दोहरे मापदंडों पर आधारित न्यायिक प्रक्रिया 

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यूनान के विश्वविख्यात दार्शनिक सुकरात को ईसा पूर्व 399 में परंपरागत रूप से मान्य देवताओं में विश्वास न कर उनकी उपेक्षा करने, युवा वर्ग को भ्रमित करने तथा देशद्रोह के आरोप में 70 साल की आयु में जहर पिलाकर मार दिया गया था।

पाखंड तथा अंधविश्वास के विरोध और सत्य का प्रचार करने के लिए बहुसंख्यक समाज के दबाव में ईसा मसीह को सूली पर लटका दिया गया था।

सन् 1548 में इटली में जन्मे जर्दानो ब्रूनो को सरेआम रोम के चौराहे पर भारी भीड़ के सामने जिंदा जलाया गया था क्योंकि उसने चर्च द्वारा फैलाए गये झूठ के विरुद्ध आवाज उठाई थी जिसके लिए चर्च उसे ऐसी सजा देना चाहता था।

चर्च के झूठ व पाखंड को मानने से इंकार करने वाले वैज्ञानिक गैलीलियो गैलीली को माफ़ी मांगने पर मजबूर करने के बाद भी नज़रबंद कर दिया गया और फिर 8 जनवरी, 1642 को कैद में रहते हुए ही गैलीलियो की मृत्‍यु हो गई।

पूरी दुनिया में हाथ में तराजू उठाये और आंखों पर पट्टी बांध कर खड़ी एक स्त्री को न्याय का प्रतीक चिह्न इसलिए माना जाता है कि न्याय करते हुए उसकी बंद आंखें किसी को देख नहीं सकतीं, इसलिए उसके लिए सभी बराबर होते हैं। लेकिन भारत में पिछले कुछ समय से पक्षपात रहित न्याय की अवधारणा और आवश्यकता कमजोर हुई है। इससे ऐसा लगता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था भी उन न्यायाधीशों में शामिल हो गई है जिन्होंने सच को स्वीकार करने की बजाय भीड़ के दबाव में आकर सुकरात, ईसा मसीह, जर्दानो ब्रूनो, गैलीलियो गैलीली आदि को दंडित किया।

ऐतिहासिक प्रमाणों तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सटीक पुष्टि नहीं करने के बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट ने बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक आस्था को ध्यान में रखकर रामजन्म भूमि पर आदेश जारी कर दिया।

मामले में अगस्त 2002 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रस्ताव दिया था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा विवादित स्थल की खुदाई की जाए। हाईकोर्ट ने प्रस्ताव में यह भी कहा कि खुदाई से पहले एएसआई ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जमीन के भीतर मौजूद वस्तुओं की जानकारी देने वाला उपकरण) या भू-रेडियोलॉजी प्रणाली का उपयोग करके विवादित स्थल का सर्वेक्षण करे।

एएसआई ने जीपीआर सर्वेक्षण कर अपनी जो रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी, उसमें गुप्त, उत्तर गुप्त, कुषाण और शुंग कालीन कुछ चीजें मिलने का उल्लेख तो था लेकिन उनसे किसी भी तरह यह सिद्ध नहीं होता कि विवादास्पद स्थान पर ही राम का जन्म हुआ था। 

लेकिन अभी-अभी पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि 29 फोन में से 5 में मैलवेयर तो मिला लेकिन वह जासूसी पेगासस के जरिए की गई इसके सबूत नहीं हैं। अब यहां पर न्यायालय अकाट्य साक्ष्यों की जरूरत बताता है जिन्हें अयोध्या मामले में आवश्यक नहीं समझा गया।

फ़रवरी 2002 में गोधरा (गुजरात) में साबरमती एक्सप्रेस में लगाई गई आग में 59 कारसेवकों की मौत के बाद पूरे गुजरात में भड़के साम्प्रदायिक दंगों में 1,044 लोग मारे गए थे और अनेक लोग गुम हो गए थे।

उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने, यह कहते हुए कि इतना लंबा समय बीतने के बाद इन पर सुनवाई का कोई मतलब नहीं है, 9 में से 8 केसों को बंद कर दिया है।

इसके साथ ही कुछ सवाल उठते हैं कि क्या सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन 1984 के सिख विरोधी दंगों और 1987 से चल रही बोफोर्स तोप सौदे में हुई कथित घपलेबाजी की सुनवाई भी इसी वजह से बंद कर दी जायेगी कि वे गोधरा कांड से भी पहले क्रमशः 38 और 35 साल से चल रहे हैं? जबकि भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने में दिसम्बर 1984 में हुए बहुचर्चित गैस कांड की लंबित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर से हो रही है। 

क्या ऐसे दोहरे मापदंडों पर आधारित न्यायिक प्रक्रिया सत्य की तुला पर खरी उतरती है जबकि आधुनिक काल में कहा जाता है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए बल्कि उसे होता हुआ दिखाई भी देना चाहिए ताकि जनमानस का उस पर भरोसा बना रहे।

(श्याम सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल नैनीताल में रहते हैं।)

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