अगर कांग्रेस को बीजेपी से मुकाबला करना है, तो सबसे पहले उसे इंडिया ब्लॉक को मजबूत करना होगा और उसके घटक दलों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा। यदि कांग्रेस यह करती है, तो निश्चित रूप से आगामी राजनीति इंडिया ब्लॉक की हो सकती है और कांग्रेस एक बार फिर सत्ता के करीब पहुँच सकती है। लेकिन कांग्रेस को एक और बड़ा निर्णय लेने की आवश्यकता होगी। उसे झारखंड के मुख्यमंत्री और देश में आदिवासियों के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हेमंत सोरेन और सीपीआई (माले) नेता दीपंकर भट्टाचार्य को इंडिया ब्लॉक में आगे बढ़ाने की जरूरत होगी।
देश के सियासी पटल पर ये दो ऐसे नेता हैं जो न केवल अपनी पार्टी को मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि जनता के बीच भी एक मजबूत आधार तैयार कर रहे हैं। इन दोनों बड़े नेताओं की अपनी ख़ास राजनीतिक ज़मीन तो है ही, जनता के बीच उनकी पहुँच भी प्रभावशाली है। इसके साथ ही वे राजनीति को अपने पक्ष में मोड़ने की काबिलियत भी रखते हैं। कांग्रेस को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
अभी तो बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर इंडिया बनाम एनडीए की लड़ाई जारी है, लेकिन इंडिया ब्लॉक की अगली चुनौती और भी बड़ी है। एनडीए के खिलाफ बिहार में इंडिया कितना माहौल खड़ा कर पाता है और चुनावी लड़ाई में इंडिया ब्लॉक कितना एकजुट रह पाता है, यह एक अलग चुनौती है। इंडिया ब्लॉक की सबसे बड़ी पार्टी बेशक कांग्रेस है और जाहिर है कि कांग्रेस बिहार में किसी भी सूरत में अपना आधार वोट तैयार करने के लिए संघर्ष कर रही है। पार्टी ने कई बड़े बदलाव भी किए हैं, कई नेताओं को मैदान में बड़ी जिम्मेदारी भी दी है और जातीय वोट को साधने की कोशिश भी की है, लेकिन अभी निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस की राजनीति बिहार में मजबूती से स्थापित हो गई है।
लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक अस्तित्व में है भी या नहीं, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। महाराष्ट्र चुनाव के समय थोड़ी हलचल इंडिया ब्लॉक में देखी गई थी, लेकिन जैसे ही वहां इंडिया की हार हुई, सब कुछ ठंडा पड़ गया। उसके बाद से लेकर आज तक इंडिया ब्लॉक की कोई बैठक नहीं हुई। बीच में कुछ खबरें आईं कि ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं। इस बारे में काफी चर्चा हुई, कई दलों के बयान भी आए, लेकिन फिर सब कुछ ठंडा पड़ गया।
बिहार का चुनाव तो इसी साल होना है। बिहार के चुनावी परिणाम कई बड़े उलटफेर कर सकते हैं। एक तो बिहार की सत्ता पर अब बीजेपी की नजर है। भले ही बीजेपी जदयू के साथ चुनाव लड़े और नीतीश कुमार की अगुवाई में ही सारे राजनीतिक खेल हों, लेकिन अब इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अगर एनडीए की जीत हो जाती है, तो नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे। इस बात को नीतीश भी जानते हैं। उन्हें सत्ता की कुर्सी पर बने रहने के लिए जदयू को बड़ी जीत दिलानी होगी और बीजेपी से अधिक सीटें जीतनी होंगी। लेकिन क्या यह संभव है? चुनावी रणनीतियों को छोड़ भी दिया जाए, तो क्या जदयू बीजेपी के चुनावी फंड के सामने टिक सकती है? बिहार की जनता अगर मुफ्त सुविधाओं और नकदी के फेर में पड़ जाए, तो बीजेपी सबको मात दे सकती है और नीतीश कुमार इस बात को जानते हैं।
एनडीए को चुनौती देने के लिए इंडिया ब्लॉक खड़ा है। यह बात और है कि इंडिया के भीतर भी कई तरह के राजनीतिक खेल हो रहे हैं। जैसा कि हमने बताया कि कांग्रेस अपने खोए आधार वोट को पाने की लड़ाई लड़ रही है और ऐसे में राजद, जो इंडिया ब्लॉक का सबसे बड़ा घटक दल है, उसकी परेशानी बढ़ रही है। राजद का सपना यही है कि तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनें। लेकिन राजद कांग्रेस के संघर्ष पर सवाल कैसे खड़ा कर सकता है? वर्तमान में राजद के पास जो वोट बैंक है, वह कभी कांग्रेस का ही था।
