लोकमोर्चा ने कृषि कानूनों को बताया फासीवादी हमला, बनारस के बुनकर भी उतरे किसानों के समर्थन में

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बदायूं। लोकमोर्चा ने मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों को देश के किसानों पर फासीवादी हमला बताया है। संगठन ने कहा है कि कृषि कानूनों को संसद में असंवैधानिक तरीके से पारित कराने के लिए संवैधानिक लोकतंत्र का गला घोंटने, देशी-विदेशी बड़ी पूंजी कंपनियों को लूटने की खुली छूट देने, किसानों के लोकतांत्रिक आंदोलन पर पुलिस दमन करने से मोदी सरकार का फासीवादी चरित्र उजागर हो गया है।

उत्तर प्रदेश के बदायूं में लोकमोर्चा ने भारत बंद के समर्थन में जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे किसानों को पुलिस ने बल प्रयोग कर हटा दिया, इससे विरोध में लोकमोर्चा के संयोजक अजीत सिंह यादव धरने पर बैठ गए। बाद में सिटी मजिस्ट्रेट ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन लिया, उसके बाद धरना समाप्त कर दिया गया। ज्ञापन में असंवैधानिक तौर पर संसद में पारित कराए गए कृषि कानूनों को राष्ट्रपति से अस्वीकृत कर वापस करने की मांग की गई है।

अजीत ने कहा कि मोदी सरकार देशी-विदेशी बड़े पूंजी घरानों को देश लूटने की खुली छूट देने के लिए फासीवाद के रास्ते पर आगे बढ़ चली है। कृषि सुधार के तीन कानूनों का उद्देश्य भी कृषि और खाद्यान्न बाजार को देशी-विदेशी बड़ी पूंजी कंपनियों के हवाले करने का है। ये कानून लागू हो गए तो देश की सौ करोड़ की ग्रामीण आबादी देशी-विदेशी बड़ी कंपनियों की गुलाम हो जाएंगी।

अल्पमत में होते हुए भी मोदी सरकार ने राज्यसभा में विपक्ष के मत विभाजन की मांग को खारिज कर ध्वनिमत से जिस तरह काले कृषि कानूनों को पारित कराया है, उससे देश में संवैधानिक लोकतंत्र के खात्मे के संकेत दे दिए हैं। जम्मू कश्मीर के विभाजन और धारा 370 हटाने के मोदी सरकार के असंवैधानिक फैसले के वक्त और नागरिकता संशोधन कानून पारित किए जाने पर संवैधानिक लोकतंत्र की हत्या होते हम पहले भी देख चुके हैं ।

कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलते हुए मोदी सरकार देश की धन-संपदा, संसाधनों और जनता की पूंजी को बड़े पूंजीघरानों के हवाले करने के प्रोजेक्ट पर तेजी से काम कर रही है और उनके हाथों रेलवे, बैंक, एलआईसी से लेकर सभी पब्लिक सेक्टर के उपक्रमों को बेच रही है। एनपीएस के जरिए कर्मचारियों की पेंशन की पूंजी को पूंजीघरानों के हवाले किया जा रहा है। हाल ही में संसद में पारित लेबर कोड बिल और  प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल 2020 भी मोदी सरकार के इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि इससे देश में रोजगार के अवसर बड़े पैमाने पर घट गए हैं। छोटे-मझोले उद्योग-धंधे भी बर्बाद हो गए हैं। जनता के सामने रोजी, रोटी, रोजगार का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया है। जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने को मोदी सरकार और संघ भाजपा देश में सांप्रदायिक विभाजन और पड़ोसी देशों के विरुद्ध युद्धोन्माद का सहारा ले रहे हैं। सीएए, एनआरसी और एनपीआर भी उनके इसी फासीवादी प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि भारत के किसान, मजदूर, नौजवान आदिवासी, अल्पसंख्यक, व्यापारी और वंचित तबके एकजुट होकर मोदी सरकार और संघ-भाजपा के फासीवादी प्रोजेक्ट को विफल कर देंगे।

उन्होंने कहा कि इन कृषि कानूनों के लागू होने से देशी-विदेशी पूंजी कंपनियों को मनमाने तरीके से आलू, प्याज, दालों समेत खाद्यान्न के भंडारण और कालाबाजारी करने और कृत्रिम कमी पैदा कर मनमाने दाम वसूलने की खुली छूट मिल जाएगी। तीनों कृषि कानून किसानों की गुलामी के दस्तावेज हैं। इन कानूनों के जरिए मोदी सरकार ने एक बार फिर देश के फेडरल ढांचे पर बड़ा हमला बोला है। इन किसान विरोधी, देश विरोधी कृषि कानूनों को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं किया जा सकता।

