हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और प्रतिरोध

जैसा कि विदित है, हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में भारतेंदु युग 1873 से 1900 तक माना जाता है। इस युग…

पत्रकारिता के बीच देखी संवेदनहीन समाज की आवाज़ है ‘प्रतिरोध के स्वर”

समदर्शी प्रकाशन से प्रकाशित ‘प्रतिरोध के स्वर’ काव्य संग्रह के कवि वरिष्ठ लेखक पत्रकार प्रमोद झा हैं। उनका यह तीसरा…

मंडलोई की आत्मकथा सतपुड़ा और भूख का जीवंत अनुभव कराती है : विश्वनाथ त्रिपाठी

नई दिल्ली। लीलाधर मंडलोई की आत्मकथा ‘जब से आँख खुली हैं’ न सिर्फ़ एक व्यक्ति के जीवन की कथा है,…

निर्मला जैन को मंज़ूर नहीं था कि केवल स्त्री होने के नाते उन्हें जाना जाए : प्रो. वीर भारत तलवार

नई दिल्ली। हिन्दी आलोचना की परंपरा को नई दृष्टि और वैचारिक दृढ़ता देने वाली विदुषी डॉ. निर्मला जैन का साहित्य,…

पुस्तक समीक्षा : मुग़ल औरतों के बारे में आप कितना जानते हैं ?

मुग़लों के इतिहास को हम अक्सर मुग़ल बादशाहों के नाम और कारनामों से जानते हैं। तक़रीबन तीन सदी तक उन्होंने…

क्या आज कोई देवेन उर्दू शायर नूर शाहजहानाबादी का ‘मुहाफ़िज़’ बन पाएगा ? 

”मैं तो आपको एक ख़ुशख़बरी सुनाने आया था, नूर साहब ने अपना नया कलाम मेरी हिफ़ाज़त में छोड़ दिया है।…

पुस्तक समीक्षा : मार्क्सवादी पद्धति से ‘गरीबी का चक्रव्यूह’ का विश्लेषण करती किताब

अवतार सिंह जसवाल की पुस्तक ‘गरीबी का चक्रव्यूह ‘ मजदूर वर्ग और कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने की परंपरा का निर्वहन…

अन्वेषा वार्षिकांक : प्रतिकूल समय में एक जरूरी रचनात्मक हस्तक्षेप

अन्वेषा का वार्षिकांक आए हुए कई दिन हो गए। यह प्रवेशांक बहुत भारी-भरकम अंक है। 544 पृष्ठ, आकार भी पुराने…

नेपथ्‍य का नायक : अनिल चौधरी की स्‍मृति में 

‘’दोस्‍तो अब मंच पर सुविधा नहीं है / आजकल नेपथ्‍य में संभावना है…’’  हिंदी के लोकप्रिय कवि दु्ष्‍यन्‍त कुमार जिस…

‘मनुष्य न कहना’: मानवीय संवेदनाओं का कोलाज है ममता जयंत की कविताएं

ममता जयंत मनुष्य की भावनाओं को चित्रित करने वाली कवयित्री है। हाल ही में प्रकाशित उनका कविता संग्रह ‘मनुष्य न…