क्रूर सत्ता से जूझ रहे किसानों पर कहर बनकर गिरी बर्फीली बारिश

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केंद्र सरकार की क्रूर नीतियों खिलाफ़ दिल्ली बॉर्डर पर संघर्ष कर रहे किसानों को अब क्रूर मौसम और बर्फीली बारिश की मार बी झेलनी पड़ रही है। कल भारी बारिश के चलते आंदोलनरत किसानों के बिस्तर-बिछौने, टाट-दरी और ईंधन भीग गये। जिससे उनकी मुसीबतें और बढ़ गई हैं। वहीं भारी बारिश और तेज हवा के चलते कई अस्थायी टेंट भी उड़, उखड़ और फट गये।  

बावजूद इसके कड़कड़ाती ठंड और कोहरे समेत कई मुसीबतों के दिल्ली की सीमाओं पर किसान डटे हुए हैं। किसान पहले ही तमाम परेशानियों का सामना कर रहे थे, लेकिन आज सुबह से हो रही बारिश उनके आंदोलन पर मुसीबत बनकर बरस रही है।

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वहीं मौसम वैज्ञानिक राजेंद्र कुमार जेनामनी ने मौसम का पूर्वानुमान लगाकर बताया है कि “पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी और उत्तर राजस्थान  में 3, 4 और 5 जनवरी को बारिश होगी। पंजाब में 3-4 जनवरी को भारी बारिश होगी। दिल्ली में तापमान में कुछ ज़्यादा बदलाव नहीं होगा और दिन ठंडे रहेंगे। दिल्ली में 4-5 जनवरी को भी बारिश होगी।

पंजाब के मोहाली में किसानों के समर्थन में तमाम दुकानों पर होर्डिंग और बैनर लगाये गये हैं। जिसमें स्पष्ट लिखा है कि “अंधभक्तों को आज्ञा नहीं है, हम अपने किसान भाइयों का समर्थन करते हैं।” वहीं तमाम मोबाइल और रिचार्ज दुकानों पर होर्डिंग लगा दी गई हैं कि जियो सिम और रिचार्ज यहां नहीं मिलता है।

जम्मू कश्मीर में होगी प्रेस कान्फ्रेंस

हरियाणा के किसान नेता गुरुनाम सिंह चढ़ूनी ने बताया है कि “देश भर में किसान आन्दोलन  को तेज करने के लिए  5 तारीख को हम जम्मू कश्मीर के प्रधान हामिद मलिक जी के साथ जम्मू में एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे। जम्मू और कश्मीर के किसानों को इस आन्दोलन में हिस्सेदारी के लिए प्रेरित करेंगे ।

प्रेस कान्फ्रेंस 5 जनवरी को मौलाना आजादा स्टेडियम के सामने प्रेस क्लब जम्मू के नजदीक होटल हॉट मिलियन में दोपहर 12 बजे होगी।

 रविवार की सुबह तीन किसानों की मौत

आज 3 जनवरी रविवार की सुबह-सुबह अलग-अलग प्रदर्शन स्थल पर तीन और किसानों की मौत हो गई।

आज सुबह टिकरी बॉर्डर पर जगबीर सिंह (60) नामक किसान की मौत हो गई। जींद जिले के गांव इट्टल कला के रहने वाले जगबीर की मौत अत्यधिक ठंड के कारण हुई है। हालांकि जांच पूरी होने के बाद ही मौत की असली वजह का पता चल सकेगा। जगबीर सिंह हफ्ते भर से पिलर नंबर 764 पर डटे हुए थे। रविवार सुबह करीब सात बजे तबियत अधिक बिगड़ने के बाद उनकी मौत हो गई। जगबीर के दो बच्चे हैं। उनके एक 32 वर्षीय लड़का और 28 वर्षीय लड़की है।
भारतीय किसान यूनियन (घासीराम नैन) के अध्यक्ष चौधरी जोगिंदर नैन ने मीडिया को बताया कि सुबह लोगों ने चाय पीने के लिए बुलाया तो उन्होंने बताया कि बेचैनी हो रही है। हालत ज्यादा खराब होने लगी, तो साथी प्रदर्शनकारी उन्हें बहादुरगढ़ अस्पताल लेकर गए, लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

