राहुल गांधी। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से बातचीत में रघुराम राजन ने कहा- ग़रीबों की मदद के लिए तत्काल 65 हज़ार करोड़ की जरूरत

(कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। कोरोना मसले पर वह कभी केंद्र सरकार को सुझाव देते दिखते हैं तो कभी उसकी आलोचना। 13 फ़रवरी को ट्वीट कर उन्होंने बहुत पहले ही कोरोना महामारी की गंभीरता के बारे में बता दिया था। लेकिन सरकार ने उसे तवज्जो देना ज़रूरी नहीं समझा। इस समय अर्थव्यवस्था को लेकर पूरा देश चिंतित है। इस मसले पर सरकार की भी कोई स्पष्ट नीति और दिशा नहीं दिख रही है। एक बार फिर उन्होंने इस दिशा में पहल की है। राहुल गांधी ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री और भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराज राजन से बात की है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये हुई इस बातचीत की हिंदी ट्रांसस्क्रिप्ट यहाँ दी जा रही है। इसे नवजीवन के पोर्टल से साभार लिया गया है। पेश है पूरी बातचीत-संपादक)

राहुल गांधी : हलो

रघुराम राजन : गुड मॉर्निंग, आप कैसे हैं?

राहुल गांधी : मैं अच्छा हूं, अच्छा लगा आपको देखकर

रघुराम राजन : मुझे भी

राहुल गांधी : कोरोना वायरस के दौर में लोगों के मन में बहुत सारे सवाल हैं कि क्या हो रहा है, क्या होने वाला है, खासतौर से अर्थव्यवस्था को लेकर। मैंने इन सवालों के जवाब के लिए एक रोचक तरीका सोचा कि आपसे इस बारे में बात की जाए ताकि मुझे भी और आम लोगों को भी मालूम हो सके कि आप इस सब पर क्या सोचते हैं।

रघुराम राजन : थैंक्स मुझसे बात करने के लिए और इस संवाद के लिए। मेरा मानना है कि इस महत्वपूर्ण समय में इस मुद्दे पर जितनी भी जानकारी मिल सकती है लेनी चाहिए और जितना संभव हो उसे लोगों तक पहुंचाना चाहिए।

राहुल गांधी : मुझे इस समय एक बड़ा मुद्दा जो लगता है वह है कि हम अर्थव्यवस्था को कैसे खोलें? वह कैसे हिस्से हैं अर्थव्यवस्था के जो आपको लगता है जिन्हें खोलना बहुत जरूरी है और क्या तरीका होना चाहिए इन्हें खोलने का?

रघुराम राजन : यह एक अहम सवाल है क्योंकि जैसे-जैसे हम संक्रमण का कर्व (वक्र) मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और अस्पतालों और मेडिकल सुविधाओं में भीड़ बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं, हमें लोगों की आजीविका फिर से शुरू करने के बारे में सोचना शुरू करना होगा। लंबे समय के लिए लॉकडाउन लगा देना बहुत आसान है, लेकिन जाहिर है कि यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है।

आपके पास एक निश्चित सुरक्षा नहीं है लेकिन आप उन क्षेत्रों को खोलना शुरू कर सकते हैं जिनमें अपेक्षाकृत कम मामले हैं, इस सोच और नीति के साथ कि आप जितना संभव हो सके प्रभावी ढंग से लोगों की स्क्रीनिंग करेंगे और जब केस सामने आ जाए तो आप उसे रोकने की कोशिश करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि इसे रोकने के सारे इंतजाम हैं।

इसमें एक सीक्वेंस होना चाहिए। सबसे पहले ऐसी जगहें चिह्नित करनी होंगी जहां दूरी बनाई रखी जा सकती हो, और यह सिर्फ वर्क प्लेसेज़ पर ही नहीं लागू हो, बल्कि काम के लिए आते-जाते वक्त भी लागू हो। ट्रांसपोर्ट स्ट्रक्चर को देखना होगा। क्या लोगों के पास निजी वाहन हैं। उनके पास साइकिल या स्कूटर हैं या कार हैं। इन्हें सबको देखना होगा। या फिर लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आते हैं काम पर। आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट में डिस्टेंसिंग कैसे सुनिश्चित करेंगे।

