यूपी में खड़े-खड़े लुट जा रहे हैं किसान

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इसी महीने गांव से लौटा हूं। चाचा बता रहे थे कि इस बार धान 900 रुपए कुंटल बेचा है। और ये सिर्फ चाचा का हाल नहीं है, ये गांव भर का यही हाल है। गांव के लगभग अस्सी फीसद किसानों ने अपना धान लगभग इसी रेट में बेचा है। चाचा ने बताया कि जिनका गेहूं से पैसा नहीं निकला था, उनके तो घर के सामान बिकने की नौबत आ गई है। इन दिनों भारत भर में धान खरीद जारी है।
इस बार उत्तर प्रदेश में लगभग 6.5 लाख हेक्टेयर धान बैठाया गया है। हमारे यहां एक बीघे की जोत में तकरीबन चार से पांच कुंटल के बीच सामान्य धान होता है तो छह से सात कुंटल के बीच हाइब्रिड। मेरे एक बड़े भाई बीज, दवा की दुकान करते हैं। वहां से पता चला कि इस वक्त एक बीघे धान में तकरीबन साढ़े 13 हजार रुपये का खर्च आता है।

बीघे भर में अकेले पांच हजार रुपए का तो पानी ही लग जाता है, खाद, जिंक, दवा, जुताई, कटाई, मड़ाई सहित बीज के अलग। धान के एक कुंटल का नौ सौ रुपया मिलना किसानों के लिए जानलेवा है। अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं है, जब उत्तर प्रदेश के किसान आत्महत्या करने में विदर्भ से होड़ लेते नजर आएंगे।

बनिए को ही क्यों बेचा, जैसे सवाल के जवाब में चाचा सहित बाकी गांव वालों का कहना था कि क्रय केंद्र में जितने कागज मांगते हैं, उतने किसी के पास नहीं रहते। फिर बीघे भर में ये लोग पांच कुंटल से ज्यादा नहीं खरीदते। उन्होंने बताया कि पहले आसपास के दस-पंद्रह किलोमीटर में मौजूद दो बड़ी बाजारों में दो क्रय केंद्र होते थे, इस बार एक ही कर दिया है। प्रदेश सरकार ने इस बार प्रदेश भर में चार हजार केंद्र खोले हैं। अधिकतर जगहों पर तो इनके बंद होने की और क्रय केंद्र प्रभारियों की बिचौलियों से मिलीभगत की शिकायतें हैं। कहीं-कहीं प्रशासन इन पर कार्रवाई कर रहा है, मगर इनका नतीजा अभी तक सिफर ही है। सरकार 1865 के आसपास दे रही है, बनिए 800 से 1100 के बीच ही दे रहे हैं और बिचौलियों के हाथ 1400-1500 रुपए में निकल रहा है। इस वजह से लगभग हर जिले में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।

वहीं बटाईदारों और हाइब्रिड धान बोने वालों की अलग मुसीबतें हैं। दो साल पहले तक तो बटाईदारों को यह हक ही नहीं था कि वे अपनी फसल क्रय केंद्रों पर बेच सकें। पिछले साल से उत्तर प्रदेश में सरकार ने बटाईदारों को भी शामिल करके बड़ी राहत तो दी है, लेकिन यहां भी समस्या कागजों वाली ही है। नियम है कि खेत मालिक के साथ की गई डीड हो, और डीड करने वाले एक ही गांव के हों। किसान इसे पूरा ही नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि जिनसे डीड करनी होती है, वे शहर पलायन कर चुके हैं। दूसरे, बटाई पर खेत लेने वाले किसान अक्सर आसपास के दो से तीन गावों में खेत बंटाई पर लेते हैं। हाईब्रिड धान की मुसीबत तो और भी अनोखी है। क्रय केंद्रों पर 35 फीसद से ज्यादा हाइब्रिड धान खरीदा ही नहीं जाता, जबकि आजकल सब लोग हाइब्रिड बैठाते हैं।

पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के उधम सिंह नगर के कुछ किसानों ने उत्तराखंड के एक क्रय केंद्र में अपना धान बेच दिया। उत्तर प्रदेश शासन मामले की ‘जांच’ कर रहा है। बिहार के किसानों का धान पंजाब में बेचने के लिए ‘तस्करी’ में पकड़ा और पाबंद किया जा रहा है। हरियाणा मंडी में धान बेचने गए उत्तर प्रदेश के किसानों को तो वहां की सरकार ने मार-मारकर भगाया। किसान को अगर अपनी उपज बेचनी है तो उसे अपने ही क्रय केंद्र में जाना होगा, कागज दिखाने होंगे। उत्पादन भी सरकार के नियमानुसार 5 कुंटल के अंदर ही हो। यही सरकार का नियम है। इतना नहीं होगा, तो किसी भी क्रय केंद्र पर किसान का धान नहीं खरीदा जाएगा। सुना है कि कोई कृषि कानून बना है, जिसके तहत किसान अपनी उपज कहीं भी बेच पाएंगे?

(राहुल पांडेय ने यह लेख नवभारत टाइम्स में लिखा है।)

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