सरकार बेपरवाह, मौसम मेहरबानः घुटन ने फिर दिल्ली को घेरा

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नई दिल्ली। पिछले चार दिनों से दिल्ली की सुबह पर ठंड की दस्तक के साथ-साथ धुंध का असर भी बढ़ने लगा है। हवा जैसे ही ठहर रही है, धुंए का असर साफ दिखने लगा रहा है और दिन में ही सूरज की रोशनी पर ग्रहण लगने लग रहा है। शनिवार और रविवार को दिल्ली की हवा की गुणवत्ता सूचकांक 260 से ऊपर जा रहा था। दिल्ली के कुछ स्थलों पर यह 350 पार कर गया था। आज हवा के बहाव ने स्थिति को थोड़ा बेहतर बना दिया है। आसमान सुबह जितनी धुंध लिए हुए था, दोपहर होते सूरज की रोशनी में चमक आ चुकी थी। आमतौर पर दिल्ली में अक्टूबर के दूसरे हफ्ते तक आते-आते ठंड की दस्तक बढ़ जाती है और हवा का बहाव एकदम ही कम हो जाता है।

पिछले छह-सात सालों से दिल्ली में अक्टूबर और नवम्बर का महीना एक जहरीली हवा से आक्रांत हो जाता है। प्रदूषण पर लंबे-लंबे लेख, राजनीतिक नेताओं द्वारा बयानबाजियां, कोर्ट के आदेश, एनजीटी द्वारा फटकार और एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे अभियानों से अखबार भर उठता है। नवम्बर के अंत तक यह सारा बवाल खत्म हो जाता है। यह अब दशहरा और दीपावली की तरह ही हर बार की तरह आने वाला एक अवसर में बदल गया लगता है।

इस बार मौसम मेहरबान है। अलनीनो का असर बारिश को औसत से कम और गर्मी को औसत से ऊपर बनाकर रखा। बारिश का असर अगस्त-सितम्बर में ठीक रहा। यही कारण रहा कि मानसूनी हवाओं का असर अभी तक बना रहा। पश्चिमी विक्षोभ लगातार सक्रिय है, इससे भी हवा का प्रभाव मैदानी इलाकों में बना हुआ है। इससे मैदानी इलाकों में ठंड का अहसास भी बढ़ा है और आसमान भी साफ दिख रहा है। लेकिन, इसका अर्थ ये नहीं है कि ठंड का प्रकोप ज्यादा रहेगा।

मौसम विज्ञानी उम्मीद जता रहे हैं कि इस बार ठंड के मौसम की अवधि कम रहेगी। एकदम से ठंड के बाद गर्मी आ जाने की संभावना रहेगी। इसका सीधा असर मैदानी इलाकों में गेहूं की खेती पर पड़ेगा। लेकिन, शहरों का आसमान अपेक्षाकृत साफ बने रहने की उम्मीद भी जगाता है।

बहरहाल, यदि दिल्ली में इन हवाओं का बहाव रुकेगा, तब हवा की गुणवत्ता दमघोंटू हो जाएगी। और, इसकी तीव्रता पिछले साल के मुकाबले ज्यादा भी होगी। इसका एक बड़ा कारण केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से जो आवश्यक कदम उठाना चाहिए था, वह नहीं उठाया गया और पिछले साल जिन कदमों को उठाया गया, उसका इस बार सक्रियता कम दिख रही है।

पिछले दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब और दिल्ली सरकार के अधिकारियों को नोटिस जारी किया। ग्रैप के अनुसार प्रदूषण रोकने के लिए जो कदम उठाने चाहिए थे, उसके लिए ये सरकारें जरूरी कदम नहीं उठा रही हैं। एनजीटी ने ‘द हिंदू’ अखबार द्वारा पंजाब में पराली जलाने की पिछले साल की तुलना की घटना में 60 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए इस संदर्भ में उठाये गये कदम की रिपोर्ट मांगी है।

इसी तरह से दिल्ली सरकार, जो खुद को प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने में अगुआ मानती है। उसने 22.9 करोड़ रुपये की लागत वाले स्मॉग टॉवर लगवाया था। एक तरफ दिल्ली का आसमान प्रदूषण से भर रहा है वहीं दूसरी ओर ये स्मॉग टॉवर पिछले सात महीने से बंद पड़े हुए हैं।

