आप और भाजपा के बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर शह मात का खेल शुरू हो गया है। 70 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव 2025 के शुरुआत में होंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने 62 सीटें जीती थीं, शेष 8 भाजपा ने जीता था। कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिल पाई थी।
इस बार Lead लेते हुए आप पार्टी ने 21 नवंबर को अपने 11 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी और 9 दिसंबर को दूसरी लिस्ट भी जारी कर दी। उधर कांग्रेस ने भी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। उम्मीद है भाजपा की पहली लिस्ट भी शीघ्र जारी होगी।
इंडिया गठबंधन का सदस्य होने के बावजूद आप ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। अगर देखा जाय तो इंडिया गठबंधन के साथ आप पार्टी का रिश्ता असहज ही रहा है।
लोकसभा चुनाव में जरूर गठबंधन का स्वरूप दिखा था, जब राहुल गांधी और केजरीवाल ने अपने-अपने पोलिंग बूथ पर एक दूसरे के लिए वोट किया था जिस पर भाजपा नेताओं ने तंज भी किया था।
लेकिन उसके बाद अभी हरियाणा में भी कांग्रेस और आप पार्टी अलग-अलग ही लड़े थे।
दरअसल इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की लगातार पराजय के बाद नेतृत्व के सवाल पर विवाद शुरू हो गया है और सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते अब तक स्वाभाविक नेता रही कांग्रेस अलग-थलग पड़ती जा रही है। शरद पवार, लालू, सपा आदि ने ममता बनर्जी को गठबंधन का नेता बनाए जाने का समर्थन किया है।
कई सवालों पर गठबंधन के सदस्यों के बीच मतभेद भी उभर कर आ रहा है। अयोध्या विवाद पर शिवसेना नेता के बयान को लेकर सपा ने MVA से अलग होने का ऐलान किया है, सपा नेता आजम खान ने पूछा है कि इस प्रकरण पर इंडिया गठबंधन का स्टैंड क्या है ?
दिल्ली में आप और भाजपा की लड़ाई का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि इनके बीच इस बात की प्रतियोगिता होती है कि दोनों में हिंदू हितों का बड़ा पैरोकार कौन है अर्थात हिंदू तुष्टिकरण की प्रतिस्पर्धा होती है।
अब एक बार फिर वही खेल शुरू हो गया है रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर। दोनों में इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि रोहिंग्या को किसने दिल्ली में बसाया।
दरअसल आप हमेशा इस बात को लेकर चौकन्नी रहती है कि कहीं भाजपा उसके ऊपर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने में सफल न हो जाय, इसलिए वह उससे बढ़कर अपने को हिंदू हितों का पैरोकार साबित करने में लगी रहती है। वह चाहे हनुमान चालीसा का मामला हो या दिल्ली के बुजुर्गों को अयोध्या राम मंदिर दर्शन का मुद्दा हो।
2022 में जहांगीरपुरी के अल्पसंख्यक बहुल इलाके में हिंसा और तोड़फोड़ हुई थी तब आप ने भाजपा पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बसाकर दंगे करवाने का आरोप लगाया था। शाहीन बाग आंदोलन से आप पार्टी ने दूरी बनाकर रखी थी।
यहां तक कि दिल्ली में जब दंगे हुए, तब भी आप ने अल्पसंख्यकों के ऊपर हो रहे जुल्म को अनदेखा किया और उनके कठिन समय में उनके साथ खड़ी नहीं हुई। अब एक बार फिर रोहिंग्या मुसलमानों के सवाल पर प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। भाजपा ने आप पर उनका वोट बैंक बनाकर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।
तो आप ने केंद्रीय मंत्री पुरी का पुराना बयान उद्धृत करते हुए पलटवार किया है कि केंद्र सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया है। उधर अमित शाह के गृह मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार को डिटेंशन सेंटर बनाना चाहिए था, जो उसने नहीं बनाया है।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। भारत हमेशा से पड़ोसी देशों से आने वाले प्रताड़ित लोगों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करता रहा है। मोदी सरकार ने विदेश से आने वालों के लिए बाकायदा कानून बना दिया, CAA, लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया।
1971 में लाखों शरणार्थी तब के पूर्वी पाकिस्तान से, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के भारत में आकर शरण लिए थे। लेकिन आज रोहिंग्या जो संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार सबसे ज्यादा भेदभाव और प्रताड़ना के शिकार समूह हैं, उनके भागकर भारत आने को मुद्दा बनाया जा रहा है और उनके नाम पर राजनीति की जा रही है, जिसमें प्रतिस्पर्धा में AAP पार्टी भी शामिल है।
