नये संसद भवन के प्रथम और ऐतिहासिक सत्र में 19 सितम्बर को लोकसभा को संबोधित करते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ‘‘आज जब हम एक नई शुरूआत कर रहे हैं तब हमें अतीत की हर कड़वाहट को भुलाकर आगे बढ़ना है। स्पिरिट के साथ जब हम यहां से, हमारे आचरण से, हमारी वाणी से, हमारे संकल्पों से जो भी करेंगे, देश के लिए, राष्ट्र के एक-एक नागरिक के लिए वो प्रेरणा का कारण बनना चाहिए और हम सबको इस दायित्व को निभाने के लिए भरसक प्रयास भी करना चाहिए।’’
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि हमें सारा राष्ट्र देख रहा है इसलिये ‘‘ हम सभी को संसदीय परंपराओं की लक्ष्मण रेखा का अनुसरण करना चाहिए’’। लेकिन प्रधानमंत्री की सांसदों से की गयी भविष्य की इन अपेक्षाओं को दो दिन के अन्दर भाजपा के अपने ही सांसद रमेश बिधूड़ी ने तार-तार कर दिया। हैरानी का विषय तो यह है कि जब बिधूड़ी बसपा सदस्य को गरियाने के साथ धमका रहे थे तो सत्ताधारी दल के सदस्य अट्टाहस कर उनके हौसले बढ़ा रहे थे।
वैसे भी बिधूड़ी संसद के बाहर ऐसी हरकतों के लिये ही ज्यादा जाने जाते रहे हैं। 21 सितंबर को विशेष सत्र के दौरान लोकसभा में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी मिसाल भारतीय संसदीय इतिहास में शायद ही मिलेगी। सांसद रमेश बिधूड़ी ने चंद्रयान-3 की उपलब्धियों पर चर्चा के दौरान बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के साथ जो व्यवहार किया वह किसी गुंडई से कम नहीं।
बिधूड़ी के अति अशोभनीय शब्दों को भले ही लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया हो मगर भारतवासियों के दिलो-दिमाग से कोई भी कैसे हटा पायेगा? संसद में हंगामा, नारेबाजी, गर्मागरम बहसें, अराजक स्थिति और कभी-कभी आक्रोशित कटु टिप्पणियां कोई नयी बात नहीं है। छीनाझपटी के कारण एक बार महिला आरक्षण बिल पेश नहीं हो पाया था। इसलिये अब प्रधानमंत्री ने इस तरह के आचरण को पुराने संसद भवन में ही छोड़ने का आवाहन किया था।
ऐसी अवांछित घटनाओं के कारण लोकसभा के पहले स्पीकर जीवी मावलंकर, जिन्हें पीठासीन पदाधिकारियों के लिये आदर्श और अनुकरणीय माना जाता है, ने 15 मई 1952 को पहली कार्यवाही से पहले कहा था कि सदन में, ‘‘बहस के उपयोगी, सहायक और प्रभावी होने के लिए खेल भावना, आपसी सद्भावना और सम्मान का माहौल एक आवश्यक शर्त है।’’
लेकिन तब से लेकर अब तक सदन का परिदृश्य ही बदल गया है। जब बिधूड़ी धमकी और गालीगलौच पर उतर रहे थे तो कुछ सदस्य ठहाके लगा रहे थे। चूंकि लोकसभा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है इसलिये उसे देशवासियों की भावनाओं का प्रतिबिम्ब भी माना जा सकता है। यद्यपि समाज में लाखों की संख्या में बिधूड़ी मौजूद हैं जो कि अपने जहरीले विचारों से समाज का माहौल बिगाड़ने का प्रयास करते रहते हैं।
बिधूड़ी ने जो भाषा बोली है उसकी गूंज अक्सर लोकतंत्रकामियों को परेशान करती रहती हैं। लेकिन उस दुर्भावना का इस तरह संसद में प्रकट होना अत्यन्त चिन्ताजनक है। लोकतंत्र के मंदिर में बिधूड़ी के आचरण ने लोकतंत्र की जननी भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल करने के स्वयं प्रधानमंत्री की छवि पर असर डाला है।
भाजपा को तो इसी तरह का आचरण पसन्द है। अगर न होता तो बिधूड़ी की क्या मजाल थी। वैसे भी भाजपा में बिधूड़ियों की भरमार है। इसके बाद भी अगर भाजपा बिधूड़ी को महज कारण बताओ नोटिस जारी कर कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है तो बिधूड़ी के आचरण को भाजपा का परोक्ष समर्थन ही माना जायेगा।
इसी तरह लोकसभा स्पीकर द्वारा बिधूड़ी को चेतावनी देना और उनके शब्द कार्यवाही से हटाना काफी नहीं है। उनकी सदस्यता को कुछ समय के लिये निलंबित करना भी काफी नहीं है, क्योंकि अनुशासनहीनता पर सदस्यों का निलंबन होता रहता है। जबकि यह केवल अनुशासनहीनता तक सीमित नहीं है बल्कि साफ गुंडई है जिसकी सजा अदालत के हाथ में न हो कर केवल मास्टर ऑफ द हाउस, स्पीकर के हाथ में है या फिर सदन के पास है। संविधान स्पीकर या लोकसभा को अपने सदस्यों को निलंबित करने का ही नहीं बल्कि उनकी सदस्यता समाप्त करने का अधिकार भी देता है।
