जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय की ऊंचाइयों में हिमनद झीलें तेज़ी से फैल रही हैं, जिससे नीचे के इलाकों में विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 2011 के बाद से भारत, चीन, नेपाल और भूटान में निरीक्षण की गई 902 हिमनद झीलों में से आधी से अधिक का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है। बर्फ और हिमनदों के पिघलने से निर्मित इन झीलों का क्षेत्रफल अब तक 11 प्रतिशत तक बढ़ा है, जबकि कुछ झीलें तो 40 प्रतिशत से अधिक फैल गई हैं।
यह चिंताजनक स्थिति वैश्विक तापमान वृद्धि से जुड़ी है, जो हिमनदों के पिघलने की गति को तेज़ कर रही है। इन झीलों को अक्सर बर्फ और गिट्टियों जैसी नाज़ुक प्राकृतिक बाधाएं रोके रखती हैं, जो अचानक टूट सकती हैं और खतरनाक बाढ़ ला सकती हैं।
इन्हें ‘आउटबर्स्ट फ्लड्स’ कहा जाता है। बीते दशक में हिमालयी क्षेत्र में ऐसी घटनाओं ने भारी विनाश और जान-माल का नुकसान किया है।
इन बाढ़ों की अप्रत्याशित प्रकृति के चलते हिमनद झीलों, खासकर छोटी लेकिन खतरनाक झीलों, की सख्त निगरानी निहायत आवश्यक है। उपग्रह और हवाई सर्वेक्षण इन परिवर्तनों को ट्रैक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
इसरो ने एक अन्य अध्ययन में पाया है कि 1984 से 2016 के बीच अध्ययन की गई 2400 से अधिक झीलों में से लगभग 28 प्रतिशत झीलों के आकार में वृद्धि हुई है।
भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में इन जोखिमों से निपटने के लिए 150 करोड़ रुपए की योजना शुरू की है। इसके तहत, झीलों की संवेदनशीलता का आकलन और सुरक्षा उपाय लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इनमें निगरानी प्रणाली स्थापित करना और जल धारा का मार्ग बदलने के लिए चैनल बनाना शामिल है। इसके आलावा सिक्किम में शोधकर्ताओं ने सर्वाधिक जोखिम वाली झीलों के लिए प्राथमिकता के आधार पर रोकथाम रणनीतियां तैयार की हैं।
आपदा प्रबंधन अधिकारी इन झीलों के नीचे स्थित बांधों की तैयारियों का आकलन कर रहे हैं। 47 चिंहित बांधों में से 31 की रिपोर्ट में यह जांच की जा रही है कि उनके स्पिलवे संभावित बाढ़ का सामना कर सकते हैं या नहीं।
पूर्वी हिमालय पर किए गए हालिया अध्ययन में बताया गया है कि ऐसी बाढ़ों से 10,000 से अधिक लोग, 2000 बस्तियां, पांच पुल और दो पनबिजली संयंत्र खतरे में पड़ सकते हैं।
भौगोलिक स्थिति और अंतर्राष्ट्रीय सरहदों के लिहाज़ से इन झीलों के जलग्रहण क्षेत्र कई देशों में फैले हुए हैं। इसके लिए विशेषज्ञ हिमालयी देशों के बीच सीमापार सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
इस नाज़ुक क्षेत्र में जीवन, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिक तंत्र पर बढ़ते खतरों से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों और सतत सतर्कता की आवश्यकता है।
(जनचौक की रिपोर्ट)
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