तेलंगाना में कांग्रेस-बीआरएस ने दिया सवर्णों को ज्यादा टिकट, पिछड़ों के प्रतिनिधित्व पर सिर्फ ‘चर्चा’

नई दिल्ली। देश की राजनीति में लंबे समय से विभिन्न समुदायों और जातियों को उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व देने की मांग होती रही है। साठ के दशक में सोशलिस्ट नेता राम मनोहर लोहिया पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक और महिलाओं की भागीदारी का सवाल प्रमुखता से उठाते रहे हैं। बाद में अधिकांश मध्यममार्गी राजनीतिक दल मसलन सपा, बसपा, राजद, जेडीयू और दक्षिण भारत की सारी पार्टियां डीएमके, अन्नाडीएमके, तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल (सेकुलर) और टीआरएस (अब बीआरएस) दलितों-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की भागीदारी की मांग करते रहे हैं। यह बात अलग है कि साठ के दशक में यह मांग कांग्रेस से होती थी, लेकिन अब कांग्रेस भी इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द अपनी राजनीति कर रही है।

आश्चर्य की बात यह है कि कुछ दशक पहले जो दल पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की भागीदारी के मुद्दे पर मुखर थे सत्ता में आने के बाद वह न केवल इस पर मौन है बल्कि अपनी पार्टी में भी वह इन तबकों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दे सके हैं। ताजा मामला तेलंगाना विधानसभा चुनाव का है। जहां पर कांग्रेस और बीआरएस ने पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को उनकी संख्या के अनुपात में टिकट देने के बजाए राज्य की तीन प्रभावशाली जातियों- रेड्डी, वेलमा और कम्मा को ज्यादा टिकट दिया है। जबकि राज्य में उनकी संख्या कम है।

तेलंगाना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी, वेलमा और कम्मा कांग्रेस और बीआरएस में अपनी आबादी के हिसाब से ज्यादा प्रतिनिधित्व पाने में सफल रहे हैं। राज्य में मुसलमानों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। लेकिन बीआरएस ने 3 और कांग्रेस ने 6 टिकट ही मुसलमानों को दिए हैं। जबकि आबादी के अनुपात में उनको प्रत्येक पार्टी से कम से कम 15 टिकट मिलना चाहिए था। भाजपा की सूची में कोई मुसलमान नहीं है। हालांकि मुसलमान भाजपा से टिकट की उम्मीद कम ही करता है।

यह बात अलग है कि विधानसभा चुनाव-2018 में कांग्रेस ने मुसलमानों को 8 टिकट दिया था। लेकिन तब कांग्रेस के किसी मुस्लिम प्रत्याशी को जीत नहीं मिली थी।

हालांकि तेलंगाना में चुनाव प्रचार अब भी पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के इर्द-गिर्द घूम रहा है, लेकिन चुनावी मैदान में तीन प्रमुख दल-सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), कांग्रेस और भाजपा ने बड़ी संख्या में उच्च जाति के उम्मीदवारों को उतारा है। बीआरएस और कांग्रेस की सूची में उच्च जाति के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी ओबीसी से अधिक है। मुख्य रूप से राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लेकिन संख्यात्मक रूप से बहुत छोटे रेड्डी, वेलमा और कम्मा समुदाय से।

अपने चुनाव अभियान में भाजपा ने सत्ता में आने पर एक ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है, लेकिन विधानसभा चुनाव बांटते समय उसे पिछड़ों की याद नहीं आई। भाजपा ने चुनावी मैदान में 30 रेड्डी उम्मीदवारों (27 प्रतिशत) को मैदान में उतारा है। जबकि राज्य में रेड्डी समुदाय की आबादी लगभग 7 प्रतिशत है। भाजपा 119 में से 111 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, बाकी सीटें अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के लिए छोड़ी गई है।

दूसरी ओर, कांग्रेस को अपने ओबीसी नेताओं के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो अधिक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं। पार्टी नेताओं ने ओबीसी के लिए कुल 51 सीटों की मांग की थी। लेकिन उनकी मांग पूरी नहीं हुई। कांग्रेस ने उच्च जाति के 11 अन्य उम्मीदवारों के अलावा 26 रेड्डी (25 प्रतिशत) उम्मीदवारों को टिकट दिया है। कांग्रेस 119 में से 116 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि तीन सीटें उसके वामपंथी सहयोगियों को दी गई हैं।