टिकरी बॉर्डर पर ही भटिंडा पंजाब के एक 18 वर्षीय युवक की मौत शनिवार को हर्ट अटैक से हो गई। युवक का नाम जश्नप्रीत था। शनिवार को टिकरी बॉर्डर पर अचानक तबियत खराब होने के बाद युवक को रोहतक ले जाया गया जहां शनिवार देर शाम उसने दम तोड़ दिया। भारतीय किसान यूनियन एकता उगरांहा के नेता जसवीर सिंह ने बताया है कि जश्नप्रीत शनिवार की सुबह ही टिकरी बॉर्डर धरना देने पहुंचा था। जश्नप्रीत अपने मां-बाप की इकलौती संतान था।

वहीं सोनीपत के कुंडली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल दो और किसानों की मौत हो गई है। जबकि एक अन्य की हालत गंभीर है। मृतकों की पहचान सोनीपत के गांव गंगाना निवासी कुलबीर सिंह व पंजाब के जिला संगरूर के गांव लिदवा निवासी शमशेर सिंह के रूप में हुई है। जबकि गंगाना के ही युद्धिष्ठर को हृदयघात के चलते पीजीआई रोहतक रेफर किया गया है।

इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके किसान आंदोलन के बरअक्श मौजूदा हालात की तुलना चंपारन त्रासदी से की है। साथ ही उन्होंने मोदी सरकार समर्थित कार्पोरेट को कम्पनी बहादुर कहा है। उन्होंने ट्वीट में लिखा है, “देश एक बार फिर चंपारन जैसी त्रासदी झेलने जा रहा है। तब अंग्रेज कम्पनी बहादुर था, अब मोदी-मित्र कम्पनी बहादुर हैं। लेकिन आंदोलन का हर एक किसान-मज़दूर सत्याग्रही है जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।”

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश बारिश में किसान आंदोलन पर प्रतिक्रिया देते हुए फेसबुक पर लिखते हैं, “आज की सुबह क्रूर और डरावनी है। बादलों के गरजने की आवाज़ के बीच सुबह जब नींद खुली, सबसे पहले भागते हुए छज्जे की तरफ गया। याद नहीं, इतनी बे-मौसम और बुरी बरसात पहले कब देखी! इस बरसात ने सुबह-सुबह मेरा मन खराब कर दिया। आख़िर कितनी कुटिलताओं और क्रूरताओं का सामना करेंगे किसान? 

इस वक्त हजारों-हज़ार किसान और कइयों के बाल-बच्चे भी दिल्ली-सीमा के तीन अलग-अलग इलाकों में धरने पर हैं। कुछ के पास ट्राली है, कुछ के पास टेंट हैं! जिनके पास कुछ नहीं होता, उनका इंतजाम भी यहीं के लोग मिल जुलकर करते हैं। इसलिए कई बार एक छोटे से टेंट में तीन-चार किसान किसी तरह रात काटते हैं। कुछ सोते हैं और कुछ जागते हैं। पारा यहां 1 डिग्री पहुंच चुका है। यहां की सर्द रातों की भयावहता की कल्पना करके सिहरन पैदा होती है। उनके आंदोलन का आज 39वां दिन है। इन 39 दिनों में अब तक 50 से अधिक किसान अपनी जान गवां चुके हैं। सरकार के क्रूर रवैये से क्षुब्ध होकर तीन किसान आत्महत्या भी कर चुके हैं।

सुबह से ही मेरे मन में बार-बार सवाल उठता रहा, आज की रात किसानों ने कैसे बिताई होगी? इस गरजती हुई बारिश का वे कैसे मुकाबला कर रहे होंगे? आज एक टिप्पणी लिखनी थी। पर इस बारिश में वह विचार धुल गये। कुछ सोचने के बाद, किसान आंदोलन ‘कवर’ कर रहे एक युवा रिपोर्टर को मैंने फोन लगाया। बारिश में किसानों का हाल जानने के लिए। वह धरना स्थल पहुंच चुका था। उसने बताया, वहां का हाल सचमुच बहुत खराब है। पर लोगों में गजब का साहस और हौसला है। उनका शरीर कांप रहा है, कुछ भीग रहे हैं, कुछ के टेंट में  पानी आ गया है, कुछ के तिरपाल उड़ रहे हैं। पर वे सभी न्याय की इस लड़ाई का परचम उठाये हुए हैं। अंदर से फ़ौलाद की तरह तने हुए हैं।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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