केरल में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की भाजपा के साथ केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे और राज्यपाल की मनमानी को लेकर जारी कानूनी लड़ाई अब मोदी के साथ वाकयुद्ध तक सिमटकर रह गई है। हालांकि थोथी बयानबाजी तक सीमित इस जंग में बीजेपी को कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।
2019 में जिस प्रकार से यहां पर दक्षिणपंथी उभार देखा जा रहा था, वह अब काफी हद तक थम गया है। कम से कम यह कहा जा सकता है कि अब यह उतना तीव्र नहीं रह गया है जितना कि 2019 में था। तब भाजपा की कोशिश केरल में यूडीएफ को हटाकर खुद को मुख्य विपक्ष के तौर पर खड़ा करने की थी, जो फ्लॉप साबित हो गई है। आइए इस राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में विस्तार से जांच करते हैं।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कर रहे हैं आरएसएस के आदमी के तौर पर काम
राज्यपालों के माध्यम से विपक्ष शासित राज्य सरकारों को परेशान करने की केंद्र की रणनीति जनता की निगाह में खारिज़ हो जाने के बाद न सिर्फ मोदी सरकार के लिए अलाभकारी सिद्ध होती जा रही थी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में की गई यह तीखी टिप्पणी कि जनता द्वारा चुनी गई लोकप्रिय सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपालों द्वारा रोककर “आग के साथ खेलने का काम किया जा रहा है” के बाद यह दांव केंद्र सरकार के लिए उल्टा भी पड़ रहा है।
दूसरे शब्दों में कहें तो सर्वोच्च अदालत के कहने का तात्पर्य यह था कि जिन राज्यपालों का दायित्व ही संवैधानिक शासन को सुनिश्चित करने का है, वे आज खुद संविधान का उल्लंघन करने के मामले में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
हालांकि 11 नवंबर 2023 को कोर्ट की ओर से की गई यह टिप्पणी मुख्य रूप से पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के खिलाफ दायर की गई याचिका के संदर्भ में थी, लेकिन यह टिप्पणी केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर भी समान रूप से लागू होती है, क्योंकि पिनाराई सरकार ने भी 2 और 8 नवंबर 2023 को इसी प्रकार की दो याचिकाएं दायर की थीं।
राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिकाओं में केरल के राज्यपाल द्वारा कई विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजने के बजाए अपने पास रोके रखने की शिकायत की गई है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी न केवल विजयन के लिए एक नैतिक-राजनीतिक जीत है, बल्कि इससे बड़बोले राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के ऊपर लगाम लगने की भी उम्मीद है, जिन्हें आमतौर पर आरएसएस के गुर्गे के तौर पर बढ़-चढ़कर काम करने के रूप में देखा जाता है।
अब उनके पास उन 8 विधेयकों को आगे बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया है, जिसे केरल विधानसभा द्वारा पारित कर राष्ट्रपति से मंजूरी हासिल करने के लिए राज्यपाल को सौंपा गया था, जिस पर आरिफ पिछले 2 साल से बैठे हुए हैं।
संसाधनों के बंटवारे को लेकर जुबानी जंग जारी
एलडीएफ सरकार आंकड़े दिखाते हुए तर्क पेश कर रही है कि 15वें वित्त आयोग के नए राजकोषीय हस्तांतरण फॉर्मूले एवं जीएसटी को लागू करने की वजह से केरल को अब तक करीब 28,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। इतना ही नहीं बल्कि केंद्र स्वीकृत राशि को रोककर बैठा हुआ है और राज्य के वाजिब हिस्से को भी समय पर जारी नहीं कर रहा है। इसमें भी विशिष्ट रूप से कहें तो राज्य सरकार का आरोप है कि इस वित्तीय वर्ष में अगस्त तक केंद्र से 3,680 करोड़ रुपये की देयराशि भी अभी तक जारी नहीं की गई है।
यहां तक कि अप्रैल 2023 में खुद मोदी जब कोच्चि में अपना हाई-प्रोफाइल रोड शो कर रहे थे, तब उन्होंने केरल की ओर से वित्तीय भेदभाव की आलोचना को पूरी तरह से खारिज करते हुए खुलेआम घोषणा की थी कि एक मजबूत केंद्र हर हाल में होना जरूरी है। इस मुद्दे पर कोरोना काल के बाद से अब तक राज्य और केंद्र के बीच विभिन्न स्तरों पर जुबानी जंग बनी हुई है, लेकिन राजकोषीय स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हो पाया है।
