नई दिल्ली। 21 अप्रैल की शाम को प्रेस क्लब में डाटा पर्सनल प्रोटेक्शन एक्ट पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें सूचना के अधिकार की प्रसिद्ध कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज समेत कई कार्यकर्ताओं, वकीलों और वरिष्ठ पत्रकारों ने गंभीर चेतावनी दी कि अगर ये कानून लागू हो गए तो देश के पत्रकार कोई खबर ही नहीं दे पाएंगे और अगर उन्होंने इस एक्ट का उल्लंघन किया तो उन पर ढाई सौ करोड़ से लेकर 500 करोड़ रुपए तक हर्जाना देना होगा।
मुख्य वक्ता अंजलि भारद्वाज ने बताया कि सरकार ने 2023 में डाटा प्रोटेक्शन अधिनियम बनाया था और उसमें यह आश्वासन दिया गया था कि यह अधिनियम पत्रकारों पर लागू नहीं होगा। इसमें पत्रकारों को छूट दी जाएगी जैसा कि दुनिया के कई देशों में डाटा प्रोटेक्शन एक्ट में छूट दी गई है लेकिन पिछले दिनों जब इस एक्ट से संबंधित एक ड्राफ्ट नियमावली सरकार ने सार्वजनिक की और लोगों की प्रतिक्रिया मांगी ताकि अगर इस पर किसी की आपत्तियां हों तो वह अपनी आपत्तियां व्यक्त करे।
उस ड्राफ्ट नियमावली को देखने से पता चला कि यह कानून तो पत्रकारों पर भी लागू होगा और अगर किसी पत्रकार ने इसका उल्लंघन किया तो उसे कम से कम ढाई सौ करोड़ रुपए का हर्जाना देना होगा। जाहिर है सरकार इस एक्ट की आड़ में देश के पत्रकारों को अपने अंकुश में लेना चाहती है ताकि वे सरकार विरोधी खबर न दे सकें।
उन्होंने यह भी कहा कि सवाल केवल भाजपा सरकार का नहीं है बल्कि जो कोई भी सरकार केंद्र में आएगी वह इस एक्ट के तहत पत्रकारों को प्रताड़ित करेगी और देश में किसी भ्रष्टाचार और किसी गड़बड़ी को पत्रकार उजागर नहीं कर पाएंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि इस डाटा प्रोटेक्शन एक्ट के जरिए सरकार आपकी निजता को भी भंग कर सकती है और आपकी ईमेल व्हाट्सएप लैपटॉप से कोई डाटा ले सकती है। इस तरह आपकी निजता भंग हो सकती है।
उन्होंने बताया कि इस डाटा प्रोटेक्शन एक्ट के जरिए 2005 में बने सूचना के अधिकार कानून को भी कमजोर किया जाएगा क्योंकि सरकार अब निजता के नाम पर कोई जानकारी या आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं कराएगी। मसलन अगर आप बैंक के जरिए यह जानना चाहेंगे कि किन लोगों के लोन माफ कर दिए गए या किन पर इतनी राशि बकाया है तो आपको निजता की रक्षा के नाम पर आंकड़े नहीं दिए जाएंगे। अगर आप चाहेंगे कि कोई पुल गिर गया हो और यह पता लगाया जाए कि उसे बनाने में किस ठेकेदार का हाथ था या अधिकारी ने उसे मंजूर किया था तो सरकार निजता की रक्षा के नाम पर आपको उनके नाम नहीं सार्वजनिक करेगी।
भारद्वाज का यह भी कहना था कि इस एक्ट के तहत अगर कोई पत्रकार किसी व्यक्ति से कोई डाटा लेता है सूचना हासिल करता है तो पहले उसे उस व्यक्ति से एक लिखित अनुमति लेनी पड़ेगी। एक फार्म पर उसे हस्ताक्षर करना पड़ेगा और उसके बाद ही वह पत्रकार किसी अधिकारी या व्यक्ति से कोई सूचना या डाटा ले पाएगा। अगर इस नियम का वह उल्लंघन करता है तो कोई व्यक्ति उसे पत्रकार की सेंट्रल डाटा बोर्ड में शिकायत कर सकता है और सरकार उसके आधार पर कार्रवाई करेगी। इस डाटा कंट्रोल बोर्ड में सारे सदस्य सरकार के प्रतिनिधि होंगे और यह बोर्ड एक तरफ से सरकार के विभाग की तरह काम करेगा। जाहिर है यह बोर्ड सरकार के इशारे पर उस पत्रकार को प्रताड़ित करेगा जैसे ईडी करती है और उसकी शिकायत नहीं सुनी जाएगी। इसलिए डाटा प्रोटेक्शन एक्ट बहुत ही खतरनाक कानून है। यह एक तरह का काला कानून है।
उस संगोष्ठी में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अलावा भारतीय महिला प्रेस एडिटर्स गिल्ड दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और अन्य संस्थाओं के भी सदस्यों आदि ने शिरकत की और गहरी चिंता व्यक्त की।
एडिटर्स गिल्ड की ओर से कहा गया कि गिल्ड ने कुछ दिन पहले सूचना प्रसारण तथा इलेक्ट्रॉनिक मंत्री अश्विनी वैष्णव को एक पत्र भी लिखा है और इस डाटा प्रोटेक्शन एक्ट पर आपत्ति भी की है। संगोष्ठी में उस पत्र को पढ़कर सुनाया भी गया।
अंत में यह फैसला हुआ कि पत्रकार सूचना प्रसारण एवं इलेक्ट्रॉनिक मंत्री अश्विनी वैष्णव से मिलकर पहले अपनी आपत्तियां दर्ज करेंगे और अगर सरकार ने उनकी शिकायतों का निराकरण नहीं किया तो वह इस कानून को अदालत में चुनौती भी देंगे क्योंकि यह कानून पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। संविधान द्वारा मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और राइट टू वर्क का भी उल्लंघन करता है क्योंकि अगर ऐसा नियम बना तो कोई पत्रकार काम ही नहीं कर सकता है।
वह किसी से इंटरव्यू लेते हुए या कोई उत्तर लेते हुए उससे फार्म पर कंसेंट कैसे लेगा और क्या कोई अधिकारी लिखित रूप से कंसेंट देकर उत्तर देंगे। जाहिर है पत्रकारों को कोई सूचना मिली नहीं पाएगी और उधर राइट टू इनफार्मेशन के माध्यम से भी सूचना नहीं मिल पाएगी तब तो देश में मीडिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। इसलिए खतरनाक कानून को वापस लिया जाना जरूरी है।
संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुराता ने कहा कि पुलिस वैसे ही किसी मामले या घटना में पत्रकारों को उनके कैमरे लैपटॉप और मोबाइल जब्त कर लेती है तथा उसे लौटाती भी नहीं है। ऐसे में पत्रकारों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है ।
उन्होंने बताया कि करीब 400 लोगों के मोबाइल लैपटॉप आदि पुलिस ने जब्त कर रखा है और अभी तक लौटाया नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने गृह मंत्रालय को निर्देश भी दिया कि वह इस बारे में कोई नियम बनाए ताकि पुलिस जब लैपटॉप और मोबाइल आदि जब्त करे तो उसे एक निश्चित समय सीमा के तहत वापस किया जाए लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ है। यह बहुत ही खतरनाक मामला है। इसलिए हम पत्रकारों को इसका विरोध करना ही चाहिए क्योंकि ऐसे में तो पत्रकार अपना काम ही नहीं कर पाएंगे।
(वरिष्ठ पत्रकार विमल कुमार का रिपोर्ट।)
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