पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं विधानसभा चुनाव के दौरान नंदीग्राम से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं ममता बनर्जी का चुनावी पिटिशन राजनीतिक मुद्दा बन गया है। अब सियासत क्या गुल खिलाती है यह बृहस्पतिवार को तय होगा। बात यहीं थम जाएगी या फिर दूर तलक जाएगी, यह भी बृहस्पतिवार को ही तय होगा।
कलकत्ता हाईकोर्ट का अपना 160 वर्षों का इतिहास है। यह पहला मौका है जब कोई पिटिशन इस कदर विवादित मुद्दा बन गयी है। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान कुछ एड्वोकेटों ने जस्टिस कौशिक चंद के कोर्ट के बाहर काला मास्क पहन कर अपना विरोध जताया था। इसके साथ ही सवाल उठाया था कि जो जज कभी भाजपा के सक्रिय सदस्य थे वह भाजपा के नेता और नंदीग्राम से उम्मीदवार रहे शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ दायर मामले में भला निष्पक्ष फैसला कैसे सुना सकते हैं। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर भी बहुत वायरल हुई है जिसमें जस्टिस कौशिक चंद चेयर पर बैठे हैं और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष भाषण दे रहे हैं।
ममता बनर्जी की एडवोकेट ने एक्टिंग चीफ जस्टिस के सचिव को एक पत्र लिखा है, जिसका मुख्य अंश यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि उनकी मुवक्किल, यानी ममता बनर्जी, ने एक इलेक्शन पिटिशन दायर किया है। यह पिटीशन शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ है जो नंदीग्राम में भाजपा के उम्मीदवार थे। उन्हें जानकारी मिली है कि जस्टिस कौशिक चंद एक जमाने में भाजपा के सक्रिय सदस्य थे। अगर जस्टिस चंद इस मामले की सुनवाई करते हैं तो मेरे मुवक्किल के मन में तर्कसंगत आशंका बनी रहेगी कि जज प्रतिवादी, यानी शुभेंदु अधिकारी, का पक्ष ले सकते हैं।
दूसरा है कि जस्टिस कौशिक चंद की स्थाई जज के पद पर नियुक्ति की पुष्टि की जानी है। चीफ जस्टिस ने मेरे मुवक्किल से मुख्यमंत्री के रूप में इस बाबत राय मांगी थी तो उन्होंने अपना एतराज जताया था। मेरे मुवक्किल को आशंका है कि जस्टिस चंद इस बात से उनकी आपत्ति के बारे में वाकिफ हैं, इसलिए इस बात की आशंका है की वे पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकते हैं।
अब इस मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार को होनी है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या-क्या संभावनाएं बन सकती हैं। हो सकता है कि जस्टिस चंद इस पिटिशन को सुनने से इंकार करते हुए इसे रिलीज कर दें। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में इस तरह के बहुत सारे नजीर हैं। अभी पिछले सप्ताह जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा को लेकर दायर पीआईएल पर चल रही सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। जस्टिस इंदिरा बनर्जी की ही एक और नजीर है। उन दिनों वे कलकत्ता हाई कोर्ट में थीं। तृणमूल कांग्रेस के एक नेता मदन मित्रा के एक मामले को उन्होंने सुनने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया था कि मदन मित्रा अपने बेटे के व्याह का निमंत्रण पत्र देने उनके घर आए थे। जस्टिस बनर्जी उस व्याह में नहीं गई थीं।
अब दूसरा सवाल है कि अगर जस्टिस चंद इस मामले को रिलीज नहीं करते हुए कहते हैं कि वह इसकी सुनवाई करेंगे तो फिर क्या होगा? चीफ जस्टिस इस मामले को तब तक किसी दूसरे जज को नहीं सौंप सकते हैं जब तक जस्टिस चंद इसे रिलीज नहीं करते हैं। अपिलेट साइड के रूल्स के मुताबिक जजों का डिटरमिनेशन तय होता है और इसी के मुताबिक उन्हें मामले आवंटित किए जाते हैं। ममता बनर्जी डिविजन बेंच भी नहीं जा सकती हैं क्योंकि डिविजन बेंच में सिंगल जज के आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है। लिहाजा जब जस्टिस चंद अपना फैसला सुनाएंगे तभी ममता बनर्जी उसके खिलाफ डिविजन बेंच में अपील कर सकती हैं। अब सभी की निगाहें बृहस्पतिवार को होने वाली सुनवाई पर लगी है।
इसके अलावा एक और मुद्दा भी है। जस्टिस चंद ने हाईकोर्ट के ओरिजिनल साइड के रजिस्ट्रार को आदेश दिया है कि वे इस बात की तस्दीक करें कि क्या ममता बनर्जी का यह पिटीशन जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धाराओं के अनुरूप है। अगर उनकी रिपोर्ट नकारात्मक आती है तो पिटिशन सुनवाई के पहले दिन ही खारिज हो जाएगी।
(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)
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