यह सारी व्यवस्था करने में बहुत काम और मेहनत करनी पड़ेगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कार्यस्थल अपेक्षाकृत सुरक्षित हो। इसके साथ यह भी देखना होगा कि कहीं दुर्घटनावश कोई ताजा मामले तो सामने नहीं आ रहे, तो हम बिना तीसरे या चौथे लॉडाउन को लागू किए कितनी तेजी से लोगों को आइसोलेट कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो संकट होगा।

राहुल गांधी : बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि अगर हम चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन खत्म करें। अगर हम अभी खोल दें और फिर दोबारा लॉकडाउन के लिए मजबूर हों। अगर ऐसा होता है तो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक होगा क्योंकि इससे भरोसा पूरी तरह खत्म हो जाएगा। क्या आप इससे सहमत हैं?

रघुराम राजन : हां, मुझे लगता है कि यह सोचना सही है। दूसरे ही लॉकडाउन की बात करें तो इसका अर्थ यही है कि पहली बार में हम पूरी तरह कामयाब नहीं हुए। इसी से सवाल उठता है कि अगर इस बार खोल दिया तो कहीं तीसरे लॉकडाउन की जरूरत न पड़ जाए और इससे विश्वसनीयता पर आंच आएगी।

इसके साथ ही मैं कहना चाहूंगा कि हम 100 फीसदी कामयाबी की बात करें। यानी कहीं भी कोई केस न हो। वह तो फिलहाल हासिल करना मुश्किल है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं कि लॉकडाउन हटाने की शुरुआत करें और जहां भी केस दिखें, वहां आइसोलेट कर दें।

राहुल गांधी: लेकिन इस पूरे प्रबंध में यह जानना बेहद जरूरी होगा कि कहां ज्यादा संक्रमण है। और इसके लिए टेस्टिंग ही एकमात्र जरिया है। इस वक्त भारत में यह भाव है कि हमारी टेस्टिंग क्षमता सीमित है। एक बड़े देश में अमेरिका और यूरोपीय देशों के मुकाबले हमारी टेस्टिंग क्षमता सीमित है। कम संख्या में टेस्ट होने को आप कैसे देखते हैं?

रघुराम राजन : अच्छा सवाल है यह। अमेरिका की मिसाल लें। वहां एक दिन में डेढ़ लाख तक टेस्ट हो रहे हैं लेकिन वहां विशेषज्ञों, खासतौर से संक्रमित रोगों के विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षमता को तीन गुना करने की जरूरत है यानी 5 लाख टेस्ट प्रतिदिन हों तभी आप अर्थव्यवस्था को खोलने के बारे में सोचें। कुछ तो 10 लाख तक टेस्ट करने की बात कर रहे हैं।

भारत की आबादी को देखते हुए हमें इसके चार गुना टेस्ट करने चाहिए। अगर आपको अमेरिका के लेवल पर पहुंचना है तो हमें 20 लाख टेस्ट रोज करने होंगे लेकिन हम अभी सिर्फ 25-30 हजार टेस्ट ही कर पा रहे हैं।

राहुल गांधी: देखिए अभी तो वायरस का असर है और कुछ समय बाद लोगों पर अर्थव्यवस्था का असर पडे़गा। यह ऐसा झटका होगा जो आने वाले दो-एक महीने में लगने वाला है। आप अगले 3-4 महीने में वायरस से लड़ाई और इसके प्रभाव के बीच कैसे संतुलन बना सकते हैं?

रघुराम राजन : आपको अभी इन दोनों पर सोचना होगा। आप प्रभाव सामने आने का इंतजार नहीं कर सकते क्योंकि आप एक तरफ वायरस से लड़ रहे हैं दूसरी तरफ पूरा देश लॉकडाउन में है। निश्चित रूप से लोगों को भोजन मुहैया कराना है। घरों को निकल चुके प्रवासियों की स्थिति देखनी है, उन्हें शेल्टर चाहिए, मेडिकल सुविधाएं चाहिए। ये सब एक साथ करने की जरूरत है।

मुझे लगता है कि इसमें प्राथमिकताएं तय करनी होंगी। हमारी क्षमता और संसाधन दोनों सीमित हैं। हमारे वित्तीय संसाधन पश्चिम के मुकाबले बहुत सीमित हैं। हमें करना यह है कि हम तय करें कि हम वायरस से लड़ाई और अर्थव्यवस्था दोनों को एक साथ कैसे संभालें। अगर अभी हम खोल देते हैं तो यह ऐसा ही होगा कि बीमारी से बिस्तर से उठकर आ गए हैं।

