स्पेशल स्टोरी: बिहार में संघ और भाजपा किस तरह हत्या को जातिगत हत्या बनाने की कोशिश कर रहे हैं?

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पटना/सुपौल। मार्च 2022 में सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक मामूली घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यहां भी हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं, वो अब कहाँ जाएं? उस वक्त केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की पार्टी सरकार में थी। जब वो बेगूसराय में साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की कोशिश कर रहे थे। आज 6 महीने बाद गिरिराज सिंह की पार्टी विपक्ष में है और वह सांप्रदायिक नहीं बल्कि जातीय हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। अन्य विपक्षी दल के बड़े नेताओं ने गिरिराज सिंह पर यह आरोप लगाया है।

बेगूसराय के पूरे मामले से जानिए जातीय हिंसा भड़काने का सच

बिहार के बेगूसराय जिला में सड़क पर सरेआम बाइक सवार दो युवकों ने बेखौफ होकर गोलीबारी कर बेगूसराय के सड़कों पर दस लोगों को गोली मारी। जिसके बाद नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह लगातार अपने बयानों से बिहार को जंगल राज घोषित करते रहे। पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने ट्वीट कर कहा- निकलिए नहीं बाजार में, नहीं तो मार दिया जाएगा गोली कपार में… नीतीशेजी के नयेका सरकार में! गिरिराज सिंह गोलीबारी में मरे लोगों को कंधा देने तक पहुंच गए। इतना ही नहीं उस वक्त ट्विटर के माध्यम से गिरिराज ने नीतीश से सवाल किया कि क्या उनको दर्द तभी होगा जब घटना में किसी मुसलमान की मौत होगी?

घटना के चंद दिनों बाद ही बेगूसराय पुलिस ने सभी अपराधियों को पकड़ लिया। इसके बाद से भाजपा के किसी भी वरिष्ठ नेता का कोई बयान नहीं आया है। प्रियांशु कुशवाहा बिहार राजनीति पर अच्छी पकड़ रखते हैं। वो बताते हैं कि, “बेगूसराय गोलीकांड के चारों आरोपी पकड़े गए हैं। ये चार नाम केशव, सुमित, युवराज और नागा है। किसी मीडिया संस्थान ने इन नामों को सरनेम के साथ नहीं छापा है। जब अपराधी स्वजातीय निकल आए तो भू-मीडिया ऐसे ही पर्दा डाल देती है। इन लोगों ने नब्बे के दशक को भी ऐसे ही बदनाम किया था। तेजस्वी जी से अनुरोध है अब और फजीहत करवाए बिना इन्हें ईडब्ल्यूएस कोटे से नौकरी दें। बाकि अपराधियों की कोई जाति नहीं होती, कृपया इनकी जाति खोजकर जातिवादी ना बनें।”

नीतीश कुमार ने मरने वालों की जाति क्यों बताई?

बेगूसराय शूटआउट में मारे गए लोगों की जाति के साथ अन्य जानकारी भी सरकार की रिपोर्ट में लिखी थी। जाति इस तरह की घटना में लिखी नहीं जाती है। जिसके बाद सोशल मीडिया पर नीतीश कुमार को जातिगत नेता घोषित करने की कोशिश शुरू हो गई। जेएनयू से पढ़े नंद देव सुपौल में कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं। वो बताते हैं कि, “अगर सरकार के द्वारा मरने वाले की जाती नहीं बताई जाती तो बेगूसराय जातियों के आधार पर बंट गया होता। बीजेपी के नेताओं के द्वारा ऐसा माहौल बनाया जा रहा था कि एक खास जाति के लोगों को निशाने पर आरोपी ने लिया है। इसलिए नीतीश कुमार ने मरने वालों की जाति भी बताई है।”

भाजपा का बेगूसराय मॉडल ही 90 का बिहार है

यूट्यूबर दुर्गेश कुमार बहुजन राजनीति पर अक्सर वीडियो बनाते रहते हैं। वो बताते हैं कि “महा गठबंधन सरकार के आते ही बिहार ने बहुत कुछ बदलता देखा है। रोज़गार के नए साधन तलाशे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री जनता दरबार लगा रहे हैं। आपराधिक मामलों में लिप्त मंत्री इस्तीफा सौंप आते हैं। अब क्या चाहिए? इसके बावजूद भाजपा के सत्ता से जाने के बाद से ही टीवी वाले इसे जंगलराज का आगमन बता रहे हैं। क्योंकि मेन स्ट्रीम मीडिया पर बीजेपी और संघ का शासन है।”

“बेगूसराय मॉडल का मामला बहुत ही खतरनाक मंसूबे वाला था। ऐसा लगता था कि इसके द्वारा जनता को सड़क पर उतारने की साजिश रची गई थी ताकि केंद्र सरकार बिहार सरकार को अस्थिर कर सके। वह तो अच्छा हुआ कि अपराधी पकड़े गए। और नेताजी के स्वजातीय थे। याद रखियेगा भाजपा का बेगूसराय मॉडल ही 90 का बिहार है।” आगे दुर्गेश कुमार बताते हैं।

शाह ने 10 बार जंगलराज की दिलाई याद

नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के बाद पहली बार अमित शाह बिहार दौरे पर आए तो अमित शाह ने अपने 31 मिनट के भाषण में 22 बार नीतीश-लालू का नाम लिया और 10 बार से ज्यादा जंगलराज की याद दिलाए।

चुनाव के इतने दिनों पहले अमित शाह के इस रैली से सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई नीतीश मोदी का समीकरण बिगाड़ रहे हैं?

वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक संजीव झा बताते हैं कि, “अगर नीतीश के नेतृत्व में वाकई विपक्ष एक हो जाए तो अगले चुनाव में 150 सीटों पर बीजेपी यानी मोदी की परेशानी बढ़ सकती है। एक तरफ वो सीमांचल में सेक्यूलरिज्म का खेल खेल रहे हैं। वहीं जाति को तोड़ने की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं। नया राजद बीजेपी के अगड़ा वोट बैंक में उन्होंने सेंधमारी की है। इससे भी पार्टी पूरी तरह सतर्क है।”

नरेंद्र मोदी वर्सेज नीतीश कुमार का राजनीतिक द्वंद्व खासा दिलचस्प साबित होगा

पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेमंत कुमार झा लिखते हैं कि, “लगभग 17 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 8वीं बार फिर से शपथ लेना दर्शाता है कि बिहार की जटिल सत्ता राजनीति में नीतीश कितने प्रासंगिक हैं। 243 में 164 विधायक आज भी उनके समर्थन में हैं। डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सत्ता में बने रहे किसी राजनीतिक नेता की ऐसी स्वीकार्यता के उदाहरण विरल ही होंगे। विपक्षी खेमे में उनके आते ही एक नए उत्साह का संचार हुआ है। हजारों उपलब्धि और दोष के बावजूद ऐसा क्या है नीतीश कुमार में कि पाला बदलते ही उनका नाम सीधे प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवारों में लिया जाने लगा है?”

“राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग ने उन्हें नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में चर्चाओं के केंद्र में ला दिया। इतने वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी उन्होंने बिहार को भाजपा के उग्र हिंदुत्व की प्रयोगशाला नहीं बनने दिया। नीतीश कुमार भविष्य में प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनें या न बनें, इतना तो तय है कि विपक्षी खेमे में उनके आ जाने के बाद 2024 की लड़ाई को एक अलग धार मिलने की संभावना बलवती हो गई है।”

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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