इस बीच आप पार्टी ने आरोप लगाया है कि बड़ी संख्या में उनके लोगों के नाम मतदाता सूची से काटे जा रहे हैं। शाहदरा का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां 11018 लोगों का नाम काट दिया गया है। जब 500 लोगों का नाम सर्च किया गया तो पता चला कि उसमें से 75% लोग आज भी वहीं रह रहे हैं, फिर भी उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है।
गौरतलब है कि पिछले चुनाव में वहां से आप पार्टी 5000 वोटों से जीती थी। दरअसल यह एक आम शिकायत है और बड़े पैमाने पर चुनाव नतीजों को इससे प्रभावित किया जा रहा है। अभी चुनाव आयोग को सौंपे गए एक प्रतिवेदन में महाराष्ट्र के नेताओं ने बताया है कि वहां जुलाई से नवंबर के बीच 47 लाख वोटर बढ़ गए।
जिन 50 सीटों पर औसतन 50 हजार वोट बढ़ गए उसमें से 47 सीटें भाजपा और महायुति के खाते में चली गईं।
आप पार्टी ने मांग किया है कि भाजपा ने जो नाम हटाने के लिए चुनाव आयोग से अपील किया है उन्हें सार्वजनिक किया जाय।
दरअसल चुनाव दर चुनाव अब यह साफ होता जा रहा है कि सीट दर सीट भाजपा का जो बहुचर्चित माइक्रो मैनेजमेंट है, उसका पहला कदम यही है कि विपक्षी दलों के प्रति रुझान रखने वाले मतदाताओं के नाम बड़ी संख्या में काट दिए जाते हैं और भाजपा समर्थकों के नाम बड़ी संख्या में जोड़ दिए जाते हैं।
दिल्ली के मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न बेहद रोचक है। वे हर बार लोकसभा की सारी सीटें भाजपा को दे रहे हैं और विधानसभा में प्रचंड बहुमत आप पार्टी को दे रहे हैं। पिछले दस साल से यह सिलसिला जारी है। अर्थात कमोबेश एक ही मतदाता समूह दो चुनावों में अलग-अलग दलों को वोट दे रहा है।
दरअसल इसके पीछे दोनों दलों के बीच मौजूद समानताएं हैं। भाजपा की तरह ही आप पार्टी भी सॉफ्ट हिंदुत्व के प्लैंक पर राजनीति करती है और शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी आदि के क्षेत्र में उसके कार्यक्रमों से आम लोग लाभान्वित होते हैं।
वे एक राष्ट्रीय पार्टी के बतौर राष्ट्रीय राजनीति के लिए लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट करते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में बेहतर लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए क्षेत्रीय पार्टी आप को वोट करते हैं।
आप पार्टी दिसंबर 2013 से दिल्ली में सत्तारूढ़ है। (फरवरी 2014 से फरवरी 2015 तक के समय को छोड़कर जब वहां राष्ट्रपति शासन था)।
आप पार्टी जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली पानी आदि पर अपनी सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित कर रही हैं, महाराष्ट्र MP झारखंड की तर्ज पर वह महिला सम्मान योजना का भी वायदा कर रही है। पहले प्रस्ताव 1000 रू का था, लेकिन अब उसे बढ़ाकर 2100 रू कर दिया गया है।
केजरीवाल ने कहा है कि रजिस्ट्रेशन तो अभी शुरू हो जाएगा लेकिन खाते में पैसा चुनाव के बाद जाएगा क्योंकि चुनाव संहिता लागू होने वाली है। वहीं जो विषय केंद्र की भाजपा सरकार के दायरे में हैं मसलन कानून व्यवस्था, पुलिस, दिल्ली में बढ़ते अपराध आदि, इन सबको लेकर वह भाजपा पर हमलावर है।
हालांकि भाजपा पुलिस अधिकारियों से आंकड़ों का खेल करवाकर यह साबित करने में लगी है कि उसकी कानून व्यवस्था पहले से बेहतर है।
भाजपा आप पार्टी के कथित भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण को बड़ा मुद्दा बनाने के प्रयास में है। इसी के तहत वहां के उपराज्यपाल ने अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ दो महीने अभियान चलाने का आदेश दिया है। दिल्ली पुलिस अब रोज अवैध बांग्लादेशी के नाम पर गिरफ्तारियां कर रही है।
उधर अमित शाह ने गृह सचिव के माध्यम से आदेश दिया है कि हर थाने में यह पता किया जाय कि वहां कितने हिंदू मुस्लिम सिख और ईसाई हैं, अनधिकृत कालोनियां कितनी हैं आदि। उधर ऑटो ड्राइवरों को अपने पक्ष में जीतने के लिए दोनों दलों ने अपना पिटारा खोल दिया है।
आप पार्टी ने 10 लाख के बीमा कवर, लड़की की शादी में एक लाख की सहायता, यूनिफॉर्म के लिए हर साल पांच हजार रु आदि का वायदा किया है तो भाजपा ने उनके बच्चों को मुफ्त शिक्षा, उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति, आवास आदि का वचन दिया है।
कांग्रेस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली में आप सरकार की वापसी होती है या हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव से उत्साहित भाजपा दस साल बाद बाजी पलटने में सफल होती है।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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