सबसे पहले तो लोगों को स्वस्थ और जीवित रखना है। भोजन बहुत ही अहम इसके लिए। ऐसी जगहें हैं जहां पीडीएस पहुंचा ही नहीं है। अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी और मैंने इस विषय पर बात करते हुए अस्थाई राशन कार्ड की बात की थी लेकिन आपको इस महामारी को एक असाधारण स्थिति के तौर पर देखना होगा।

किस चीज की जरूरत है उसके लिए हमें लीक से हटकर सोचना होगा। सभी बजटीय सीमाओं को ध्यान में रखते हुए फैसले करने होंगे। बहुत से संसाधन हमारे पास नहीं हैं।

राहुल गांधी: कृषि क्षेत्र और मजदूरों के बारे में आप क्या सोचते हैं। प्रवासी मजदूरों के बारे में क्या सोचते हैं। इनकी वित्तीय स्थिति के बारे में क्या किया जाना चाहिए?

रघुराम राजन : इस मामले में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ही रास्ता है इस समय। हम उन सभी व्यवस्थाओं के बारे में सोचें जिनसे हम गरीबों तक पैसा पहुंचाते हैं। विधवा पेंशन और मनरेगा में ही हम कई तरीके अपनाते हैं। हमें देखना होगा कि देखो ये वे लोग हैं जिनके पास रोजगार नहीं है, जिनके पास आजीविका चलाने का साधन नहीं है और अगले तीन-चार महीने जब तक यह संकट है, हम इनकी मदद करेंगे।

लेकिन, प्राथमिकताओं को देखें तो लोगों को जीवित रखना और उन्हें विरोध के लिए या फिर काम की तलाश में लॉकडाउन के बीच ही बाहर निकलने के लिए मजबूर न करना ही सबसे फायदेमंद होगा। हमें ऐसे रास्ते तलाशने होंगे जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पैसा भी पहुंचा पाएं और उन्हें पीडीएस के जरिए भोजन भी मुहैया करा पाएं।

राहुल गांधी : डॉ. राजन, कितना पैसा लगेगा गरीबों की मदद करने के लिए, सबसे गरीब को सीधे कैश पहुंचाने के लिए?

रघुराम राजन: तकरीबन 65,000 करोड़। हमारी जीडीपी 200 लाख करोड़ की है, इसमें से 65,000 करोड़ निकालना बहुत बड़ी रकम नहीं है। हम ऐसा कर सकते हैं। अगर इससे गरीबों की जान बचती है तो हमें यह जरूर करना चाहिए।

राहुल गांधी :अभी भारत एक कठिन परिस्थिति में है लेकिन कोविड महामारी के बाद क्या भारत को कोई बड़ा रणनीतिक फायदा हो सकता है? क्या विश्व में कुछ ऐसा बदलाव होगा जिसका फायदा भारत उठा सकता है? आपके मुताबिक दुनिया किस तरह बदलेगी?

रघुराम राजन : इस तरह की स्थितियां मुश्किल से ही किसी देश के लिए अच्छे हालात लेकर आती हैं। फिर भी कुछ तरीके हैं जिनसे देश फायदा उठा सकते हैं। मेरा मानना है कि इस संकट से बाहर आने के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को एकदम नए तरीके से सोचने की जरूरत है।

अगर भारत के लिए कोई मौका है, तो वह है हम संवाद कैसे करते हैं। इस संवाद में हम एक नेता से अधिक होकर सोचें क्योंकि यह दो विरोधी पार्टियों के बीच की बात तो है नहीं, लेकिन भारत इतना बड़ा देश तो है ही कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी बात अच्छे से सुनी जाए।

ऐसे हालात में भारत उद्योगों में अवसर तलाश सकता है, अपनी सप्लाई चेन में मौके तलाश सकता है, लेकिन सबसे अहम है कि हम संवाद को उस दिशा में मोड़ें जिसमें ज्यादा देश शामिल हों, बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था हो न कि द्विध्रुवीय व्यवस्था।

राहुल गांधी : क्या आपको नहीं लगता है कि केंद्रीकरण का संकट है? सत्ता का बेहद केंद्रीकरण हो गया है कि बातचीत ही लगभग बंद हो गई है। बातचीत और संवाद से कई समस्याओं का समाधान निकलता है, लेकिन कुछ कारणों से यह संवाद टूट रहा है?

