आज देश के सभी प्रतिष्ठित अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर यह खबर छपी है कि मोदी सरकार ने न्यूनतम मजदूरी में बड़े पैमाने पर इजाफा किया है। 1 अक्टूबर 2024 से यह बढ़ी हुई मजदूरी मजदूरों को मिलेगी।
इसकी सच्चाई यह है कि यह कोई सरकार द्वारा बढ़ाई गई मजदूरी नहीं है बल्कि हर 6 महीने पर आल इंडिया कनज्यूमर प्राइस इंडेक्स फॉर इंडस्ट्रीज के हिसाब से बढ़ने वाला महंगाई भत्ता है।
उसमें भी कृषि मजदूरों के अकुशल मजदूरों की 3 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी बढ़ी है, अर्द्ध कुशल, कुशल और अत्यधिक कुशल मजदूरों की महज 4 रुपए प्रतिदिन बढ़ी है। केन्द्र सरकार के उद्योगों में काम करने वाले अकुशल मजदूरों की मजदूरी 5 रुपए, अर्द्ध कुशल और कुशल की 6 रुपए और अति कुशल की 7 रुपए प्रतिदिन मजदूरी का इजाफा किया गया है।
मजदूरों की मजदूरी में इतनी कम वृद्धि को अखबारों ने सनसनी खेज तरीके से प्रचारित करके एक भ्रम पैदा किया है। मोदी सरकार के फर्जीवाडे़ को ना समझ पाने के कारण मजदूर भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया में इन खबरों को शेयर कर रहे हैं।
पिछली छमाही की औसत महंगाई दर के अनुसार केंद्र सरकार के अधीन आने वाले उद्योगों और निर्माण क्षेत्र के अकुशल मजदूरों को 783 रुपए प्रतिदिन, अर्द्ध कुशल मजदूरों को 868 रुपए प्रतिदिन, कुशल मजदूरों को 954 रुपए प्रतिदिन और अति कुशल मजदूरों को 1035 रूपए प्रतिदिन और महीने के हिसाब से क्रमशः 20358, 22568, 24804, 26910 रुपए मजदूरी मिलेगी।
इससे पहले दिल्ली सरकार की नई बनी मुख्यमंत्री आतिशी ने भी इसी तरह की घोषणा करते हुए बताया कि दिल्ली में 1 अप्रैल से कुशल, अर्द्धकुशल और कुशल मजदूरों की मजदूरी को सरकार ने बढ़ाने का काम किया है।
इसमें भी दिल्ली सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह रूटीन बढ़ोत्तरी है।
दरअसल यह न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अनुसार महंगाई भत्ता देने के कानूनी प्रावधानों के तहत हर 6 महीने पर स्वाभाविक रूप से बढ़ता है यानी हर वर्ष 1 अप्रैल और 1 अक्टूबर से यह वृद्धि होती है।
इस अधिनियम के अनुसार पहली बार 1957 में 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन में मिनिमम वेज की गणना करने की प्रक्रिया तय की गई थी।
इसके अनुसार 2700 कैलोरी का खाना तीन सदस्यों के लिए जिसमें पति-पत्नी और दो बच्चे हैं, वह प्रतिदिन उनको मिलना चाहिए, 72 गज कपड़ा प्रति साल उनको मिलना चाहिए, चार लोगों के रहने के कमरे का किराया होना चाहिए और 20 प्रतिशत ईंधन चार्ज के रूप में इसमें जोड़ा गया।
1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रैपटाकोरस केस में न्यूनतम मजदूरी गणना में त्योहारों को भी जोड़कर 25 परसेंट और बढ़ा दिया।
महंगाई भत्ता न्यूनतम मजदूरी का भाग नहीं होता। यह महंगाई भत्ता न्यूनतम मजदूरी के इतर महंगाई के अनुसार दिया जाता है। जिसे ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स फॉर इंडस्ट्रीज के जरिए तय किया जाता है और इसको लेबर ब्यूरो शिमला तय करता है।
जो हर 6 महीने में महंगाई का आंकड़ा देता है। उत्तर प्रदेश में भी इसके तीन केंद्र काम करते हैं। जो दाल, तेल, आटा, चावल, नमक, सब्जी, मसाले आदि खाद्य पदार्थों जैसी चीजों का बाजार से रेट लेते हैं और उसके अनुसार 6 महीने का एवरेज निकालकर वह प्राइस इंडेक्स तय करते हैं, जिसके जरिए महंगाई भत्ता मजदूरों के लिए तय किया जाता है।
सरकार की भूमिका न्यूनतम मजदूरी का हर 5 साल में रिवीजन करने में और उद्योगों को अधिसूचित करने में है। केंद्र में 19 जनवरी 2017 को न्यूनतम मजदूरी में संशोधन किया गया था।