बीआरएस सरकार पर कांग्रेस-भाजपा ओबीसी की उपेक्षा करने का आरोप लगा रहे हैं। फिर भी बीआरएस ने टिकट वितरण में ऊंची जातियों को प्राथमिकता दी है, जिसमें 35 रेड्डी (29 प्रतिशत) उम्मीदवार हैं। इसके अलावा, पार्टी ने वेलामा (केसीआर की जाति), कम्मा और ब्राह्मण जैसी अन्य ऊंची जातियों के 16 अन्य उम्मीदवारों को टिकट आवंटित किए हैं। केसीआर के नेतृत्व वाली पार्टी सभी 199 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

तेलंगाना में भाजपा ने ओबीसी समुदाय को 39 (35 प्रतिशत) टिकट दिया है। यह कांग्रेस और बीआरएस से ज्यादा है। सत्तारूढ़ बीआरएस ने 24 ओबीसी (20 प्रतिशत) उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने 20 (18 प्रतिशत) टिकट पिछड़ा समुदाय को दिया है।

तीनों दलों ने केवल आरक्षित सीटों पर एससी और एसटी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। तेलंगाना में 19 एससी-आरक्षित सीटें हैं और 11 एसटी के लिए रखी गई हैं।

हाल ही में, तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) के प्रमुख रेवंत रेड्डी ने बीआरएस पर महिलाओं को दरकिनार करने का आरोप लगाया और कांग्रेस के सत्ता में आने पर महिलाओं को चार मंत्री पद देने का वादा किया। लेकिन उनकी पार्टी ने केवल 11 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने 15 महिलाओं को टिकट दिया है। और बीआरएस ने केवल 8 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

2014 के राज्य में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, तेलंगाना की आबादी में 52 प्रतिशत ओबीसी शामिल हैं, जबकि रेड्डी की आबादी लगभग 7 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति (एससी) लगभग 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) लगभग 9 प्रतिशत हैं।

तेलंगाना में मुसलमानों का रुझान किस तरफ?

2014 में राज्य के विभाजन तक मुसलमानों के बीच कांग्रेस का सबसे ज्यादा असर था। लेकिन राज्य विभाजन के बाद इसमें गिरावट आई। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेलंगाना में पिछले दो विधानसभा चुनावों से मुसलमान भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन 30 नवंबर को होने वाले चुनावों में कुछ हद तक कांग्रेस की ओर झुकने की संभावना जताई जा रही है।

तेलंगाना में मुसलमानों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है, जो राज्य के 119 विधानसभा क्षेत्रों में से कम से कम 45 सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कड़ी लड़ाई की स्थिति में संतुलन को बीआरएस या कांग्रेस की ओर झुकाने की क्षमता रखते हैं।

संयुक्त आंध्र प्रदेश के दौरान मुसलमानों ने कांग्रेस का समर्थन किया था क्योंकि वह ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ मित्रता में थी और भारतीय जनता पार्टी का विरोध कर रही थी। लेकिन इस चुनाव में 9 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एआईएमआईएम ने बाकी सीटों पर बीआरएस का समर्थन किया है।

हालांकि मुसलमानों का एक वर्ग तेलुगु देशम पार्टी का समर्थन करता था, लेकिन मुसलमानों का बड़ा तबका कांग्रेस को समर्थन करता था। वाई एस राजशेखर रेड्डी सरकार के दौरान, उन्हें शिक्षा और रोजगार में चार प्रतिशत आरक्षण भी मिला।

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नागेश्वर ने कहा, “कांग्रेस का आत्मविश्वास इस तथ्य से बढ़ा है कि हाल के विधानसभा चुनावों में मुसलमानों ने पड़ोसी राज्य कर्नाटक में बड़ी संख्या में मतदान किया और इसका निश्चित रूप से तेलंगाना पर भी कुछ प्रभाव पड़ेगा।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि कर्नाटक में अलग परिदृश्य था क्योंकि वहां कांग्रेस के सामने भाजपा मुख्य प्रतिद्वंद्वी थी। “इसलिए, मुसलमानों के पास कांग्रेस को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तेलंगाना में कांग्रेस के समक्ष भाजपा नहीं बीआरएस मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। ”

हालांकि, यह बात देश भर में और तेलंगाना में भी मुसलमानों के बीच तेजी से फैल रही है कि कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा से मुकाबला कर सकती है। साथ ही, तेलंगाना में मुसलमानों के बीच एक आम धारणा भी मजबूत हो रही है कि बीआरएस का भाजपा के साथ गुप्त समझौता है। यह कांग्रेस के पक्ष में काम कर सकता है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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