जलवायु परिवर्तन से नष्टप्राय हो जाएँगी अनेक वृक्षों की प्रजातियाँ

जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम अब सामने आ रहे हैं। मानव और जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। प्रतिदिन जंतुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं। समुद्रों का पानी तेजी से गर्म हो रहा है, जिसके कारण विभिन्न समुद्री प्रजातियाँ समुद्र की सतह पर आकर नष्ट हो रही हैं, जिनमें बहुत-सी ऐसी प्रजातियाँ हैं, जिनके बारे में अभी तक जीववैज्ञानिकों को पता भी नहीं है।

लेकिन अब यह चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल जीव-जंतुओं और मानवों पर ही नहीं पड़ रहा है, बल्कि इसका घातक प्रभाव वनस्पति जगत पर भी पड़ रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान के कारण इस सदी के अंत तक वृक्षों की 70 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है।

वास्तव में, वृक्ष ही धरती पर जीवन का आधार हैं। वे न केवल हमारी साँसों को स्वच्छ हवा देते हैं, बल्कि कार्बन को सोखकर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। खाद्य सुरक्षा, जैव पारिस्थितिकी तंत्र, और जैव विविधता में वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन अब इनका अस्तित्व स्वयं संकट में है। एक नई अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक, इस सदी के अंत तक दुनिया भर की 32,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों में से करीब 70 प्रतिशत ऐसी जलवायु परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर होंगी, जो उन्होंने पहले कभी नहीं झेलीं।

यह संकट खास तौर पर और गहरा होगा यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा। यदि उत्सर्जन को नहीं रोका गया, तो लाखों वृक्षों के लिए यह धरती घर नहीं, कब्रगाह बन सकती है। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉ. कोलीन बूनमैन ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी साझा करते हुए कहा, “सदी के अंत तक वृक्षों की करीब 70 प्रतिशत प्रजातियों को उनके आवास के किसी-न-किसी हिस्से में जलवायु में आने वाले बड़े बदलावों को झेलना होगा।” उनके मुताबिक, यदि तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, तो कुछ प्रजातियों के लिए उनका आधे से अधिक आवास क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने पहले ग्लोबल ट्री असेसमेंट में जानकारी दी है कि वृक्षों की एक-तिहाई से अधिक प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में वृक्षों की 47,282 ज्ञात प्रजातियों में से कम-से-कम 16,425 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।

गौरतलब है कि भारत में भी वृक्षों के साथ कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। देश में न केवल सड़कों, घरों आदि से वृक्ष गायब हो रहे हैं, बल्कि खेतों में भी इनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है। जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि पिछले पाँच वर्षों में भारत के खेतों से 53 लाख छायादार वृक्ष गायब हो चुके हैं। यह अपने आप में एक बड़े खतरे की ओर इशारा करता है। इस दौरान प्रत्येक किलोमीटर क्षेत्र से औसतन 2.7 वृक्ष नदारद मिले। वहीं, कुछ क्षेत्रों में तो प्रत्येक किलोमीटर क्षेत्र से 50 तक वृक्ष गायब हो चुके हैं।

अध्ययन ने उन जगहों की भी पहचान की है, जहाँ वृक्षों की सबसे अधिक विविधता है और जहाँ जलवायु परिवर्तन का असर सबसे गंभीर होगा। इन ‘एक्सपोजर हॉटस्पॉट्स’ में यूरेशिया, उत्तर-पश्चिमी अमेरिका, उत्तरी चिली, और अमेजन डेल्टा शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन इलाकों में जलवायु इतनी तेजी से बदलेगी कि कई प्रजातियों का जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा। गौरतलब है कि वृक्ष अपनी लंबी उम्र और सीमित गति के कारण जलवायु में तेजी से होने वाले बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।

इस अध्ययन में केवल जलवायु से जुड़ी चुनौतियों को शामिल किया गया है। इसमें वृक्षों की कटाई, जमीन का तेजी से बदलता उपयोग, और बाहरी प्रजातियों के खतरों को शामिल नहीं किया गया है। यह इस बात का संकेत है कि वास्तव में इन वृक्षों पर मंडराता जोखिम इससे कहीं अधिक हो सकता है।

रिपोर्ट में केवल पेड़ों पर मंडराते खतरों को ही नहीं बताया गया, बल्कि उन जगहों को भी चिह्नित किया गया है, जहाँ उम्मीदें बाकी हैं। इन इलाकों को वैज्ञानिकों ने ‘क्लाइमेट रिफ्यूजिया’ कहा है। ये ऐसी जगहें हैं, जहाँ मौसम की परिस्थितियाँ आने वाले समय में भी अपेक्षाकृत स्थिर रह सकती हैं। यदि इन क्षेत्रों की रक्षा की जाए, तो ये वृक्षों के लिए सुरक्षित आश्रय बन सकते हैं। ये इलाके लंबी अवधि के संरक्षण प्रयासों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

अध्ययन में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है। इसके तहत जो प्रजातियाँ अधिक खतरे में हैं, उनकी निगरानी जरूरी है। साथ ही, क्लाइमेट रिफ्यूजिया को मानवीय दखल से बचाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों ने जोर दिया है कि ‘असिस्टेड माइग्रेशन’ जैसे सक्रिय संरक्षण उपायों पर विचार करना होगा, ताकि वृक्षों को ऐसी जगह पहुँचाया जा सके, जहाँ वे जीवित रह सकें।

अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता डॉ. जोसेप सेरा-डियाज ने जोर देकर कहा, “इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें दुनिया के वृक्षों को बचाने के लिए अभी कदम उठाने होंगे।” अध्ययन बताता है कि हमें कहाँ ध्यान केंद्रित करना चाहिए और जैव विविधता बनाए रखने के लिए छोटे-छोटे अवसरों को कैसे अपनाया जा सकता है।

हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से ही वृक्षों का बहुत महत्व रहा है। पीपल, बरगद जैसे वृक्षों की लोग पूजा करते रहे हैं। नीम, जामुन जैसे अनेक वृक्षों का महत्व इनके औषधीय गुणों के कारण है। परंतु बढ़ती व्यावसायिकता और नगरीकरण के कारण ये वृक्ष तेजी से गायब हो रहे हैं।

बरगद, पीपल, नीम, पाकड़ जैसे वृक्ष, जो भरपूर ऑक्सीजन देकर पर्यावरण को संरक्षित करते हैं, उनकी जगह यूकेलिप्टस जैसे वृक्ष व्यावसायिक लाभ के लिए लगाए जा रहे हैं। पहाड़ों की स्थिति और भी खराब हो गई है। वहाँ साल, देवदार जैसे पहाड़ी इलाकों के अनुकूल वृक्षों की जगह व्यावसायिक लाभ देने वाले यूकेलिप्टस जैसे वृक्षों को लगाया जा रहा है।

इसके अलावा, पहाड़ों पर चौड़ी सड़कें बनाने के लिए लाखों वृक्ष काटे जा रहे हैं, जिसके कारण हर वर्ष पहाड़ों पर भूस्खलन हो रहे हैं और बाढ़ से भयानक तबाही हो रही है। वास्तव में, आज मानव प्रजाति को बचाने के लिए वृक्षों की लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाना एक तात्कालिक आवश्यकता है।

(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक और टिप्पणीकार हैं)

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