ग्राउंड रिपोर्ट: 2024 आम चुनाव का रिहर्सल है उत्तराखंड का बागेश्वर उपचुनाव!

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बागेश्वर। उत्तराखंड के बागेश्वर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है। यह सुरक्षित सीट विधायक और मंत्री चंदनराम दास के निधन के बाद खाली हो गई थी। 5 सितंबर को बागेश्वर में वोट डाले जाएंगे और 8 सितंबर को चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस उपचुनाव को उत्तराखंड में 2024 के आम चुनाव के रिहर्सल के रूप में देखा जा रहा है, लिहाजा कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहे हैं।

माना जा रहा है कि इस उपचुनाव में विधानसभा सीट जीतने वाली पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर पाएगी। पिछले लोकसभा में राज्य की सभी 5 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।

उत्तराखंड में मिनी आम चुनाव कहे जा रहे बागेश्वर उपचुनाव का जायजा लेने के लिए ‘जनचौक’ ने इस विधानसभा क्षेत्र के कई कस्बों और गांवों का जायजा लिया। हमने मुख्य रूप से यह जानने की कोशिश की कि इस उपचुनाव में उत्तराखंड में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मसले मुद्दे बन पा रहे हैं या नहीं। ‘जनचौक’ ने अपना यह चुनावी दौरा बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के पहले कस्बे कौसानी से शुरू किया।

कौसानी एक पर्यटक स्थल है। यह प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली है। और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी यहां  प्रवास किया था। गांधी जी ने अनासक्ति योग टीका यहीं लिखी थी। यहां अनासक्ति आश्रम भी है, जिसे गांधी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। कौसानी कस्बे का आधा हिस्सा अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र में है जबकि बाकी आधा हिस्सा बागेश्वर जिले के बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में।

कासौनी में हमें प्रेम सिंह राणा मिले। वे मौजूदा राजनीति से नाराज दिखे। वे लोगों से भी नाराज हैं। वो कहते हैं, “हर घर में बेरोजगार बैठे हैं। सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं। जो सरकारी स्कूल चल रहे हैं, उनकी बिल्डिंग टूट रही हैं। बीमार लोगों की अस्पताल पहुंचने से पहले की मौत हो रही है, लेकिन हमारे लोग 5 किलो राशन में ही खुश हैं।” प्रेमसिंह राणा के “अनुसार यह चुनाव 5 किलो राशन के लिए ही हो रहा है। और आगे के सारे चुनाव भी इसी के लिए होंगे, बाकी हमें कुछ नहीं चाहिए।”

प्रदीप पंत कौसानी में अपने पिता की परचून की दुकान पर बैठते हैं। पिता-पुत्र दोनों भाजपा के समर्थक हैं। रोजगार के मुद्दे पर पूछे जाने पर प्रदीप कहते हैं कि “रोजगार की उत्तराखंड में कोई समस्या नहीं है। लगातार वैकेंसी निकल रही हैं और भर्तियां हो रही हैं।” इस पूरे दौरे के दौरान रोजगार के मुद्दे पर सवाल किये जाने में हर भाजपा समर्थक का यही जवाब था।

कौसानी से करीब 22 किमी नीचे उतर कर बागेश्वर जिले का एक प्रमुख कस्बा गरुड़ है। कौसानी में जलवायु बेहद ठंडी है और गर्मियों में भी गर्म कपड़ों की जरूरत पड़ती है, वहीं गरुड़ में अच्छी खासी गर्मी महसूस की जा सकती है। अनाज का कटोरा कही जाने वाली इस घाटी को कत्यूर घाटी या गोमती घाटी कहा जाता है। कत्यूरों ने लंबे समय तक इस घाटी में राज किया था। गोमती नदी गरुड़ के पास बैजनाथ से बहती है। बैजनाथ एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल भी है।

बड़ा कस्बा होने के कारण गरुड़ में चुनावी गतिविधियां कौसानी की तुलना में काफी ज्यादा हैं। ऐसा कोई भवन या शहर का ऐसा कोई कोना नहीं, जहां भाजपा अथवा कांग्रेस के झंडे न लगे हों। दोनों पार्टियों की बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगी गाड़ियां गरुड़ के एक छोर से दूसरे छोर की तरफ भाग रही हैं। कार्यकर्ताओं के झुंड जगह-जगह नजर आ रहे हैं। गरुड़ में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जो किसी न किसी पार्टी से न जुड़ा हो।

भाजपा या कांग्रेस के बिल्ले लगभग हर व्यक्ति के सीने पर टंगे नजर आये और गले में अपनी-अपनी पार्टियों के गमछे भी। इनमें से हमने कई लोगों से बात करने का प्रयास किया, लेकिन दोनों पार्टियों से जुड़े लोग अपनी-अपनी पार्टी की जीत के दावे से आगे कुछ नहीं कह पाये। जिन लोगों के सीने पर किसी पार्टी के बिल्ले नहीं थे, उन्होंने चुनाव के बारे में अनभिज्ञता जताई और कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

