झारखंड के विभिन्न जिलों में नक्सल अभियान की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर व्यापक हिंसा हो रही है, खास कर पश्चिमी सिंहभूम में यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। केवल संदेह के आधार पर या केवल माओवादियों को महज़ खाना खिलाने के लिए निर्दोष आदिवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में फर्जी रूप से आरोपित किया जा रहा है। कई लोगों को कई दिनों तक थानों में गैर क़ानूनी हिरासत में रखा जा रहा है एवं उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
बिना ग्राम सभा की सहमति व ग्रामीणों से चर्चा किए ही गावों में सुरक्षा बलों के कैंप को जबरन स्थापित किया जा रहा है। इससे गावों में और खास कर ग्रामीण आदिवासियों में डर और दमन का माहौल बना हुआ है एवं गांव-समाज में विभाजन भी हो रहा है। परिस्थितियां ऐसी बन गई हैं कि आदिवासियों को अपने पारंपरिक परोब (त्योहार) मनाने के लिए भी पुलिस-प्रशासन से शान्ति की अपील करनी पड़ रही है। स्थिति यह है कि पुलिस हिंसा के विरुद्ध प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जाती है। अधिकांश मामलों में न तो पीड़ितों को मुआवज़ा मिला है और न ही दोषियों पर कार्रवाई हुई है।
इन तमाम मामलों को लेकर 13 अप्रैल को झारखंड जनाधिकार महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल एवं कई पीड़ितों ने पुनः झारखंड सरकार के गृह सचिव से मिलकर पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार समेत कई ज़िलों में लगातार आदिवासियों, मूलवासियों व सामाजिक वंचितों के विरुद्ध विभिन्न तरीकों से पुलिसिया व सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे दमन को लेकर अवगत कराया। हाल के कई मामलों की विस्तृत जानकारी गृह सचिव को दी गयी। गौर करने की बात है कि महासभा ने पूर्व में भी गृह सचिव समेत विभिन्न प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों को कई बार इन मामलों से अवगत कराया है, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि यह सोचने का विषय है कि आदिवासियों पर हुई हिंसा के दो-दो साल पुराने मामलों में भी आज तक कार्रवाई नहीं हुई है। जून 2020 में पश्चिमी सिंहभूम के चिरियाबेड़ा में सुरक्षा बल के जवानों ने सर्च अभियान के दौरान आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा था। लेकिन आज तक न तो दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध कार्रवाई हुई और न ही पीड़ितों को मुआवज़ा ही मिला। फिर से इसी गांव में 11 नवम्बर 2022 को सुरक्षा बलों द्वारा अभियान के दौरान गांव की कई महिलाओं समेत निर्दोष आदिवासियों की पिटाई की गयी एवं एक नाबालिक लड़की के साथ बलात्कार के उद्देश्य से छेड़खानी की गयी।
जून 2021 को लातेहार के पिरी में पारंपरिक शिकार पर निकले ब्रह्मदेव सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी और फिर उन्हें माओवादी करार देने की कोशिश की गयी। ब्रह्मदेव की पत्नी व ग्रामीणों के लगातार संघर्ष के कारण ब्रह्मदेव को माओवादी करार देने में पुलिस असफल रही। लम्बे संघर्ष के बाद प्राथमिकी तो दर्ज हुई लेकिन आज तक न जीरामनी की गवाही दर्ज हुई, न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और ना ही दोषियों पर कार्रवाई हुई।
लातेहार के कुकू गांव के अनिल सिंह को 23-25 फ़रवरी 2022 तक थाने में गैर-क़ानूनी तरीके से रख कर पुलिस द्वारा अमानवीय हिंसा की गयी थी। लम्बे संघर्ष के बाद दोषी पुलिस पर प्राथमिकी तो दर्ज हुई लेकिन आज तक उनके विरुद्ध न्यायसंगत कार्रवाई नहीं हुई है और न ही अनिल को मुआवज़ा मिला है।

राज्य में हिरासत में हिंसा व मौत के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं। इस पुलिसिया हिंसा के विरुद्ध प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जाती है। साथ ही हाल की अधिकांश सांप्रदायिक घटनाओं और आदिवासियों, दलितों व धार्मिक अल्पसंख्यकों पर भीड़ द्वारा हिंसा के मामलों में दोषियों को रोकने व उनपर कार्रवाई करने में स्थानीय पुलिस अक्षम रही है।
महासभा के प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि ऐसे मामलों में सरकारी वकील द्वारा अभी भी संवैधानिक न्याय के विपरीत कार्रवाई की जा रही है।
यह चंद उदाहरण राज्य की स्थिति को बयान करते हैं। यह दुःखद है कि आदिवासी-मूलवासी-वंचितों के जनसमर्थन से बनी हेमंत सोरेन सरकार इन मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है। आज तक स्थानीय सत्तारूढ़ विधायकों व खुद मुख्यमंत्री द्वारा एक बार भी इन मुद्दों के निराकरण के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दर्शायी गई है।

प्रतिनिधिमंडल ने गृह सचिव को दिए मांग पत्र में कहा है कि
• सभी मामलों में उचित कार्रवाई कर पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा व दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। सरकार सुनिश्चित करे कि पुलिस व सुरक्षा बलों की हिंसा के पीड़ितों द्वारा दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।
• नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। सिर्फ संदेह के आधार पर या केवल माओवादियों को महज़ खाना खिलाने पर निर्दोष आदिवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में न जोड़ा जाए। लोगों पर फर्ज़ी आरोपों में मामला दर्ज करना पूरी तरह से बंद हो। गैर क़ानूनी रूप से हिरासत में रखना पूर्णतः बंद हो।
• पांचवी अनुसूची क्षेत्र में शामिल किसी भी गांव के सीमाना (सीमा) में सर्च अभियान चलाने एवं कैंप स्थापित करने से पहले ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों की सहमति ली जाए। बिना ग्राम सभा की सहमति के लगाए गए सुरक्षा बलों के कैंप को हटाया जाए। स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए।
• राज्य में UAPA व राजद्रोह की धारा के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक लगे।
• सभी पत्थलगड़ी प्राथमिकियों में closure रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें बंद किया जाए। टाना भगत के विरुद्ध मामलों को वापस लिया जाए।
• हिरासत में मौत के मामलों में दोषी पुलिस अधिकारियों पर न्यायसंगत कार्रवाई की जाए, लंबित मामलों में चार्जशीट दाखिल कर जांच पूरी की जाए एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप प्रत्येक थाने में CCTV कैमरा लगाया जाए।
• अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हाल के धार्मिक उन्माद व हिंसा के लिए ज़िम्मेदार दोषियों पर कार्रवाई हो, इन्हें न रोकने के लिए दोषी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध भी कार्रवाई हो एवं हिंसा में मारे गए मृतक के परिवार को मुआवज़ा मिले। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय पुलिस संवैधानिक मूल्यों व कानून का पूर्ण पालन करते हुए किसी भी प्रकार के धार्मिक उन्माद और हिंसा के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे एवं सरकारी वकील द्वारा पीड़ितों के न्याय के लिए निष्पक्ष रूप से कार्य किया जाए।
• निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और इस आयोग की कार्यप्रणाली जनता के लिए सुलभ हो। महिलाओं के लिए एक ‘सिंगल विन्डो’ शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए जिससे महिलाएं किसी भी प्रकार के शोषण की स्थिति में न्यूनतम दस्तावेजों के साथ शिकायत दर्ज कर सकें।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)
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