ऐसा करेगा।
इजराइल जो कुछ भी करता है वह अमेरिका के भरोसे और सह पर करता है। दरअसल अमेरिका एक सुपर दादा है और इजराइल उसका एजेंट। इजराइल अमेरिका के दम पर क्षेत्र में अपनी दादागिरी चलाता है और जब उसे कोई पीट देता है तो अमेरिका खुद सामने आ जाता है। फिलहाल ईरान पर अमेरिका के हमले को इसी रूप में देखा जा सकता है।
अमेरिका है सुपर डॉन
अमेरिका ने ईरान पर हमला करके उसके तीन न्यूक्लियर ठिकानों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। उसका कहना है कि वह ईरान को न्यूक्लियर बम नहीं बनाने देगा। अभी इस बात की भी पुष्टि होनी बाकी है कि ईरान न्यूक्लियर बम बना रहा है। यह पूरा मामला इराक जैसा दिख रहा है। आपको याद होगा करीब दो दशक पहले अमेरिका ने इराक पर भी हमला यही कह कर किया था कि वह विनाशकारी हथियारों का निर्माण और संग्रह कर रहा है। बाद में पता चला कि यह सब झूठ था और अमेरिका ने इराक पर हमला करने के लिए यह दुष्प्रचार कराया था। ज्यादा संभावना है कि ईरान के साथ भी अमेरिका वैसा ही कर रहा है।
फ्रांस, रूस, चीन, सबने ईरान पर अमेरिकी हमले की निंदा की है। उनका कहना है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों के खिलाफ जाकर ईरान पर हमला किया है। लेकिन अमेरिका को इसकी परवाह नहीं। वह अपने गुर्गे को बचाने वहां गया है। नियम टूटते हों तो टूटें। आखिर उसके पास ताकत है। जब तक ताकत है वह किसी से नहीं डरेगा। यही वजह है कि जहां इराक पर हमला उसने कुछ देशों का गठजोड़ बनाकर किया था, ईरान पर उसने अकेले ही हमला किया है। शायद उसे अंदाजा हो कि ईरान पर हमले के लिए नाटो देश भी तैयार न हों। नाटो में इस समय 32 देश हैं। आखिर नाटो का एक प्रमुख देश फ्रांस ने इसका विरोध कर ही दिया।
तो भाई लब्बोलुबाब यह है कि जिसके पास ताकत है, वह उसका इस्तेमाल अपने हित और दूसरों को दबाने के लिए करता है, कर रहा है। इसलिए जरूरी है कि आप कितने ही बड़े हों, कितने ही महान हों, कितने ही सभ्य हों, अपनी रक्षा का पुख्ता इंतजाम करें। किसी को भी मौका न दें कि वह कमजोर समझकर आपको आंखें दिखा सके। आप सिर्फ कहिये ही नहीं, लाल आंख दिखाने का माद्दा भी रखिये। वरना कोई भी आपके घर में घुसकर वारदात करेगा, घर में घुसकर बस्ती बना लेगा।
(अमरेंद्र कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