तमाम सरकारी दावों के बावजूद उत्तराखंड के कई गांवों अब भी सड़क की पहुंच से काफी दूर हैं। ‘जनचौक’ ऐसे ही एक गांव में पहुंचा। गांव का नाम है मनाखेत। यह गांव गरुड़ से करीब 30 किमी दूर है और गांव पहुंचने के लिए करीब 4 किमी पैदल चलना पड़ता है। मनाखेत बागेश्वर जिले का एक बड़ा गांव माना जाता है। अच्छी-खासी खेती वाले इस गांव की जनसंख्या एक हजार से ज्यादा है।

पहाड़ के कई अन्य गांवों की तुलना में इस गांव में पलायन नहीं है या बहुत कम है। एक हजार की आबादी पहाड़ के नजरिये से एक बड़ी आबादी मानी जाती है। यहां हर चुनाव में 300 से ज्यादा वोट पड़ते हैं। 2012 से इस गांव में भाजपा को हर बार 250 से ज्यादा वोट पड़ते रहे हैं, जबकि कांग्रेस को 50 से कम। गांव वालों की प्रमुख समस्या सड़क न होना है।

गांव में सरुली देवी मिलती हैं। वो कहती हैं कि “जब भी कोई चुनाव होता है तो हमें सड़क बनाने का आश्वासन दिया जाता है। लेकिन, अब तक सड़क नहीं बनी है।” गांव की महिलाओं का कहना है कि अब तो उन्हें चुनाव का ही बहिष्कार करना पड़ेगा। कांग्रेस इस गांव के लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है। पार्टी की एक मीटिंग भी गांव में हो रही है। इसमें पास के कपकोट विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण भी शामिल हैं।

मीटिंग में गांव के पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। महिलाएं बताती हैं कि गांव वाले कांग्रेस को भी वोट देते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने भी गांव के लिए सड़क नहीं बनवाई। पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण महिलाओं को बताते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में सड़क को मंजूरी दी जा चुकी थी। बजट भी मंजूर हुआ है, लेकिन बीजेपी ने सड़क बनाने की जरूरत नहीं समझी।

चुनावी हवा बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे के कार्यकर्ताओं को अपनी तरफ मिलाने का भी अभियान चला रही हैं। हम बागेश्वर जिले के अंतिम गांव सिरखेत में हैं। यह चमोली और बागेश्वर जिले का सीमावर्ती गांव है। सिरखेत के चारों तरफ बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के कई अन्य गांव भी हैं। यह पूरा क्षेत्र पिछले कई चुनावों से भाजपा का गढ़ रहा है। इस बार कांग्रेस यहां सेंध लगाने में सफल रही है।

कांग्रेस ने सिरखेत और आसपास के कई गांवों में भाजपा के कार्यकर्ताओं को अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया है। यहां कांग्रेस ने एक सभा आयोजित की है। सभा में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पार्टी उम्मीदवार वसंत कुमार भी यहां मौजूद हैं। करीब दर्जनभर महिला और पुरुष कार्यकर्ताओं को कांग्रेस का गमछा पहनाकर कांग्रेस में शामिल किया गया है।

सिरखेत के भाजपा के एक स्थानीय नेता राजेन्द्र प्रसाद मिले। वे पार्टी के कई जिला स्तरीय पदों पर रह चुके हैं। यह पूछने पर कि भाजपा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है, वे कहते हैं कि “हमें तो किसी से कुछ कहने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। बस मोदी और धामी कह दो, इतना ही बहुत है।”

इस सवाल का राजेन्द्र प्रसाद के पास कोई जवाब नहीं है कि बागेश्वर का उप चुनाव भी मोदी के नाम पर लड़ा और जीता जाएगा तो फिर स्थानीय समस्याओं का क्या होगा। राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं कि “हमें तो चुनाव प्रचार करने की भी जरूरत नहीं है। हम तो अपने-अपने बूथ लेबल पर दिन में आपस में मिल लेते हैं, साथ में बैठकर खाना खा लेते हैं, किसी से मिलना हो तो मिल लेते हैं। हर घर में हमारा कार्यकर्ता है, इसलिए हमें बहुत ज्यादा प्रचार करने की जरूरत नहीं है।”

भाजपा कार्यकर्ता और उसके नेता बेशक इस उप चुनाव को 15 हजार से ज्यादा वोटों से जीतने का दावा कर रहे हों, लेकिन वास्तव में भाजपा अंदरखाने चुनाव के संभावित नतीजों को लेकर परेशान है। यही वजह है कि देहरादून से बेरोजगार संघ के कार्यकर्ता जब रोजगार के मोर्चे पर राज्य सरकार की विफलताओं को लेकर बागेश्वर में लोगों से बातचीत करने के इरादे से पहुंचते हैं तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेती है।