दिल्ली में इस समय का आसमान बेहद खराब और खतरनाक तरीके से खराब होने की ओर बढ़ रहा है, सरकारों की इस तरह की बेपरवाही खतरनाक है। 28 जनवरी, 2023 को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण से निपटने के लिए 2,388 करोड़ रुपये की योजना को पेश किया था। इसमें मुख्यतः सड़क पर पानी का छिड़काव और रोड की सफाई मुख्य था। इस काम को पीडब्ल्यूडी को सौंपा जाना था। एमसीडी, जिसके अंतर्गत 1400 किमी रोड आती है, ने इसका विरोध किया। ज्ञात हो कि इस पर भाजपा का अभी प्रभुत्व है। इसी तरह दिल्ली में जंगल क्षेत्र बढ़ाने की योजना भी बनाई गई लेकिन सच्चाई यही है पिछले दस सालों में कुल जंगल क्षेत्र में कमी ही आई है।

दिल्ली में चाहे वह यमुना की सफाई हो, प्रदूषण से निपटने का मसला हो या कैबिनेट द्वारा पारित इस तरह की योजनाएं हों; यह कई सारी प्रशासनिक व्यवस्था से गुजरते हुए उलझता हुआ दिखता है। इसमें केंद्र बनाम राज्य के साथ साथ कैबिनेट बनाम एमसीडी का मसला भी सामने आ जाता है। इसी के साथ ही, एनसीआर की संकल्पना एक ढीली-ढाली व्यवस्था है जिसकी वजह से एक एकीकृत योजना बनते हुए नहीं दिखती है।

लेकिन, हाल ही में जब केवल दिल्ली के प्रदूषण के आंकड़े सामने आये, तब उससे निपटने लिए जितना यहां की राज्य और केंद्र सरकार को कदम उठाना चाहिए, उसमें भी भारी कमी दिखती है। आमतौर पर दिल्ली में खराब हवा का सारा दोष पंजाब और हरियाणा के किसानों पर थोप दिया जाता है कि उनके पराली जलाने से ही यहां का मामला खराब हो रहा है। 22 अक्टूबर, 2023 को अभिनय हरगोबिंद की इंडियन एक्सप्रेस रिपोर्ट बताती है कि 2010-2020 के आंकड़ों में परिवहन से पैदा होने वाला प्रदूषण बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है।

वहीं सड़क और हवा में उठी धूल की भूमिका इससे भी ज्यादा है। इसमें निश्चित ही निर्माण कार्य और परिवहन दोनों की भूमिका जुड़ी हुई है। पिछले दस सालों में उद्योग से पैदा होने वाला प्रदूषण इसके मुकाबले कम तो है लेकिन लगातार बढ़ते हुए ग्राफ के साथ है। घरेलू कारण में वृद्धि है लेकिन अन्य के मुकाबले काफी कम है।(ये आंकड़े सफर, दिल्ली की विज्ञान डेटा जर्नल पर आधारित हैं)।

पराली जलाने से दिल्ली के वायु प्रदूषण में अभी तक जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसमें उनकी भूमिका 10 प्रतिशत से लेकर 25 प्रतिशत तक दिखती है। यदि इसे ज्यादा से ज्यादा 30 भी मान लिया जाये, तब भी प्रदूषण की बढ़ती हुई वजह पराली कम, दिल्ली की अपनी जीवन शैली ज्यादा दिखती है। आमतौर पर दिल्ली में बारिश की कमी और हवा के बहाव के ठहराव से बहुत तेजी से प्रदूषण का प्रकोप बढ़ता है। उस समय पराली की समस्या नहीं होती है। पिछले दस सालों के आंकड़े दिखा रहे हैं कि प्रदूषण से भरे दिनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसमें एक या दो साल थोड़ा बेहतर आंकड़े दिखाते हैं, लेकिन अति प्रदूषण के दिनों की संख्या बढ़ती हुई दिख रही है।

ऐसा नहीं है कि पराली एक समस्या नहीं है। यह खुद पंजाब, हरियाणा के शहरों के लिए भी समस्या है। लेकिन, दिल्ली के लिए एक बड़ी समस्या राज्य की अपनी परिवहन, विकास और आर्थिक गतिविधियां हैं जिस पर नियंत्रण बनाकर प्रदूषण की समस्या को हल करने की ओर ले जाया जा सकता है। अभी तक विभिन्न स्रोतों के आंकड़े बता रहे हैं कि दिल्ली में पराली से होने वाला प्रदूषण का प्रतिशत 10 से 15 प्रतिशत के बीच ही है। वैसे भी दिल्ली के प्रदूषण के किसी भी चार्ट को देखें, उसमें दिल्ली में बड़े पार्टीकल पीएम 10 का औसत छोटे कण पीएम 2.5 की अपेक्षा अधिक है।