रघुराम राजन : मेरा मानना है कि विकेंद्रीरण न सिर्फ स्थानीय सूचनाओं को सामने लाने के लिए जरूरी है बल्कि लोगों को सशक्त बनाने के लिए भी अहम है। पूरी दुनिया में इस समय यह स्थिति है कि फैसले कहीं और किए जा रहे हैं।

मेरे पास एक वोट तो है दूरदराज के किसी व्यक्ति को चुनने का। मेरी पंचायत हो सकती है, राज्य सरकार हो सकती है लेकिन लोगों में यह भावना है कि किसी भी मामले में उनकी आवाज नहीं सुनी जाती। ऐसे में वे विभिन्न शक्तियों का शिकार बन जाते हैं।

मैं आपसे ही यही सवाल पूछूंगा। राजीव गांधी जी जिस पंचायती राज को लेकर आए उसका कितना प्रभाव पड़ा और कितना फायदेमंद साबित हुआ।

राहुल गांधी: इसका जबरदस्त असर हुआ था, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ेगा कि यह अब कम हो रहा है। पंचायती राज के मोर्चे पर जितना आगे बढ़ने का काम हुआ था, हम उससे पीछे लौट रहे हैं और जिलाधिकारी आधारित व्यवस्था में जा रहे हैं। अगर आप दक्षिण भारतीय राज्य देखें, तो वहां इस मोर्चे पर अच्छा काम हो रहा है, व्यवस्थाओं का विकेंद्रीकरण हो रहा है लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों में सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है और पंचायतों और जमीन से जुड़े संगठनों की शक्तियां कम हो रही हैं।

फैसले जितना लोगों को साथ में शामिल करके लिए जाएंगे, वे फैसलों पर नजर रखने के लिए उतने ही सक्षम होंगे। मेरा मानना है कि यह ऐसा प्रयोग है जिसे करना चाहिए।

लेकिन वैश्विक स्तर पर ऐसा क्यों हो रहा है? आप क्या सोचते हैं कि क्या कारण है जो इतने बड़े पैमाने पर केंद्रीकरण हो रहा है और संवाद खत्म हो रहा है? क्या आपको लगता है कि इसके केंद्र में कुछ है या फिर कई कारण हैं इसके पीछे?

रघुराम राजन : मैं मानता हूं कि इसके पीछे एक कारण है और वह है वैश्विक बाजार। ऐसी धारणा बन गई है कि अगर बाजारों का वैश्वीकरण हो रहा है तो इसमें हिस्सा लेने वाले यानी फर्म्स भी हर जगह यही नियम लागू करती हैं, वे हर जगह एक ही व्यवस्था चाहते हैं, एक ही तरह की सरकार चाहते हैं, क्योंकि इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।

एक समानता लाने की कोशिश में स्थानीय या फिर राष्ट्रीय सरकारों ने लोगों से उनके अधिकार और शक्तियां छीन ली हैं। इसके अलावा नौकरशाही की लालसा भी है, कि अगर मुझे शक्ति मिल सकती है, सत्ता मिल सकती है तो क्यों न हासिल करूं। यह एक निरंतर बढ़ने वाली लालसा है। अगर आप राज्यों को पैसा दे रहे हैं, तो कुछ नियम हैं जिन्हें मानने के बाद ही पैसा मिलेगा न कि बिना किसी सवाल के आपको पैसा मिल जाएगा क्योंकि मुझे पता है कि आप भी चुनकर आए हो। और आपको इसका आभास होना चाहिए कि आपके लिए क्या सही है।

राहुल गांधी : इन दिनों एक नया मॉडल आ गया है, वह है सत्तावादी या अधिकारवादी मॉडल, जो कि उदार मॉडल पर सवाल उठाता है। काम करने का यह एकदम अलग तरीका है और यह ज्यादा जगहों पर फल-फूलता जा रहा है। क्या आपको लगता है कि यह खत्म होगा?

