राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 12 नवम्बर 2021 को आईपीएस प्रशिक्षुओं के ‘दीक्षांत परेड’ में बोलते हुए कहा था- ‘जनता सबसे महत्वपूर्ण है। युद्ध का नया मैदान अब नागरिक समाज है। इसे ही चौथी पीढ़ी का युद्ध कहा जाता है’।
मूल मुद्दे पर आने से पहले ‘चौथी पीढ़ी के युद्ध’ (Fourth-generation warfare) के बारे में समझ लेते हैं। विकिपीडिया के अनुसार इस तरह के युद्ध में राजनीति और युद्ध के बीच तथा उसी तरह लड़ाकुओं (militants) और नागरिकों के बीच की सीमा रेखा धुंधली हो जाती है। हालांकि इस पर कई तरह के वाद-विवाद मौजूद हैं। लेकिन जिस सन्दर्भ में अजित डोभाल ने इस शब्द का इस्तेमाल किया है, उसका सीधा मतलब यही है कि अब सरकार से असहमत नागरिकों से भी सरकार उसी तरह निपटेगी, जिस तरह से युद्ध में वह अपने ‘दुश्मनों’ से निपटती है।
यानी विगत के तमाम लोकतान्त्रिक आंदोलनों के दबाव से राज्य/सरकार और नागरिक समाज के बीच जो लोकतान्त्रिक ‘स्पेस’ बचा हुआ था, वह सिकुड़ते-सिकुड़ते अब बिलकुल ख़त्म हो चुका है। अजित डोभाल का उपरोक्त वक्तव्य इसकी घोषणा भर थी।
5 सितम्बर 2023 को सुबह 5 बजे जब NIA (राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी) ने मेरे आवास सहित कुल 8 जगहों पर सशत्र पुलिस बल और वज्रयान के साथ छापेमारी की और सभी जगहों पर पूरे घर को उलट-पुलट दिया तो मुझे 2 साल पहले दिया अजित डोभाल का उपरोक्त वक्तव्य याद आ गया।
अजित डोभाल ने ‘नागरिक समाज’ के खिलाफ युद्ध को जायज ठहराने के लिए एक और बात कही। उनके अनुसार राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने वाली ताकतें भारतीय नागरिक समाज को बरगला (manipulate) सकती हैं, और उसे अंदर से ध्वस्त कर सकती हैं। एक क्षण के लिए हम इस बात को नज़रअंदाज कर देते हैं कि यहां पर सरकार को एक लोकतान्त्रिक संस्था के रूप में नहीं बल्कि नागरिक समाज के अभिभावक के रूप में देखा जा रहा है, जो पूरी तरह एक सामंती अवधारणा है।
अगर हम वस्तुगत तरीके से देखें कि इस नागरिक समाज को वास्तव में कौन ‘बरगला’ रहा है, और कौन उसे अंदर से घ्वस्त कर रहा है? राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने वाली वह ताकत आरएसएस/भाजपा के अलावा और कौन हो सकती है?
