खबर है कि आईआईएम बेंगलुरु फैकल्टी के मौजूदा और सेवानिवृत्त सदस्यों ने कॉर्पोरेट इंडिया के नाम खुला खत जारी किया है, और उनसे अपील की है कि देश में न्यूज़ के नाम पर झूठी अफवाह फैलाने और हेट स्पीच को बढ़ावा देने वाले न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया साइट के वित्तीय पोषण को बंद कर देश की फिजा को और खराब होने से बचाने की पहल करें।
आज देश ही नहीं पूरे विश्व में भारत की छवि बड़ी तेजी के साथ गिरती जा रही है। जीडीपी के आंकड़ों को छोड़ दें तो लगभग सभी सूचकांक में भारत का प्रदर्शन अब कमोबेश सबसे गरीब और अलोकतांत्रिक देशों की सूची के समतुल्य नजर आता है। इसका भारी नुकसान बहुसंख्यक आम नागरिकों को ही नहीं बल्कि भारत में विदेशी निवेश पर भी पड़ा है। इसके अलावा भारतीय लोकतंत्र को फलता-फूलता देखने की इच्छा रखने वाले तीसरी दुनिया के देशों सहित पश्चिमी देशों की जनता भी तेजी से भारत के बारे में अपने पूर्व के विचारों को त्यागने के लिए मजबूर हो रही है।
इसी को ध्यान में रखते हुए और देश की आन्तरिक स्थिति से चिंतित देश के चुनिंदा लब्धप्रतिष्ठ संस्थानों में से एक आईआईएम बेंगलुरु के फैकल्टी मेंबर्स और सेवानिवृत्त सदस्यों ने एक खुला पत्र लिखकर अपनी चिंताओं को भारतीय कॉरपोरेट के साथ साझा कर एक बड़ी पहल ली है। अपने पत्र में इनका कहना है कि हम व्यक्तिगत हैसियत से भारतीय कॉरपोरेट्स के दिग्गजों के नाम संदेश पहुंचाना चाह रहे हैं कि देश में हिंसक झड़प और आंतरिक सुरक्षा की लगातार बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से हेट स्पीच और भ्रामक प्रचार करने वाले आउटलेट के वित्तपोषण पर रोक लगानी चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान, भारत में सार्वजनिक बहसों, टेलीविजन की खबरों के साथ ही सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुले तौर पर घृणा का प्रदर्शन एक आम चलन सा हो गया है। अल्पसंख्यकों को संदर्भित करते हुए उन्हें इतर दिखाने, अमानवीयता एवं भयातुर भाषा का प्रयोग चिंताजनक स्तर तक पहुंचा दी गई है। इतना ही नहीं अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक घृणा अपराधों को अक्सर संगठित एवं धर्मांध समूहों द्वारा उत्तरोतर बढ़ाया जा रहा है। हाल के सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस एवं सुरक्षा बलों की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई न करने, पिछले दंगों में बलात्कार और सामूहिक हत्याओं के दोषियों को सजा मुक्त करने और क्षमादान की घटनाओं में प्रशासन की चुप्पी सरकार की तात्कालिकता के प्रति उदासीनता को स्पष्ट रूप से उजागर कर रही है।
इन प्रवृत्तियों पर कॉर्पोरेट इंडिया को चिंतित होने की आवश्यकता है, क्योंकि ये देश के भीतर बढ़ते हिंसक झड़प की ओर इशारा कर रही हैं। सबसे खराब स्थिति में इस प्रकार के हिसंक कृत्य आगे चलकर सामूहिक नरसंहार में तब्दील हो सकते हैं, जो सामाजिक ताने-बाने को खत्म करने के साथ-साथ देश की अर्थव्यस्था को चौपट कर सकते हैं, और देश की अर्थव्यस्था पर गहरे अन्धकार के बादल छा सकते हैं। कॉर्पोरेट इंडिया, जिसे 21वीं सदी में अंतर्राष्ट्रीय विकास एवं नवोन्मेष में नई ऊंचाइयां हासिल करने की उम्मीद है, उसके लिए इस प्रकार की परिस्थिति में अपने लिए थोड़ी सी उम्मीद की संभावना भी नहीं करनी चाहिए।
भारत में विभिन्न संप्रदाय के लोगों के बीच में सहिष्णुता एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ एक साथ रहने का लंबा इतिहास रहा है, और हमारा मानना है कि भारत में अभी भी बड़े पैमाने पर हिंसक संघर्ष और नरसंहार का खतरा न्यून स्तर पर है। हालांकि देश में नागरिकों को जिस प्रकार से बड़े पैमाने पर धर्मांधता के स्तर पर ले जाया जा रहा है, उसे देखते हुए यह खतरा अब शून्य के स्तर पर नहीं रहा, और ऐसा वातावरण निर्मित हो रहा है जिसमें किसी अप्रत्याशित अशांति के ट्रिगर होने पर व्यापक पैमाने पर हिंसा के लिए जमीन तैयार हो चुकी है।