संविधान लागू होने के अगले ही साल सन् 1951 में एजी मुद्गल के साथ ऐसा हो चुका है। तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के इस सदस्य पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप था और उनकी सदस्यता की समाप्ति का नेहरू ने पुरजोर समर्थन किया था।
उसके बाद 15 नवंबर 1976 को सुब्रह्मण्यम स्वामी को देश से बाहर जाकर संसद को लेकर गलत कमेंट करने की वजह से राज्यसभा से निकाल दिया गया। 18 नवंबर 1977 को इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री रहते हुए पद के दुरुपयोग और कई अन्य आरोपों के चलते अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तथा संसदीय समिति की जांच के बाद 18 दिसंबर 1978 को इंदिरा के खिलाफ वोटिंग हुई और उनकी सदस्यता छीन ली गई।
इसी तरह वर्ष 2005 में नोट फॉर क्वेरीज मामले में लोकसभा में एक स्पेशल कमेटी गठित हुई थी। इस कमेटी ने पैसा लेकर संसद में सवाल पूछने वाले 10 लोकसभा सांसदों के खिलाफ जांच की और फिर उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गयी थी। जिसमें 10 सदस्य लोकसभा के थे और एक राज्यसभा का सदस्य था। इन 10 सदस्यों में 6 बीजेपी के, 3 बसपा के और एक-एक आरजेडी और कांग्रेस के थे।
वर्ष 2016 में विजय माल्या को भी ‘एथिक्स कमेटी’ की जांच के बाद राज्यसभा से निकाल दिया गया था। देश की संसद से किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ इस तरह विषवमन करना और एक सांसद से निपट लेने की धमकी देना गंभीर अपराध है और ऐसे व्यक्ति को सांसद रहने या न रहने पर अवश्य विचार होना चाहिये। बिधूड़ी का यह आचरण पहली बार सामने नहीं आया। इसी साल अगस्त में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को बौना दुर्योधन बता कर बवाल खड़ा किया था।
उससे पहले 2015 में पांच महिला सांसदों, रंजीत रंजन (कांग्रेस), सुष्मिता देव (तब कांग्रेस के साथ), सुप्रिया सुले (एनसीपी), अर्पिता घोष (तृणमूल कांग्रेस) और पीके श्रीमती टीचर (सीपीआई-एम) ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के समक्ष बिधूड़ी द्वारा उनसे गाली गलौच की शिकायत दर्ज कराई थी।
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ बार बार अपशब्दों का प्रयोग करने पर आप नेता राघव चड्ढा की शिकायत पर निर्वाचन आयोग ने रमेश बिधूड़ी को नोटिस जारी किया था। बिधूड़ी ने 2017 में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो पर भी आपत्तिजनक टिप्पणियां कर विवाद खड़ा किया था।
लोकसभा हो या राज्यसभा या फिर विधानसभा, सभी सदनों की अपनी आचरण नियमावली होती है। यहां तक कि सदस्यगण शब्दावली अनुशासन से भी बंधे होते हैं। एक बार स्वयं स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा था कि असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी पहली बार 1954 में जारी की गई थी।
इसके बाद इसे 1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 में जारी किया गया। 2010 के बाद से इसे हर साल जारी किया जा रहा है। नवीनतम् बुकलेट में 1100 पेज हैं। ये लिस्ट लोकसभा-राज्यसभा के साथ ही विधानसभा की कार्यवाहियों के दौरान असंसदीय घोषित किए गए शब्दों को मिलाकर बनती है।
चूंकि बिधूड़ी की शब्दावली इतनी निम्न स्तर की है जो कि असंसदीय शब्दों की डिक्श्नरी में नहीं समा पायी इसलिये बिधूड़ी को अपशब्दों की डिक्शनरी में श्रीवृद्धि करने के योगदान के लिये भी यथोचित इनाम मिलना चाहिये।
(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तराखंड में रहते हैं।)
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