भूपेश बघेल पूजा करते हुए।

खास रिपोर्ट: अयोध्या में योगी ही नहीं, कांग्रेस के भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ में बनवा रहे हैं राम मंदिर!

रायपुर। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के आने के बाद छत्तीसगढ़ की जनता ने एक सुर में ऐलान किया था कि सूबे में सत्ता की बागडोर पिछड़ों और किसानों के हितैषी भूपेश बघेल के हाथों में आ गयी है। लेकिन शासन के दो साल पूरे होते ही राज्य की पूरी तस्वीर बदल गयी है और इस तरह से सोचने वालों को तगड़ा झटका लगा है। क्योंकि जनता की उन उम्मीदों पर खरा उतरने की जगह भूपेश सरकार ने हिंदुत्व की पालकी ढोना शुरू कर दिया है। 

बता दें कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के 51स्थलों का चयन कर “राम वन गमन पथ” योजना का नाम देकर राम मंदिर का निर्माण कराने जा रही है। उसके लिए सरकार ने बाकायदा लगभग 10 करोड़ का बजट भी पारित कर दिया है। यह बात सही है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने किसान कर्ज माफी, टाटा जमीन अधिग्रहण वापसी, किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना, नरवा, घुरवा, बॉडी योजना सरीखी कई उपलब्धियां हासिल कीं। लेकिन लगता है कि इन योजनाओं से सरकार को जरूरी समर्थन नहीं मिल पा रहा है। लिहाजा भूपेश सरकार ने अब हिंदुत्व का दामन थाम लिया है। अभी भी तक सरकार के वादे के अनुरूप पेसा एक्ट क्रियान्वयन, वन अधिकार कानून का पालन जैसे आदिवासी हितों के काम अधर में हैं लेकिन इनको पूरा करने की जगह सरकार अब राम मंदिर जैसे निर्माण के जरिये साफ्ट हिन्दुत्व के रास्ते पर बढ़ चली है।

दरअसल, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार राम वन गमन पथ योजना के तहत 51 स्थानों पर 10 करोड़ की लागत से राम मंदिरों का निर्माण करा रही है। बताते चलें कि इस योजना में अधिकतर आदिवासी और पिछड़ा बहुल क्षेत्र जुड़े हैं। सरकार का कहना है कि इन 51 स्थानों का राम से संबंध है जहां कथित तौर पर वे वनवास के दौरान गए थे। इनमें कोरिया जिले के सीतामढ़ी-हरचौका, सीतामढ़ी-घाघरा, कोटाडोल, सीतामढ़ी-छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम) देवसील, रामगढ़ (सोनहट), अमृतधारा, सरगुजा जिले के देवगढ़, जशपुर जिले के किलकिला (बिलद्वार गुफा), सारासोर, सरगुजा जिले के सीताबेंगरा (रामगढ़ पहाड़ी), महेशपुर, बंदरकोट (अंबिकापुर से दरिमा मार्ग), मैनपाट, मंगरेलगढ़, पम्पापुर, जशपुर जिले के रकसगण्डा, जांजगीर-चांपा जिले के चंद्रपुर, शिवरीनारायण, खरौद, जांजगीर, बिलासपुर जिले के मल्हार,

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के धमनी, पलारी, नारायणपुर (कसडोल), तुरतुरिया, महासमुंद जिले के सिरपुर, रायपुर जिले के आरंग, चंद्रखुरी, गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर, रायपुर जिले के चम्पारण्य, गरियाबंद जिले के राजिम (लोमष ऋषि, कुलेश्वर, पटेश्वर, चम्पकेश्वर, कोपेश्वर, बम्हनेश्वर एवं फणिकेश्वर), धमतरी जिले के मधुबन धाम (राकाडीह), अतरमरा (ग्राम अतरपुर), सिहावा (सप्त ऋषि आश्रम), सीतानदी, कांकेर जिले के कांकेर (कंक ऋषि आश्रम), कोण्डागांव जिले के गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशिला (फरसगांव), नारायणपुर जिले के नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर, दंतेवाड़ा जिले के बारसूर, बस्तर जिले के चित्रकोट, नारायणपाल, जगदलपुर, दंतेवाड़ा जिले के गीदम, दंतेवाड़ा, बस्तर जिले के तीरथगढ़, सुकमा जिले के तीरथगढ़, रामाराम, इंजरम और कोंटा शामिल हैं।