यानी समाज को बरगलाने (manupulate करने) और अंदर से ध्वस्त करने के काम में आरएसएस/भाजपा के एकाधिकार को सुनिश्चित करने का ही लगातार प्रयास हो रहा है। उनके इस ‘प्रोजेक्ट’ से असहमत नागरिक समाज के लोगों की एक-एक कर हो रही गिरफ्तारी/छापेमारी इसी प्रयास का परिणाम है।
आइये एक नज़र उन 9 लोगों पर डाल लेते हैं, जिन पर देश की सबसे ‘एलीट’ सुरक्षा एजेंसी (NIA) ने छापा मारा है और जिन पर गिरफ्तारी कि तलवार लटक रही है-
1. कृपाशंकर- ये वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। कुशीनगर के रहने वाले कृपाशंकर अतीत में छात्र राजनीति और पूर्वांचल के अनेकों जनांदोलनों से जुड़े रहे हैं। कृपाशंकर की खास बात यह है कि वे समय-समय पर जेलों का भ्रमण करते हैं और जिनकी कोई पैरवी करने वाला कोई नहीं है, उनका केस लेते हैं और उसे निशुल्क लड़ते हैं। 13 साल, 15 साल, 19 साल से जेलों में बंद लोगों को कृपाशंकर ने जेल से छुड़वाया है।
2. सोनी आज़ाद- सोनी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं और मानवाधिकार संगठन PUCL से जुड़ी हुई हैं। PUCL की तरफ से वह कई ‘फैक्ट-फाइंडिंग’ टीम का हिस्सा रही हैं।
3. रितेश विद्यार्थी- रीतेश ‘भगत सिंह छात्र मोर्चा’ (अब ‘भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा’) के संस्थापक सदस्य रहे हैं। उन्होंने भगत सिंह छात्र मोर्चा के बैनर तले कई आन्दोलन और गांव चलो अभियान का नेतृत्व किया है। वर्तमान में वे अपने घर पर रहते हुए चंदौली और आसपास के किसानों/मजदूरों के बीच काम कर रहे हैं।
4. राजेश आज़ाद- राजेश आज़ाद ‘जन मुक्ति मोर्चा’ के बैनर तले आजमगढ़ के बहुचर्चित ‘खिरियाबाद’ आन्दोलन में लगातार सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं। इससे पहले वे ‘संयुक्त किसान आन्दोलन’ में भी लगातार सक्रिय रहे हैं।
5. आकांक्षा आज़ाद- बनारस स्थित ‘बीएचयू’ में सक्रिय छात्र संगठन की लगातार दो बार से अध्यक्ष रही हैं। आकांक्षा आज़ाद ने ‘भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा’ के तहत बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दों पर आंदोलन का नेतृत्व किया है। 2017 में छेड़खानी के खिलाफ़ हुए ज़बरदस्त आन्दोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही है। इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां भी बटोरी थीं। ‘भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा’ के तहत हर साल आयोजित ‘गांव चलो अभियान’ में भी उनकी सक्रिय हिस्सेदारी रही है।
6. सीमा आज़ाद- सीमा PUCL की प्रदेश अध्यक्ष हैं और पिछले 20 सालों से लगातार ‘दस्तक’ पत्रिका निकाल रही हैं। PUCL और ‘दस्तक’ की ओर से वह कई महत्वपूर्ण ‘फैक्ट फाइंडिंग’ का हिस्सा रही हैं। सीमा आज़ाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेषतः मानवाधिकार से सम्बंधित मुद्दों पर केस भी लड़ती हैं।
7. विश्वविजय- विश्वविजय जिला कचहरी में वकील हैं और कई सामाजिक-राजनीतिक आन्दोलनों से जुड़े हुए हैं। CAA/NRC विरोधी आन्दोलनों के कारण गिरफ्तार हुए बहुत से गरीब मुस्लिमों के केस में भी विश्वविजय मदद कर रहे हैं।
8. अमिता शीरीं- अमिता विगत में इलाहाबाद और देहरादून में कई राजनीतिक/सामाजिक आंदोलनों से जुड़ी रही हैं। ‘मुक्ति के स्वर’, ‘हमारी जमीन हमारा आसमान’ और ‘मुक्ति’ जैसी पत्रिकाओं/अखबार का सम्पादन किया है। इसके अलावा सामाजिक/राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई किताबों का अनुवाद किया है।
9. मनीष आज़ाद- विगत में मनीष कई सामाजिक/राजनीतिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं और अभी स्वतंत्र लेखन व अनुवाद कर रहे हैं।
इस परिचय से आप समझ सकते हैं कि इन पर छापेमारी करके आखिर किनको डराया जा रहा है। हमारे साथ ये जो करेंगे करेंगे, लेकिन हमारे माध्यम से उस ‘नागरिक समाज’ को धमकाया जा रहा है, जो आरएसएस/भाजपा की विचारधारा से सहमत नहीं है और परिवर्तन चाहता है।
‘पास्टर निमोलर’ की कविता ‘पहले वे आये कम्युनिस्टों के लिए’ एक बार फिर से वर्तमान सन्दर्भों में गहनता से पढ़ी जानी चाहिए..
(मनीष आज़ाद लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
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