इंडिया ब्लॉक में नेताओं की कमी नहीं है। एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता हैं, जिनकी अपनी पहचान और सत्ता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक के लिए बेहतरीन संयोजक हो सकते हैं। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों अपने-अपने राज्य में मुख्यमंत्री भी हैं और उनकी राष्ट्रीय पहचान के साथ ही वे बीजेपी पर हमलावर भी रहे हैं। अगले साल 2026 में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं- असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी।
इन राज्यों को गौर से देखें, तो पता चलता है कि असम में लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस के बीच होगी, लेकिन यदि इंडिया ब्लॉक एकजुट रहता है, तो परिणाम अलग हो सकते हैं। बीजेपी को यहां बड़ी चुनौती दी जा सकती है। तमिलनाडु में भी कई नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। बीजेपी और अन्नाद्रमुक का गठजोड़ होता दिख रहा है। दूसरी तरफ, अभिनेता विजय को लेकर भी राजनीतिक हलचल है। स्टालिन और कांग्रेस एक साथ हैं और अभी इस गठबंधन को कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है।
केरल में वाम दलों की सरकार है। यदि वहां वाम दल हार भी जाते हैं, तो इंडिया ब्लॉक की ही जीत मानी जाएगी। पश्चिम बंगाल में बीजेपी पूरी ताकत झोंक रही है, लेकिन ममता बनर्जी की राजनीति के सामने अभी कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है। इन राज्यों में आदिवासी और मजदूर वर्ग का बड़ा जनसमूह है। ऐसे में, इंडिया ब्लॉक के दो बड़े नेताओं को प्रमुख जिम्मेदारी देकर संगठन को मजबूत किया जा सकता है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और माले नेता दीपंकर भट्टाचार्य को अगर इंडिया ब्लॉक में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाए, तो आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, युवाओं और महिलाओं को ये दोनों नेता अपने साथ जोड़ने की क्षमता रखते हैं।
हेमंत सोरेन झारखंड विधानसभा चुनावों में और मजबूत होकर उभरे हैं। भाजपा की चुनौती का सामना करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक के आदिवासी चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। उनमें राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने की क्षमता है। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का इंडिया ब्लॉक द्वारा उचित उपयोग किया जा सकता है।
सीपीआई (एमएल) के दीपंकर भट्टाचार्य एक ऐसे संभावित नेता के रूप में उभरे हैं, जिनकी प्रतिभा का इंडिया ब्लॉक के नेताओं द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग किया जा सकता है। उनके पास मजदूरों और आदिवासियों के बीच लंबे संघर्ष का अनुभव है। वे वास्तव में इंडिया ब्लॉक में सीताराम येचुरी की जगह भर सकते हैं, जो इस साल अगस्त में उनके अचानक निधन के बाद खाली हो गई है।
2027 में छह राज्यों-हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और गोवा में चुनाव होंगे। ये आदिवासी और कामगार बहुल राज्य हैं, जहां हेमंत और दीपंकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। 2028 में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक और मिजोरम में चुनाव होंगे। इनमें से अधिकतर राज्य आदिवासी बहुल हैं, जहां हेमंत सोरेन की बड़ी भूमिका हो सकती है।
इसलिए, सबसे जरूरी यह है कि इंडिया ब्लॉक को नए सिरे से मजबूत किया जाए और किसी सक्षम नेता को संयोजक बनाया जाए। यदि ऐसा होता है, तो निश्चित रूप से इंडिया ब्लॉक और कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)