कोच्चि बम धमाकों पर राजनीति
मई 2023 में मोदी के करीबी गुजराती फाइनेंसरों के सहयोग से निर्मित दक्षिणपंथी प्रोपेगेंडा फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ की रिलीज के बाद, केरल को इस्लामिक आतंकवादियों के लिए स्वर्ग के रूप में निरूपित करते हुए पीएम मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर हमला करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसी प्रकार 29 अक्टूबर 2023 को, जब ईसाई संप्रदाय जेहोवा के साक्षियों के सम्मेलन में बम विस्फोट की घटना हुई तो भाजपा तत्काल निशाना लगाने के लिए कूद पड़ी और हड़बड़ी करने लगी।
इससे पहले कि जांच में खुलासा होता कि धमाकों के पीछे किसका हाथ था, केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एलडीएफ पर आरोप मढ़ दिया कि वह केरल को आतंकवादियों की नर्सरी बना रही है। बम ब्लास्ट के लिए उन्होंने इस्लामी आतंकवादियों को भी जिम्मेदार ठहरा दिया और मुख्यमंत्री को उनकी “तुष्टिकरण की राजनीति” के चलते उन्हें इस घटना के लिए व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार ठहरा दिया था।
किसी और व्यक्ति की बात क्या कहें, स्वयं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक ने विजयन पर इस्लामी कट्टरपंथियों को बचाने के आरोप मढ़ दिए। जबकि ज़मीनी स्तर पर आरएसएस इस मुद्दे का इस्तेमाल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए करने की जुगत में लगा हुआ था। राज्य सरकार ने तत्काल मामले की जांच एनआईए को सौंप दी। लेकिन यह मुद्दा उतनी ही तेजी से तब फीका पड़ गया जब विस्फोटों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति डोमिनिक मार्टिन ने स्वेच्छा से आत्मसमर्पण कर दिया, और पता चला कि इस ब्लास्ट के पीछे की वजह यहोवा के साक्षियों के भीतर की आंतरिक कलह है।
दुर्भाग्यवश कोच्चि में कलामासेरी विस्फोटों ने केरल में अल्पसंख्यक विमर्श की धार को कुंद करने का काम किया है। हाल के दिनों केरल में चर्च के भीतर मणिपुर में हिंदू कट्टरपंथियों की भूमिका को लेकर आलोचना बढ़ती जा रही थी, लेकिन अति-रूढ़िवादी ईसाई समुदाय की इस हरकत ने पूरे विमर्श को ही बदल दिया है। इसके बावजूद भाजपा इन धमाकों से कोई खास राजनीतिक फायदा नहीं उठा सकी है।
जबकि दूसरी तरफ पिनाराई विजयन ने फिलिस्तीनियों के साथ बड़े पैमाने पर एकजुटता का इजहार कर बड़ी तेजी से अपने पक्ष में राजनीतिक पहल हासिल कर ली है। संघ परिवार की ओर से इस पर राजनीति करने का एक अशक्त प्रयास जरूर किया गया।
फ़िलिस्तीन के साथ विभाजित एकजुटता
फिलिस्तीन के समर्थन में पूरे भारत में सबसे अधिक जन-गोलबंदी के मामले में केरल का प्रदर्शन सबसे प्रभावशाली रहा। 11 नवंबर 2023 को पिनाराई विजयन ने व्यक्तिगत तौर पर सीपीआई (एम) नेता बिमान बोस के साथ गाजा में फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता का इजहार करते हुए एक रैली निकाली।
हालांकि पिनाराई के नेतृत्व में केरल सीपीआई (एम) के पास लाखों-लाख लोगों को जुटाने के लिए आवश्यक संगठनात्मक शक्ति मौजूद थी, लेकिन कोझिकोड की रैली में करीब 50,000 लोग ही शामिल हो सके थे, जिसे मलयालम मीडिया ने उजागर किया था।
वहीं दूसरी तरफ यूडीएफ ने खुद को एक दुखद तमाशे में तब्दील कर लिया, जब कांग्रेस और आईयूएमएल ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता को जाहिर करने के लिए अलग-अलग रैलियां निकालने की घोषणा की।
निरंकुश एलडीएफ सरकार की ओर से कांग्रेस को फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए कोझिकोड समुद्र तट पर रैली की इजाजत देने से भी इंकार कर दिया गया, वहीं उसके द्वारा चुनिंदा तरीके से आईयूएमएल को 26 अक्टूबर को उसी कोझिकोड समुद्र तट पर फ़िलिस्तीनी एकजुटता रैली को आयोजित करने की अनुमति प्रदान कर दी गई थी।