छोटे कणों में बढ़ोत्तरी मुख्यतः पराली जलाने, पटाखा जलाने, कूड़ा जलाने आदि से होता है। इसके बढ़ने के साथ ही आसमान में धुंए वाला धुंध भी दिखने लगता है। लेकिन, दोनों ही तरह प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। खासकर, बड़े कण फेफड़ों में जाकर बैठते हैं और उन्हें सांस से बाहर आना मुश्किल होता है। ये विभिन्न तरह की गंभीर बीमारियों का कारण बन जाते हैं।

ग्रैप एक ऐसी व्यवस्था है, जो प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न तरह के उपायों के लिए बनाया गया। यह प्रदूषण की स्थितियों से निपटने के लिए तो है लेकिन प्रदूषण को खत्म करने का उपाय नहीं है। ये तात्कालिक राहत पहुंचाते हैं। मौसम और पर्यावरण राज्य और केंद्र की सीमाओं से निर्धारित नहीं होते। पूरे दिल्ली एनसीआर में निर्माण कार्य, परिवहन और उद्योग का जो सिलसिला है, उसे पर्यावरण के अनुकूल कैसे बनाया जाये यह कोई बड़ी चुनौती नहीं है।

जैसे इसके उपायों पर काम शुरू होता है, लागत बढ़ना मुनाफा कमाने के रास्ते में एक अवरोध की तरह खड़ा हो जाता है। यह एक राष्ट्रीय समस्या की तरह है। भारत में पूंजी निवेश के लिए एक बड़ा अवरोध ‘ग्रीन ट्रिब्यूनल’ को माना जाता है और विभिन्न सरकारें इस अवरोध को हटाने के लिए तरह-तरह क प्रावधान बनाते हुए विकास को पूंजी समर्थित बनाने का काम किया है।

देखते-देखते चाहे वे हमारे जंगल हों, पहाड़ हों, नदियां और झीलें हों या खेती की जमीनें हों, उजाड़ होती जा रही हैं। शहर इसी उजाड़ और बसावट की एक संक्रमण क्षेत्र की तरह दिखते हैं और यहां भी विकास और पूंजी के वही रिश्ते दिखते हैं। एक अराजक विकास और मुनाफा कमाने की हवस अब हवा को भी जहरीला बना रहा।

पर्यावरण एक नीतिगत मसला है और इसमें निश्चय ही केंद्र सरकार की एक बड़ी भूमिका है। इस अक्टूबर के पहले हफ्ते में अखबार में खबर छपने लगी थी कि दिल्ली के प्रदूषण को रोकने के लिए सीधे पीएमओ ऑफिस सक्रिय हो रहा है और हालात पर नजर रख रहा है। इस खबर के छपने के पीछे निश्चित ही एक कारण भी है। अब दिल्ली पर असल प्रभावी भूमिका तो अब केंद्र सरकार के पास ही चली गई है।

लेकिन, जैसे-जैसे अक्टूबर का महीना बढ़ा वैसे-वैसे पीएमओ ऑफिस वाली खबर भी गायब होती चली गई। दिल्ली के गवर्नर का भी बयान जितना यमुना की सफाई को लेकर दिखता था, उस अनुपात में तो बेहद कम ही बयान देखने को मिले हैं। यहां यह भी देखना जरूरी है कि दिल्ली और पंजाब दोनों ही जगह पर आप पार्टी की सरकार है। पराली के संदर्भ में जो परिणाम आये हैं उसे देखते हुए नहीं लगता कि इन दोनों राज्य सरकारों के बीच कोई संवाद भी हो रहा है।

केंद्र बनाम राज्य, राज्य बनाम राज्य और राज्य बनाम एमसीडी जैसे कई संस्तरों में प्रदूषण जैसी समस्या, जो सीधे सांस लेने और काम करने की स्थितियों से जुड़ी हुई है, फंसी हुई लगती है जहां से फिलहाल तत्काल राहत की संभावना और दूरगामी हल की उम्मीद एक बड़ी जटिल गुत्थी जैसी दिखती है।

जिस समय गुलाबी ठंड का आगाज होता है, त्यौहारों का उल्लास लोगों के चेहरे पर दिखता है, खेत में बुवाई शुरू हो जाती है और कुछ फसल के अखुएं आने लगते हैं, उस समय आसमान में प्रदूषण की कालिमा तैर रही हो और सांस घुट रही हो, तब आप उतना उन्मुक्त नहीं रह सकते जितना हमारे लिए इन मौसमों को हमारे पुरनियों बनाया था। खुशी के लिए जरूरी है कि आसमान, हवा और सूरज भी आपके साथ अपने जैसा हो। उम्मीद करिए, इस दिपावली हम दिल्ली की एक अच्छी हवा में सांस लें।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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