प्रदर्शन में लोकमोर्चा की वर्किंग कमेटी के सदस्य सतीश कुमार, कादरचौक ब्लॉक अध्यक्ष अनेश पाल यादव, महामंत्री राम रहीश लोध, महाराम राजपूत, आदित्य, रंजीत सिंह, बाबूराम, कल्लू समेत दर्जनों लोकमोर्चा कार्यकर्ता मौजूद रहे।

किसान विरोधी बिल के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के तहत बनारस के कमालपुरा इलाके में बुनकर भी सड़कों पर उतरे। उन्होंने किसान विरोधी तीनों बिलों को वापस लेने की मांग की। साथ ही बुनकरों की फ्लैट रेट बिजली की पुरानी प्रणाली बहाल करने की भी मांग उठाई। वक्ताओं ने कहा कि इस बिल के जरिए सरकार फिर से देश में कंपनी राज स्थापित करना चाहती है, जो हमें कतई मंजूर नहीं है। मोदी-योगी सरकार फ्लैट रेट की पुरानी प्रणाली खत्म करके बुनकरों को भी खत्म करना चाहती है और बुनकरी को बड़ी पूंजी के हवाले करना चाहती है।

वक्ताओं ने कहा कि आने वाली 30 सितंबर को पूरे उत्तर प्रदेश के बुनकर फिर से सड़कों पर उतरेंगे और बुनकरों-किसानों-मजदूरों और नौजवानों के खिलाफ हो रहे हमले का जबाव देने की मुक्कमल शुरूआत करेंगे। फजलुर्रहमान अंसारी, मनीष शर्मा, अख्तर भाई, कासिम अली, स्वालेह अंसारी, बजले रहीम, नूरुल हक, जुबैर खान, शाहिद जमाल, फिरोज खान, मतीन भाई आदि मौजूद रहे।

किसान विरोधी कृषि विधेयकों को वापस लेने की मांग पर आयोजित भारत बंद के समर्थन में युवा मंच के कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद, सीतापुर, आगरा, सोनभद्र, आजमगढ़, चंदौली, जौनपुर सहित कई जनपदों में प्रदर्शन किया। इलाहाबाद में किसानों के समर्थन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने प्रदर्शन किया। इसमें युवा मंच के पदाधिकारी भी शामिल हुए। युवा मंच ने राष्ट्रपति को भी ज्ञापन भेजकर उनसे विधेयकों को बिना हस्ताक्षर के मोदी सरकार को वापस लौटाने की अपील की है।

किसानों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे विश्वविद्यालय के छात्रों की गिरफ्तारी की युवा मंच के संयोजक राजेश सचान ने तीखी निंदा की है। उन्होंने कहा कि खेती-किसानी पहले से ही चौपट है, इन विधेयकों के बाद कॉरपोरेट कंपनियों का एकाधिकार होने से किसान और तबाह हो जाएंगे। वहीं दूसरी ओर आम आदमी को मंहगी दरों पर खाद्यान्न मिलेगा। इससे आजीविका का जारी संकट और गहरायेगा। दरअसल समाज के सभी तबकों पर कॉरपोरेट वित्तीय पूंजी का हमला तेज हो गया है और अधिनायकवादी व्यवस्था को मोदी सरकार लागू करना चाहती है। शांतिपूर्ण आंदोलनों पर दमनचक्र चल रहा है, लेकिन अब आंदोलन रुकने वाला नहीं है। उन्होंने बताया कि रोजगार के अधिकार के लिए प्रदेश भर में आगामी 2 अक्टूबर को #रोजगार अधिकार सत्याग्रह होगा।

बरेली में भी किसानों ने कृषि कानूनों का विरोध किया। अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त तत्वावधान में भुता में किसानों ने प्रदर्शन किया। उन्होंने सड़क भी जाम कर दी।

आंदोलनकारियों ने कृषि अधिनियम रद्द करने, बैंक, बीमा, रेल का निजीकरण रोकने और श्रम कानूनो में मजदूर विरोधी परिवर्तन का विरोध किया। इस दौरान राजीव शांत, आबिद हुसैन, कमालुद्दीन, जलालुद्दीन, तुलाराम, पप्पू, लालाराम आदि मौजूद रहे।

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