आईयूएमएल के साथ “सांप्रदायिक” टैग लगाने वाली सीपीआई(एम) के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कांग्रेस की मांग को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ आईयूएमएल को रैली में निमंत्रण देकर यूडीएफ के भीतर दरार पैदा करने की कोशिश की। शुरू में तो आईयूएमएल भी इस रैली में भाग लेने का मन बना चुकी थी, लेकिन कांग्रेस के दबाव के बाद उसने सीपीआई (एम) के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।
आई.एन.डी.आई.ए ब्लॉक के बीच की एकता और “धर्मनिरपेक्ष एकता” का यह एक और नमूना है। जहां एक तरफ सीपीआई (एम) ने इंडिया ब्लॉक की आयोजन समिति में भाग लेने से इनकार कर दिया है वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधानसभा चुनावों में सीपीआई (एम)-लेफ्ट के साथ सीट-बंटवारे से इनकार कर दिया है।
राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो फिलिस्तीन के साथ कांग्रेस पार्टी के द्वारा एकजुटता के इजहार को लेकर ठंडा रवैया उन्हें ही पता होगा। इंडिया ब्लॉक की ओर से फ़िलिस्तीन पर कोई संयुक्त पहल नहीं ली गई और सिर्फ संयुक्त-वाम की ओर से अलग-अलग रैलियां आयोजित की गईं।
केरलीयम, सांस्कृतिक मूलनिवासीवाद का एक वामपंथी ब्रांड
अतीत में सीपीआई (एम) ने पश्चिम बंगाल में बंगाली क्षेत्रवाद के मुद्दे को हथियाने की नाकाम कोशिश की थी, जिसमें वह यह गेम ममता से हार गई थी। इसी प्रयोग को एक बार फिर से पिनाराई विजयन केरलियम के बैनर तले सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को शुरू कर रहे हैं, हालांकि राजनीतिक तौर पर यह मामला ठंडा रहा। 1 नवंबर को केरल के स्वतंत्र राज्य बनने के उपलक्ष्य में 67वीं वर्षगांठ मनाने के लिए तिरुवनंतपुरम में एलडीएफ सरकार द्वारा एक सप्ताह तक चलने वाले भव्य उत्सव-केरलीयम की शुरुआत की गई।
इस उत्सव को राज्य की राजधानी में 40 स्थानों पर आयोजित किया गया था। इसमें स्पष्ट रूप से एक देशी, क्षेत्रीय स्वाद था, जो केरल की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा पर केंद्रित था। पारंपरिक केरलीय भोजन बेचने वाले स्टालों के साथ फ़ूड फेस्टिवल आयोजित किया गया। क्लासिकल मलयालम फिल्मों एवं प्रसिद्ध कला फिल्मों की स्क्रीनिंग के लिए फिल्म महोत्सव आयोजित किए गए, जिनके लिए केरल मशहूर रहा है। शिल्प मेलों में अद्भुत केरल हस्तशिल्प के दर्शन हुए। कुछ स्टॉल पर दुर्लभ हर्बल औषधियों की बिक्री की जा रही थी, जिनके लिए केरल विख्यात है।
केरलीयम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम
एक सप्ताह तक चलने वाले इस आयोजन में विभिन्न स्थानों पर कई कला उत्सव आयोजित किए गए, जिनमें आकर्षक नृत्य शैली मोहिनीअट्टम सहित प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा वीणा और कर्नाटक संगीत समारोह और केरल के अनेकों पारंपरिक कला रूपों का प्रदर्शन किया गया। केरलीयम काफी हिट रहा, क्योंकि टीवी पर शुरुआती फुटेज देखने के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने उत्सव में आना शुरू कर दिया था, जिसमें केरल के सुदूर उत्तरी हिस्से में स्थित कन्नूर से भी बड़ी संख्या में लोग आए।
लेकिन इस सबके बावजूद एक पार्टी के रूप में सीपीआई (एम) एक बौद्धिक सांस्कृतिक अगुआ के रूप में उभरने में विफल रही और कुल मिलाकर आयोजन प्रबंधक के तौर पर काम कर रही थी। इसके साथ ही समारोह केरल के एक घिनौने पक्ष को छिपा रहा था।
केरल के किसानों का संकट और किसानों की आत्महत्या
यदि हमें विदर्भ या रायलसीमा में किसानों की आत्महत्याओं के बारे में सुनने को नहीं मिलता, बल्कि सिर्फ विजयन के तहत विपक्ष-शासित केरल और सिद्धारमैया के कर्नाटक में सुनने को मिलता है, तो इसका अर्थ यह है कि कृषि संकट ने एक नया राजनीतिक आयाम ग्रहण कर लिया है। 11 नवंबर 2023 को कोझिकोड जिले के थगाज़ी में एक दलित किसान केजी प्रसाद की आत्महत्या की खबर है। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने अपने इस कदम के लिए केरल सरकार और तीन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जिम्मेदार ठहराया है।
