एक बार फिर हिंदुत्व की ड्योढ़ी पर भाजपा 

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मिले सुर मेरा तुम्हारा की तर्ज़ पर जातिगत जनगणना से उपजे हालात पर काबू पाने के लिए संघ और भाजपा एकजुट हुए लगते हैं। दोनों हिंदुत्व की ड्योढ़ी पर पुनर्वापसी के लिए तैयार बैठे थे। संघ की समन्वय बैठक में संकेत मिलते ही दनादन नफरती चिंटुए निकल आए।

गौ रक्षा के नाम पर हरियाणा के फरीदाबाद में गौ तस्कर समझ अपने ही कुनबे के एक विद्यार्थी आर्यन मिश्रा पर गोली चलाकर शिकार बना लिया। गाय माता ने शायद तसल्ली की सांस ली होगी क्योंकि बहुत दिनों से अखलाक, मसूद जैसे लोगों की बलि नहीं चढ़ी थी। अब तो कोई भी मरे गौरक्षा का बिगुल बजाया जा चुका है।

आर्यन के पिता का यह सवाल गौरक्षकों को गोली मारने की अनुमति किसने दी, की गूंज चहुंओर सुनाई दे रही है। काश! यह सवाल पहले किसी भारतवासी ने उठाया होता तो अखलाक जैसे कई लोग हलाक नहीं हो पाते।

बहरहाल अब यह रुकने वाला सिलसिला नहीं है क्योंकि उनकी नज़र में गाय के प्रति उपजी संवेदनाएं बड़ा वोट बैंक बनाती हैं तथा मुसलमानों के प्रति नफ़रत का भाव सुलगाती हैं।

बाबरी विध्वंस और 2002 के प्रायोजित दंगों के बाद मुसलमान शब्द के प्रति इतनी नफ़रत के बीज हिंदुओं के बीच बोये गये। जिसने एक जंगल का आकार ले लिया है। इसलिए मुसलमान पर हुए हमलों के बीच कोई हिंदू नहीं निकलता है। चाहे अंदर अंदर कितना प्यार हो।

मुस्लिम विरोधी माहौल बनाकर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण एक बार फिर करने की कोशिश जारी है। अब केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जी के विचार ही सुन लें कि ‘यदि हिंदुओं को विभाजन के बाद जवाहरलाल नेहरू भारत ले आए होते और मुसलमानों को पाकिस्तान भेज दिए होते तो सामाजिक समरसता को कोई खतरा नहीं रहता।

अगर पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू प्रतिकार करना सीख जाते तो देश ऐसी स्थिति में नहीं होता। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल के सीमावर्ती जिले पूर्णिया, कटिहार, अररिया तथा किशनगंज में डेमोग्राफी बदल रही है। जब तक देश में सनातनियों का बहुमत है तभी तक लोकतंत्र है।

कहने का आशय यह कि मुसलमान की आबादी कम की जाए। इसलिए पक्का मान कर चलें कि मुस्लिमों, दलित, पिछड़ों और भाजपा-विरोधियों को दहशत में लाने के लिए हमले बढ़ेंगे। सतर्क और सावधान रहें। डरे नहीं। हमारा संविधान सनातन अकेले का नहीं सभी धर्मावलंबियों का है।

इस बीच राजनैतिक फ़िज़ा दस सालों में बहुत बदल चुकी है। नफ़रत के विरुद्ध मोहब्बत की दुकान राहुल गांधी ने जिस दिलेरी से दो चरणों की भारत जोड़ो यात्रा में सफलता पूर्वक चलाई तथा सत्ता की बाधाओं को पार करते हुए पूर्ण की। उसने लोगों को निडर और सबल बनाया है।

जिसने इस ख़ामोशी की कारा को तोड़ा है जिससे ना केवल भाईचारा बढ़ा है बल्कि राहुल गांधी में अवाम ने भरोसा भी जताया है। इस साहस को, मोहब्बत के पैगाम को इंडिया गठबंधन ने महत्ता दी अधिकांश विपक्षी दल एक हुए और लोकसभा को दस वर्ष बाद राहुल गांधी को प्रतिपक्ष के नेता पद पर बैठाया। जिससे लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने का हथियार विपक्ष को एक चुनौती के रुप में मिल गया है।

अब प्रतिपक्ष की बारी है कि वह मज़बूती के साथ संघ और भाजपा की इन सुविचारित नीतियों के विरुद्ध सक्रियता से हमलावर हो क्योंकि 2024 के आम चुनाव में येन-केन-प्रकारेण सरकार बनाने वाले आगत चुनावों में फिर मनुसंहिता लादने और हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रयास में जुट गए हैं। पालघर महाराष्ट्र में जिस तरह हिंदू आतंक फैलाने की रसद मिली है, वह तो एक बानगी है। मालेगांव और प्रज्ञा को हमें नहीं भूलना चाहिए।

लेकिन निराश होने की ज़रूरत नहीं है दिल्ली विश्वविद्यालय ने जिस तरह से मनुस्मृति पढ़ाने के मामले को खारिज किया है, वह महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर के दमन का निर्णय भी प्रदेशों में मौजूद भाजपाई सरकार के लिए दुखदाई है।

दुखदाई तो जातिगत जनगणना के प्रति प्रतिबद्धता भी है। ममता का विपरीत स्थितियों में अपराजिता विधेयक पास कर दुष्कर्म करने वालों को 36 दिन में फांसी की सज़ा का प्रावधान कर सबके मुंह पर करारा तमाचा जड़ दिया गया है। संघ कहता रह गया और भाजपा ममता राज हटाने का प्लान बनाती रह गई।

नीतीश कुमार और तेलुगू देशम की बैशाखियों का खतरा सतत मंडरा रहा है। इधर मानसून ने भी मोदी राज के भ्रष्टाचार की जिस तरह कलई खोली है, उससे विकास की असली तस्वीर उजागर हुई है।

इतना ही नहीं, अहमदनगर महाराष्ट्र के पठान बाबाभाई अपनी मुंह बोली बहन सविता की दो बेटियों (गौरी और सौरी) का कन्यादान कर रहे हैं, क्योंकि इन बच्चियों के वालिद नहीं हैं। नफरतों के पुनः स्थापित किए जा रहे दौर में ये काम सहजता से होना मोहब्बत की विजय के रुप में देखा जाना चाहिये।

कुल मिलाकर मोदी जी की सरकार का हाल बदतर है। सदन में तो खेल प्रतिपक्ष ने बिगाड़ा ही है, अब तो उनका रिमोट कंट्रोल ही खराब हो गया है। आसन्न संकट के समय राम जी, हनुमानजी, महाकाल सब नाराज हैं।

उधर शिवाजी महाराज की प्रतिमा का गिरना महाराष्ट्र के दरवाज़े बंद कर देने वाला है। लोगों का ख्याल है कि जब देवतागण मोदी सरकार से नाराज़ हैं, तो हिंदुत्व का कार्ड कैसे चल पाएगा। उनकी बात में दम तो है। जनता सजग और चेतना सम्पन्न हुई है। अब उसे देश की और बर्बादी नहीं चाहिए।

(सुसंस्कृति परिहार एक्टिविस्ट और लेखिका हैं।)

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