प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लोकतंत्र का मतलब किसी भी तरह चुनाव जीतना भर है। इसके अलावा अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर दूसरे दलों को डराना, उन्हें तोड़ना और उनकी निर्वाचित सरकारों को गिरा कर अपनी पार्टी की सरकार बनाना भी उनकी लोकतंत्र की परिभाषा में आता है। उनके लोकतंत्र में विपक्ष के लिए कोई सम्मानजनक जगह नहीं है, बल्कि वे विपक्ष को अपना दुश्मन मानते हैं और उससे संवाद करना या उसे भरोसे में लेकर कोई काम करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
कहा जा सकता है कि वे ‘विपक्ष मुक्त लोकतंत्र’ चाहते हैं। इस सिलसिले में उन्होंने लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था को अपनी निजी जागीर या यूं कहें कि अपने रसोई घर में तब्दील कर दिया है, जहां वही पकता है, जो वे चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने इसी महीने संसद का विशेष सत्र बुलाने का फैसला किया है लेकिन इस विशेष सत्र का एजेंडा गोपनीय रखा है। देश के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में यह अभूतपूर्व स्थिति है।
स्थापित और मान्य संसदीय परंपराओं का तकाजा तो यह था कि संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा के साथ ही सरकार की ओर से यह भी बताया जाता कि यह विशेष सत्र क्यों बुलाया जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की संसदीय नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख इस प्रस्तावित विशेष सत्र का एजेंडा जाना चाहा तो उनके पत्र के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री ने टका सा जवाब दे दिया कि सब कुछ परंपरा और नियम के मुताबिक हो रहा है।
स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का तकाजा तो यह होता है कि ऐसे पत्रों का जवाब सीधे प्रधानमंत्री की तरफ से ही आए। लेकिन नरेंद्र मोदी की राजनीति में ऐसी लोकतांत्रिक परिपाटियों की कोई जगह नहीं है, इसलिए उन्होंने सोनिया गांधी के पत्र का जवाब खुद न देते हुए अपने संसदीय कार्य मंत्री से उसका जवाब दिलवाया। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने अपने जवाब में कहा कि सरकार हर बार सत्र से पहले सभी दलों की बैठक बुलाती है, जिसमें एजेंडा बताया जाता है। इस बार भी ऐसा ही किया जाएगा।
हालांकि जब नियमित सत्र होते हैं तब के लिए तो यह बात ठीक है कि सरकार दो दिन पहले एजेंडा बताती है। लेकिन जब विशेष सत्र बुलाया गया है तो जाहिर है कि उसमें रूटीन के काम नहीं होने हैं। किसी खास मकसद से सत्र बुलाया गया है तो उसका एजेंडा पहले बताया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार ने हर बात को गोपनीय रखने और एकदम से लोगों को चौंका देने के अपवाद को अपने कामकाज का नियम बना लिया है।
बहरहाल संसदीय कार्यमंत्री ने सोनिया गांधी को न सिर्फ टरकाने वाला जवाब दिया बल्कि उन्होंने और भाजपा प्रवक्ताओं ने टीवी चैनलों पर सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बेहद तल्ख और अपमानजनक प्रतिक्रिया देते हुए आरोपों की झड़ी लगा दी। उन्हें ‘लोकतंत्र के मंदिर संसद को सियासी रंग’ नहीं देने की नसीहत भी दी गई है। बहरहाल, सरकार भले ही सोनिया गांधी के सुझावों को गंभीरता से ले या न ले, यह उसका विशेषाधिकार है, लेकिन संसद के विशेष सत्र का एजेंडा तो उसे देश को बताना ही चाहिए।
पारदर्शिता लोकतंत्र का बुनियादी तकाजा है, जबकि गुपचुप फैसले लेना और उन्हें लागू कर देना स्पष्ट तौर पर लोकतांत्रिक भावना और व्यवस्था पर प्रहार के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता है। यही वह कसौटी है जो लोकतंत्र और राजतंत्र या कि तानाशाही का अंतर बताती है। संसद के विशेष सत्र को लेकर सरकार जो गोपनीयता बरत रही है, वह अभूतपूर्व है। जिन लोगों को इस सत्र में भाग लेना है, उनमें विपक्षी सांसद भी हैं जिन्हें जनता ने ही चुना है। किसी संस्था की एक साधारण बैठक के पहले भी उसके भागीदार यह जानना चाहते हैं कि बैठक किसलिए बुलाई गई है। ऐसे में सांसदों का एजेंडा पूछना पूरी तरह जायज और विवेकसम्मत है।