सरकार कैसे इस सबके लिए जिम्मेदार थी? राज्य सरकार की एजेंसियां किसानों से एमएसपी पर धान की खरीदारी करती हैं। लेकिन वे पांच से छह महीने बाद इसका भुगतान करती हैं। हालांकि, उनकी ओर से खरीद प्रमाणपत्र जारी किया जाता है, और किसान अगले सीज़न की खेती के लिए बैंकों से ऋण हासिल करने के लेने के लिए इन प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इन प्रमाणपत्रों को दिखाने के बावजूद, बैंकों ने केजी प्रसाद को ऋण देने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उन्होंने एक बार ऋण चुकाने में चूक कर दी थी।
हालांकि बाढ़ के कारण उनकी फसल बर्बाद हो गई थी और वह समय पर ऋण चुकाने में सक्षम नहीं होने की वजह से डिफाल्टर की श्रेणी में डाल दिए गये थे। उन्होंने बैंक से इस सिलसिले में बातचीत की और वन-टाइम सेटलमेंट कर तय राशि चुका दी। लेकिन इसके बावजूद उनका नाम डिफॉल्टरों की सूची से नहीं हटाया गया, जिसके चलते बैंकों ने उन्हें नए ऋण देने से इनकार कर दिया, क्योंकि डिफॉल्टरों को ऋण न देना उनकी पालिसी में है। नतीजतन, खेती करने में असमर्थ प्रसाद ने हारकर आत्महत्या कर ली।
लेकिन प्रसाद कोई सामान्य किसान नहीं थे। वे आरएसएस से संबद्ध भारतीय किसान संघ के कोझिकोड जिला अध्यक्ष थे। इस वजह से यह आत्महत्या एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गयी है।
2003-2007 के दौरान केरल में किसानों की आत्महत्या एक परिघटना के तौर पर उभर रही थी। केरल के अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी विभाग के एक सर्वेक्षण में उन चार वर्षों के दौरान कृषक आत्महत्या के 979 मामले दर्ज किए गए थे। राजनीतिक नेताओं एवं अधिकारियों ने उन सभी आत्महत्या पीड़ितों के घर-घर जाकर दौरा किया था।
लेकिन इस बार सिर्फ राज्यपाल ने राजनीतिक लाभ उठाने के मकसद से आत्महत्या पीड़िता के घर का दौरा किया है। दूसरी तरफ, न तो पिनाराई विजयन और न ही सीपीआई (एम) के शीर्ष नेताओं ने प्रसाद के घर जाने की जहमत उठाई है। न ही उन्होंने उनके कर्ज के बोझ को लेकर कुछ किया है और न ही नए ऋण की ही कोई व्यवस्था की है।
इसके चलते राज्य में कृषक समुदाय के बीच अशांति की स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि उनमें से अधिकांश किसान ऋणग्रस्तता से पीड़ित हैं। कुट्टनाड में धान की खेती उच्च श्रम लागत की वजह से अलाभकारी हो चुकी है, जबकि आंध्र और तमिलनाडु से सस्ता चावल राज्य में इफरात में आ रहा है।
उपर्युक्त सर्वेक्षण पर आधारित 2007 की 112 पेज की सरकारी रिपोर्ट ने भी इस समस्या की पहचान की थी लेकिन पिनाराई विजयन सरकार ने कुट्टनाड के किसानों के संकट को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। यह संकट अकेले प्रसाद का नहीं है। उनकी मृत्यु केरल कृषक समुदाय में मौजूद व्यापक संकट का प्रतीक है।
धान के किसानों के अलावा, केरल के 12 लाख रबर उत्पादक किसान भी रबर की कीमतों में भारी गिरावट के करण संकटग्रस्त हैं। इनमें से ज्यादातर किसान कोट्टायम जिले में केंद्रित हैं, जो श्रीलंका और मलेशिया से आयातित सस्ते रबर के कारण कीमतों में लगातार गिरावट की वजह से गंभीर संकट में हैं। इसी प्रकार केरल में छोटे चाय उत्पादकों को भी गंभीर मूल्य संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि ताजी हरी चाय की पत्तियों की नीलामी कीमत पिछले साल के 17 रुपये प्रति किलोग्राम से गिरकर 10 रुपये हो चुकी है।
मसालों की खेती से जुड़े किसानों को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है। 2011 में अदरक की खेती से जुड़े 3 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी और निर्यात मार्केट में पिछले 12 वर्षों के दौरान अदरक की खेती और भी घाटे का सौदा हो गई है। इलायची किसानों को भी इसी प्रकार के संकट से दो-चार होना पड़ रहा है। अकेले इडुक्की जिले के 40,000 इलायची किसान कोरोना संकट और उसके बाद आई बाढ़ की मार से उबर नहीं सके हैं।
