सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ठीक है लेकिन

Estimated read time 1 min read

यदि कुछ संदेहों को किनारे रखें तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस SC/ST में वर्गीकरण के निर्णय का स्वागत तो किया जाना चाहिए जो कि वास्तिविकता से परे नहीं है, और नैतिक आधार पर भी सही बैठता है। 

इस निर्णय में संदेहों के खिलाफ़ तो सब SC/ST मिलकर संघर्ष कर लेंगे और कुछ लोगों के मंसूबे जो कि दलित और आदिवासी समाज के अन्दर बन रही एकता को तोड़ने के हैं वो सफल नहीं होंगे। दलित आदिवासियों में सुधार का सवाल सबसे बड़ा प्रश्न बना हुआ है। ब्राह्मणवाद अभी भी उनको अपने फंदे में फांसे हुए है। उसका औजार सगोत्र विवाह (endogamy) अभी भी उसका प्रमुख साधन बना हुआ है। जिस ब्राह्मणवाद के वो शिकार हैं क्यों नहीं वो अन्य SC/ST जाति के लोगों के साथ शादी करते हैं। 

सगोत्र रिश्तों (endogamy) को ख़त्म करके सजातीय (Homogeneous) क्यों नहीं हो जाते? ऐसा क्यों नहीं हुआ कि समाज के समृद्ध लोगों जो बहुत थोड़े हैं, ने समाज के आखिरी व्यक्ति को हाथ बढ़ा कर गरीबी से निकालने की कोशिश की? ऐसा नहीं होने पर बाहरी दखल होगा और फिर वो आपको और कमज़ोर करेगा। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कुछ संदेह इसी दिशा में नज़र आते हैं। 

करना क्या चाहिए था? होना यह चाहिए था कि जो लोग आरक्षण का उपयोग करके समृद्ध हुए हैं उनको अपना आरक्षण बहुत पहले दान दे देना चाहिए था एक आन्दोलन के माध्यम से, और अपने समाज के पिछड़े लोगों को हाथ पकड़ कर आगे लाने में मदद करनी चाहिए थी।

महान हस्तियों के संघर्ष से जो हक़ मिले हैं उनको सम्मान के साथ उपयोग करने की ज़रूरत है समाज के कुछ तत्व उसका अनुचित उपयोग करेंगे और अपने अन्दर कोई सामाजिक सुधार नहीं करेंगे तो पूरे दलित आदिवासी समाज को नुकसान झेलना पड़ेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि SC/ST का समृद्ध परिवार जो कि थोड़ा है और उसमें से कुछ लोग अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं और वो सोचते हैं कि वो सिर्फ अपनी क़ाबिलियत से बेहतर स्थिति में आये हैं और सामाजिक न्याय की महान हस्तियों के योगदान को नहीं मानते है और सामाजिक न्याय में योगदान करने से कतराते हैं। लेकिन आरक्षण व अन्य हक़ों का लाभ लेने के लिए तत्पर भी रहते हैं।

समाज में सुधार ज्यादा ज़रूरी है दलित, आदिवासी और पिछड़ों को भी, सगोत्रता (endogamy) ख़त्म करने के लिए तरह-तरह के प्रोग्राम बनाने होंगे। ब्राह्मणवाद को नकारना होगा, आखिरी व्यक्ति को गरीबी और जिल्लत की ज़िंदगी से बाहर निकालना होगा। सामाजिक चेतना ज़रूरी है खासतौर पे समृद्ध परिवारों में, समाज में प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग और सहकारिता की ज़रूरत है।

SC/ST रिक्त पदों के बैकलॉग और NFS के विरुद्ध संघर्ष की ज़रूरत है, इस निर्णय में कुछ संदेह है तो उसके विरुद्ध संघर्ष की ज़रुरत है ना कि इस वर्गीकरण के। इस वर्गीकरण के विरुद्ध सघर्ष का मतलब सामाजिक न्याय के विरुद्ध का संघर्ष।

(लेखक बाबू ने आईआईटी पास करने के बाद कुछ दिन कॉरपोरेट में नौकरी की और इस समय वह सामाजिक कामों में संलग्न हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author