दिलचस्प बात यह है कि बस्तर अंचल के कांकेर जिले में राम वन गमन पथ योजना के तहत राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन तक कर दिया गया है। मंदिर भूमिपूजन के बाद कहा गया कि भगवान राम के जन्म स्थल अयोध्या में जिस प्रकार का राम मंदिर बन रहा है उसी की तर्ज में राम मंदिर बनाया जाएगा। 

राम वन गमन पथ योजना के तहत राम मंदिर निर्माण का अब विरोध भी चालू हो गया है। आदिवासी संगठनों ने एक स्वर में कहा है कि आदिवासी प्राकृतिक पूजक है और आदिवासी क्षेत्रों में मंदिर निर्माण की सरकार की मंशा आदिवासी संस्कृति को नेस्तानबूत करने की है। 

बीती 21 जुलाई, 2020 को छत्तीसगढ़ के भिलाई में जंगो-लिंगो आदिवासी महिला समिति ने दुर्ग एसडीएम कार्यालय पहुंच कर राम गमन पथ एवं राम मंदिर निर्माण के विरोध में राज्यपाल अनुसईया उईके के नाम ज्ञापन सौंपा।  वहीं छत्तीसगढ़ के जांजगीर, कोरबा, सक्ति में गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने भी विरोध में ज्ञापन दिया। 

फारवर्ड प्रेस की एक खबर के मुताबिक पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने  राज्य सरकार की राम वन गमन पथ विकास योजना के संदर्भ में कहा कि “सुकमा जिले में स्थित मेरे गांव रामाराम में जमींदारों का मंदिर है। वहां टंगे बोर्ड से मुझे पता चला कि वहां राम वन गमन पथ बनने वाला है। छत्तीसगढ़ सरकार जो कर रही है उससे मुझे आश्चर्य हो रहा है। मुझे बाद में पता चला कि छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों में भी सरकार यही करने जा रही है और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने की बात कह रही है। मेरा मानना है कि आदिवासी क्षेत्र में वैसे भी राम वन गमन मार्ग का कोई मतलब नहीं है। हम पर हिंदूवादी संस्कृति जबरन थोपी जा रही है। यह बिल्कुल ठीक नहीं है। इसका विरोध होना चाहिए। हम कानून के अनुसार ग्राम सभा में प्रस्ताव लाकर इसका विरोध करेंगे। यह पूरी तरह से हिंदूवादी संस्कृति को थोप कर दलित, आदिवासी, बहुजनों की संस्कृति खत्म करने की साजिश है।” 

बता दें कि जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब कांग्रेस की अजीत जोगी सरकार ने आदिवासियों के पेन गुड़ी के जीर्णोद्धार के लिए पैसे दिए। हमारी परंपरा में पेनगुड़ी झोपड़ीनुमा होता है। लेकिन इस योजना से पेनगुड़ी मंदिर में तब्दील हो गए! यही नहीं हमारे पेन स्थानों के बगल में हिन्दू देवी देवताओं के मूर्ति बन गए। अब पूजा भी होने लगी है।

राज्य सरकार की इस पहल का अनेक दलित, आदिवासी व ओबीसी बुद्धिजीवियों ने विरोध किया है। उनके मुताबिक राज्य सरकार का यह कदम द्विजों के सांस्कृतिक वर्चस्ववाद को बढ़ावा देगा और दलित-बहुजनों के सांस्कृतिक प्रतिवाद के आंदोलन को कमजोर करेगा।

(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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