पिनाराई विजयन की ओर से केंद्र पर दोषारोपण का क्रम जारी है, लेकिन वे अपनी ओर से किसानों के संकट को कम करने के लिए सब्सिडी वाली इनपुट और श्रम लागत के लिए सब्सिडी जैसी राज्यस्तरीय कोई कल्पनाशील नीतिगत पहल लेने में विफल रहे हैं।
पिनाराई के परिवार को सता रहा भ्रष्टाचार का भूत
पिनाराई के शासन में भ्रष्टाचार और घोटाले लगातार परेशान करने वाले साबित हो रहे हैं। उम्मीद है कि केरल उच्च न्यायालय द्वारा 2017 में एसएनसी-लवलीन मामले में पिनाराई के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज करने और सोने के आयात मामले की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज करने के बाद एसएनसी-लवलिन घोटाले और सोने के आयात घोटाले के भूत पर विराम लग गया होगा।
ध्यान देने वाली बात यह है कि अप्रैल 2023 में प्रमुख आरोपियों में से एक स्वप्ना सुरेश ने पिनाराई विजयन की बेटी मीना पर राजनयिक चैनलों के माध्यम से सैकड़ों किलोग्राम सोने के अवैध आयात में मुख्य लाभार्थी होने का आरोप लगाया था, लेकिन केरल उच्च-न्यायालय द्वारा इस याचिका को भी खारिज कर दिया गया था।
संयोगवश कम्युनिस्ट सीएम की बेटी वीणा एक नवोदित पूंजीपति हैं, जो एक आईटी फर्म एक्सालॉजिक सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड की मालिक हैं। भ्रष्टाचार के भूत ने एक बार फिर से अपना सिर तब उठा लिया, जब आईटी विभाग की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि कोच्चि स्थित रेत-खनन कंपनी कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड (सीएमआरएल) ने वीना की कंपनी एक्सालॉजिक को 1.72 करोड़ रुपये का “सेवा शुल्क” प्रदान किया है। हालांकि कंपनी की ओर से कोई सर्विस नहीं दी गई है।
राज्य प्रशासन के तहत सतर्कता न्यायालय ने सीएमआरएल की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। लेकिन अजीब बात है कि याचिकाकर्ता, गिरीश बाबू जो कि एक कार्यकर्ता थे, की सितंबर 2023 में कलामासेरी में हत्या कर दी गई, और केरल पुलिस अभी तक हत्यारों की पहचान नहीं कर पाई है। कुल मिलाकर कहा जाये तो मामले को दबा दिया गया, क्योंकि चेन्निताला जैसे कांग्रेस नेता भी सीएमआरएल से भुगतान प्राप्त करने वालों में से एक हैं।
इसके अतिरिक्त, सीपीआई (एम) के स्थानीय नेता और यहां तक कि सीपीआई व कांग्रेस नेता- दो सहकारी बैंकों- तिरुवनंतपुरम में कंडाला बैंक और वायनाड में पुलपल्ली बैंक में सामने आए घोटालों में शामिल थे।
पिनाराई की नव-उदारवादी मुहिम एक बड़ी नाकामी
पिनाराई विजयन केरल में सीपीआई (एम) पार्टी एवं प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाले एक सशक्त व्यक्ति कहे जा सकते हैं। उनके नव-उदारवादी घुमाव के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, जिसमें उनकी पसंदीदा और विवादास्पद सिल्वरलाइन हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना भी शामिल है। इसके लिए पिनाराई ने अमेरिका समेत कुल 12 विदेश यात्राएं की हैं। इस सिलसिले में उन्होंने और उनके मंत्रियों ने मिलकर खाड़ी देशों, सिंगापुर, यूरोप और अमेरिका समेत कुल 50 विदेशी यात्राएं कीं।
इन यात्राओं का कुल सिला यह निकला है कि, पिछले 6 वर्षों में केरल में वे मात्र 300 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश ही ला सके। सीपीआई (एम) में कई लोगों ने एक बार फिर से बुद्धदेव भट्टाचार्य की किस्मत को याद करना शुरू कर दिया है, जिन्होंने पूर्व में कुछ इसी तरह के नव-उदारवादी रुख को अपनाया था। अब तो सिर्फ यही उम्मीद की जा सकती है कि इतिहास स्वयं को एक बार फिर से न दोहराए।
(बी. सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। [email protected] पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)
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