(सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील तथा जनहित और मानवाधिकार के सवालों पर अनवरत लड़ाई लड़ने वाले प्रशांत भूषण के अवमानना का मामला बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। भारत में न्यायविदों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर की शख्सियतों ने इस पर पहल की है। ऐसे 30 से ज्यादा लोगों ने एक पत्र लिखकर उनके पक्ष में अपना समर्थन जाहिर किया है। इसमें ज्यादातर शख्सियतें ऐसी हैं जो भारतीय मूल की हैं और देश और दुनिया के अलग-अलग इलाकों में कार्यरत हैं। पेश है उनका पूरा पत्र- संपादक)
भारत में मानव-अधिकारों और जनहित के लिए प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना की कार्यवाही के कारण हमें ये बयान जारी करना पड़ रहा है। उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर की जा रही यह कार्यवाही हम सबके लिए चिंताजनक है। वो काफी समय से मानव अधिकार, सामाजिक न्याय और पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की वकालत करते आ रहे हैं। बड़े-बड़े पूंजीपतियों से लेकर नेता और सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामलों को उन्होंने उजागर किया है। न्यायपालिका की जवाबदेही जैसे संवेदनशील मामलों के साथ पारदर्शिता की माँग के लिए प्रशांत भूषण सालों से आवाज़ उठाकर इन ज्वलंत मुद्दों के प्रणेता बनकर उभरे हैं।
मीडिया में यह रिपोर्ट किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने प्रशांत भूषण द्वारा किए गए दो ट्वीट पर स्वतः संज्ञान लेकर और 11 साल पुरानी एक इंटरव्यू वाली अवमानना केस को फिर शुरू करने का ठाना है। अभी के स्वतः संज्ञान वाले मामले में प्रशांत भूषण ने दो ट्वीट किया जिसमें पहला उन्होंने पिछले कुछ सालों में नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता के प्रति उच्चतम न्यायालय की अक्षमता पर टिप्पणी की थी। दूसरा, उन्होंने इस महामारी में जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट की बन्दी पर सवाल किए वहीं मुख्य न्यायाधीश का सामाजिक न्योता पर जाकर फ़ोटो खिंचवाना और कई लोगों के साथ बिना मास्क दिखने पर टिप्पणी किया था।
ज्ञात हो कि वर्ष 2009 वाले अवमानना की कार्यवाही प्रशांत भूषण द्वारा एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार पर आधारित है। उन्होंने कहा था कि 1990 से लेकर 2010 तक बने लगभग आधे मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट रहे हैं। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया था कि इसमें भ्रष्टाचार का सीधा मतलब सिर्फ घूस लेने या पैसों का इधर उधर करना जरूरी नहीं है। इस मामले में फिर तीन हलफनामे के जरिये सबूत सहित सुप्रीम कोर्ट में जमा किया जा चुका है। इन हलफनामों में कई घटनाओं का ज़िक्र है जो प्रशांत भूषण के बयान का आधार हैं। जवाब दायर करने के बाद कोर्ट ने सालों पहले तब जाँचने या परखने का नहीं सोचा और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
दुनियाभर की न्याय प्रणाली में यह मान्यता है कि न्यायधीशों का आचरण हर वक़्त निडर, निस्वार्थ और निष्पक्ष रहना चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ न्याय को बढ़ावा देने के लिए बना है। जहां कहीं भी ये पाया गया है कि ‘जज’ खुद सत्ता भोग के करीब है या राज करने वालों से रिश्ता रखता है वहाँ इस गैर जिम्मेदारी के वजह से जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा उठ जाता है। इससे पूरे न्यायिक प्रणाली से मोहभंग होने का भी खतरा होता है।
लोकतांत्रिक ढाँचे का महत्व इसीलिए भी होता है क्योंकि वो ‘कानून के राज’ (Rule of Law) पर निर्भर रहता है और कानून का रक्षा करने वालों से ये उम्मीद की जाती है कि उनका आचरण संविधान के वाक्यों के साथ साथ उसकी मूल भावना और आत्मा से निर्धारित हो। इसीलिए ऐसे व्यक्ति को जो लगातार न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए और न्यायपालिका के माध्यम से ही आम जनमानस को राहत के साथ-साथ उनके कल्याण के लिए कई कदम उठाए, उसके किसी बयान पर उसे दंडित करना किसी भी पैमाने से उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों को तो ऐसी प्रथा स्थापित करनी चाहिए जिसमें वो जनता के द्वारा अपनी कार्यशैली पर चर्चा और आलोचना का स्वागत करे और आपराधिक अवमानना या बदला लेने जैसी कार्यवाही की कोई जगह ना हो।
आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) जैसे प्रावधानों को अमरीका और यूरोपीय देशों जैसे कई लोकतंत्र ने निर्जीव बना दिया है। भारत में कई कानूनविदों ने ये रेखांकित किया है कि न्यायपालिका को आलोचना दबाने के लिए अवमानना जैसी कार्यवाही का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। स्वर्गीय श्री विनोद बोबडे (वरिष्ठ अधिवक्ता) ने अपने लेख ‘Scandal and Scandalising'[(2003) 8 SCC Jour 32] में लिखा है, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जिसमें नागरिक इस भय में जीने लगें कि वे जजों और न्यायपालिका की आलोचना नहीं कर सकते वरना उन पर अवमानना जैसी कार्यवाही चला दी जाएगी।”
न्याय और न्यायिक मूल्यों के लिए, न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाए रखने के लिए हम माननीय न्यायधीशों के साथ माननीय मुख्य न्यायधीश से अनुरोध करते हैं कि वे प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की यह कार्यवाही शुरू करने के फैसले को फिर से परखें और वापस लें। प्रशांत भूषण स्वयं लोकतांत्रिक भारत में वकालत जैसे पेशे में एक आदर्श हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका आत्मपरीक्षण कर किसी ऐसे जागरूक नागरिक और प्रखर वकील को उसके बयान और धारणा सार्वजनिक करने के लिए चुप कराने की कोशिश नहीं करेगी।
1. Prof. Jan Peterse, Global Studies expert, Univ. of California, Santa Barbara, USA
2. Prof. Satyajit Singh, Political scientist, Univ. of California, Santa Barbara, USA
3. Prithvi Sharma MD, Gen. Secy., India Friends Association, CA, USA.
4. Abhay Bhushan, Distinguished Alumnus, IIT-Kanpur (Class of 1965), Palo Alto, USA.
5. Deepak Agrawal, Former Director – Process Technologies, Jacobs Engineering, PA, USA.
6. D,C, Agrawal, Distinguished Alumnus, IIT-Bombay (Class of 1969), Princeton, USA.
7. Dr. Yogesh C. Agrawal, President, Sequoia Scientific, Seattle, USA.
8. Kailash Narayan, Lifeline International, Agoura Hills, CA, USA.
9. Dr. Sivaram Chelluri, W. Windsor, NJ, USA.
10. Kumar Shah, New York, NY, USA.
11. Biren Shah, Princeton, USA.
12. Chelluri Sastri, Halifax, NS, Canada.
13. Tord Bjork, Coordinator, EU Committee, Friends of the Earth, Sweden.
14. Ms. Reshma Nigam, President, Indians for Collective Action (ICA), Saratoga, CA, USA
15. Dr. Prithviraj Sharma, Gen. Secretary, India Friends Association(IFA) Camarillo, CA, USA
16. Prof. Jaspal Singh, South Asia Centre (SAC), Cambridge, MA, USA
17. Shri Bhupen Mehta, Chairman, ICA partnership, Cupatino, CA, USA
18. Shri Somnath, Boston, MA, USA
19. Hardeep Kaur Singh, South Asia Centre (SAC), Cambridge, MA, USA
20. Hari Rokka, Member of Constituent Assembly(2008-11), Nepal
21. Prof. Krishna Khanal, Political Scientist and Former Advisor to Prime Minister of Nepal
22. Prof. Lok Raj Baral, Political Scientist&Former Ambassador of Nepal to India
23. Prof Kapil Shrestha, Former Member of Nepal Human Rights Commission
24. Sushil Pyakurel Former Political Advisor to President/member of Nepal Human Rights
25. Vijay Kant Karna, Former Nepali Ambassador to Denmark
26. Kanak Dixit, Editor of Himal South Asia
27. Dinesh Tripathi, Senior Advocate of Nepal
28. Charan Prasain, Senior Human Rights Activist (Nepal)
29. Dr. Indra Kumari Adhikari, Former Deputy Executive Director of Institute of Foreign Affairs
30. Dr. Uddhab Pyakurel, Faculty of Political Sociology & Founder of South Asian Dialogues on Ecological Democracy
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