पश्चिमी सिंहभूम व लातेहार समेत अन्य कई ज़िलों में नक्सल अभियान की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर व्यापक हिंसा हो रही है। हिरासत में भी हिंसा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। हिंसा के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जाती। अधिकांश मामलों में न तो पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न ही दोषियों पर कार्रवाई हुई। सिर्फ संदेह के आधार पर या माओवादियों को कथित तौर पर खाना खिलाने के नाम पर निर्दोष आदिवासियों व सामाजिक स्तर पर वर्ण व्यवस्था के वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में फ़र्ज़ी रूप से आरोपित किया जा रहा है।
बिना ग्राम सभा की सहमति व लोगों से चर्चा किए ही गावों में सुरक्षा बलों के कैंप को जबरन स्थापित किया जा रहा है। इससे गावों में और खास कर ग्रामीण आदिवासियों में डर और बेचारगी का माहौल बना हुआ है। साथ ही ऐसी स्थिति की वजह से गांव-समाज में विभाजन भी हो रहा है।
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में पूरे राज्य में सुरक्षा बलों के 44 कैम्पों की स्थापना की गयी है, जिसमें 22 कैंप तो 2022 में किए स्थापित किए गए हैं।
पुलिस द्वारा ग्रामीणों के साथ की गई हिंसा की घटनाओं में पश्चिमी सिंहभूम के चिरियाबेड़ा में सीआरपीएफ द्वारा आदिवासियों की पिटाई व महिला के साथ छेड़खानी, अक्टूबर-नवम्बर में लातेहार में टाना भगतों व अन्य आदिवासियों के विरुद्ध पुलिसिया दमन व फ़र्ज़ी मामले में मुकदमें, बरवाडीह (लातेहार) के आदिवासी अनिल सिंह पर हिरासत में हिंसा, गोमिया (बोकारो) में आदिवासी-वंचितों पर माओवाद व अन्य आरोपों एवं यूएपीए की धाराओं के अंतर्गत फर्ज़ी मामले, लातेहार के पिरी में ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बलों के द्वारा हत्या के 1.5 साल बाद भी दोषियों पर कार्रवाई लंबित है।
इन तमाम मामलों को लेकर झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के गृह सचिव सह मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का से मुलाकात की और राज्य में आदिवासी-वंचितों के साथ हो रहे मानवाधिकार हनन की घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की।
महासभा ने सचिव को आदिवासियों- मूलवासियों- वंचितों के विरुद्ध विभिन्न तरीकों से पुलिसिया व सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे दमन के मामलों से अवगत कराया और मांग पत्र दिया। इस मांग पत्र के आलोकमें सचिव ने कार्रवाई का आश्वासन दिया।
सचिव से प्रतिनधिमंडल ने कहा कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र जैसे पश्चिमी सिंहभूम में स्थापित किए गए कैंप की स्थापना सम्बंधित दस्तावेजों जैसे ग्राम सभा सहमति पत्र, वन विभाग NOC आदि को सरकार सार्वजानिक करे।
प्रतिनिधिमंडल ने गृह सचिव से निम्न मांगें की-
• सभी मामलों में उचित कार्यवाई कर पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा दिया जाए व दोषियों के विरुद्ध कार्यवाई सुनिश्चित की जाए। सरकार सुनिश्चित करे कि पुलिस व सुरक्षा बलों की हिंसा के पीड़ितों द्वारा दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।
• नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। केवल संदेह के आधार पर या माओवादियों को महज़ खाना खिलाने के नाम पर निर्दोष आदिवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में न जोड़ा जाए। लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पूरी तरह से बंद हो।
• पांचवी अनुसूची क्षेत्र के किसी भी गांव की सीमा में सर्च अभियान चलाने से पहले एवं कैंप स्थापित करने से पहले ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों की सहमति ली जाए। बिना ग्राम सभा की सहमति के लगाए गए सुरक्षा बलों के कैंप को हटाया जाए। स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए।
• राज्य में UAPA व राजद्रोह धारा के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक लगे।
• पत्थलगड़ी मामले की सभी प्राथमिकियों में closure रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें बंद किया जाए। टाना भगत के विरुद्ध मामलों को वापस लिया जाए।
• हिरासत में मौत मामलों के दोषी पुलिस अधिकारियों पर न्यायसंगत करवाई की जाए, लंबित मामलों में चार्जशीट दाखिल कर जांच पूरी की जाए एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप प्रत्येक थाने में cctv कैमरा लगाया जाए।
• अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हाल के समय हुए धार्मिक उन्माद व हिंसा के लिए ज़िम्मेदार दोषियों पर कार्यवाई हो, इन्हें न रोकने के लिए दोषी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाई हो एवं हिंसा में मारे गए मृतक के परिवार को मुआवज़ा मिले। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय पुलिस संवैधानिक मूल्यों व कानून का पूर्ण पालन करे। किसी भी प्रकार के धार्मिक उन्माद और हिंसा के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए एवं सरकारी वकील द्वारा पीड़ितों के न्याय के लिए निष्पक्ष रूप से कार्य किया जाए।
• निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और इस आयोग की कार्यप्रणाली जनता के लिए सुलभ हो। महिलाओं के लिए एक सिंगल विन्डो शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए जिससे महिलाएं किसी भी प्रकार के शोषण की स्थिति में न्यूनतम दस्तावेजों के साथ शिकायत दर्ज कर सकें।
प्रतिनिधिमंडल में अलोका कुजूर, अनिल सिंह, एलिना होरो, लालमोहन सिंह, पी एम टोनी व सिराज शामिल थे।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)
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