रघुराम राजन : मुझे नहीं पता। सत्तावादी मॉडल, एक मजबूत व्यक्तित्व, एक ऐसी दुनिया जिसमें आप शक्तिहीन हैं, यह सब बहुत परेशान करने वाली स्थिति है। खासतौर से अगर आप उस व्यक्तित्व के साथ कोई संबंध रखते हैं। अगर आपको लगता है कि उन्हें मुझ पर विश्वास है, उन्हें लोगों की परवाह है।

इसके साथ समस्या यह है कि अधिकारवादी व्यक्तित्व अपने आप में एक ऐसी धारणा बना लेता है कि , ‘मैं ही जनशक्ति हूं’, इसलिए मैं जो कुछ भी कहूंगा, वह सही होगा। मेरे ही नियम लागू होंगे और इनमें कोई जांच-पड़ताल नहीं होगी, कोई संस्था नहीं होगी, कोई विकेंद्रीकृत व्यवस्था नहीं होगी। सब कुछ मेरे ही पास से गुजरना चाहिए।

इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि जब-जब इस हद तक केंद्रीकरण हुआ है, व्यवस्थाएं धराशायी हो गई हैं।

राहुल गांधी – लेकिन वैश्विक आर्थिक पद्धति में कुछ बहुत ही ज्यादा गड़बड़ तो हुई है। यह तो साफ है कि इससे काम नहीं चल रहा। क्या ऐसा कहना सही होगा?

रघुराम राजन : मुझे लगता है कि यह बिल्कुल सही है कि बहुत से लोगों के लाथ यह काम नहीं कर रहा। विकसित देशों में दौलत और आमदनी का असमान वितरण निश्चित रूप से चिंता का कारण है। नौकरियों की अनिश्चितता, तथाकथित अनिश्चितता चिंता का दूसरा स्रोत है। आज यदि आपके पास कोई नौकरी है तो यह नहीं पता कि कल आपके पास आमदनी का जरिया होगा या नहीं।

हमने इस महामारी के दौर में देखा है कि बहुत से लोगों के पास कोई रोजगार ही नहीं है। उनकी आमदनी और सुरक्षा दोनों ही छिन गई हैं।

इसलिए आज की स्थिति सिर्फ विकास दर धीमी होने की समस्या नहीं है। हम सिर्फ बाजारों पर आश्रित नहीं रह सकते। हमें विकास करना होगा। हम नाकाफी वितरण की समस्या से भी दो चार हैं। जो भी विकास हुआ उसका फल लोगों को नहीं मिला। बहुत से लोग छूट गए। तो हमें इस सबके बारे में सोचना होगा।

इसीलिए मुझे लगता है कि हमें वितरण व्यवस्था और वितरण अवसरों के बारे में सोचना होगा।

राहुल गांधी : यह दिलचस्प है जब आप कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर से लोग जुड़ते हैं और उन्हें अवसर मिलते हैं लेकिन अगर विभाजनकारी बातें हों, नफरत हो जिससे लोग नहीं जुड़ते- यह भी तो एक तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर है। इस वक्त विभाजन का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया गया है, नफरता का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया गया है, और यह बड़ी समस्या है।

रघुराम राजन : सामाजिक समरसता से ही लोगों का फायदा होता है। लोगों को यह लगना आवश्यक है कि वे महसूस करें कि वे व्यवस्था का हिस्सा हैं। हम एक बंटा हुआ घर नहीं हो सकते। खासतौर से ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में। तो मैं कहना चाहूंगा कि हमारे पुरखों ने, राष्ट्र निर्माताओं ने जो संविधान लिखा और शुरू में जो शासन दिया, उन्हें नए सिरे से पढ़ने-सीखने की जरूरत है। लोगों को अब लगता है कि कुछ मुद्दे थे जिन्हें दरकिनार किया गया, लेकिन वे ऐसे मुद्दे थे जिन्हें छेड़ा जाता तो हमारा सारा समय एक-दूसरे से लड़ने में ही चला जाता।

राहुल गांधी: इसके अलावा आप एक तरफ विभाजन करते हो और जब भविष्य के बारे में सोचते हो तो पीछे मुड़कर इतिहास देखने लगते हो। आप जो कह रहे हैं मुझे सही लगता है कि भारत को एक नए विज़न की जरूरत है। आपकी नजर में वह क्या विचार होना चाहिए? निश्चित रूप से आपने इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की बात की। ये सब बीते 30 साल से अलग या भिन्न कैसे होगा। वह कौन सा स्तंभ होगा जो अलग होगा?