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम की धारा 3 के अनुसार हर 5 वर्ष में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन करना अनिवार्य है। जिसके तहत 2022 में देशभर में केंद्र सरकार के अधीन विभिन्न उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों के वेज रिवीजन को होना था। जो दो साल बीतने के बावजूद अभी तक नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश में तो हालत बहुत ही बुरी है। यहां 2019 से न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन योगी सरकार ने नहीं किया है। कई बार विधानसभा में विभिन्न विधायकों द्वारा इस पर पूछे प्रश्नों के जवाब में मंत्री महोदय द्वारा यह कहा गया कि अति शीघ्र वेज रिवीजन कमेटी का गठन किया जाएगा और इसे सरकार लागू करेगी।
परन्तु आज तक वह ‘अति शीघ्र’ नहीं आया। परिणाम स्वरूप प्रदेश में केन्द्र के सापेक्ष न्यूनतम मजदूरी लगभग आधी है।
मौजूदा भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने तो और भी बुरी हालत कर दी है। चार साल पहले श्रम कानूनों को खत्म करके लेबर कोड संसद से पास किए गए। इनकी नियमावली भी बना ली गई है और अब मोदी सरकार इन्हें लागू करने में पूरी ताकत से लगी है।
श्रम विभाग भारत सरकार की टीम हर प्रदेश में जाकर भारत सरकार द्वारा बनायी नियमावली के अनुरूप राज्यों की नियमावली बनवा रहे हैं।
मिनिमम वेज एक्ट 1948 को खत्म करके वेज कोड में शामिल कर दिया है। इस वेज कोड में न्यूनतम मजदूरी से भी कम नेशनल फ्लोर लेवल मिनिमम वेज तय की गई है। जो आज की तारीख में 178 रुपए प्रतिदिन है।
इस पर ट्रेड यूनियन्स और मजदूरों के भारी विरोध के बाद केंद्र सरकार ने अर्जुन सतपति के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने 375 रुपए प्रतिदिन राष्ट्रीय फ्लोर लेवल न्यूनतम मजदूरी देने की संस्तुति की थी।
जिसका बड़ा विरोध कॉरपोरेट और उद्योगपतियों द्वारा किया गया। जिसके कारण इस कमेटी की संस्तुतियों को सरकार ने स्वीकार नहीं किया और एक नई कमेटी का निर्माण नेशनल फ्लोर लेवल वेज को तय करने के लिए किया है।
मजदूरों को ठेका मजदूर कानून और नियमों के तहत समान काम के समान वेतन का अधिकार है।
जगजीत सिंह बनाम स्टेट आफ पंजाब की रिट में पंजाब और हरियाणा के बिजली मजदूरों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2016 में दिए अपने निर्णय में स्पष्ट तौर पर कहा कि कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से ठेका मजदूर के बतौर बेहद कम मजदूरी में काम नहीं करता। अपने परिवार के रोटी, कपड़ा, मकान के लिए वह अपने आत्म सम्मान, गरिमा, आत्म मूल्य और अखंडता की कीमत चुकाता है।
सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी भी कल्याणकारी राज्य में समान काम करने वाले मजदूर को कम मजदूरी कतई नहीं दी जा सकती। निर्णय में कहा गया कि निसंदेह समान काम की कम मजदूरी देना शोषण व दास बनाना और दमनकारी कृत्य है।
केन्द्र सरकार ने लेबर कोड में समान काम के समान वेतन के प्रावधान को ही समाप्त कर दिया है।
सरकार एक तरफ काम के घंटे बढ़ाने में लगी है और दूसरी तरफ मजदूरी की दरों को घटाने में लगी हुई है। यह पूंजी के आदिम संचय को लगातार बढ़ाना है और इस प्रक्रिया में सरकार कारपोरेट्स और बड़े पूंजी घरानों का एजेंट बनती जा रही है।
सरकार के इस चरित्र का दिन प्रतिदिन खुलासा होता जा रहा है और इसे छिपाने के लिए ही सरकार मजदूरी बढ़ाने के झूठे प्रचार का ढिंढोरा पीट रही है।
मजदूरों को मोदी सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी पर किए जा रहे इस फर्जीवाड़े से सावधान रहना होगा और संविधान में प्रदत्त सम्मानजनक जीवन जीने के अपने अधिकार को हासिल करने के लिए आगे आना होगा।
(दिनकर कपूर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं)
आपका लेख पढ़ कर दिल खुश हो गया आप जैसे पत्रकारों को मेरा दिल से सलाम