यदि ऐसा नहीं भी होता और भारत ऐसे खतरे से बच निकलता है, इसके बावजूद इतना तय है कि देश में बढ़ते अमानवीयकरण वाले भाषणों एवं बढ़ती धर्मांधता के चलते देश का सामाजिक ताना-बाना लगातार बिगाड़ा जा रहा है, जो अनिवार्य रूप से हिंसा और सामाजिक-आर्थिक अनिश्चतता को अग्रगति देने का काम करने जा रहा है, जो अंततः देश के भविष्य को स्थायी रूप से विकलांग बना देगा।
हमारा मानना है कि कॉर्पोरेट इंडिया के लिए देश के भीतर शांति, स्थायित्व एवं एकजुटता का महत्व सबसे ऊपर है, जिसके बिना भारत आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित नहीं हो सकता। इस घृणा एवं झूठी खबरों के प्रसार को रोकने में कॉर्पोरेट इंडिया के दिग्गजों की महती भूमिका हो सकती है।
आईआईएम बेंगलुरु फैकल्टी के मौजूदा और सेवानिवृत्त सदस्यों ने कहा- हम कॉर्पोरेट इंडिया से निवेदन करते हैं कि:
- घृणा के वित्तपोषण पर रोक लगायें: ऐसे सभी न्यूज़ एवं सोशल मीडिया संगठन जो सार्वजनिक तौर पर किसी खास समुदाय के लोगों के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर घृणा का माहौल या नरसंहार की सामग्री जारी करते हैं।
- जिम्मेदार हितधारकों का समर्थन करें: उन्हें आंतरिक ऑडिट के जरिये इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके द्वारा जारी किया जाने वाला फंड सिर्फ ऐसे न्यूज़ एवं सोशल मीडिया संगठन से सम्बद्ध हितधारकों को प्राप्त हो जो खुद को जिम्मेदाराना ढंग से संचालित कर रहे हैं और घृणा एवं झूठ के प्रचार-प्रसार से खुद को दूर रखे हुए हैं।
- स्वागत भाव वाली कार्य संस्कृति को अपने संगठन में स्थापित करने की पहल: अनिवार्य रूप से अपने संस्थानों के भीतर विविधता एवं समावेशी संवेदीकरण के कार्यक्रमों को समय-समय पर करने, जिससे कि कार्य संस्कृति में विभिन्न संप्रदायों एवं सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के प्रति स्वागतभाव की भावना कायम रहे।
- भ्रातृत्व के लिए अपनी आवाज बुलंद करें: भारत की विविध सामाजिक ताने-बाने, सार्वजनिक बहस और लोकतांत्रिक संस्थाएं सुदृढ़ बनी रहे को मुखर रहते हुए सुनिश्चित करें।
- घृणा के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करें।
अपनी निजी हैसियत से निम्न लोगों ने इस पत्र को हस्ताक्षरित किया है:
अनुभा धस्माना प्रतीक राज, अर्पिता चटर्जी, राघवन श्रीनिवासन (सेवानिवृत्त), आरके चन्द्रशेखर (सेवानिवृत्त), राजलक्ष्मी वी मूर्ति, दीपक मलघन, ऋत्विक बनर्जी, हेमा स्वामीनाथन, एम एस शालिक, कृष्णा टी कुमार (सेवानिवृत्त), सोहम साहू, मलय भट्टाचार्य (सेवानिवृत्त), श्रीनिवासन मुरली, मीरा बाखरू (सेवानिवृत्त), विनोद व्यास्लू (सेवानिवृत्त), पी डी जोस।
निश्चित रूप से यह खुला पत्र किसी बड़े विस्फोट से कम नहीं है। देश में समूचा विपक्ष पिछले दो सप्ताह से मणिपुर हिंसा को पिछले 90 दिनों से रोक पाने में विफल एवं खमोश प्रधानमंत्री की चुप्पी को तोड़ने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र एवं मणिपुर राज्य सरकार के समानांतर न्यायिक जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच टीम की नियुक्ति की है और सभी महिला न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) की नियुक्ति कर स्वतंत्र जांच को सुनिश्चित करने का फैसला लिया है।
इसी प्रकार हरियाणा में नूंह हिंसा के बाद राज्य सरकार के एक समुदाय के खिलाफ बुलडोजर अभियान पर स्वतः संज्ञान लेते हुए पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला लिया है। अब देश के एक प्रमुख शिक्षण संस्थान आईआईटी बेंगलुरु के शिक्षाविदों और कॉर्पोरेट से संबद्ध संस्थान का देश के बिगड़ते माहौल पर संज्ञान एक बड़ी उपलब्धि समझी जानी चाहिए। देश को इसका स्वागत करना चाहिए।
(रवींद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)