हालांकि इन युवाओं की गिरफ्तारी आखिरकार भाजपा के लिए ही नुकसानदेह साबित हुई है। 25 अगस्त को बेरोजगार संघ के नेता बॉबी पंवार अपने 5 अन्य साथियों के साथ बागेश्वर गये थे। वे पहले ही प्रशासन को सूचित कर चुके थे वे रोजगार के मुद्दे को लेकर लोगों से बातचीत करेंगे। लेकिन, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। हालांकि उसी शाम कोर्ट ने उन्हें बिना शर्त रिहा कर दिया।

26 अगस्त की सुबह ‘जनचौक’ ने बॉबी पंवार और उनके साथियों के साथ मुलाकात की। बॉबी पंवार ने कहा कि “राज्य सरकार अपनी संभावित हार से बौखलाई हुई है। उनकी और उनके साथियों की गिरफ्तारी इसीलिए की गई है।” उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी गिरफ्तारी के समय मौके पर सिर्फ पुलिस ही नहीं बल्कि बजरंग दल के लोग भी मौजूद थे।

बॉबी पंवार ने विजय परिहार नामक एक व्यक्ति का सोशल मीडिया अकाउंट दिखाया। उसकी डीपी पर भाजपा उम्मीदवार पार्वती दास का फोटो लगा है। विजय परिहार बेरोजगार संघ के युवाओं की गिरफ्तारी के समय मौके पर मौजूद था, जिसकी वीडियो क्लिप भी बॉबी पंवार ने हमें दिखाई। बॉबी पंवार के अनुसार यह व्यक्ति एक खास रणनीति के तहत वहां लाया गया था। वह बेरोजगार संघ जिन्दाबाद के नारे लगाकर पुलिस की मदद कर रहा था।

बागेश्वर जिला मुख्यालय में बॉबी पंवार और उनके साथियों की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक हलकों पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। भाजपा से जुड़े कमल परिहार कहते हैं कि “ये चुनाव का वक्त है ऐसे में बॉबी पंवार को बागेश्वर नहीं आना चाहिए था।” लेकिन, क्यों नहीं आना चाहिए था, इस सवाल का जवाब कमल परिहार सहित किसी भाजपा समर्थक के पास नहीं है।

बागेश्वर में एक्टिविस्ट रमेश कृषक से मुलाकात होती है। वे कहते हैं कि “स्थानीय और राज्य की समस्याओं को मुद्दा बनाना हम काफी पहले छोड़ चुके हैं।” वे कहते हैं कि “बागेश्वर उप चुनाव में फौरी तौर पर देखें तो भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने हैं, लेकिन वास्तव में यह चुनाव राज्य सरकार वसंत कुमार के खिलाफ लड़ रही है।”

केशव भट्ट कहते हैं कि “चुनाव में मुद्दे भी होते हैं, ये न सिर्फ बागेश्वर बल्कि पूरे उत्तराखंड में लोग भूल चुके हैं। यहां तो सिर्फ उम्मीदवार देखा जाता है, पार्टी देखी जाती है और किसको कितना व्यक्तिगत लाभ हो रहा है ये देखा जाता है।” वे कहते हैं कि “भाजपा को तो मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। वह मोदी के नाम पर वोट मांग रही है। कांग्रेस बेरोजगारी आदि के मुद्दे उठा रही है, लेकिन जिस आक्रामक तरीके से ये मुद्दे उठाये जाने चाहिए, उसका अभाव नजर आ रहा है। एक स्थानीय पार्टी उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी जरूर मुद्दों को लेकर मैदान में है, लेकिन इस पार्टी की स्थिति इतनी कमजोर है कि उसके मुद्दों को मतदाता गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है।”

बागेश्वर के पत्रकार संतोष फुलारा कहते हैं कि “दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को लेकर लोगों में कहीं न कहीं नाराजगी है। भाजपा ने दिवंगत विधायक चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को मैदान में उतारा है। सवाल उठाया जा रहा है कि परिवारवाद की बात करने वाली भाजपा ने पार्वती दास को क्यों टिकट दिया, जबकि इससे पहले वे कभी किसी राजनीतिक मंच पर नहीं रहीं। कभी सार्वजनिक जीवन में भी नहीं रहीं। चुनाव प्रचार में वे सिर्फ रोकर सहानुभूति वोट लेने का प्रयास कर रही हैं।”

दूसरी तरफ कांग्रेस उम्मीदवार वसंत कुमार को लेकर भी कई बातें हो रहे हैं। उनके कुछ पुराने वीडियो भी वायरल किये जा रहे हैं, जिसमें वे जाति विशेष को लेकर टिप्पणी करते सुनाई दे रहे हैं। संतोष फुलारा के अनुसार वसंत कुमार को कांग्रेस का आम कार्यकर्ता भी स्वीकार नहीं कर पा रहा है। वे 2022 का विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़े थे। 2017 का चुनाव उन्होंने बसपा की टिकट पर लड़ा था। ऐसे में लोग अंतिम समय में क्या फैसला करेंगे, यह कहा नहीं जा सकता।

(त्रिलोचन भट्ट पत्रकार हैं और उत्तराखंड में रहते हैं।)

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