याचिका के साथ लगाया फर्जी कोर्ट आदेश, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक जांच का दिया निर्देश

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट को हाल ही में एक ऐसी याचिका प्राप्त हुई, जिसमें एक मनगढ़ंत दस्तावेज़ को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के रूप में पेश किया गया था। यह महसूस होने पर कि आदेश मनगढ़ंत है, न्यायालय ने आपराधिक जांच का आदेश दिया। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा, कि रजिस्ट्रार की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय के आदेश की एक प्रति होने का दावा करने वाला दस्तावेज, जिसे रिपोर्ट में एनेक्जर-III के जरिए मार्क किया गया है, एक मनगढ़ंत दस्तावेज़ है। इसलिए, रजिस्ट्रार (न्यायिक सूची) को संबं‌धित पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करके आपराधिक कानून को लागू करना चाहिए।

यह मुद्दा एक एसएलपी से जुड़ा है, जिसमें अनुलग्नक ए और बी में न्यायालय के 25 जुलाई, 2022 के दो आदेश शामिल थे, जो उसी पीठ द्वारा पारित किए गए थे। पहला आदेश बर्खास्तगी का था, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि दूसरा आदेश एसएलपी की अनुमति देने का था। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि न्यायालय के रिकॉर्ड के अनुसार, उद्धृत आदेश वास्तव में न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था।

गौरतलब है कि इस मामले को लेकर एक वादी द्वारा शिकायत दर्ज करायी गयी थी। संबंधित दस्तावेजों पर गौर करने के बाद, अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस पहलू की जांच करने और अदालत को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने तभी यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि यह इस न्यायालय के आदेशों की जालसाजी का मामला है, तो आपराधिक कानून को लागू करना होगा। रजिस्ट्रार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की जांच करने के बाद, न्यायालय ने माना कि यह स्पष्ट है कि एसएलपी में अनुलग्नकों में से एक के रूप में चिह्नित न्यायालय का आदेश मनगढ़ंत है।

न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि नोटिस जारी होने के बावजूद संबंधित वकील उपस्थित नहीं हुए। इसलिए कोर्ट ने कहा कि वकील द्वारा कथित तौर पर निभाई गई भूमिका की जांच करना जांच एजेंसी का काम है। इसके अलावा, न्यायालय ने रजिस्ट्रार को शिकायत दर्ज करते समय अपनी रिपोर्ट में उल्लिखित अनुलग्नकों के साथ इस आदेश की एक प्रति प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

26 सितंबर को पारित आदेश में न्यायालय ने उक्त मामले में समय पर जांच सुनिश्चित करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को आदेश की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर जांच के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

याचिका दायर करने में दो वकील शामिल दिखे। हालांकि, इनमें से एक वकील, प्रीति मिश्रा नोटिस जारी होने के बाद अदालत में पेश नहीं हुईं, जबकि एडवोकेट-ऑन रिकॉर्ड आफताब अली खान मौजूद थे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जांच एजेंसी उस वकील की कथित भूमिका की जांच करने के लिए स्वतंत्र है जो पेश नहीं हुआ। मामले की अगली सुनवाई 1 दिसंबर को होगी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments