किसान बिलों पर केंद्र के रवैये से नाराज समूचे विपक्ष ने किया मानसून सत्र का बायकॉट

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नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा को बंधक बनाकर कृषि बिल पास कराने के विरोध में कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने मानसून सत्र का बहिष्कार कर दिया है। सबसे पहले कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी, टीएमसी और लेफ्ट पार्टियों के सांसदों के साथ सदन से वॉक आउट किया। इसके बाद राष्ट्रीय जनता दल, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, शिव सेना आदि पार्टियों ने भी वॉकआउट लेटर लहराकर सदन छोड़ दिया। नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने प्रेस कान्फ्रेंस करके विपक्षी दलों द्वारा राज्यसभा के मानसून सत्र के बहिष्कार की जानकारी दी है।

राज्यसभा में विपक्ष के हंगामे का कारण
गुलाम नबी आज़ाद ने विपक्ष द्वारा राज्यसभा में किए गए हंगामे के कारणों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “राज्यसभा हंगामे का जो प्रश्न पैदा हुआ उसका मुख्य कारण सदन का समय बढ़ाने को लेकर था। समय बढ़ाने के पक्ष में 18 पार्टियां थीं, जबकि केवल एक पार्टी थी जो चाहती थी कि समय न बढ़े। हमेशा जब भी ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तब बहुमत का फैसला माना जाता है, जोकि नहीं माना गया। इसकी वजह से जो बिल है वो शोर-शराबे में पास हुआ।

उन्होंने कहा कि राज्यसभा की हमेशा परंपरा रही है कि कोई भी कानून शोर-शराबे में पास नहीं होता था, लेकिन दुर्भाग्य से किसानों से संबंधित बिल, जिसमें करोड़ों किसानों का इंट्रेस्ट है वो क्लास बाई क्लास बगैर वोटिंग के पास हुआ। विपक्ष ने किसानों के हित में बिल में सुधार करने के लिए जो सलाह और सुझाव दिए थे उन पर वोटिंग नहीं हुई।”

उन्होंने कहा कि स्वर्गीय अरुण जेटली ने कहा था कि कोई बिल यदि बगैर वोटिंग के पास होता है तो गैरकानूनी होगा। वो एक अच्छे वकील भी थे और उनकी पार्टी के नेता थे। मैंने उनको भी कोट दिया। मैंने सुप्रीम कोर्ट को भी कोट किया, जोकि उत्तारखंड सरकार को लेकर था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को भी लिखा है कि बिल पास होने के लिए ज़रूरी संसदीय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है। इसे स्वीकृति न दी जाए।

विपक्षी दल बहिष्कार क्यों कर रहे
विपक्षी दल सदन का बहिष्कार क्यों कर रहे हैं? इस को स्पष्ट करते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, “हमने सरकार के सामने तीन शर्तें रखी हैं। कल जो एमएसपी सरकार ने घोषणा की उसका मतलब है कि मंत्री और सरकार के बीच में कोई कोआर्डिनेशन नहीं है। जब परसों बिल ला रहे थे तो एमएसपी उसमें घोषित करनी चाहिए थी। जब विपक्ष ने हंगामा किया तो उसके दो दिन के बाद एमएसपी घोषित की। एमएसपी को लेकर हमने तीन शर्तें रखी हैं और जब तक ये तीन कंडीशन पूरी नहीं होती हम बहिष्कार जारी रखेंगे।”

उन्होंने कहा कि ओपेन मार्केट में जो भी किसान बेचे वो एमएसपी से नीचे नहीं बेचे। खरीदने वाला एमएसपी से नीचे नहीं खरीद सकता और ऐसा करना गैरकानूनी घोषित किया जाए। एमएसपी से नीचे खरीदने पर कानूनी सजा होनी चाहिए।एमएसपी फिक्स होनी चाहिए। स्वामीनाथन आयोग की सलाह के आधार पर एमएसपी फिक्स होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्राइवेट एजेंसी के बगैर भी राज्य संस्थाएं और भारत की केंद्र सरकार की फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया अगर कृषि उत्पाद खरीदती है तो चाहे स्टेट एजेंसी हो, चाहे सरकार एमएसपी से नीचे कृषि उत्पाद न खरीद सकें उनके लिए भी ये नियम हों।

उधर, कांग्रेस नेता जय राम रमेश ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “कांग्रेस और कांग्रेस की तरह सोचने वाली राजनीतिक पार्टियां राज्यसभा के बाकी बचे हुए मानसून सत्र का बहिष्कार निम्न परिस्थितियों के चलते करती हैं-

जिस तरीके से सरकार ने बिल को बुलोडज किया है।
जिस तरीके से 8 सांसदों को बाकी बचे हुए सत्र से सस्पेंड किया गया है।
जिस तरीके से नेता प्रतिपक्ष को बोलने तक का अवसर नहीं दिया गया।
जिस तरीके सरकार ने विपक्ष के दृष्टि को समायोजित करने में फेल हुई है।
जिस तरीके से इतने महत्वपूर्ण बिल को स्टैंडिंग कमेटी या सेलेक्ट कमेटी को नहीं रिफर किया गया।
जिस तरीके से 2 महत्वूपर्ण कृषि बिलों पर मतविभाजन को नकार दिया गया।
जिस तरीके से एमएसपी को एग्रीकल्चर मार्केटिंग लॉ का हिस्सा नहीं बनाया गया और एमएसपी को प्राइवेट ट्रेड पर इस लागू नहीं होने दिया गया।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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