रघुराम राजन : मुझे लगता है कि आपको पहले क्षमताएं विकसित करनी होंगी। इसके लिए बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है। याद रखिए, जब हम इन क्षमताओं की बात करें तो इन पर अमल भी होना चाहिए।

लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि हमारे औद्योगिक और बाजार व्यवस्था कैसे हैं। आज भी हमारे यहां पुराने लाइसेंस राज जैसी ही व्यवस्था है। हमें सोचना होगा कि हम कैसे ऐसी व्यवस्था बनाएं जिसमें ढेर सारी अच्छी नौकरियां सृजित हों। ज्यादा स्वतंत्रता हो, ज्यादा विश्वास और भरोसा हो, लेकिन इसकी पुष्टि करना अच्छा विचार है।

राहुल गांधी : मैं यह देखकर हैरान हूं कि माहौल और भरोसा अर्थव्यवस्था के लिए कितना अहम है। कोरोना महासंकट के बीच जो चीज मैं देख रहा हूं वह यह कि विश्वास का मुद्दा असली समस्या है। लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर आगे क्या होने वाला है। इससे एक डर है पूरे सिस्टम में। आप बेरोजगारी की बात कर लो, बहुत बड़ी समस्या है, बड़े स्तर पर बेरोजगारी है, जो अब और विशाल होने वाली है। बेरोजगारी के लिए हम आगे कैसे बढ़ें, जब इस संकट से मुक्ति मिलेगी तो अगले 2-3 महीने में बेरोजगारी से कैसे निपटेंगे।

रघुराम राजन :आंकड़े बहुत ही चिंतित करने वाले हैं। सीएमआइई के आंकड़े देखो तो पता चलता है कि कोरोना संकट के कारण करीब एक 10 करोड़ और लोग बेरोजगार हो जाएंगे। 5 करोड़ लोगों की तो नौकरी जाएगी, करीब 6 करोड़ लोग श्रम बाजार से बाहर हो जाएंगे। आप किसी सर्वे पर सवाल उठा सकते हो, लेकिन हमारे सामने तो यही आंकड़े हैं और यह आंकड़ें बहुत व्यापक हैं। इससे हमें सोचना चाहिए कि नाप-तौल कर हमें अर्थव्यवस्था खोलनी चाहिए, लेकिन जितना तेजी से हो सके, उतना तेजी से यह करना होगा जिससे लोगों को नौकरियां मिलना शुरु हों। हमारे पास सभी वर्गों की मदद की क्षमता नहीं है। हम तुलनात्मक तौर पर गरीब देश हैं, लोगों के पास ज्यादा बचत नहीं है।

लेकिन मैं आपसे एक सवाल पूछता हूं। हमने अमेरिका में बहुत सारे उपाय देखें और जमीनी हकीकत के ध्यान में रखते हुए यूरोप ने भी ऐसे कदम उठाए। भारत सरकार के सामने एकदम अलग हकीकत है जिसका वह सामना कर रही है। आपकी नजर में पश्चिम के हालात और भारत की जमीनी हकीकत से निपटने में क्या अंतर है।

राहुल गांधी : सबसे पहले स्केल, समस्या की विशालता और इसके मूल में वित्तीय व्यवस्था समस्या है। असमानता और असमानता की प्रकृति। जाति की समस्या, क्योंकि भारतीय समाज जिस व्यवस्था वाला है वह अमेरिकी समाज से एकदम अलग है। भारत को जो विचार पीछे धकेल रहे हैं वह समाज में गहरे पैठ बनाए हुए हैं और छिपे हुए हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि बहुत सारे सामाजिक बदलाव की भारत को जरूरत है, और यह समस्या हर राज्य में अलग है। तमिलनाडु की राजनीति, वहां की संस्कृति, वहां की भाषा, वहां के लोगों की सोच यूपी वालों से एकदम अलग है। ऐसे में आपको इसके आसपास ही व्यवस्थाएं विकसित करनी होंगी। पूरे भारत के लिए एक ही फार्मूला काम नहीं करेगा, काम नहीं कर सकता।

इसके अलावा, हमारी सरकार अमेरिका से एकदम अलग है, हमारी शासन पद्धति में. हमारे प्रशासन में नियंत्रण की एक सोच है। एक उत्पादक के मुकाबले हमारे पास एक डीएम है। हम सिर्फ नियंत्रण के बारे में सोचते हैं, लोग कहते हैं कि अंग्रेजों के जमाने से ऐसा है। मेरा ऐसा मानना नहीं है। मेरा मानना है कि यह अंग्रेजों से भी पहले की व्यवस्था है।