लेकिन सरकार शायद विपक्ष को संसदीय प्रक्रिया में वैध हितधारक नहीं मानती। उसे बदनाम और लांछित करके अपने समर्थक तबकों की निगाह में गिराने की सरकार की कोशिशें अब खासी जानी-पहचानी हो चुकी है। सवाल पूछने पर उलजुलूल सवालों से जवाबी हमला बोलने की उसकी रणनीति भी नई नहीं है। मोदी सरकार के इन तौर-तरीकों ने भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान एवं भविष्य दोनों को अनिश्चय में डाल दिया है और कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
बहरहाल, सवाल है कि संसद के जिस विशेष सत्र के एजेंडा को सरकार गोपनीय रखे हुए है, उसमें वह क्या कर सकती है? सरकार और सत्तारूढ़ दल के नेताओं की भाव-भंगिमा देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार की ओर से तीन-चार प्रस्ताव पेश किए जा सकते हैं। सरकार चाहेगी कि उन प्रस्तावों पर चर्चा हो लेकिन अगर चर्चा नहीं भी होती है तो उन्हें ध्वनिमत से पारित पास कराया जाएगा।
पहला प्रस्ताव जी-20 के सफल आयोजन के लिए प्रधानमंत्री मोदी के अभिनंदन का हो सकता है। दूसरा प्रस्ताव चंद्रयान-3 की सफलता का हो सकता है। उसमें इसरो को वैज्ञानिकों के साथ-साथ मोदी और सरकार की सराहना की जाएगी। तीसरा प्रस्ताव 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प का हो सकता है। इस पर प्रधानमंत्री मोदी विस्तार से बोल सकते हैं इससे अगले चुनाव का एजेंडा तय हो सकता है। यानी कुल मिला कर यह मोदी के अभिनंदन का सत्र होगा। एक प्रस्ताव चीन की निंदा का और एक प्रस्ताव पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को लेकर भी हो सकता है। लेकिन यह सब अनुमान ही हैं।
जो भी हो, लेकिन यह भी तय है कि विपक्षी पार्टियां भी विशेष सत्र में सरकार के एजेंडा पर आसानी से न तो चर्चा और न ही प्रस्ताव मंजूर होने देंगी। कांग्रेस के संसदीय रणनीतिक समूह की बैठक के बाद कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने पार्टी का इरादा साफ कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां मोदी चालीसा के लिए संसद में नहीं बैठेंगी। इसका मतलब है कि विपक्ष को भी अंदाजा है कि विशेष सत्र मोदी चालीसा के लिए आयोजित किया जा रहा है।
हालांकि हो सकता है कि इसके अलावा भी कुछ हो, जिसे ऐन उसी समय सामने रख कर सरकार सबको चौंका दे। लेकिन अभी अगर सिर्फ यह मकसद है कि प्रधानमंत्री की जय-जयकार करते हुए उनका अभिनंदन करना है और भविष्य की योजनाओं का संकल्प पेश करके चुनाव का एजेंडा तय करना है तो विपक्षी पार्टियां वह काम आसानी से नहीं होने देंगी।
इसीलिए रणनीतिक समूह की बैठक के अगले दिन कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखी और नौ विषयों की एक सूची बताई, जिन पर विपक्ष चर्चा चाहता है। इसमें मुख्य मुद्दा मणिपुर का है, जहां सरकार के तमाम दावों के उलट अभी भी हिंसा जारी है और लोग मारे जा रहे हैं। इतना ही नहीं घटनाओं की रिपोर्टिंग पर एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष सहित तीन सदस्यों पर खुद मुख्यमंत्री ने मुकदमा दर्ज कराया है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी हैरानी जताई है।
विपक्ष चाहता है कि मणिपुर के साथ-साथ चीन की घुसपैठ, किसानों के साथ हुए समझौते, महंगाई आदि मुद्दों पर भी चर्चा हो। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के संसदीय नेताओं के साथ मल्लिकार्जुन खरगे की बैठक के बाद कहा जा रहा है कि विपक्ष पहले दिन अपने एजेंडे पर चर्चा मांग करेगा। अडानी का भी मुद्दा उठाएगा। सरकार उस पर चर्चा के लिए तैयार नहीं होगी तो हंगामा होगा और विपक्ष संसद नहीं चलने देगा। सत्र के दूसरे दिन से कार्यवाही नए संसद भवन में होगी। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि नए संसद भवन का पहला दिन कैसा होता है?
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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