भारत में शासन का तरीका हमेशा से नियंत्रण का रहा है और मुझे लगता है कि आज हमारे सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। कोरोना बीमारी को हम नियंत्रित नहीं कर पा रहे, इसलिए जैसा कि आपने कहा, इसे रोकना होगा।

एक और चीज है जो मुझे परेशान करती है, वह है असमानता। भारत में बीते कई दशकों से ऐसा है। जैसी असमानता भारत में है, अमेरिका में नहीं दिखेगी। तो मैं जब भी सोचता हूं तो यही सोचता हूं कि असमानता कैसे कम हो क्योंकि जब कोई सिस्टम अपने हाइ प्वाइंट पर पहुंच जाता है तो वह काम करना बंद कर देता है। आपको गांधी जी का यह वाक्य याद होगा कि कतार के आखिर में जाओ और देखो कि वहां क्या हो रहा है। एक नेता के लिए यह बहुत बड़ी सीख है, इसका इस्तेमाल नहीं होता, लेकिन मुझे लगता है कि यहीं से काफी चीजें निकलेंगी।

असमानता से कैसे निपटें आपकी नजर में? कोरोना संकट में भी यह दिख रहा है। यानी जिस तरह से भारत गरीबों के साथ व्यवहार कर रहा है, किस तरह हम अपने लोगों के साथ रवैया अपना रहे हैं। प्रवासी बनाम संपन्न की बात है, दो अलग-अलग विचार हैं। दो अलग-अलग भारत हैं। आप इन दोनों को एक साथ कैसे जोड़ेंगे?

रघुराम राजन : देखिए ,आप पिरामिड की तली को जानते हैं। हम गरीबों के जीवन को बेहतर करने के कुछ तरीके जानते हैं, लेकिन हमें एहतियात से सोचना होगा जिससे हम हर किसी तक पहुंच सकें। मेरा मानना है कि कई सरकारों ने भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और बेहतर नौकरियों के लिए काम किया है लेकिन चुनौतियों के बारे में मुझे लगता है कि प्रशासनिक चुनौतियां हैं सब तक पहुंचने में। मेरी नजर में बड़ी चुनौती निम्न मध्य वर्ग से लेकर मध्य वर्ग तक है। उनकी जरूरतें हैं, नौकरियां, अच्छी नौकरियां ताकि लोग सरकारी नौकरी पर आश्रित न रहें।

मेरा मानना है कि इस मोर्चे पर काम करने की जरूरत है और इसी के मद्देनजर अर्थव्यवस्था का विस्तार करना जरूरी है। हमने बीते कुछ सालों में हमारे आर्थिक विकास को गिरते हुए देखा है, बावजूद इसके कि हमारे पास युवा कामगारों की फौज है।

इसलिए मैं कहूंगा कि सिर्फ संभावनाओं पर न जाएं, बल्कि अवसर सृजित करें जो फले फूलें। अगर बीते सालों में कुछ गलतियां हुईं भी तो, यही रास्ता है आगे बढ़ने का। उस रास्ते के बारे में सोचें जिसमें हम कामयाबी से बढ़ते रहे हैं, सॉफ्टवेयर और ऑउटसोर्सिंग सेवाओं में आगे बढ़ें। कौन सोच सकता था कि ये सब भारत की ताकत बनेगा, लेकिन यह सब सामने आया है और कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह इसलिए सामने आया क्योंकि सरकार ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। मैं ऐसा नहीं मानता। लेकिन हमें किसी भी संभावना के बारे में विचार करना चाहिए, लोगों की उद्यमिता को मौका देना चाहिए।

राहुल गांधी : थैंक्यू, थैंक्यू डॉ. राजन

रघुराम राजन : थैंक्यू वेरी मच, आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा।

राहुल गांधी : आप सुरक्षित तो हैं न ?

रघुराम राजन: मैं सुरक्षित हूं, गुडलक

राहुल गांधी: थैंक्यू, बाय

(नव जीवन डॉट कॉम से साभार।)

More From Author

प्रवासी मज़दूर।

महज़ भाषण और कागजी फ़रमान के लिए नहीं होता है केंद्र ! महोदय, प्रवासी मज़दूरों की वापसी के लिए मुहैया कराइए ट्रेन

प्रवासी मज़दूर।

बिहार में बादशाह के बेशर्मी की बयार है!

Leave a Reply